"कश्मीर का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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=== प्राचीन इतिहास ===
=== प्राचीन इतिहास ===
[[बुर्ज़होम]] पुरातात्विक स्थल ([[श्रीनगर]] के उत्तरपश्चिम में 16 किलोमीटर (9.9 मील) स्थित) में पुरातात्विक उत्खनन<ref>{{cite web|url=https://economictimes.indiatimes.com/blogs/SilkStalkings/extending-kashmiriyat-to-embrace-burzahom/|title=Extending Kashmiriyat to Embrace Burzahom}}</ref> ने 3000 ईसा पूर्व और 1000 ईसा पूर्व के बीच सांस्कृतिक महत्व के चार चरणों का खुलासा किया है।<ref>{{cite web|url=http://indiatoday.intoday.in/story/kashmir-burzahom-srinagar-archaeological-survey-of-india-indus-valley-civilisation/1/986834.html|title=ASI report says even Neolithic Kashmir had textile industry}}</ref> अवधि I और II नवपाषाण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं; अवधि ईएलआई मेगालिथिक युग (बड़े पैमाने पर पत्थर के मेन्शर और पहिया लाल मिट्टी के बर्तनों में बदल गया); और अवधि IV प्रारंभिक ऐतिहासिक अवधि (उत्तर-महापाषाण काल) से संबंधित है। यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है [[राजतरंगिणी]], जो [[कल्हण]] द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था।
यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है [[राजतरंगिणी]], जो [[कल्हण]] द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था।
यह [[अशोक|अशोक महान]] के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था।
यह [[अशोक|अशोक महान]] के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था।
उज्जैन के महाराज [[विक्रमादित्य]] के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। "आइने अकबरी के अनुसार छठी से नौ वीं शताब्दी के अंत तक कश्मीर पर शासन रहा।" अवंती वर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं।
उज्जैन के महाराज [[विक्रमादित्य]] के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। "आइने अकबरी के अनुसार छठी से नौ वीं शताब्दी के अंत तक कश्मीर पर शासन रहा।" अवंती वर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं।

15:49, 19 जुलाई 2020 का अवतरण

भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू और कश्मीर का इतिहास अति प्राचीन काल से आरंभ होता है।[1][2]

राजधानी में डल झील में एक शिकारे से दृश्य

इतिहास और सभ्यता

समय के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों का संश्लेषण हुआ, जिससे यहां के तीन मुख्य धर्म स्थापित हुए - हिन्दू, बौद्ध और इस्लाम। इनके अलावा सिख धर्म के अनुयायी भी बहुत मिलते हैं।

प्राचीन इतिहास

बुर्ज़होम पुरातात्विक स्थल (श्रीनगर के उत्तरपश्चिम में 16 किलोमीटर (9.9 मील) स्थित) में पुरातात्विक उत्खनन[3] ने 3000 ईसा पूर्व और 1000 ईसा पूर्व के बीच सांस्कृतिक महत्व के चार चरणों का खुलासा किया है।[4] अवधि I और II नवपाषाण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं; अवधि ईएलआई मेगालिथिक युग (बड़े पैमाने पर पत्थर के मेन्शर और पहिया लाल मिट्टी के बर्तनों में बदल गया); और अवधि IV प्रारंभिक ऐतिहासिक अवधि (उत्तर-महापाषाण काल) से संबंधित है। यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है राजतरंगिणी, जो कल्हण द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था। यह अशोक महान के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। "आइने अकबरी के अनुसार छठी से नौ वीं शताब्दी के अंत तक कश्मीर पर शासन रहा।" अवंती वर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं। यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। गिलगिट में पाण्डुलिपियां हैं, जो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं। त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं। चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। उसी काल में फारस से से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ। यहां पर ऋषि परम्परा, त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है, जो कश्मीरियत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशाखा कट्टरवादिता नहीं है।

मार्तण्ड मन्दिर (सूर्य मंदिर)

राज-- वंशावली:


मध्य काल

सन १५८९ में यहां मुगल का राज हुआ। यह अकबर का शासन काल था। मुगल साम्राज्य के विखंडन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ। यह काल यहां का काला युग कहलाता है। फिर १८१४ में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पठानों की पराजय हुई, व सिख साम्राज्य आया।

