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स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाना। |
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शारीरिक कमजोरी अधिक होना। |
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पेट से संबंधित समस्या होना। |
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पाचनशक्ति कमजोर हो जाना। |
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जी मिचलाना और उल्टियां आना। |
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लगातार कब्ज की समस्या होना हो सकती है। |
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इस समय में बहुत सी स्त्रियों को मानसिक तनाव होने लगता है। |
* इस समय में बहुत सी स्त्रियों को मानसिक तनाव होने लगता है। |
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कुछ स्त्रियों को तो इस समय के बाद शरीर पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं। |
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== बाहरी कड़ियाँ == |
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* [https://web.archive.org/web/20110410052944/http://www.nlm.nih.gov/medlineplus/menopause.html Menopause: MedlinePlus] |
* [https://web.archive.org/web/20110410052944/http://www.nlm.nih.gov/medlineplus/menopause.html Menopause: MedlinePlus] |
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* [https://web.archive.org/web/20110505045347/http://www.womenshealth.gov/faq/menopause-treatment.cfm Menopause and Menopause Treatments] |
* [https://web.archive.org/web/20110505045347/http://www.womenshealth.gov/faq/menopause-treatment.cfm Menopause and Menopause Treatments] |
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* [https://www.pristyncare.com/hi/blog/menopause-in-hindi/ मेनोपॉज में इस तरह रखें अपना ख्याल] |
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[[श्रेणी:मासिक धर्म]] |
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04:36, 27 अगस्त 2020 का अवतरण
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मासिक धर्म के स्थायी रूप से बंद हो जाने को रजोनिवृत्ति (Menopause) कहा जाता है।
साधारणतः कन्याओं को 14 या 15 की आयु में और ऊष्ण प्रदेशों में इससे भी पूर्व मासिकधर्म प्रारम्भ हो जाता है, जिसका अर्थ है कि कन्या गर्भधारण के योग्य हो गई है। तब से लेकर 45 से 50 वर्ष की आयु तक साधारणतया प्रत्येक 28वें दिन मासिकधर्म होता रहता है। प्रत्येक मास में एक बार डिंबग्रंथि से एक डिंब परिपक्व होकर बाहर निकलता है और डिंबवाहिका नली में शुक्राणु द्वारा संसेचित होकर गर्भाशय में आकर गर्भ बन जाता है।
जब डिंबग्रंथि में परिपक्व डिंबों का क्षरण बंद हो जाता है, तब मासिकधर्म भी बन्द हो जाता है। डिंबग्रंथि में जो अन्तःस्राव बनते हैं, वे ही डिंब के परिपक्व होने के बाद अंडोत्सर्ग (ovulation), गर्भस्थापना और गर्भवृद्धि के कारण होते हैं। डिंबग्रंथि के सक्रिय जीवन के समाप्त होने पर इन स्रावों का बनना निसर्गतः बंद हो जाता है। रजोनिवृत्ति इसी का सूचक तथा परिणाम है।
रजोनिवृत्ति होने पर स्त्री के शरीर में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के पविर्तन हो जाते हैं। बहुधा ये परिवर्तन इतनी धीमी गति से तथा अल्प होते हैं कि स्त्री को कोई असुविधा नहीं होती, किंतु कुछ स्त्रियों को विशेष कष्ट होता है। रजोनिवृत्ति को अंग्रेजी में मेनोपॉज़ कहते हैं, जिसका अर्थ 'जीवन में परिवर्तन' है। यह वास्तव में स्त्री के जीवन का पविर्तनकाल होता है। इस काल का प्रारंभ होने पर चित्त में निरुत्साह, शरीर की शिथिलता, निद्रा न आना, शिर में तथा शरीर के भिन्न भिन्न भागों में पीड़ा रहना, अनेक प्रकार की असुविधाएँ, या बेचैनी होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। बहुतों के शरीर में स्थूलता आ जाती है। आनुवंशिक या वैयक्तिक उन्माद की प्रवृत्तिवाले व्यक्तियों को उन्माद, या पागलपन होने की आशंका रहती है। अन्य प्रकार के मानस विकास भी हो सकते हैं।
प्रजनन क्रिया समाप्त होने के पश्चात्, प्रजनन अंगों में अर्बुद होने का भय रहता है। डिंबग्रंथि और गर्भाशय दोनों में अर्बुद उत्पन्न हो सकते हैं। गर्भाशय में घातक और प्रघातक दोनों प्रकार के अर्बुदों की प्रवृत्ति होती है। मासिकधर्म की गड़बड़ी कैंसर का सर्वप्रथम लक्षण है। अधिक मात्रा में स्राव होना, सौत्रार्बुद (fibroid) का द्योतक है। उदर के आकार की वृद्धि का कारण अर्बुद हो सकता है। इस समय गलगंड, या घेघा (goitre) उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
भिन्न-भिन्न स्त्रियों में रजोनिवृत्ति भिन्न भिन्न प्रकार से होती है। किस में मासिकधर्म अकस्मात् बंद हो जाता है। कुछ में धीरे धीरे, एक या दो वर्ष में बंद होता है।
रजोनिवृत्ति के लक्षण
बहुत अधिक पसीना आना।
- घबराहट होना।
- सिर में दर्द, चक्कर आना।
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाना।
- शारीरिक कमजोरी अधिक होना।
- पेट से संबंधित समस्या होना।
- पाचनशक्ति कमजोर हो जाना।
- जी मिचलाना और उल्टियां आना।
- लगातार कब्ज की समस्या होना हो सकती है।
- इस समय में बहुत सी स्त्रियों को मानसिक तनाव होने लगता है।
- कुछ स्त्रियों को तो इस समय के बाद शरीर पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं।