"बिश्नोई": अवतरणों में अंतर

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[[खेजड़ी]] के हरे वृक्ष की रक्षा के लिए [[अमृता देवी(बेनीवाल)|अमृता देवी बिश्नोई]] के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।<ref>{{Cite web|url=https://m.patrika.com/amp-news/jodhpur-news/khejarli-mela-in-jodhpur-1-5065337/|title=पेड़ों की रक्षार्थ 363 शहीदों की स्मृति में मनाया जा रहा खेजड़ली का पर्यावरण मेला, पत्रिका ने निभाई जिम्मेदारी|last=bhati|first=Harshwardhan|website=Patrika News|language=hi|access-date=2020-04-21|archive-url=https://web.archive.org/web/20191014133038/https://m.patrika.com/amp-news/jodhpur-news/khejarli-mela-in-jodhpur-1-5065337/|archive-date=14 अक्तूबर 2019|url-status=live}}</ref> बिश्नोई शुध्द [[शाकाहार|शाकाहारी]] होते हैं।
[[खेजड़ी]] के हरे वृक्ष की रक्षा के लिए [[अमृता देवी(बेनीवाल)|अमृता देवी बिश्नोई]] के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।<ref>{{Cite web|url=https://m.patrika.com/amp-news/jodhpur-news/khejarli-mela-in-jodhpur-1-5065337/|title=पेड़ों की रक्षार्थ 363 शहीदों की स्मृति में मनाया जा रहा खेजड़ली का पर्यावरण मेला, पत्रिका ने निभाई जिम्मेदारी|last=bhati|first=Harshwardhan|website=Patrika News|language=hi|access-date=2020-04-21|archive-url=https://web.archive.org/web/20191014133038/https://m.patrika.com/amp-news/jodhpur-news/khejarli-mela-in-jodhpur-1-5065337/|archive-date=14 अक्तूबर 2019|url-status=live}}</ref> बिश्नोई शुध्द [[शाकाहार|शाकाहारी]] होते हैं।
बिश्नोई लोगों के एक पंथ का हिस्सा माना जाता है न कि किसी जाति का, और कई बार इस पंथ में दीक्षित होने के बाद भी अपनी मूल जाति की परंपराओं से जुड़ाव देखने को मिलता है।<ref>{{cite book|title=A Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province: A.-K|url=https://books.google.com/books?id=LPsvytmN3mUC&pg=PA114|year=1997|publisher=Atlantic Publishers & Dist|isbn=978-81-85297-69-9|pages=114–|access-date=20 अप्रैल 2020|archive-url=https://web.archive.org/web/20140107181632/http://books.google.com/books?id=LPsvytmN3mUC|archive-date=7 जनवरी 2014|url-status=live}}</ref>
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बिश्नोई समाज की [[पर्यावरण संरक्षण]] और [[वन एवं वन्यजीव संरक्षण]] में महत्वपूर्ण भूमिका हैं।<ref name="Information1988">{{cite book|author=Reed Business Information|title=New Scientist|url=https://books.google.com/books?id=PfHEmTgmHacC&pg=PA31|date=17 December 1988|publisher=Reed Business Information|pages=31–|id={{ISSN|02624079}}}}</ref><ref name="GuptaMaiti2008">{{cite book|author1=Ed. K.R. Gupta|author2=Klaus Bosselmann & Prasenjit Maiti|title=Global Environment Probles And Policies Vol# 4|url=https://books.google.com/books?id=-PYO0UWQpIAC&pg=PA31|date=April 2008|publisher=Atlantic Publishers & Dist|isbn=978-81-269-0848-6|pages=31–}}</ref> इनके द्वारा प्रकृति और वन एवं वन्यजीवों को बचाने के लिए संघर्ष के कई उदाहरण मिलते हैं और इन्होने ''अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई महासभा'' की स्थापना की है।<ref name="Jain2016">{{cite book|author=Pankaj Jain|title=Dharma and Ecology of Hindu Communities: Sustenance and Sustainability|url=https://books.google.com/books?id=VYcGDAAAQBAJ&pg=PA69|date=22 April 2016|publisher=Routledge|isbn=978-1-317-15160-9|pages=69–70}}</ref>।[[Book Name jambh Jyoti]]।[[RNI-57294/92]]। September 2013। Page-15। बिश्नोई टाइगर फोर्स ने दी लड़ने कि नई ताकत।वन एवं वन्यजीवों पर्यावरण संरक्षण के लिए बिश्नोई टाईगर फोर्स संस्था बनाईं गई हैं जो चौबिसों घंटे वन्यजीवों की शिकार कि घटनाओं के विरूद्ध कार्यवाही करती हैं शिकारीयोंं को घटनास्थल से पकड़ने वन्य विभाग पुलिस के सुपुर्द करने के अलावा कोर्ट में शिकारीयों के विरुद्ध पैरवी करती हैं।


==इतिहास==
==इतिहास==

06:44, 24 जून 2020 का अवतरण

बिश्नोई अथवा विश्नोई उत्तर पश्चिमी भारत में एक पर्यावरण प्रेमी पंथ है। इस पंथ के संस्थापक जाम्भोजी महाराज है। जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला बिश्नोई है। "बिश्नोई" शब्द की उत्पति 20(बीस)+9(नौ) = बिश्नोई से हुई है। कई मान्यताओं के अनुसार यह आराध्य देव भगवान विष्णु से बना 'विष्णोई' शब्द कालातंर में परिवर्तित होकर विश्नोई या बिश्नोई हो गया। अधिकांश बिश्नोई जाट जाति से है।

