"कुजुल कडफिसेस": अवतरणों में अंतर

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कुजुल कड़फिसेस का वास्तविक नाम ‘गुजुर कपिशिया’ हैं|


Key Words- Kadphises, Kapisa, Kapasiya Gusura, Gujur, Gujar, Gurjar
[[चित्र:KujulaKadphisesCoinAugustusImitation.jpg|thumb|260px|[[रोमन साम्राज्य|रोमन]] अंदाज़ में गढ़ा हुआ कुजुल का सिक्का, जिसपर [[यूनानी लिपि|यूनानी]] में लिखा है '<small>ΚΟΖΟΛΑ ΚΑΔΑΦΕΣ ΧΟϷΑΝΟΥ ΖΑΟΟΥ</small>', 'कुजुल कडफिसेस ख़ोशानोउ ज़ाओओउ', यानि 'कुजुल कडफिसेस, कुषाणों का शासक']]

'''कुजुल कडफिसेस''' (<small>Κοζουλου Καδφιζου, Kujula Kadphises</small>) एक [[कुषाण]] राजकुंवर था जिसने पहली सदी ईसवी में [[युएझ़ी लोग|युएझ़ी परिसंघ]] को संगठित किया और पहला कुषाण सम्राट बना। [[अफ़ग़ानिस्तान]] के [[बग़लान प्रान्त]] में सुर्ख़ कोतल नामक पुरातन स्थल में पाए गए [[रबातक शिलालेख]] के अनुसार कुजुल कडफिसेस प्रसिद्ध कुषाण [[सम्राट कनिष्क]] का पड़-दादा था। कुजुल के सिक्कों पर अक्सर [[खरोष्ठी]] और [[यूनानी लिपि]] मिलती है।<ref name="ref69podix">[http://books.google.com/books?id=DguGWP0vGY8C History of Civilizations of Central Asia: The development of sedentary and nomadic civilizations, 700 B.C. to A.D. 250], Ahmad Hasan Dani, Motilal Banarsidass Publishers, 1999, ISBN 978-81-208-1408-0, ''... The successor of Kanishka seems to have been his son Vasishka, who, according to the inscription of Kamra, was the great-grandson of Kujula Kadphises ...''</ref>
135 ईसा पूर्व में कुषाण हिन्दू कुश पर्वत क्षेत्र में वक्षु नदी (आधुनिक आमू दरिया) के उत्तरी और दक्षिणी हिन्दू कुश पर्वत क्षेत्रो पर काबिज़ थे| 327 ई.पू में सिकंदर के भारत आक्रमण के पश्चात यहाँ यूनानी बस गए थे तथा वे इस क्षेत्र को बैक्ट्रिया के नाम से पुकारते थे| महाभारत (अंतिम संपादन गुप्त काल) के अनुसार यह क्षेत्र बाह्लीक कहलाता था| बाह्लीक राज्य की राजसत्ता कुषाणों ने इन यूनानियो को पराजित कर छीनी थी| अतः प्राचीन भारत में यूनानियो की सत्ता का अंत करने का श्रेय कुषाणों को जाता हैं| चीन के ऐतिहासिक ग्रन्थ होऊ हंशु (Hou Hanshu) के अनुसार कुषाणों के सरदार कुजुल कड़फिस ने बाह्लीक प्रदेश के दक्षिण में स्थित कपिशा और गंधार राज्यों को जीत लिया| कपिशा एक प्रतिष्ठित राज्य था| कपिशा राज्य का नाम उसके प्रसिद्ध नगर और राजधानी ‘कपिशा’ के नाम पर पडा था| यह नगर काबुल से 50 मील दूर उत्तर में स्थित था| कपिशा की विजय से कुषाणों की प्रतिष्ठा भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई| कुजुल कड़फिस ने ‘कपिशा’ को अपने नवनिर्मित साम्राज्य की राजधानी बनाया तथा कुषाण शासक के रूप में यही से उसने अपना पहला सिक्का जारी किया|

