"केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
== इतिहास ==
केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो की उत्‍पत्ति भारत सरकार द्वारा सन् 1941 में स्‍थापित विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान से हुई है। उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का कार्य द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार के मामलों की जांच करना था। विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण युद्ध विभाग के जिम्‍मे था।<ref>[http://cbi.nic.in/hn/aboutus/history.php केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो का संक्षिप्त इतिहास]</ref>
केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो की उत्‍पत्ति भारत सरकार द्वारा सन् 1941 में स्‍थापित विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान से हुई है। उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का कार्य द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार के मामलों की जांच करना था। विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण युद्ध विभाग के जिम्‍मे था।<ref>{{Cite web |url=http://cbi.nic.in/hn/aboutus/history.php |title=केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो का संक्षिप्त इतिहास |access-date=18 दिसंबर 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20151219165804/http://cbi.nic.in/hn/aboutus/history.php |archive-date=19 दिसंबर 2015 |url-status=dead }}</ref>


युद्ध समाप्ति के बाद भी, केन्‍द्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार के मामलों की जांच करने हेतु एक केन्‍द्रीय सरकारी एजेंसी की जरूरत महसूस की गई। इसीलिए सन् 1946 में दिल्‍ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम के द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण गृह विभाग को हस्‍तांतरित हो गया और इसके कामकाज को विस्‍तार करके भारत सरकार के सभी विभागों को कवर कर लिया गया। विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का क्षेत्राधिकार सभी संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्‍तृत कर दिया गया और सम्‍बन्धित राज्‍य सरकार की सहमति से राज्‍यों तक भी इसका विस्‍तार किया जा सकता था। दिल्‍ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान को इसका लोकप्रिय नाम ‘केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो’ गृह मंत्रालय संकल्‍प दिनांक 1.4.1963 द्वारा मिला। आरम्‍भ में केन्‍द्र सरकार द्वारा सूचित अपराध केवल केन्‍द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा भ्रष्‍टाचार से ही सम्‍बन्धित था। धीरे-धीरे, बड़ी संख्‍या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्‍थापना के साथ ही इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन लाया गया। इसी प्रकार, सन्1969 में बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो के क्षेत्र के अधीन आ गए।
युद्ध समाप्ति के बाद भी, केन्‍द्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार के मामलों की जांच करने हेतु एक केन्‍द्रीय सरकारी एजेंसी की जरूरत महसूस की गई। इसीलिए सन् 1946 में दिल्‍ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम के द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण गृह विभाग को हस्‍तांतरित हो गया और इसके कामकाज को विस्‍तार करके भारत सरकार के सभी विभागों को कवर कर लिया गया। विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का क्षेत्राधिकार सभी संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्‍तृत कर दिया गया और सम्‍बन्धित राज्‍य सरकार की सहमति से राज्‍यों तक भी इसका विस्‍तार किया जा सकता था। दिल्‍ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान को इसका लोकप्रिय नाम ‘केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो’ गृह मंत्रालय संकल्‍प दिनांक 1.4.1963 द्वारा मिला। आरम्‍भ में केन्‍द्र सरकार द्वारा सूचित अपराध केवल केन्‍द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा भ्रष्‍टाचार से ही सम्‍बन्धित था। धीरे-धीरे, बड़ी संख्‍या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्‍थापना के साथ ही इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन लाया गया। इसी प्रकार, सन्1969 में बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो के क्षेत्र के अधीन आ गए।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://cbi.nic.in/hn/index_hn.php सीबीआई का जालस्थल]
* [https://web.archive.org/web/20151219013432/http://cbi.nic.in/hn/index_hn.php सीबीआई का जालस्थल]
* [http://www.prabhasakshi.com/crusade/National_News.aspx?title=सीबीआई_को_सरकार_से_मुक्त_किया_जाए:_किरण_बेदी&id=110821120043010111 सीबीआई को सरकार से मुक्त किया जाए: किरण बेदी]
* [http://www.prabhasakshi.com/crusade/National_News.aspx?title=सीबीआई_को_सरकार_से_मुक्त_किया_जाए:_किरण_बेदी&id=110821120043010111 सीबीआई को सरकार से मुक्त किया जाए: किरण बेदी]
* [http://rajnama.com/?p=2029 अपनी सर्वोच्चता की छवि को खुद खंडित किया है सीबीआई ने]
* [http://rajnama.com/?p=2029 अपनी सर्वोच्चता की छवि को खुद खंडित किया है सीबीआई ने]
* [http://www.janokti.com/त्वरित-प्रतिक्रिया/सीबीआई-की-स्वतंत्रता-2/ सीबीआई की स्वतंत्रता]
* [https://web.archive.org/web/20120321221644/http://www.janokti.com/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE/%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%86%E0%A4%88-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE-2/ सीबीआई की स्वतंत्रता]
* [http://www.indlawnews.com/ अद्यतन भारतीय न्यायिक समाचार] (Latest in Indian legal news)
* [https://web.archive.org/web/20081013220931/http://www.indlawnews.com/ अद्यतन भारतीय न्यायिक समाचार] (Latest in Indian legal news)