बिश्नोई
राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में बिश्नोई पंथ का एक मंदिर, मुक्तिधाम मुकाम मंदिर।
वर्ण वैश्य
मन्त्र "विष्णु-विष्णु तू भण रे प्राणी"
धर्म हिन्दू
भाषा
देश  India
मूल राज्य राजस्थान
वासित राज्य मुख्य:
राजस्थान,
हरयाणा
अन्य:
पंजाब,
उत्तर प्रदेश,
मध्य प्रदेश,
उत्तराखंड
क्षेत्र पश्चिमी भारत

खेजड़ी के हरे वृक्ष की रक्षा के लिए अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।[1] बिश्नोई शुध्द शाकाहारी होते हैं। बिश्नोई लोगों के एक पंथ का हिस्सा माना जाता है न कि किसी जाति का, और कई बार इस पंथ में दिक्षित होने के बाद भी अपनी मूल जाति की परंपराओं से जुड़ाव देखने को मिलता है।[2]

बिश्नोई समाज की पर्यावरण संरक्षण और वन एवं वन्यजीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका हैं।[3][4] इनके द्वारा प्रकृति और वन एवं वन्यजीवों को बचाने के लिए संघर्ष के कई उदाहरण मिलते हैं और इन्होने अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई महासभा की स्थापना की है।[5]Book Name jambh JyotiRNI-57294/92। September 2013। Page-15। बिश्नोई टाइगर फोर्स ने दी लड़ने कि नई ताकत।वन एवं वन्यजीवों पर्यावरण संरक्षण के लिए बिश्नोई टाईगर फोर्स संस्था बनाईं गई हैं जो चौबिसों घंटे वन्यजीवों की शिकार कि घटनाओं के विरूद्ध कार्यवाही करती हैं शिकारीयोंं को घटनास्थल से पकड़ने वन्य विभाग पुलिस के सुपुर्द करने के अलावा कोर्ट में शिकारीयों के विरुद्ध पैरवी करती हैं।

इतिहास

सम्वत् 1542 तक गुरु जाम्भोजी की कीर्ति चारों और फेल गई थी और इसी साल राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा जिसमें जाम्भोजी महाराज ने अकाल पीडि़तों की अन्न व धन्न से भरपूर सहायता की। सम्वत् 1542 की कार्तिक बदी 8 को जांभोजी महाराज ने एक विराट यज्ञ का आयोजन सम्भराथल धोरे पर किया[6] और 29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर बिश्नोई धर्म की स्थापना की। बिश्नोई पंथ में दीक्षित होने वाले अधिकांश व्यक्ति जाट थे।

खेजड़ली बलिदान

खेजड़ली बलिदान स्मारक, जोधपुर।

एक घटना थी जिसमें सितंबर 1730 में जोधपुर के निकट खेजड़ली ग्राम में अमृता देवी के नेतृत्व में खेजड़ी के वृक्षों की रक्षा के लिए तत्पर बिश्नोई पंथ के 363 लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। मारवाड़ के राजा के लिए महल बनाए जाने हेतु पेड़ काटने के आदेश का अनुपालन कराने में मारवाड़ के राजा के सैनिकों द्वारा यह हत्याकांड किया गया।[7]। यह विश्व भर में वृक्षों को बचाने के लिए अद्वितीय और सर्वोच्च बलिदान है।<ref> Book Name-jambh jyoti।RNI-57294/92। September 2013। Page-16To22। साहबराम राहड़ कृत खेजड़ली बलिदान कथा।दौहा। चौपाई।सोरठा।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. bhati, Harshwardhan. "पेड़ों की रक्षार्थ 363 शहीदों की स्मृति में मनाया जा रहा खेजड़ली का पर्यावरण मेला, पत्रिका ने निभाई जिम्मेदारी". Patrika News. मूल से 14 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-04-21.
  2. A Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province: A.-K. Atlantic Publishers & Dist. 1997. पपृ॰ 114–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85297-69-9. मूल से 7 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 अप्रैल 2020.
  3. Reed Business Information (17 December 1988). New Scientist. Reed Business Information. पपृ॰ 31–. ISSN 02624079.
  4. Ed. K.R. Gupta; Klaus Bosselmann & Prasenjit Maiti (April 2008). Global Environment Probles And Policies Vol# 4. Atlantic Publishers & Dist. पपृ॰ 31–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-269-0848-6.
  5. Pankaj Jain (22 April 2016). Dharma and Ecology of Hindu Communities: Sustenance and Sustainability. Routledge. पपृ॰ 69–70. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-317-15160-9.
  6. श्रीकृष्ण बिश्नोई (1991). Biśnoī dharma-saṃskāra. Dhoka Dhorā Prakāśana. पृ॰ 36.
  7. Banavārī Lāla Sahū (2002). Paryāvaraṇa saṃrakshaṇa evaṃ Khejaṛalī balidāna. Bodhi Prakāśana.