पुरातत्वेताओ ने घोरबंद और पंजशीर नदी के मिलन स्थल पर स्थित ‘बेग्राम’ नामक स्थान पर प्राचीन कपिशा नगर के अवशेषों को खोज निकाला हैं| यह आधुनिक काबुल और बामियान के बीच रेशम मार्ग पर काबुल के 50 मील उत्तर में स्थित था| यहाँ कुषाण शासको का गर्मी ऋतु का महल तथा एक सुसज्जित बाज़ार था| कपिशा ईंटो से बनी ऊँची दीवारों से सुरक्षित किया गया था| कनिष्क (78-101 ई.) द्वारा पेशावर को कुषाण साम्राज्य की राजधानी बनाने से पूर्व कपिशा कुषाणों की मुख्य राजधानी थी तथा उसके बाद भी यह उनकी ग्रीष्म ऋतु की राजधानी बनी रही| हेन सांग के ग्रन्थ सी यू की के अनुसार कनिष्क ने यहाँ पर अपने शत्रु देश चीन को पराजित कर उसके राजकुमारों को कपिशा के महल में बंधक बना कर रखा था| यहाँ से कुषाण कालीन ‘बेग्राम ट्रेजर’ बेग्राम खज़ाना की प्राप्ति हुई हैं|

कुजुल कडफिस तथा तथा उसके पौत्र विम कडफिस के नाम में कडफिस एक उपाधि हैं| कडफिस को भिन्न-भिन्न रूप से लिखा गया हैं, जैसे- कुजुल कडफिस के सिक्को पर खरोष्ठी लिपि और प्राकृत भाषा में कप्शा, कप्सा, कफ्सा, कफसा आदि| प्रथम शताब्दी के रोमन विद्वान प्लिनी की पुस्तक नेचुरल हिस्ट्री की नक़ल तैयार करने वाले विद्वान सोलिनुस (Solinus) ने ‘कपिशा’ को काफुसा (Caphusa) लिखा हैं| कडफिस का खरोष्ठी रूप कप्शा इनकी राजधानी के नाम कपिशा के अत्यधिक नज़दीक हैं|

कुजुल को कपिशा का शासक होने का बड़ा गर्व था| अतः उसने कपिशा पर अपना शासन प्रदर्शित करने वाली एक उपाधि धारण की| लेवी के अनुसार ‘कड़फिसेस’ का अर्थ ‘कपिशा मैन’ (Kapisha man) हैं| कुजुल और विम के नाम में कडफिस कपिशा से सम्बंधित शब्द हैं, जिसका अर्थ ‘कपिशा का शासक’ हैं| यही कारण कि जब कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर) को अपनी राजधानी बनाया तो उसने और उसके उत्तराधिकारियो ने परम्परगत कडफिस’ शब्द अपने नाम के साथ प्रयोग करना बंद कर दिया|

कुजुल कड़फिस कुषाण शासक के नाम का सही रूप नहीं, बल्कि यह उसके वास्तविक नाम का अपभ्रंश प्राकृत रूपान्तरण हैं, जिसे सिक्को पर कुशानी लिपि में लिखा गया हैं| ऍफ़ डब्ल्यू थॉमस के अनुसार कुजुल वास्तव में गुशुर हैं| कुषाण काल में कुषाणों के राजसी वर्ग के लिए गुशुर शब्द के प्रयोग के उदहारण मौजूद हैं| कुजुल कड़फिसेस के काल में ही उसके अधीनस्थ क्षेत्रीय शासक सेनवर्मन के स्वात घाटी अभिलेख में गुशुर शब्द का प्रयोग सेना के अधिकारियो के लिए किया गया हैं| ऍफ़ डब्ल्यू थॉमस के मत का समर्थन टी. बरो नामक विद्वान ने किया हैं| भारत में कुषाण अध्ययन के विशेषज्ञ माने जाने वाले बी एन मुख़र्जी ने भी इस बात का समर्थन किया हैं कि कुजुल को वास्तव में गुशुर ही पढ़ा जाना चाहिए| इसी क्रम में सुशील भाटी ने अपने लेख गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत में कहा था कि क्योकि कुषाण ‘श’ वर्ण को ‘ज’ बोलते थे अतः वे गुशुर को गुजुर पुकारते थे तथा उनके अनुसार कुजुल वास्तव में ‘गुजुर’ शब्द का प्राकृत रूप हैं| निष्कर्षतः कुजुल गुजुर हैं और कड़फिसेस कपिशा’ अथवा कपिशिया हैं, अतः कुजुल कड़फिसेस का वास्तविक नाम ‘गुजुर कपिशिया’ हैं|

