"फतेहपुर बेरी, असोला": अवतरणों में अंतर

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'''असोला फतेहपुर बेरी''' [[दिल्ली]] के पुराने गाँवों में से एक है। इस गाँव की यह अनोखी बात है कि इस गाँव का हर लड़का एक ही सपना देखता है, [[पहलवानी|पहलवान]] बनना और देश के लिए कुछ करना ! समाज में देशभक्ति की भावना जगाना, खेल के मैदान में देश को आगे ले जाना।
'''असोला फतेहपुर बेरी''' [[दिल्ली]] के पुराने गाँवों में से एक है। इस गाँव की यह अनोखी बात है कि इस गाँव का हर लड़का एक ही सपना देखता है, [[पहलवानी|पहलवान]] बनना और देश के लिए कुछ करना ! समाज में देशभक्ति की भावना जगाना, खेल के मैदान में देश को आगे ले जाना।


इस गाँव में पहलवानी की शुरुआत लेखराज गुरूजी, लाला पहलवान, जय प्रकाश पहलवान, विजय पहलवान एवं कुछ अन्य पहलवानों से हुई, जो अभी गाँव के खेल के स्तर को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। गाँव में कई युवा लड़कों को पहलवान बनने के लिए एक प्रेरणा बन गए। इसका कारण यह है कि गाँव के लड़कों को खेल और कुश्ती के रूप में शारीरिक गतिविधियों में शिक्षाविदों से अधिक रुचि रखते हैं और कई अनपढ़ पहलवानों जो सेना में शामिल करने में असमर्थ थे, वे अन्य पहलवानो की सफलता से प्रेरित थे।
इस गाँव में पहलवानी की शुरुआत लेखराज गुरूजी, लाला पहलवान, जय प्रकाश पहलवान, विजय पहलवान एवं कुछ अन्य पहलवानों से हुई, जो अभी गाँव के खेल के स्तर को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। गाँव में कई युवा लड़कों को पहलवान बनने के लिए एक प्रेरणा बन गए। इसका कारण यह है कि गाँव के लड़कों को खेल और कुश्ती के रूप में शारीरिक गतिविधियों में शिक्षाविदों से अधिक रुचि रखते हैं और कई अनपढ़ पहलवानों जो सेना में शामिल करने में असमर्थ थे, वे अन्य पहलवानों की सफलता से प्रेरित थे।


इस गाँव के पहलवान पब, बार और राष्ट्रीय राजधानी के नाइट क्लबों पर काम करते हैं और स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों के [[अंगरक्षक]] के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा ये निजी कॉलेजों, अस्पतालों और महँगे होटलों में भी काम करते हैं। वे जिम और स्वस्थ भोजन की मदद से, कठिन सत्र के साथ अपनी माँसपेशियों में विकास को बनाए रखते हैं।
इस गाँव के पहलवान पब, बार और राष्ट्रीय राजधानी के नाइट क्लबों पर काम करते हैं और स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों के [[अंगरक्षक]] के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा ये निजी कॉलेजों, अस्पतालों और महँगे होटलों में भी काम करते हैं। वे जिम और स्वस्थ भोजन की मदद से, कठिन सत्र के साथ अपनी माँसपेशियों में विकास को बनाए रखते हैं।
इस गाँव में एक जिम है। इस जिम में 3000 वर्ग फुट का सीमेंट निर्माण हैं जहाँ मशीनों, रैक और वजन बेंच उपलब्ध हैं और यहाँ पर पहलवान व्यायाम करते हैं। और यह जिम सुबह ४ बजे खुलता हैं और रात १० बजे तक खुला रहता हैं। हर [[पहलवानी|पहलवान]] के व्यायाम अवधि दो या तीन घंटे लंबी होती है। ये पहलवान व्यायाम ही नहीं करते अपितु यह लोग [[कुश्ति]] का अभ्यास और योगासन भी करते हैं जो इन्हे धैर्य, नियंत्रण, शांत रहने में मदद करता है एवं मानसिक शक्ति को बढ़ाता है।
इस गाँव में एक जिम है। इस जिम में 3000 वर्ग फुट का सीमेंट निर्माण हैं जहाँ मशीनों, रैक और वजन बेंच उपलब्ध हैं और यहाँ पर पहलवान व्यायाम करते हैं। और यह जिम सुबह ४ बजे खुलता हैं और रात १० बजे तक खुला रहता हैं। हर [[पहलवानी|पहलवान]] के व्यायाम अवधि दो या तीन घंटे लंबी होती है। ये पहलवान व्यायाम ही नहीं करते अपितु यह लोग [[कुश्ती]] का अभ्यास और योगासन भी करते हैं जो इन्हे धैर्य, नियंत्रण, शांत रहने में मदद करता है एवं मानसिक शक्ति को बढ़ाता है।