आधुनिक काल

अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय १८४६ में हुई, जिसका परिणाम था लाहौर संधि। अंग्रेजों द्वारा महाराजा गुलाब सिंह को गद्दी दी गई जो कश्मीर का स्वतंत्र शासक बना। गिलगित एजेन्सी अंग्रेज राजनैतिक एजेन्टों के अधीन क्षेत्र रहा। कश्मीर क्षेत्र से गिलगित क्षेत्र को बाहर माना जाता था। अंग्रेजों द्वारा जम्मू और कश्मीर में पुन: एजेन्ट की नियुक्ति हुई। महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 ई. में गद्दी पर बैठे, जिन्होंने 1947 ई. तक शासन किया।

अधिमिलन और समेकन

ब्रिटिश इंडिया का विभाजन
  • 1947 में 560 अर्धस्वतंत्र शाही राज्य अंग्रेज साम्राज्य द्वारा प्रभुता के सिद्धान्त के अन्तर्गत 1858 में संरक्षित किए गये।
  • केबिनेट मिशन ज्ञापन के तहत, भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा इन राज्यों की प्रभुता की समाप्ति घोषित हुई, राज्यों के सभी अधिकार वापस लिए गए, व राज्यों का भारतीय संघ में प्रवेश किया गया। ब्रिटिश भारत के सरकारी उत्तराधिकारियों के साथ विशेष राजनैतिक प्रबन्ध किए गए।
  • भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर से पहले, पाकिस्तान ने कश्मीर की आवश्यक आपूर्ति को काट दिया जो तटस्थता समझौते का उल्लंघन था। उसने अधिमिलन हेतु दबाव का तरीका अपनाना आरंभ किया, जो भारत व कश्मीर, दोनों को ही स्वीकार्य नहीं था।
  • जब यह दबाव का तरीका विफल रहा, तो पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। यह 24 अक्टूबर, 1947 की बात है।
  • हरि सिंह ने गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन को कश्मीर में संकट के बारे में लिखा, व साथ ही भारत से अधिमिलन की इच्छा प्रकट की। इस इच्छा को माउंटबेटन द्वारा 27 अक्टूबर, 1947 को स्वीकार किया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत यदि एक भारतीय राज्य प्रभुत्व को स्वींकारने के लिए तैयार है, व यदि भारत का गर्वनर जनरल इसके शासक द्वारा विलयन के कार्य के निष्पादन की सार्थकता को स्वीकार करे, तो उसका भारतीय संघ में अधिमिलन संभव था।
  • पाकिस्तान द्वारा हरि सिंह के विलयन समझौते में प्रवेश की अधिकारिता पर कोई प्रश्न नहीं किया गया। कश्मीर का भारत में विलयन विधि सम्मत माना गया। व इसके बाद पठान हमलावरों को खदेड़ने के लिए 27 अक्टूबर, 1947 को भारत ने सेना भेजी, व कश्मीर को भारत में अधिमिलन कर यहां का अभिन्न अंग बनाया।

संयुक्त राष्ट्र

  • भारत कश्मीर मुद्दे को 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया। परिषद ने भारत और पाकिस्तान को बुलाया, व स्थिति में सुधार के लिए उपाय खॊजने की सलाह दी। तब तक किसी भी वस्तु परिवर्तन के बारे में सूचित करने को कहा। यह 17 जनवरी, 1948 की बात है।
  • भारत और पाकिस्तान के लिए एक तीन सदस्यी संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी) 20 जनवरी, 1948 को गठित किया गया, जो कि विवादों को देखे। 21 अप्रैल, 1948 को इसकी सदस्यता का प्रश्न उठाया गया।
  • तब तक कश्मीर में आपातकालीन प्रशासन बैठाया गया, जिसमें, 5 मार्च, 1948 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में अंतरिम सरकार द्वारा स्थान लिया गया।
  • 13 अगस्त, 1948 को यूएनसीआईपी ने संकल्प पारित किया जिसमें युद्ध विराम घोषित हुआ, पाकिस्तानी सेना और सभी बाहरी लोगों की वापसी के अनुसरण में भारतीय बलों की कमी करने को कहा गया। जम्मू और कश्मीर की भावी स्थिति का फैसला 'लोगों की इच्छा' के अनुसार करना तय हुआ। संपूर्ण जम्मू और कश्मीर से पाकिस्तान सेना की वापसी, व जनमत की शर्त के प्रस्ताव को माना गया, जो- कभी नहीं हुआ।
  • संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान के अंतर्गत युध्द-विराम की घोषणा की गई। यूएनसीआईपी संकल्प - 5 जनवरी, 1949। फिर 13 अगस्त, 1948 को संकल्प की पुनरावृति की गई। महासचिव द्वारा जनमत प्रशासक की नियुक्ति की जानी तय हुई।