कुजुल कड़फिसेस के ‘गुजुर कपिशिया’ के रूप में पहचान के समर्थन में यह भी सूच्य हैं कि कुषाण कालीन अबोटाबाद अभिलेख का विश्लेषण करते हुए डी. सी. सरकार ने गुर्जर शब्द को गुशुर का परिवर्तित रूप बताया हैं| उनके इस मत का समर्थन आर. एस शर्मा अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ भारतीय सामंतवाद में किया हैं| गुर्जर कबीले का आज भी अफगानिस्तान में गुजुर पुकारा जाता हैं|

एक संस्कृत -चीनी शब्दकोष में कपिशा को कपिशिया कहा गया हैं| पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण पर अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में कपिशा में निर्मित शराब को स्थान सम्बन्ध के कारण ‘कापिशायां मधु’ अर्थात कपिशा की शराब कहा हैं| इसी प्रकार गुर्जर जाति का एक प्रमुख गोत्र का नाम कपासिया हैं| सभवतः कपासिया गुर्जरों का स्थान सम्बन्ध कुषाण सम्राट कुजुल कड़फिसेस अर्थात ‘गुजुर कपिशिया’ की राजधानी कपिशा से हैं|

सन्दर्भ-

1. सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016
2. Samual Beal, Buddhist record of the western words, https://books.google.co.in/books?isbn=1136376577
3. T. Burrow, Iranian Words in the Kharosthi Documents from ChineseTurkestanII. Bulletin of the School of Oriental and African Studies, 7, 1935, Page 779-790
4. T Burrow, The Language of the Kharoṣṭhi Documents from Chinese Turkestan, Cambridge, 1937
5. B N Mukherjee, Kushana studies: new perspective, 2004
6. D. C. Sircar, Studies in the Religious Life of Ancient and Medieval India, 1971, Page 108- 109, https://books.google.co.in/books?isbn=8120827902
7. R.S. Sharma, Indian Feudalism, p.106-107
8. P. C. Bagchi, India And Central Asia, Calcutta, 1955, p. 17, 138-39
9. H. C. Raychaudhary, Political History of Ancient India,
10. The legend on the obverse in Greek characters refers to OOEMO KADPHISES and the Kharoshthi inscription on the reverse refers to VIMA KAPISA.- Satya Shrava, The Kushana Numismatics, 1985, p 59
11. Harry Falk, Names and Titles from Kusana Times to the Hunas, Coins, Art and Chronology II, 2010, Page 75
M. Sylvain Levi, JA, ciii, 1923, p. 52 is right in explaining the name Kadphises as ‘the Kapisa man’, one might even infer, that Kushana hi-hou was considered by his people as entitled to the throne of Kapisa. i.e. in this connection perhaps Ki-pin. - Sten Konow, Corpvs Inscriptionvm indicarvm Vol.2, part 1, Kharosthi Inscriptions, p footnote lxvi
12. The name is spelt, in Kharoshthi, Kaphasa or Kapasa on coins of his found at Taxila,1 and LeVi interpreted the name Kadphises to mean 'the Kapisa man' – William Woodthorpe Tarn, The Greeks in Bactria and India, 1951, p 505
13. Yen-kao-chen of this statement of the Hoi* Han-shu has been identified with Ooemo Kad- phises or V'ima Kapphisa or Kapisa mentioned in the legends of a great number- B N Mukherjee, The rise and fall of the Kushana Empire, 1988, p 43


== इन्हें भी देखें ==
== इन्हें भी देखें ==

11:40, 15 मार्च 2020 का अवतरण

कुजुल कड़फिसेस का वास्तविक नाम ‘गुजुर कपिशिया’ हैं|

Key Words- Kadphises, Kapisa, Kapasiya Gusura, Gujur, Gujar, Gurjar

135 ईसा पूर्व में कुषाण हिन्दू कुश पर्वत क्षेत्र में वक्षु नदी (आधुनिक आमू दरिया) के उत्तरी और दक्षिणी हिन्दू कुश पर्वत क्षेत्रो पर काबिज़ थे| 327 ई.पू में सिकंदर के भारत आक्रमण के पश्चात यहाँ यूनानी बस गए थे तथा वे इस क्षेत्र को बैक्ट्रिया के नाम से पुकारते थे| महाभारत (अंतिम संपादन गुप्त काल) के अनुसार यह क्षेत्र बाह्लीक कहलाता था| बाह्लीक राज्य की राजसत्ता कुषाणों ने इन यूनानियो को पराजित कर छीनी थी| अतः प्राचीन भारत में यूनानियो की सत्ता का अंत करने का श्रेय कुषाणों को जाता हैं| चीन के ऐतिहासिक ग्रन्थ होऊ हंशु (Hou Hanshu) के अनुसार कुषाणों के सरदार कुजुल कड़फिस ने बाह्लीक प्रदेश के दक्षिण में स्थित कपिशा और गंधार राज्यों को जीत लिया| कपिशा एक प्रतिष्ठित राज्य था| कपिशा राज्य का नाम उसके प्रसिद्ध नगर और राजधानी ‘कपिशा’ के नाम पर पडा था| यह नगर काबुल से 50 मील दूर उत्तर में स्थित था| कपिशा की विजय से कुषाणों की प्रतिष्ठा भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई| कुजुल कड़फिस ने ‘कपिशा’ को अपने नवनिर्मित साम्राज्य की राजधानी बनाया तथा कुषाण शासक के रूप में यही से उसने अपना पहला सिक्का जारी किया|

