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'''अमरसिंह राव''' राजा [[विक्रमादित्य]] की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उनका बनाया [[अमरकोष]] संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध [[कोष]] ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई॰ पू॰ में की थी।
'''अमरसिंह राव''' राजा [[विक्रमादित्य]] की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उनका बनाया [[अमरकोश|अमरकोष]] संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध [[कोष]] ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई॰ पू॰ में की थी।


अमरसिंह ने अपने से पहले के अनेक शब्दकोषकारों के ग्रन्थों से सहायता ली थी। अमरसिंह को [[बौद्ध]] माना जाता है परन्तु समस्त [[संस्कृत साहित्य]] में उनका नाम सम्माननीय है। उनका कोष इतना अच्छा और पूर्ण है कि इससे पहले के कोषों को इसने विलीन ही कर लिया, इसके पश्चात भी कोई कोषग्रन्थ इतना प्रसिद्ध नहीं हो सका। इस पर लगभग पचास टीकायें लिखी गयीं। उनमें से '''भट्टक्षीरस्वामी''' की टीका सबसे प्रसिद्ध है। क्षीरस्वामी ने अमरकोष में आये प्रत्येक शब्द की पाणिनि व्याकरण के अनुसार व्युत्पत्ति और निरुक्ति प्रस्तुत की है। इस प्रकार अमरकोष में शब्दों का विशेष योजना से वैज्ञानिक ढ़ंग से वर्गीकरण किया गया है। '''गुणरात''' नामक विद्वान ने छठी शताब्दी ई॰ में अमरकोष का चीनी भाषा में अनुवाद किया। अमरकोष और इसका टीका तिब्बती भाषामें भी उपलब्ध है, जिसका नाम तिब्बती में (འཆི་མེད་མཛོད། छिमेद जोद) कहते हैं।
अमरसिंह ने अपने से पहले के अनेक शब्दकोषकारों के ग्रन्थों से सहायता ली थी। अमरसिंह को [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] माना जाता है परन्तु समस्त [[संस्कृत साहित्य]] में उनका नाम सम्माननीय है। उनका कोष इतना अच्छा और पूर्ण है कि इससे पहले के कोषों को इसने विलीन ही कर लिया, इसके पश्चात भी कोई कोषग्रन्थ इतना प्रसिद्ध नहीं हो सका। इस पर लगभग पचास टीकायें लिखी गयीं। उनमें से '''भट्टक्षीरस्वामी''' की टीका सबसे प्रसिद्ध है। क्षीरस्वामी ने अमरकोष में आये प्रत्येक शब्द की पाणिनि व्याकरण के अनुसार व्युत्पत्ति और निरुक्ति प्रस्तुत की है। इस प्रकार अमरकोष में शब्दों का विशेष योजना से वैज्ञानिक ढ़ंग से वर्गीकरण किया गया है। '''गुणरात''' नामक विद्वान ने छठी शताब्दी ई॰ में अमरकोष का चीनी भाषा में अनुवाद किया। अमरकोष और इसका टीका तिब्बती भाषामें भी उपलब्ध है, जिसका नाम तिब्बती में (འཆི་མེད་མཛོད། छिमेद जोद) कहते हैं।


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15:44, 4 मार्च 2020 का अवतरण

अमरसिंह राव राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उनका बनाया अमरकोष संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई॰ पू॰ में की थी।

अमरसिंह ने अपने से पहले के अनेक शब्दकोषकारों के ग्रन्थों से सहायता ली थी। अमरसिंह को बौद्ध माना जाता है परन्तु समस्त संस्कृत साहित्य में उनका नाम सम्माननीय है। उनका कोष इतना अच्छा और पूर्ण है कि इससे पहले के कोषों को इसने विलीन ही कर लिया, इसके पश्चात भी कोई कोषग्रन्थ इतना प्रसिद्ध नहीं हो सका। इस पर लगभग पचास टीकायें लिखी गयीं। उनमें से भट्टक्षीरस्वामी की टीका सबसे प्रसिद्ध है। क्षीरस्वामी ने अमरकोष में आये प्रत्येक शब्द की पाणिनि व्याकरण के अनुसार व्युत्पत्ति और निरुक्ति प्रस्तुत की है। इस प्रकार अमरकोष में शब्दों का विशेष योजना से वैज्ञानिक ढ़ंग से वर्गीकरण किया गया है। गुणरात नामक विद्वान ने छठी शताब्दी ई॰ में अमरकोष का चीनी भाषा में अनुवाद किया। अमरकोष और इसका टीका तिब्बती भाषामें भी उपलब्ध है, जिसका नाम तिब्बती में (འཆི་མེད་མཛོད། छिमेद जोद) कहते हैं।