"ईसाई धर्म": अवतरणों में अंतर

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→‎ईश्वर: यह कि हम प्रकृति के बने हुये है और इसमे बहुत से अवयवों ( प्रकृति में स्वतन्त्र रूप से उपस्थित जिनकी प्रभाव शक्ति सर्वथा भिन्न हैं ) का मिश्रण भी है जिनका अपना अलग देवोत्पव महत्व है एव वस्तु का अधिष्ठाता होने के कारण भी सम्मान का अधिकारी है। वस्तुतः हम स्वयं के विज्ञान को न समझते हुऐ प्रकृति को समझने की कोशिश करते हैं
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=== पवित्र आत्मा ===
=== पवित्र आत्मा ===
पवित्र आत्मा त्रिएक परमेश्वर के तीसरे व्यक्तित्व हैं जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपने अन्दर ईश्वर का अहसास करता है। ये ईसा के [[चर्च]] एवं अनुयाईयों को निर्देशित करते हैं।
पवित्र आत्मा त्रिएक परमेश्वर के तीसरे व्यक्तित्व हैं जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपने अन्दर ईश्वर का अहसास करता है। ये ईसा के [[चर्च]] एवं अनुयाईयों को निर्देशित करते हैं।
====आत्मा के आने का कारण===
[15/06, 00:12] Vishwanath Pawaiya: We have to know what we are and for what purpose to we had made
[15/06, 00:35] Vishwanath Pawaiya: Are we only an animal those are spreading in thinking for personal and current lifestyle and says to it natural but forgiving the way of right (ऋत,सत,truth) we follow to druga (द्रुत,दुगुनी,false) that we want to start before time.
[15/06, 00:41] Vishwanath Pawaiya: While thinks are made in right time . We have god but how much time we are owned by the god for showing or
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== बाइबिल ==
== बाइबिल ==

19:55, 14 जून 2020 का अवतरण

ईद्भास/क्रॉस - यह ईसाई धर्म का निशान है

ईसाई धर्म (मसीही या क्रिश्चियन) प्राचीन यहूदी परंपरा से निकला एकेश्वरवादी धर्म है। इसकी शुरूआत प्रथम सदी ई. में फलिस्तीन में हुुुई, जिसके अनुयायी ईसाई कहलाते हैं। यह धर्म ईसा मसीह की शिक्षाओं पर आधारित है। ईसाइयों में मुख्ययतः तीन समुदाय हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स तथा इनका धर्मग्रंथ बाइबिल है। ईसाइयों के धार्मिक स्थल को चर्च कहते हैं। विश्व में सर्वाधिक लोग ईसाई धर्म को मानते हैं।

ईसाई धर्म के अनुसार मूर्तिपूजा, हत्या, व्यभिचार व किसी को भी व्यर्थ आघात पहुंचाना पाप है। 4थी सदी तक यह धर्म किसी क्रांति की तरह फैला, किन्तु इसके बाद ईसाई धर्म में अत्यधिक कर्मकांडों की प्रधानता तथा धर्मसत्ता ने दुनिया को अंधकार युग में धकेल दिया था। फलस्वरूप पुनर्जागरण के बाद से इसमें रीति-रिवाज़ों के बजाय आत्मिक परिवर्तन पर अधिक ज़ोर दिया जाता है।

ईश्वर

ईसाई एकेश्वरवादी हैं, लेकिन वे ईश्वर को त्रीएक के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।

परमपिता

परमपिता इस सृष्टि के रचयिता हैं और इसके शासक भी।

यीशु मसीह

यीशु मसीह स्वयं परमेश्वर के पुत्र है| जो पतन हुए (पापी) सभी मनुष्यों को पाप और मृत्यु से बचाने के लिए जगत में देहधारण होकर (देह में होकर) आए थे। परमेश्वर जो पवित्र हैं। एक देह में प्रगट हुए ताकि पापी मनुष्यों को नहीं परन्तु मनुष्यों के अन्दर के पापों को खत्म करें। वे इस पृथ्वी पर पहले ऐसे ईश्वर है.जो पापी, बीमार, मूर्खों और सताए हुओं का। पक्ष लिया और उनके बदले में पाप की कीमत अपनी जान देकर चुकाई ताकि मनुष्य बच सकें | हमारे पापों की सजा यीशु मसीह चूका दिए इस लिए हमें पापों से क्षमा मिलती है। यह पापी मनुष्य और पवित्र परमेश्वर के मिलन का मिशन था जो प्रभु यीशु के क़ुरबानी से पूरा हुआ। एक श्रृष्टिकर्ता परमेश्वर हो कर उन्होंने पापियों को नहीं मारा परन्तु पाप का इलाज़ किया।

