"सामाजिक मीडिया": अवतरणों में अंतर

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सोशल मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है।<ref>{{cite web|url=http://www.independent.co.uk/news/media/advertising/style-over-substance-wayne-rooney-cleared-of-nike-twitter-plug-8797109.html |title=स्टाइल ओवर सब्सतांस: वायने रूनी क्लेअरेड ऑफ़ नाइके ट्विटर प्लग | author=शेर्विन आदम, आदम|publisher=दि इंडिपेंडेंट |date=४ सितम्बर २०१३|accessdate=१९ फरबरी २०१४}}</ref><ref>http://www.marketingweek.co.uk/news/nike-rooney-twitter-promo-escapes-censure/4007808.article</ref>
सोशल मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है।<ref>{{cite web|url=http://www.independent.co.uk/news/media/advertising/style-over-substance-wayne-rooney-cleared-of-nike-twitter-plug-8797109.html |title=स्टाइल ओवर सब्सतांस: वायने रूनी क्लेअरेड ऑफ़ नाइके ट्विटर प्लग | author=शेर्विन आदम, आदम|publisher=दि इंडिपेंडेंट |date=४ सितम्बर २०१३|accessdate=१९ फरबरी २०१४}}</ref><ref>http://www.marketingweek.co.uk/news/nike-rooney-twitter-promo-escapes-censure/4007808.article</ref>


==सामाजिक संचार माध्यम और हिन्दी==
==सामाजिक संचार-माध्यम और हिन्दी==
जब इंटरनेट ने भारत में पांव पसारने शुरू किए तो यह आशंका व्यक्त की गई थी कि कंप्यूटर के कारण देश में फिर से अंग्रेज़ी का बोलबाला हो जाएगा। किंतु यह धारणा निर्मूल साबित हुई है और आज हिंदी वेबसाइट तथा ब्लॉग न केवल धड़ल्ले से चले रहे हैं बल्कि देश के साथ-साथ विदेशों के लोग भी इन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा चैटिंग कर रहे हैं। इस प्रकार इंटरनेट भी हिंदी के प्रसार में सहायक होने लगा है।<ref>[https://www.narakasapatna.org/हिंदी-के-प्रसार-में-मीडिय.html हिंदी के प्रसार में मीडिया की भूमिका]</ref> [[हिन्दी]] आज सोशल मीडिया में विविध रूपों से विकसित हो रही है‌। सोशल मीडिया में हिंदी को वैश्विक मंच मिला है जिससे हिंदी की पताका पूरे विश्व में लहरा रही है। आज फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप पर अंग्रेजी में लिखे गये पोस्ट या टिप्पणियों की भीड में हिंदी में लिखी गई पोस्ट या टिप्पणियाँ प्रयोगकर्ताओं को ज्यादा आकर्षित करती हैं।
जब इंटरनेट ने भारत में पांव पसारने शुरू किए तो यह आशंका व्यक्त की गई थी कि कंप्यूटर के कारण देश में फिर से अंग्रेज़ी का बोलबाला हो जाएगा। किंतु यह धारणा निर्मूल साबित हुई है और आज हिंदी वेबसाइट तथा ब्लॉग न केवल धड़ल्ले से चले रहे हैं बल्कि देश के साथ-साथ विदेशों के लोग भी इन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा चैटिंग कर रहे हैं। इस प्रकार इंटरनेट भी हिंदी के प्रसार में सहायक होने लगा है।<ref>[https://www.narakasapatna.org/हिंदी-के-प्रसार-में-मीडिय.html हिंदी के प्रसार में मीडिया की भूमिका]</ref> [[हिन्दी]] आज सोशल मीडिया में विविध रूपों से विकसित हो रही है‌। सोशल मीडिया में हिंदी को वैश्विक मंच मिला है जिससे हिंदी की पताका पूरे विश्व में लहरा रही है। आज फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप पर अंग्रेजी में लिखे गये पोस्ट या टिप्पणियों की भीड में हिंदी में लिखी गई पोस्ट या टिप्पणियाँ प्रयोगकर्ताओं को ज्यादा आकर्षित करती हैं।



