"लोकविभाग": अवतरणों में अंतर

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==शून्य तथा दशमलव पद्धति==
==शून्य तथा दशमलव पद्धति==


इस ग्रन्थ में '''13107200000''' को निम्नलिखित प्रकार से अभिव्यक्त किया गया है-<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_the_Hindu%E2%80%93Arabic_numeral_system#CITEREFIfrah1998 Ifrah 1998], p. 416.</ref>
इस ग्रन्थ में '''13107200000''' को निम्नलिखित प्रकार से अभिव्यक्त किया गया है-<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_the_Hindu%E2%80%93Arabic_numeral_system#CITEREFIfrah1998 Ifrah 1998] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20171113120109/https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_the_Hindu%E2%80%93Arabic_numeral_system#CITEREFIfrah1998 |date=13 नवंबर 2017 }}, p. 416.</ref>


: '''''पंचभ्यः खलु शून्येभ्यः परं द्वे सप्त च अम्बरं एकं त्रीणि च रूपं च'''''
: '''''पंचभ्यः खलु शून्येभ्यः परं द्वे सप्त च अम्बरं एकं त्रीणि च रूपं च'''''
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== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20160306000730/http://www.new.dli.gov.in/cgi-bin/metainfo.cgi लोकविभाग (हिन्दी अर्थ सहित)] (भारत का अंकीय पुस्तकालय)
* [http://www.new.dli.gov.in/cgi-bin/metainfo.cgi?&title1=%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97&author1=%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80&subject1=%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%A8%20%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE&year=1962%20&language1=hindi&pages=321&barcode=99999990234855&author2=&identifier1=&publisher1=%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A5%80,%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%20%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6&contributor1=&vendor1=NONE&scanningcentre1=Banasthali%20University&scannerno1=&digitalrepublisher1=Digital%20Library%20Of%20India&digitalpublicationdate1=2009-09-00&numberedpages1=&unnumberedpages1=&rights1=OUT_OF_COPYRIGHT&copyrightowner1=&copyrightexpirydate1=&format1=%20&url=/data3/upload/0089/086 लोकविभाग (हिन्दी अर्थ सहित)] (भारत का अंकीय पुस्तकालय)


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15:22, 15 जून 2020 के समय का अवतरण

लोकविभाग विश्वरचना सम्बंधी एक जैन ग्रंथ है। इसकी रचना सर्वनन्दि नामक दिगम्बर साधु ने मूलतः प्राकृत भाषा में की थी जो अब अप्राप्य है। किन्तु बाद में सिंहसूरि ने इसका संस्कृत रूपान्तर किया जो उपलब्ध है। इस ग्रंथ में शून्य और दाशमिक स्थानीय मान पद्धति का उल्लेख है जो विश्व में सर्वप्रथम इसी ग्रंथ में मिलता है।

इस ग्रन्थ में उल्लेख है कि इसकी रचना ३८० शकाब्द में हुई थी (४५८ ई)।

शून्य तथा दशमलव पद्धति[संपादित करें]

इस ग्रन्थ में 13107200000 को निम्नलिखित प्रकार से अभिव्यक्त किया गया है-[1]

पंचभ्यः खलु शून्येभ्यः परं द्वे सप्त च अम्बरं एकं त्रीणि च रूपं च
इसका अर्थ है, पाँच शून्य, उसके बाद दो और सात, आकाश, एक और तीन और रूप , (बाएँ से दाएँ)
यहाँ, अम्बर = शून्य, रूप = एक

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]