"केशवचन्द्र सेन": अवतरणों में अंतर

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== बाहरी कड़ियाँ ==
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* [http://www.hindu-school.com/ Hindu School, Kolkata - Web Site]
* [https://web.archive.org/web/20100707082843/http://www.hindu-school.com/ Hindu School, Kolkata - Web Site]
* [http://banglapedia.search.com.bd/HT/S_0191.htm The Banglapedia article on Keshub Chunder Sen]
* [https://web.archive.org/web/20090120231059/http://banglapedia.search.com.bd/HT/S_0191.htm The Banglapedia article on Keshub Chunder Sen]
* [http://www.indianpost.com/viewstamp.php/Paper/Watermarked%20paper/KESHAB%20CHANDRA%20SEN India Post page on Sen and the postage stamp released in his memory]
* [https://web.archive.org/web/20090301234349/http://www.indianpost.com/viewstamp.php/Paper/Watermarked%20paper/KESHAB%20CHANDRA%20SEN India Post page on Sen and the postage stamp released in his memory]


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06:10, 16 जून 2020 के समय का अवतरण

समाज सुधारक केशवचन्द्र सेन

केशवचन्द्र सेन (बंगला : কেশব চন্দ্র সেন केशोब चोन्दो शेन) (19 नवम्बर 1838 - 8 जनवरी 1884) बंगाल के हिन्दू दार्शनिक, धार्मिक उपदेशक एवं समाज सुधारक थे। 1856 में[1]ब्रह्मसमाज के अंतर्गत केशवचंद्र सेन के आगमन के साथ द्रुत गति से प्रसार पानेवाले इस आध्यात्मिक आंदोलन के सबसे गतिशील अध्याय का आरंभ हुआ। केशवचन्द्र सेन ने ही आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को सलाह दी की वे सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी में करें।

परिचय[संपादित करें]

केशवचंद्र सेन का जन्म 19 नवम्बर 1838 को कलकत्ता में हुआ। उनके पिता प्यारेमोहन प्रसिद्ध वैष्णव एवं विद्वान् दीवान रामकमल के पुत्र थे। बाल्यावस्था से ही केशवचंद्र का उच्च आध्यात्मिक जीवन था। महर्षि ने उचित ही उन्हें 'ब्रह्मानंद' की संज्ञा दी तथा उन्हें समाज का आचार्य बनाया। केशवचंद्र के आकर्षक व्यक्तित्व ने ब्रह्मसमाज आंदोलन को स्फूर्ति प्रदान की। उन्होंने भारत के शैक्षिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक पुनर्जनन में चिरस्थायी योग दिया। केशवचंद्र के सतत अग्रगामी दृष्टिकोण एवं क्रियाकलापों के साथ-साथ चल सकना देवेंद्रनाथ के लिए कठिन था, यद्यपि दोनों महानुभावों की भावना में सदैव मतैक्य था। 1866 में केशवचंद्र ने भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज की स्थापना की।[2] इस पर देवेंद्रनाथ ने अपने समाज का नाम आदि ब्रह्मसमाज रख दिया।

केशवचंद्र के प्रेरक नेतृत्व में भारत का ब्रह्मसमाज देश की एक महती शक्ति बन गया। इसकी विस्तृताधारीय सर्वव्याप्ति की अभिव्यक्ति श्लोकसंग्रह में हुई जो एक अपूर्व संग्रह है तथा सभी राष्ट्रों एवं सभी युगों के धर्मग्रंथों में अपने प्रकार की प्रथम कृति है। सर्वांग उपासना की दीक्षा केशवचंद्र द्वारा ही गई जिसके भीतर उद्बोधन, आराधना, ध्यान, साधारण प्रार्थना, तथा शांतिवाचन, पाठ एवं उपदेश प्रार्थना का समावेश है। सभी भक्तों के लिए यह उनका अमूल्य दान है।

धर्मतत्व ने तत्कालीन दार्शनिक विचारधारा को नवीन रूप दिया। 1870 में केशवचंद्र ने इंग्लैंड की यात्रा की। इस यात्रा से पूर्व तथा पश्चिम एक दूसरे के निकट आए तथा अंतरराष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1875 में केशवचंद्र ने ईश्वर के नीवन स्वरूप-नव विधान समरूप धर्म (औपचारिक रूप से 1880 में घोषित) नवीन धर्म की संपूर्णता (संसिद्धि) का संदेश दिया। अपनी नवसंहिता में केशवचंद्र ने इस विश्वधर्म का प्रतिपादन इस प्रकार किया :

हमारा विश्वास विश्वधर्म है जो समस्त प्राचीन ज्ञान का संरक्षक है एवं जिसमें समस्त आधुनिक विज्ञान ग्राह्य है, जो सभी धर्म गुरुओं तथा संतों में एकरूपता, सभी धर्मग्रंथों में एकता एवं समस्त रूपों में सातत्य स्वीकार करता है, जिसमें उन सभी का परित्याग है जो पार्थक्य तथा विभाजन उत्पन्न करते हैं एवं जिसमें सदैव एकता तथा शांति की अभिवृद्धि है, जो तर्क तथा विश्वास योग्य तथा भक्ति तपश्चर्या और समाजधर्म को उनके उच्चतम रूपों में समरूपता प्रदान करता है एवं जो कालांतर में सभी राष्ट्रों तथा धर्मों को एक राज्य तथा एक परिवार का रूप दे सकेगा।

केशवचंद्र का विधान (दैवी संव्यवहार विधि), आवेश (साकार ब्रह्म की प्रत्यक्ष प्रेरणा), तथा साधुसमागम (संतों तथा धर्मगुरुओं से आध्यात्मिक संयोग) पर विशेष बल देना ब्रह्मसमाजियों के एक दलविशेष को, जो नितांत तर्कवादी एवं कट्टर विधानवादी था, अच्छा न लगा। यह तथा केशवचंद्र की पुत्री के कूचबिहार के महाराज के साथ विवाह विषयक मतभेद विघटन के कारण बने, जिसका परिणाम यह हुआ कि पंडित शिवनाथ शास्त्री के सशक्त नेतृत्व में 1878 में साधारण ब्रह्मसमाज की स्थापना हुई।[3]

इस समय ने कालांतर में देश के सामाजिक एवं शैक्षिक विकास में बड़ा योग दिया। केशवचन्द्र सेन के द्वारा टेबरनेकल ऑफ न्यू डिस्पेंसेशन (1868) तथा इण्डियन रिफार्म एसोसिएशन (1870) की स्थापना की गयी। केशवचंद्र 1884 में दिवंगत हुए।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Life of Keshub Chunder Sen, 1907, Mary Lant Carpenter
  2. History of Brahmo Samaj. 1911. pg 276
  3. "Sadharan Brahmo Samaj". Sadharan Brahmo Samaj. Archived from the original on 25 July 2012. Retrieved 2012-07-13.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]