{{भारत में कानून प्रवर्तन}}
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06:06, 16 जून 2020 का अवतरण

केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो
Seal of CBI
अवलोकन
गठन 1941 as the Special Police Establishment
अधिकारक्षेत्रा भारत सरकार
मुख्यालय नई दिल्ली, भारत
कर्मचारी Sanctioned: 7274
Actual: 5685
Vacant: 1589 (21.84%)
as on 01 Mar 2017[1]
वार्षिक बजट 695.62 करोड़ (US$101.6 मिलियन) (FY2017-18)[2]
कार्यपालक Rishi Kumar Shukla, निदेशक
मातृ Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions
वेबसाइट
cbi.nic.in

केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) या सीबीआई भारत सरकार की प्रमुख जाँच एजेन्सी है। यह आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के मामलों की जाँच करने के लिये लगायी जाती है।

यह कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन कार्य करती है। यद्यपि इसका संगठन फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन से मिलता-जुलता है किन्तु इसके अधिकार एवं कार्य-क्षेत्र एफ् बीआई कीतुलना में बहुत सीमित हैं। इसके अधिकार एवं कार्य दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act), १९४६ से परिभाषित हैं। भारत के लिये सीबीआई ही इन्टरपोल की आधिकारिक इकाई है।

इतिहास

केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो की उत्‍पत्ति भारत सरकार द्वारा सन् 1941 में स्‍थापित विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान से हुई है। उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का कार्य द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार के मामलों की जांच करना था। विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण युद्ध विभाग के जिम्‍मे था।[3]

युद्ध समाप्ति के बाद भी, केन्‍द्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार के मामलों की जांच करने हेतु एक केन्‍द्रीय सरकारी एजेंसी की जरूरत महसूस की गई। इसीलिए सन् 1946 में दिल्‍ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम के द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण गृह विभाग को हस्‍तांतरित हो गया और इसके कामकाज को विस्‍तार करके भारत सरकार के सभी विभागों को कवर कर लिया गया। विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का क्षेत्राधिकार सभी संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्‍तृत कर दिया गया और सम्‍बन्धित राज्‍य सरकार की सहमति से राज्‍यों तक भी इसका विस्‍तार किया जा सकता था। दिल्‍ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान को इसका लोकप्रिय नाम ‘केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो’ गृह मंत्रालय संकल्‍प दिनांक 1.4.1963 द्वारा मिला। आरम्‍भ में केन्‍द्र सरकार द्वारा सूचित अपराध केवल केन्‍द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा भ्रष्‍टाचार से ही सम्‍बन्धित था। धीरे-धीरे, बड़ी संख्‍या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्‍थापना के साथ ही इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन लाया गया। इसी प्रकार, सन्1969 में बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो के क्षेत्र के अधीन आ गए।

संगठन और रैंक संरचना अधिक जानकारी: सीबीआई संगठनात्मक चार्ट और भारत में पुलिस रैंकों की सूची

सीबीआई ने एक निदेशक, पुलिस महानिदेशक या पुलिस (राज्य) के आयुक्त के रैंक के एक आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में है। निदेशक सीवीसी अधिनियम 2003 के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर चुना जाता है और 2 साल की अवधि है। सीबीआई में अन्य महत्वपूर्ण रैंकों आईआरएस द्वारा भी किया जा सकता है के रूप में आईपीएस अधिकारियों के रूप में अच्छी तरह से संभाला विशेष निदेशक, अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक, पुलिस उपमहानिरीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, उप अधीक्षक पुलिस. बाकी सीधे सीबीआई, उप निरीक्षक, सहायक उप निरीक्षक, हेड कांस्टेबल, वरिष्ठ कांस्टेबल और कांस्टेबल भर्ती कर रहे हैं।