निर्माणात्मक वर्ष

  • ऑल जम्मू और कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस ने अक्टूबर,1950 को एक संकल्प किया। एक संविधान सभा बुलाकर वयस्क मताधिकार किया जाए। अपने भावी आकार और संबध्दता जिसमें इसका भारत से अधिमिलन सम्मिलित है का निर्णय लिया जाये, व एक संविधान तैयार किया जाए।
  • चुनावों के बाद संविधान सभा का गठन सितम्बर, 1951 को किया गया।
  • ऐतिहासिक 'दिल्ली समझौता - कश्मीरी नेताओं और भारत सरकार द्वारा- जम्मू और कश्मीर राज्य तथा भारतीय संघ के बीच सक्रिय प्रकृति का संवैधानिक समझौता किया गया, जिसमें भारत में इसके विलय की पुन:पुष्टि की गई।
  • जम्मू और कश्मीर का संविधान, संविधान सभा द्वारा नवम्बर, 1956 को अंगीकृत किया गया। यह 26 जनवरी, 1957 से प्रभाव में आया।
  • राज्य में पहले आम चुनाव अयोजित गए, जिनके बाद मार्च, 1957 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस द्वारा चुनी हुई सरकार बनाई गई।
  • राज्य विधान सभा में १९५९ में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया, जिसमें राज्य में भारतीय चुनाव आयोग और भारत के उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार के विस्तार के लिए राज्य संविधान का संशोधन पारित हुआ।
  • राज्य में दूसरे आम चुनाव १९६२ में हुए जिनमें शेख अब्दुल्ला की सत्ता में पुन: वापसी हुई।

हजरत बल से पवित्र अवशेष की चोरी

दिसम्बर, 1963 में एक दुर्भाग्यशाली घटना में हजरत बल मस्जिद से पवित्र अवशेष की चोरी हो गई। मौलवी फारूक के नेतृत्व के अधीन एक कार्य समिति द्वारा भारी आन्दोलन की शुरूआत हुई, जिसके बाद पवित्र अवशेष की बरामदगी और स्थापना की गई।

पाकिस्तान के साथ युद्ध

अगस्त,1965 में जम्मू कश्मीर में घुसपैठियों की घुसपैठ के साथ पाकिस्तानी सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण किया गया। जिसका भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। इस युद्ध का अंत 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौते के बाद हुआ।

