"राजा हरिश्चन्द्र": अवतरणों में अंतर

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सूर्य वंश के चक्रवर्ती सम्राट,जिन्होने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेच दिया था। कहा जाता है- चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार,पै द्रढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार। इनकी पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहित। इन्होने अपने दानी स्वभाव के कारण विश्वामित्र जी को अपने सम्पूर्ण राज्य को दान कर दिया था,लेकिन दान के बाद की दक्षिणा के लिये साठ भर सोने में खुद तीनो प्राणी बिके थे,और अपनी मर्यादा को निभाया था,सर्प के काटने से जब इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को शमशान में अन्तिम क्रिया के लिये ले गयी,वहाँ पर राजा खुद एक डोम के यहाँ नौकरी कर रहे थे और शमशान का कर लेकर उस डोम को देते थे,उन्होने रानी से भी कर के लिये आदेश दिया,तभी रानी तारा ने अपनी साडी को फ़ाड कर कर चुकाना चाहा,उसी समय आकाशवाणी हुयी और राजा की ली जाने वाली दान वाली परीक्षा तथा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की जीत बतायी गयी।
सूर्य वंश के चक्रवर्ती सम्राट,जिन्होने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेच दिया था। कहा जाता है- चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार,पै द्रढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार। इनकी पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहित। इन्होने अपने दानी स्वभाव के कारण विश्वामित्र जी को अपने सम्पूर्ण राज्य को दान कर दिया था,लेकिन दान के बाद की दक्षिणा के लिये साठ भर सोने में खुद तीनो प्राणी बिके थे,और अपनी मर्यादा को निभाया था,सर्प के काटने से जब इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को शमशान में अन्तिम क्रिया के लिये ले गयी,वहाँ पर राजा खुद एक डोम के यहाँ नौकरी कर रहे थे और शमशान का कर लेकर उस डोम को देते थे,उन्होने रानी से भी कर के लिये आदेश दिया,तभी रानी तारा ने अपनी साडी को फ़ाड कर कर चुकाना चाहा,उसी समय आकाशवाणी हुयी और राजा की ली जाने वाली दान वाली परीक्षा तथा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की जीत बतायी गयी।
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17:20, 11 सितंबर 2009 का अवतरण

सूर्य वंश के चक्रवर्ती सम्राट,जिन्होने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेच दिया था। कहा जाता है- चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार,पै द्रढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार। इनकी पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहित। इन्होने अपने दानी स्वभाव के कारण विश्वामित्र जी को अपने सम्पूर्ण राज्य को दान कर दिया था,लेकिन दान के बाद की दक्षिणा के लिये साठ भर सोने में खुद तीनो प्राणी बिके थे,और अपनी मर्यादा को निभाया था,सर्प के काटने से जब इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को शमशान में अन्तिम क्रिया के लिये ले गयी,वहाँ पर राजा खुद एक डोम के यहाँ नौकरी कर रहे थे और शमशान का कर लेकर उस डोम को देते थे,उन्होने रानी से भी कर के लिये आदेश दिया,तभी रानी तारा ने अपनी साडी को फ़ाड कर कर चुकाना चाहा,उसी समय आकाशवाणी हुयी और राजा की ली जाने वाली दान वाली परीक्षा तथा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की जीत बतायी गयी।