यह बात परमेश्वर पिता का मनुष्यों के प्रति अटूट प्रेम को प्रगट करता है। मनुष्यों को पाप से बचाने के लिये परमेश्वर शरीर में आए। यह बात ही यीशु मसीह का परिचय है। यीशु मसीह परमेश्वर थे। यही बात आज का यीशुई धर्म का आधार है। उन्होंने स्वयं कहा मैं हूँ। यीशु मसीह (यीशु) एक यहूदी थे जो इस्राइल इजराइल के गाँव बेत्लहम में जन्मे है (४ यीशुपूर्व)। यीशुई मानते हैं कि उनकी माता मारिया (मरियम) कुवांरी (वर्जिन) थीं। यीशु उनके गर्भ में परमपिता परमेश्वर की कृपा से चमत्कारिक रूप से आये है। यीशु के बारे में यहूदी नबियों ने भविष्यवाणी की है कि एक मसीहा (अर्थात "राजा" या तारणहार) जन्म लेगा। कुछ लोग ये मानते हैं कि यीशु भारत भी आये थे। बाद में यीशु ने इजराइल में यहूदियों के बीच प्रेम का संदेश सुनाया और कहा कि वो ही ईश्वर के पुत्र हैं। इन बातों पर पुराणपंथी यहूदी धर्मगुरु भड़क उठे और उनके कहने पर इजराइल के रोमन राज्यपाल ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाकर मारने का प्राणदण्ड दे दिया। यीशुई मानते हैं कि इसके तीन दिन बाद यीशु का पुनरुत्थान हुआ या यीशु पुनर्जीवित हो गये। यीशु के उपदेश बाइबिल के नये नियम में उनके 12 शिष्यों द्वारा रेखांकित किये गये हैं।

यीशु मसीह का पुनरूत्थान यानी मृत्यु पर विजय पाने के बाद अथवा तीसरे दिन में जीवित होने के वाद यीशु एक साथ प्रार्थना कर रहे सभी शिष्य और अन्य मिलाकर कूल 40 लोग वहा मौजूद थे पहले उन सभी के सामने प्रकट हुए । उसके बाद बहूत सारे जगह पर और बहूत लोगो के साथ भी

पवित्र आत्मा

पवित्र आत्मा त्रिएक परमेश्वर के तीसरे व्यक्तित्व हैं जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपने अन्दर ईश्वर का अहसास करता है। ये ईसा के चर्च एवं अनुयाईयों को निर्देशित करते हैं।

=आत्मा के आने का कारण

[15/06, 00:12] Vishwanath Pawaiya: We have to know what we are and for what purpose to we had made [15/06, 00:35] Vishwanath Pawaiya: Are we only an animal those are spreading in thinking for personal and current lifestyle and says to it natural but forgiving the way of right (ऋत,सत,truth) we follow to druga (द्रुत,दुगुनी,false) that we want to start before time. [15/06, 00:41] Vishwanath Pawaiya: While thinks are made in right time . We have god but how much time we are owned by the god for showing or [15/06, 00:42] Vishwanath Pawaiya: present Our capabilities...

बाइबिल

ईसाई धर्मग्रन्थ बाइबिल में दो भाग हैं। पहला भाग पुराना नियम कहलाता है, जो कि यहूदियों के धर्मग्रंथ तनख़ का ही संस्करण है। दूसरा भाग नया नियम कहलाता तथा ईसा के उपदेश, चमत्कार और उनके शिष्यों के कामों का वर्णन करता है।

सम्प्रदाय

ईसाइयों के मुख्य सम्प्रदाय हैं :

कैथोलिक

कैथोलिक सम्प्रदाय में पोप को सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं।

ऑर्थोडॉक्स

ऑर्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के पैट्रिआर्क को मानते हैं और परम्परावादी होते हैं।

प्रोटेस्टेंट

प्रोटेस्टेंट किसी पोप को नहीं मानते है और इसके बजाय पवित्र बाइबल में पूरी श्रद्धा रखते हैं। मध्य युग में जनता के बाइबिल पढने के लिए नकल करना मना था। जिससे लोगो को ख्रिस्ती धर्म का उचित ज्ञान नहीं था। कुछ बिशप और पादरियों ने इसे सच्चे ख्रिस्ती धर्म के अनुसार नहीं समझा और बाइबिल का अपनी अपनी भाषाओ में भाषान्तर करने लगे, जिसे पोप का विरोध था। उन बिशप और पादारियों ने पोप से अलग होके एक नया सम्प्रदाय स्थापित किया जिसे प्रोटेस्टेंट कहते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