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वाघ की गुफाएँ मध्य प्रदेश में इन्दौर के पास धार में स्थित हैं। वाघ की गुफाएँ प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। वाघ की गुफाएँ इंदौर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 90 मील की दूरी पर, बाधिनी नामक छोटी सी नदी के बायें तट पर और विन्ध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित हैं। बाघ-कुक्षी मार्ग से थोड़ा हटकर बाघ की गुफाएँ बाघ ग्राम से पाँच मील दूर हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजन्ता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी और ईस्वी सन् की 7वीं शताब्दी के मध्य, जब भारत के पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म अपनी ख्याति की पराकाष्ठा पर था। इसी समय चीन के बौद्ध धर्म के महान् विद्वान् यात्री हुएनसांग, फ़ाह्यान और सुआनताई मध्य और पश्चिमी भारत आये थे।
वाघ की गुफाएँ मध्य प्रदेश में इन्दौर के पास धार में स्थित हैं। वाघ की गुफाएँ प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। वाघ की गुफाएँ इंदौर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 90 मील की दूरी पर, बाधिनी नामक छोटी सी नदी के बायें तट पर और विन्ध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित हैं। बाघ-कुक्षी मार्ग से थोड़ा हटकर बाघ की गुफाएँ बाघ ग्राम से पाँच मील दूर हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजन्ता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी और ईस्वी सन् की 7वीं शताब्दी के मध्य, जब भारत के पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म अपनी ख्याति की पराकाष्ठा पर था। इसी समय चीन के बौद्ध धर्म के महान् विद्वान् यात्री हुएनसांग, फ़ाह्यान और सुआनताई मध्य और पश्चिमी भारत आये थे। यहाँ बाग़ प्रिंट जो कि विश्वविख्यात हैं का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता हैं और यहाँ डायनोसॉर के अंडे औऱ भी कई फॉसिल प्राप्त हुये हैं जो अपने आप मे अद्वितीय हैं


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वाघ की गुफाएँ मध्य प्रदेश में इन्दौर के पास धार में स्थित हैं। वाघ की गुफाएँ प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। वाघ की गुफाएँ इंदौर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 90 मील की दूरी पर, बाधिनी नामक छोटी सी नदी के बायें तट पर और विन्ध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित हैं। बाघ-कुक्षी मार्ग से थोड़ा हटकर बाघ की गुफाएँ बाघ ग्राम से पाँच मील दूर हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजन्ता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी और ईस्वी सन् की 7वीं शताब्दी के मध्य, जब भारत के पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म अपनी ख्याति की पराकाष्ठा पर था। इसी समय चीन के बौद्ध धर्म के महान् विद्वान् यात्री हुएनसांग, फ़ाह्यान और सुआनताई मध्य और पश्चिमी भारत आये थे। यहाँ बाग़ प्रिंट जो कि विश्वविख्यात हैं का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता हैं और यहाँ डायनोसॉर के अंडे औऱ भी कई फॉसिल प्राप्त हुये हैं जो अपने आप मे अद्वितीय हैं