08:50, 21 मार्च 2020 का अवतरण

सोशल मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक मंच बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है।

स्वरूप

सोशल मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। उदाहरणार्थ-

फेसबूक – विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल साइट
  • सहयोगी परियोजना (उदाहरण के लिए, विकिपीडिया)
  • ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (उदाहरण के लिए, ट्विटर)
  • सोशल खबर ​​नेटवर्किंग साइट्स (उदाहरण के लिए डिग और लेकरनेट)
  • सामग्री समुदाय (उदाहरण के लिए, यूट्यूब और डेली मोशन)
  • सामाजिक नेटवर्किंग साइट (उदाहरण के लिए, फेसबुक)
  • आभासी खेल दुनिया (जैसे, वर्ल्ड ऑफ़ वॉरक्राफ्ट)
  • आभासी सामाजिक दुनिया (जैसे सेकंड लाइफ)[1]

विशेषता

सोशल मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। निएलसन के अनुसार ‘इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’।

दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है।[2]

व्यापारिक उपयोग

जन सामान्य तक पहुँच होने के कारण सामाजिक मीडिया को लोगों तक विज्ञापन पहुँचाने के सबसे अच्छा जरिया समझा जाता है। हाल ही के कुछ एक सालो में इंडस्ट्री में ऐसी क्रांति देखी जा रही है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ताओं का वर्गीकरण विभिन्न मानकों के अनुसार किया जाता है जिसमें उनकी आयु, रूचि, लिंग, गतिविधियों आदि को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इस विज्ञापन के सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं साथ ही साथ आलोचना भी की जा रही है।[3]सोशल मीडिया से आप कई प्रकार से अपने व्यापार का विज्ञापन दे कर उसे आगे ले जा सकते हैं जिससे आपको बहुत मुनाफा भी होगा।

समालोचना

सोशल मीडिया की समालोचना विभिन्न प्लेटफार्म के अनुप्रयोग में आसानी, उनकी क्षमता, उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता के आधार पर होती रही है। हालाँकि कुछ प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को एक प्लेटफॉर्म्स से दुसरे प्लेटफॉर्म्स के बीच संवाद करने की सुविधा प्रदान करते हैं पर कई प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को ऐसी सुविधा प्रदान नहीं करते हैं जिससे की वे आलोचना का केंद्र विन्दु बनते रहे हैं। वहीँ बढती जा रही सामाजिक मीडिया साइट्स के कई सारे नुकसान भी हैं। ये साइट्स ऑनलाइन शोषण का साधन भी बनती जा रही हैं। ऐसे कई केस दर्ज किए गए हैं जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग लोगों को सामाजिक रूप से हानि पहुँचाने, उनकी खिचाई करने तथा अन्य गलत प्रवृत्तियों से किया गया।[4][5]

सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि उस किशोर ने फेसबूक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तीजनक थी, इस तस्वीर के अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर उतार आए। जबतक प्राशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो अपलोड करने वाले तक भी पहुँच गया। लोगों का मानना है कि परंपरिक मीडिया के आपत्तीजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तीजनक व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है, अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया पर आपत्तीजनक व्यवहार करने वाले को पकडा जा सकता है और इन घटनाओं की पुनरावृति को रोका भी जा सकता है। केवल मेरठ के उस किशोर का पकडे जाना ही इसका उदाहरण नहीं है, वल्कि सोशल मीडिया की ही दें है कि लंदन दंगों में शामिल कई लोगों को वहाँ की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए। और भी कई उदाहरण है जैसे बैंकुअर दंगे के कई अहम सुराग में सोशल मीडिया की बडी भूमिका रही। मिस्र के तहरीर चैक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है।[6]

सोशल मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है।[7][8]

