"शाकटायन": अवतरणों में अंतर

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'''शाकटायन''' नाम के दो व्यक्ति हुए हैं, एक [[वैदिक काल]] के अन्तिम चरण के [[वैयाकरण]], तथा दूसरे ९वीं शताब्दी के [[अमोघवर्ष नृपतुंग]] के शासनकाल के वैयाकरण।
'''शाकटायन''' नाम के दो व्यक्ति हुए हैं, एक [[वैदिक काल]] के अन्तिम चरण के [[वैयाकरण]], तथा दूसरे ९वीं शताब्दी के [[अमोघवर्ष नृपतुंग]] के शासनकाल के वैयाकरण।


[[वैदिक काल]] के अन्तिम चरण (८वीं ईसापूर्व) के शाकटायन, [[संस्कृत व्याकरण]] के रचयिता है हैं। उनकी कृतियाँ अब उपलब्ध नहीं हैं किन्तु [[यक्ष]], [[पाणिनि]] एवं अन्य [[संस्कृत]] [[वैयाकरण|वैयाकरणों]] ने उनके विचारों का सन्दर्भ दिया है।
[[वैदिक काल]] के अन्तिम चरण (८वीं ईसापूर्व) के शाकटायन, [[संस्कृत व्याकरण]] के रचयिता है हैं। उनकी कृतियाँ अब उपलब्ध नहीं हैं किन्तु [[यास्क]], [[पाणिनि]] एवं अन्य [[संस्कृत]] [[वैयाकरण|वैयाकरणों]] ने उनके विचारों का सन्दर्भ दिया है।


इस बात के प्रमाण हैं कि प्राचीन जैन व्याकरण
इस बात के प्रमाण हैं कि प्राचीन जैन व्याकरण

15:31, 7 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

शाकटायन नाम के दो व्यक्ति हुए हैं, एक वैदिक काल के अन्तिम चरण के वैयाकरण, तथा दूसरे ९वीं शताब्दी के अमोघवर्ष नृपतुंग के शासनकाल के वैयाकरण।

वैदिक काल के अन्तिम चरण (८वीं ईसापूर्व) के शाकटायन, संस्कृत व्याकरण के रचयिता है हैं। उनकी कृतियाँ अब उपलब्ध नहीं हैं किन्तु यास्क, पाणिनि एवं अन्य संस्कृत वैयाकरणों ने उनके विचारों का सन्दर्भ दिया है।

इस बात के प्रमाण हैं कि प्राचीन जैन व्याकरण पाणिनी की अष्टाध्यायी से पहले अस्तित्व में है। इस पुस्तक में पाणिनि ने कई प्रसिद्ध व्याकरणों का उल्लेख किया है जो अतीत में अस्तित्व में था। ऐसा ही एक लेखक था शाकटायन आचार्य जिनकी पुस्तक प्रार्थना से शुरू होती है, जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि वह जैन आदेश के थे।

शक्तिमान ने तीर्थंकर महावीर को श्रद्धांजलि देकर अपना काम शुरू किया.

शाकटायन ने तीर्थंकर महावीर को श्रद्धांजलि देकर अपना काम शुरू किया |

शाकटायन का विचार था कि सभी संज्ञा शब्द अन्तत: किसी न किसी धातु से व्युत्पन्न हैं। संस्कृत व्याकरण में यह प्रक्रिया कृत-प्रत्यय के रूप में उपस्थित है। पाणिनि ने इस मत को स्वीकार किया किंतु इस विषय में कोई आग्रह नहीं रखा और यह भी कहा कि बहुत से शब्द ऐसे भी हैं जो लोक की बोलचाल में आ गए हैं और उनसे धातु प्रत्यय की पकड़ नहीं की जा सकती। शाकटायन द्वारा रचित व्याकरण शास्त्र 'लक्षण शास्त्र' हो सकता है, जिसमें उन्होंने भी चेतन और अचेतन निर्माण में व्याकरण लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का वर्णन किया था।