पुरातत्वेताओ ने घोरबंद और पंजशीर नदी के मिलन स्थल पर स्थित ‘बेग्राम’ नामक स्थान पर प्राचीन कपिशा नगर के अवशेषों को खोज निकाला हैं| यह आधुनिक काबुल और बामियान के बीच रेशम मार्ग पर काबुल के 50 मील उत्तर में स्थित था| यहाँ कुषाण शासको का गर्मी ऋतु का महल तथा एक सुसज्जित बाज़ार था| कपिशा ईंटो से बनी ऊँची दीवारों से सुरक्षित किया गया था| कनिष्क (78-101 ई.) द्वारा पेशावर को कुषाण साम्राज्य की राजधानी बनाने से पूर्व कपिशा कुषाणों की मुख्य राजधानी थी तथा उसके बाद भी यह उनकी ग्रीष्म ऋतु की राजधानी बनी रही| हेन सांग के ग्रन्थ सी यू की के अनुसार कनिष्क ने यहाँ पर अपने शत्रु देश चीन को पराजित कर उसके राजकुमारों को कपिशा के महल में बंधक बना कर रखा था| यहाँ से कुषाण कालीन ‘बेग्राम ट्रेजर’ बेग्राम खज़ाना की प्राप्ति हुई हैं|

कुजुल कडफिस तथा तथा उसके पौत्र विम कडफिस के नाम में कडफिस एक उपाधि हैं| कडफिस को भिन्न-भिन्न रूप से लिखा गया हैं, जैसे- कुजुल कडफिस के सिक्को पर खरोष्ठी लिपि और प्राकृत भाषा में कप्शा, कप्सा, कफ्सा, कफसा आदि| प्रथम शताब्दी के रोमन विद्वान प्लिनी की पुस्तक नेचुरल हिस्ट्री की नक़ल तैयार करने वाले विद्वान सोलिनुस (Solinus) ने ‘कपिशा’ को काफुसा (Caphusa) लिखा हैं| कडफिस का खरोष्ठी रूप कप्शा इनकी राजधानी के नाम कपिशा के अत्यधिक नज़दीक हैं|

कुजुल को कपिशा का शासक होने का बड़ा गर्व था| अतः उसने कपिशा पर अपना शासन प्रदर्शित करने वाली एक उपाधि धारण की| लेवी के अनुसार ‘कड़फिसेस’ का अर्थ ‘कपिशा मैन’ (Kapisha man) हैं| कुजुल और विम के नाम में कडफिस कपिशा से सम्बंधित शब्द हैं, जिसका अर्थ ‘कपिशा का शासक’ हैं| यही कारण कि जब कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर) को अपनी राजधानी बनाया तो उसने और उसके उत्तराधिकारियो ने परम्परगत कडफिस’ शब्द अपने नाम के साथ प्रयोग करना बंद कर दिया|