राजनैतिक समेकन

  • 1953 : शेख अब्दुल्ला को कश्मीर के प्रधानमन्त्री पद से हटा कर ग्यारह वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि केंद्र सरकार से अनबन की वजह से नेहरु ने इन्हें जेल में डलवाया था।
  • १९५४ : धारा 35A भारत के राष्ट्रपति के आदेश से अस्तित्व में आयी।
  • 1964 : साल 1964 में शेख अब्दुल्लाह जेल से बाहर आये और कश्मीर मुद्दे पर नेहरु से बात करने की कोशिश की, किन्तु इसी वर्ष नेहरु की मृत्यु हो गयी और बात हो नहीं सकी।
  • १९६५ : सदर-ए-रियासत का नाम बदलकर 'मुक्यमन्त्री' किया गया।
  • राज्य विधान सभा के लिए मार्च, 1967 में तीसरे आम चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस सरकार बनी
  • फरवरी, 1972 में चौथे आम चुनाव हुए जिनमें पहली बार जमात-ए-इस्लामी ने भाग लिया व 5 सीटें जीती। इन चुनावों में भी कांग्रेस सरकार बनी।
  • भारत और पाकिस्तान के बीच 3 जुलाई, 1972 को ऐतिहासिक 'शिमला समझौता' हुआ, जिसमें कश्मीर पर सभी पिछली उद्धोषणाएँ समाप्त की गईं, जम्मू और कश्मीर से संबंधित सारे मुद्दे द्विपक्षीय रूप से निपटाए गए, व - युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा में बदला गया।
  • 1974 : इंदिरा-शेख समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत शेख अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस वर्ष ये भी निर्णय किया गया कि अब कश्मीर में जनमत संग्रह की जरुरत नहीं है।
  • फरवरी, 1975 को कश्मीर समझौता समाप्त माना गया, व भारत के प्रधानमंत्री के अनुसार 'समय पीछे नहीं जा सकता'; तथा कश्मीरी नेतृत्व के अनुसार- 'जम्मू और कश्मीर राज्य का भारत में अधिमिलन कोई मामला नहीं' कहा गया।
  • जुलाई, 1975 में शेख अब्दुल्ला मुख्य मंत्री बने, जनमत फ्रंट स्थापित और नेशनल कांफ्रेंस के साथ विलय किया गया।
  • जुलाई, 1977 को पाँचवे आम चुनाव हुए जिनमें नेशनल कांफ्रेंस पुन: सत्ता में लौटी - 68% मतदाता उपस्थित हुए।
  • शेख अब्दुल्ला का निधन 8 सितम्बर, 1982 होने पर, उनके पुत्र डॉ॰ फारूख अब्दुल्ला ने अंतरिम मुख्य मंत्री की शपथ ली व छठे आम चुनावों में जून,1983 में नेशनल कांफ्रेंस को विजय मिली।
  • 1984 : इस वर्ष भारतीय सेना ने दुनिया के सबसे बड़े और ऊँचे ग्लेसियर और युद्द के मैदान (सियाचीन) को अपने कब्जे में कर लिया। इस समय भारतीय सेना को ऐसी खबर मिली थी कि पाकिस्तान सियाचिन पर अधिकार कर रहा है। इस कारण भारत ने भी चढ़ाई शुरू की और पाकिस्तान से पहले वहाँ पहुंच गया। सियाचिन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
  • 1987 में कश्मीर विधानसभा के चुनाव के दौरान नेशनल कांफ्रेंस और भारतीय राष्त्रीय कांग्रेस ने मिलकर बहुत भारी गड़बड़ी की और वहाँ इन्होने चुनाव जीता। चुनाव में बहुत भारी संख्या में जीते जाने पर दोनों पार्टियों के विरुद्ध काफ़ी प्रदर्शन हुए और धीरे-धीरे ये प्रदर्शन आक्रामक और हिंसक हो गया। इस हिंसक प्रदर्शनों का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने इन्हीं प्रदर्शनकारियों में अपने हिज्ब उल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकवादी संगठन और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अलगाववादियों को शामिल कर दिया। बाद में युवा कश्मीरियों को सीमा पार भेज कर उन्हें आतंकी ट्रेनिंग दी जाने लगी। इस तरह के सभी आतंकी गतिविधियों को आईएसआई और अन्य विभिन्न संगठनों का समर्थन प्राप्त था।
  • १९८९ : कश्मीर में आतंकवाद का आरम्भ
  • कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से जबरन विस्थापन