सीबीआई की वार्षिक रिपोर्ट कर्मचारी के अनुसार आमतौर पर अनुसचिवीय कर्मचारी, पूर्व संवर्ग पदों है जो तकनीकी प्रकृति, कार्यकारी स्टाफ और ईडीपी स्टाफ के आम तौर पर कर रहे हैं के बीच विभाजित है। हिन्दी भाषा स्टाफ आधिकारिक भाषाओं में से विभाग के अंतर्गत आता है।

अनुसचिवीय कर्मचारी एलडीसी, UDC, अपराध आदि सहायकों कार्यकारी कर्मचारी कांस्टेबल, एएसआई, उप निरीक्षक, निरीक्षकों आदि ईडीपी कर्मचारी डाटा एंट्री ऑपरेटर, डाटा प्रोसेसिंग सहायकों, सहायक प्रोग्रामर, प्रोग्रामर और सर्व शिक्षा अभियान में शामिल है

आलोचना

केन्द्रीय अनुसंधान ब्यूरो प्रायः विवादों और आरोपों से घिरी रहती है। इस पर केन्द्रीय सरकार के एजेंट के रूप में पक्षपातपूर्ण काम करने का आरोप लगताहै।

सुधार

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन

सीआरपीसी की धारा 197 (जो न केवल सीबीआई को भी, लेकिन पुलिस के लिए लागू होता है) से पहले सरकारी मंजूरी अभियोजन पक्ष के लिए अनिवार्य बनाता है। [37] [39] 6 पूर्व सीबीआई निदेशकों के समूह ने सुझाव दिया है कि इस जरूरत में संशोधन करने के लिए और शक्ति लोकपाल को दी जानी चाहिए। [38]

सीआरपीसी की धारा 377 और 370, सरकार को अपील और आपराधिक मामलों में संशोधन की शक्ति प्रदान करते हैं। [40] सीआरपीसी की धारा 24 के तहत, सरकार द्वारा सरकारी वकीलों की नियुक्ति की शक्ति का प्रयोग किया है। [41] के लिए अनुरोध अपील और संशोधन सरकार द्वारा नीचे दिया गया है। [38]

6 पूर्व सीबीआई निदेशकों के एक समूह ने सुझाव दिया है कि सीबीआई को अपील फाइल और वकीलों की नियुक्ति की शक्ति दी जानी चाहिए। इसी तरह के अनुरोध पूर्व सीबीआई निदेशक UC मिश्रा ने सीबीआई पर स्थायी समिति बनाया गया था, लेकिन इसे ठुकरा दिया गया। [38]

एकल निर्देश सिद्धांत का संशोधन

दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना की धारा 6A के कारण अधिनियम (DSPE), संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों और ऊपर के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू करने के लिए भी पूर्व अनुमति के करने के लिए संबंधित विभाग के मंत्री से लिया जाना है। यह एक निर्देश में कहा जाता है। ब्याज और अन्य कारणों के संघर्ष के कारण, यह महीनों के लिए आयोजित किया जाता है और एक परिणाम के रूप में, बड़े टिकट भ्रष्टाचार को प्रभावी ढंग से सीबीआई द्वारा कवर नहीं है। [37]

2012 में, 6 पूर्व सीबीआई निदेशक और फिर निदेशक एपी सिंह के एक समूह ने सुझाव दिया है कि सत्ता के लिए अनुमति देने के लिए (अगर सब पर आवश्यक) लोकपाल को दी जानी चाहिए। [38]

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 का संशोधन

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 का कहना है कि, कोई भी अदालत के संज्ञान लेने के लिए जब तक यह सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर की है सेवा से आरोपी लगाया दूर करेगा। [37]

6 पूर्व सीबीआई निदेशकों के एक समूह ने सुझाव दिया है कि इस शक्ति लोकपाल को दी जानी चाहिए।

सन्दर्भ

  1. "OVER ALL VACANCY POSITION OF CBI AS ON 01.03.2017" (PDF). पृ॰ 01. मूल (PDF) से 21 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 March 2017.
  2. "Union Budget 2017: CBI gets marginal increase of 8.31 pc in budgetary allocation". मूल से 18 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 सितंबर 2017.
  3. "केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो का संक्षिप्त इतिहास". मूल से 19 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2015.

बाहरी कड़ियाँ