सामाजिक संचार-माध्यम और हिन्दी

जब इंटरनेट ने भारत में पांव पसारने शुरू किए तो यह आशंका व्यक्त की गई थी कि कंप्यूटर के कारण देश में फिर से अंग्रेज़ी का बोलबाला हो जाएगा। किंतु यह धारणा निर्मूल साबित हुई है और आज हिंदी वेबसाइट तथा ब्लॉग न केवल धड़ल्ले से चले रहे हैं बल्कि देश के साथ-साथ विदेशों के लोग भी इन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा चैटिंग कर रहे हैं। इस प्रकार इंटरनेट भी हिंदी के प्रसार में सहायक होने लगा है।[9] हिन्दी आज सोशल मीडिया में विविध रूपों से विकसित हो रही है‌। सोशल मीडिया में हिंदी को वैश्विक मंच मिला है जिससे हिंदी की पताका पूरे विश्व में लहरा रही है। आज फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप पर अंग्रेजी में लिखे गये पोस्ट या टिप्पणियों की भीड में हिंदी में लिखी गई पोस्ट या टिप्पणियाँ प्रयोगकर्ताओं को ज्यादा आकर्षित करती हैं।

सोशल मीडिया में हिंदी भाषा का वर्चस्व का प्रमुख कारण यह है कि हिंदी भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त एवं वैज्ञानिक माध्यम है। संबंधित पोस्ट के भावों को समझने में असुविधा नहीं होती है। लिखी गई बात पाठक तक उसी भाव में पहुँचती है, जिस भाव से लिखा जाता है। सोशल मीडिया पर मौजूद हिंदी का ग्राफ दिन दो गुनी रात चौगुनी आसमान छू रहा है। यह हिंदी भाषा की सुगमता, सरलता और समृद्धता का ही प्रतीक है। हिंदी भाषा के इस सोशल मीडिया ने अपनी ताकत से सरकारों को अपने फैसलों, नीतियों और व्यवहारों की ओर ध्यान आकर्षित करवाया है। इस मीडिया ने लोक-बोल-सुन रहे हैं इन मंचों पर सार्वजनिक विमर्श की गुणवत्ता बढी है तथा लोगों का स्तर हिंदी भाषा में बेहतर हुआ है। [10] हिंदी भाषा, यूट्यूब पर भी फल-फूल रही है।[11]

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 तक स्थानीय भाषा का इंटरनेट यूजर बेस इंग्लिश भाषा के डिजिटल उपभोक्ताओं को पीछे छोड़ देगा और इस परिवर्तन का नेतृत्व सोशल मीडिया करेगा। [12][13]

सन्दर्भ

  1. शी, जहाँ ; रुई, हुवाक्सिया ; व्हिंस्तों, एंड्रू बी. (फोर्थ कमिंग). "कंटेंट शेयरिंग इन अ सोशल ब्रॉड कास्टिंग एनवायरनमेंट एविडेंस फ्रॉम ट्विटर". मिस क्वार्टरली
  2. जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात
  3. "फेसबुक पर ग्राहकों के साथ बातचीत के तरीको में सुधार". क्लियरट्रिप डॉट कॉम. २७ जनवरी २०१४. अभिगमन तिथि १९ फरबरी २०१४. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. फित्ज़गेराल्ड, बी.  (२५ मार्च २०१३). "डिस अपियरिंग रोमनी". दि हफिंग्टन पोस्ट. अभिगमन तिथि १९ फरबरी २०१४. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  5. हिन्शिफ, डॉन. (१५ फरबरी २०१४). "आर सोशल मीडिया सिलोस होल्डिंग बेक बिज़नस". ZDNet.com. अभिगमन तिथि १९ फरबरी २०१४. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  6. जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात
  7. शेर्विन आदम, आदम (४ सितम्बर २०१३). "स्टाइल ओवर सब्सतांस: वायने रूनी क्लेअरेड ऑफ़ नाइके ट्विटर प्लग". दि इंडिपेंडेंट. अभिगमन तिथि १९ फरबरी २०१४. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  8. http://www.marketingweek.co.uk/news/nike-rooney-twitter-promo-escapes-censure/4007808.article
  9. हिंदी के प्रसार में मीडिया की भूमिका
  10. सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का वर्चस्व
  11. Why ‘vernacular’ is the big game for digital marketers
  12. सोशल मीडिया में 2021 तक अंग्रेजी भाषा को पीछे छोड़ देंगे स्थानीय भाषा के डिजिटल यूजर
  13. Why vernacular is winning?

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