1990 में कश्मीरी पंडितों को बहुत अधिक विरोध और हिंसा झेलनी पड़ी। कश्मीरी पंडित कश्मीर घाटी में एक अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय है।इनके बहुत सारी धमकियां आनी शुरू हुईं और कई बड़े कश्मीरी पंडितों को सरेआम गोली मारी गयी। इन्हें दिन दहाड़े धमकियां दी जाने लगीं कि यदि इन्होने घाटी नहीं छोड़ा तो इन्हें जान से मार दिया जाएगा। लगभग 200 से 300 कश्मीरी पंडितों को 2 से 3 महीने के अन्दर मार दिया गया। इसके बाद ये धमकियाँ अखबारों में छपने लगीं कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ देना चाहिए साथ ही दिन रात लाउड स्पीकर से भी घोषणा करके उन्हें डराया जाने लगा। अंततः अपनी जान के डर से ये कश्मीरी पंडित जो कि लगभग 2.5 से 3 लाख की संख्या में थे, उन्हें रातोंरात घाटी छोड़ कर जम्मू या दिल्ली के लिए रवाना होना पड़ा।

इस घटना के पीछे एक वजह ये भी थी कि इस समय केंद्र सरकार ने जगमोहन को केंद्र का गवर्नर बनाया था। फारुक अबुद्ल्लाह ने कहा था कि यदि जगमोहन को गवर्नर बनाया गया तो, वे इस्तीफ़ा दे देंगे और इस पर फारुख ने इस्तीफ़ा दे दिया। कश्मीर में इसके बाद पूरी तरह से अव्यवस्था और अराजकता फ़ैल गयी थी।

  • कश्मीर में कानून द्वारा सुरक्षा बलों को विशेष शक्ति (एएफ़एसपीए) दी गयी

इस तरह की अराजकता को देखते हुए भारत सरकार ने यहाँ पर आर्म्ड फ़ोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट लागू किया। इससे पहले कुछ उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में एएफएसपीए लागू किया जा चुका था। इस अधिनियम के अनुसार सेना को कुछ अतिरिक्त शक्तियाँ दी जातीं हैं जिसकी सहायता से वे किसी भी व्यक्ति को केवल सन्देह के आधार पर बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं; किसी पर संदेह होने से उसे गोली मार सकते है और किसी के घर की तलाशी भी बिना वारंट के ले सकते हैं। यह एक्ट इस समय कश्मीर को बचाने के लिए बहुत ज़रूरी था। इसके बाद धीरे धीरे हालात काबू में आने लगे। सन् 2004 के बाद यहाँ पर उग्रवाद समाप्त हुआ।

  • २००३ में भारत और पाकिस्तान के बीच एलओसी सीजफायर अग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए जिसके तहत एलओसी पर गोलीबारी और घुसपैठ कम करने की बातें थीं।
  • २०१८ : भाजपा और पीडीपी की सम्मिलित सरकार गिरी। राष्ट्रपति शासन लागू।
  • ५ अगस्त २०१९ : कश्मीर से धारा ३७० समाप्त करने के लिए विधेयक पारित हुआ। उस दिन राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाला और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की सिफारिश तथा राज्य के पुनर्गठन का बिल पेश कर दिया। इसके साथ ही पहले से ही तैयार बैठी सरकार ने कश्मीर घाटी के राजनीतिक नेताओं को नजरबंद किया गया, इंटरनेट सहित अन्य संचार सेवाएं रोक दी गईं और पूरे राज्य में धारा 144 लागू कर दी गई। कई अलगाववादी नेताओं को इससे पहले ही नजरबंद किया जा चुका था। राज्य पुनर्गठन बिल में जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का प्रस्ताव था (एक लद्दाख तथा दूसरा जम्मू-कश्मीर)। राज्यसभा में इसके पक्ष में 125 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 61। यह बिल अगले दिन लोकसभा में भी भारी बहुमत से पारित हो गया।
  • ३१ अक्टूबर २०१९ : सरदार पटेल की पुण्यतिथि को 'जम्मू-कश्मीर' तथा 'लद्दाख' नाम से दो केन्द्रशासित प्रदेश बन जाएँगें।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Rewriting both history and geography of jammu and kashmir". मूल से 6 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अगस्त 2019.
  2. "कश्मीर में हिंदू राज और ग़ज़नी की अपमानजनक हार की कहानी". मूल से 25 मई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2020.
  3. "Extending Kashmiriyat to Embrace Burzahom".
  4. "ASI report says even Neolithic Kashmir had textile industry".

बाहरी कड़ियाँ