इन पहलवानों के परिवार अपने सदस्यों के पहलवान होने से खुश एवं संतुष्ट हैं। वे समझते हैं कि यह लड़के अवैध रूप से पैसा नहीं कमा रहे हैं और किन्हीं भी समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहे हैं और वे गरिमा के साथ काम करते हैं और इस बात से उनके परिवार के लोगों को गर्व होता है। इन पहलवानों ने भारत में [[संस्कृति]] में भी योगदान दिया है।
इन पहलवानों के परिवार अपने सदस्यों के पहलवान होने से खुश एवं संतुष्ट हैं। वे समझते हैं कि यह लड़के अवैध रूप से पैसा नहीं कमा रहे हैं और किन्हीं भी समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहे हैं और वे गरिमा के साथ काम करते हैं और इस बात से उनके परिवार के लोगों को गर्व होता है। इन पहलवानों ने भारत में [[संस्कृति]] में भी योगदान दिया है।

04:07, 10 नवम्बर 2020 का अवतरण

असोला फतेहपुर बेरी दिल्ली के पुराने गाँवों में से एक है। इस गाँव की यह अनोखी बात है कि इस गाँव का हर लड़का एक ही सपना देखता है, पहलवान बनना और देश के लिए कुछ करना ! समाज में देशभक्ति की भावना जगाना, खेल के मैदान में देश को आगे ले जाना।

इस गाँव में पहलवानी की शुरुआत लेखराज गुरूजी, लाला पहलवान, जय प्रकाश पहलवान, विजय पहलवान एवं कुछ अन्य पहलवानों से हुई, जो अभी गाँव के खेल के स्तर को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। गाँव में कई युवा लड़कों को पहलवान बनने के लिए एक प्रेरणा बन गए। इसका कारण यह है कि गाँव के लड़कों को खेल और कुश्ती के रूप में शारीरिक गतिविधियों में शिक्षाविदों से अधिक रुचि रखते हैं और कई अनपढ़ पहलवानों जो सेना में शामिल करने में असमर्थ थे, वे अन्य पहलवानों की सफलता से प्रेरित थे।

इस गाँव के पहलवान पब, बार और राष्ट्रीय राजधानी के नाइट क्लबों पर काम करते हैं और स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों के अंगरक्षक के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा ये निजी कॉलेजों, अस्पतालों और महँगे होटलों में भी काम करते हैं। वे जिम और स्वस्थ भोजन की मदद से, कठिन सत्र के साथ अपनी माँसपेशियों में विकास को बनाए रखते हैं।

इस गाँव में एक जिम है। इस जिम में 3000 वर्ग फुट का सीमेंट निर्माण हैं जहाँ मशीनों, रैक और वजन बेंच उपलब्ध हैं और यहाँ पर पहलवान व्यायाम करते हैं। और यह जिम सुबह ४ बजे खुलता हैं और रात १० बजे तक खुला रहता हैं। हर पहलवान के व्यायाम अवधि दो या तीन घंटे लंबी होती है। ये पहलवान व्यायाम ही नहीं करते अपितु यह लोग कुश्ती का अभ्यास और योगासन भी करते हैं जो इन्हे धैर्य, नियंत्रण, शांत रहने में मदद करता है एवं मानसिक शक्ति को बढ़ाता है।

इन पहलवानों के परिवार अपने सदस्यों के पहलवान होने से खुश एवं संतुष्ट हैं। वे समझते हैं कि यह लड़के अवैध रूप से पैसा नहीं कमा रहे हैं और किन्हीं भी समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहे हैं और वे गरिमा के साथ काम करते हैं और इस बात से उनके परिवार के लोगों को गर्व होता है। इन पहलवानों ने भारत में संस्कृति में भी योगदान दिया है।