कुजुल कड़फिस कुषाण शासक के नाम का सही रूप नहीं, बल्कि यह उसके वास्तविक नाम का अपभ्रंश प्राकृत रूपान्तरण हैं, जिसे सिक्को पर कुशानी लिपि में लिखा गया हैं| ऍफ़ डब्ल्यू थॉमस के अनुसार कुजुल वास्तव में गुशुर हैं| कुषाण काल में कुषाणों के राजसी वर्ग के लिए गुशुर शब्द के प्रयोग के उदहारण मौजूद हैं| कुजुल कड़फिसेस के काल में ही उसके अधीनस्थ क्षेत्रीय शासक सेनवर्मन के स्वात घाटी अभिलेख में गुशुर शब्द का प्रयोग सेना के अधिकारियो के लिए किया गया हैं| ऍफ़ डब्ल्यू थॉमस के मत का समर्थन टी. बरो नामक विद्वान ने किया हैं| भारत में कुषाण अध्ययन के विशेषज्ञ माने जाने वाले बी एन मुख़र्जी ने भी इस बात का समर्थन किया हैं कि कुजुल को वास्तव में गुशुर ही पढ़ा जाना चाहिए| इसी क्रम में सुशील भाटी ने अपने लेख गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत में कहा था कि क्योकि कुषाण ‘श’ वर्ण को ‘ज’ बोलते थे अतः वे गुशुर को गुजुर पुकारते थे तथा उनके अनुसार कुजुल वास्तव में ‘गुजुर’ शब्द का प्राकृत रूप हैं| निष्कर्षतः कुजुल गुजुर हैं और कड़फिसेस कपिशा’ अथवा कपिशिया हैं, अतः कुजुल कड़फिसेस का वास्तविक नाम ‘गुजुर कपिशिया’ हैं|

कुजुल कड़फिसेस के ‘गुजुर कपिशिया’ के रूप में पहचान के समर्थन में यह भी सूच्य हैं कि कुषाण कालीन अबोटाबाद अभिलेख का विश्लेषण करते हुए डी. सी. सरकार ने गुर्जर शब्द को गुशुर का परिवर्तित रूप बताया हैं| उनके इस मत का समर्थन आर. एस शर्मा अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ भारतीय सामंतवाद में किया हैं| गुर्जर कबीले का आज भी अफगानिस्तान में गुजुर पुकारा जाता हैं|

एक संस्कृत -चीनी शब्दकोष में कपिशा को कपिशिया कहा गया हैं| पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण पर अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में कपिशा में निर्मित शराब को स्थान सम्बन्ध के कारण ‘कापिशायां मधु’ अर्थात कपिशा की शराब कहा हैं| इसी प्रकार गुर्जर जाति का एक प्रमुख गोत्र का नाम कपासिया हैं| सभवतः कपासिया गुर्जरों का स्थान सम्बन्ध कुषाण सम्राट कुजुल कड़फिसेस अर्थात ‘गुजुर कपिशिया’ की राजधानी कपिशा से हैं|

सन्दर्भ-

1. सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016 2. Samual Beal, Buddhist record of the western words, https://books.google.co.in/books?isbn=1136376577 3. T. Burrow, Iranian Words in the Kharosthi Documents from ChineseTurkestanII. Bulletin of the School of Oriental and African Studies, 7, 1935, Page 779-790 4. T Burrow, The Language of the Kharoṣṭhi Documents from Chinese Turkestan, Cambridge, 1937

5. B N Mukherjee, Kushana studies: new perspective, 2004

6. D. C. Sircar, Studies in the Religious Life of Ancient and Medieval India, 1971, Page 108- 109, https://books.google.co.in/books?isbn=8120827902 7. R.S. Sharma, Indian Feudalism, p.106-107 8. P. C. Bagchi, India And Central Asia, Calcutta, 1955, p. 17, 138-39 9. H. C. Raychaudhary, Political History of Ancient India, 10. The legend on the obverse in Greek characters refers to OOEMO KADPHISES and the Kharoshthi inscription on the reverse refers to VIMA KAPISA.- Satya Shrava, The Kushana Numismatics, 1985, p 59 11. Harry Falk, Names and Titles from Kusana Times to the Hunas, Coins, Art and Chronology II, 2010, Page 75 M. Sylvain Levi, JA, ciii, 1923, p. 52 is right in explaining the name Kadphises as ‘the Kapisa man’, one might even infer, that Kushana hi-hou was considered by his people as entitled to the throne of Kapisa. i.e. in this connection perhaps Ki-pin. - Sten Konow, Corpvs Inscriptionvm indicarvm Vol.2, part 1, Kharosthi Inscriptions, p footnote lxvi 12. The name is spelt, in Kharoshthi, Kaphasa or Kapasa on coins of his found at Taxila,1 and LeVi interpreted the name Kadphises to mean 'the Kapisa man' – William Woodthorpe Tarn, The Greeks in Bactria and India, 1951, p 505 13. Yen-kao-chen of this statement of the Hoi* Han-shu has been identified with Ooemo Kad- phises or V'ima Kapphisa or Kapisa mentioned in the legends of a great number- B N Mukherjee, The rise and fall of the Kushana Empire, 1988, p 43

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