"चन्दन": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो 122.175.163.133 (Talk) के संपादनों को हटाकर महेन्द्र शर्मा के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
}}
}}
[[चित्र:Santalum album (Chandan) in Hyderabad, AP W IMG 0027.jpg|right|thumb|200px|चन्दन का वृक्ष (हैदराबाद)]]
[[चित्र:Santalum album (Chandan) in Hyderabad, AP W IMG 0027.jpg|right|thumb|200px|चन्दन का वृक्ष (हैदराबाद)]]
भारतीय '''चंदन'''<ref>{{Cite web|url=http://www.vedopchar.in/upchar/sandalwood-ke-gunkari-laabh/|title=Sandalwood benefits & disadvantages|last=chauhan|first=Ruchi singh|date=2019-09-07|website=Vedopchar|language=en|access-date=2020-01-07}}</ref> (Santalum album) का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: [[कर्नाटक]] के जंगलों में मिलता है तथा भारत के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। [[भारत]] के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं।
भारतीय '''चंदन''' (Santalum album) का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: [[कर्नाटक]] के जंगलों में मिलता है तथा भारत के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। [[भारत]] के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं।


इस पेड़ की ऊँचाई 18 से लेकर 20 मीटर तक होती है। यह '''परोपजीवी''' पेड़, सैंटेलेसी कुल का सैंटेलम ऐल्बम लिन्न (Santalum album linn.) है। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सौगंधिक तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 8 से लेकर 12वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिये ढालवाँ जमीन, जल सोखनेवाली उपजाऊ चिकली मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
इस पेड़ की ऊँचाई 18 से लेकर 20 मीटर तक होती है। यह '''परोपजीवी''' पेड़, सैंटेलेसी कुल का सैंटेलम ऐल्बम लिन्न (Santalum album linn.) है। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सौगंधिक तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 8 से लेकर 12वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिये ढालवाँ जमीन, जल सोखनेवाली उपजाऊ चिकली मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को जड़, कुंदा, बुरादा, तथा छिलका और छीलन में विभक्त करके बेचा जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, तथा साजसज्जा के सामान बनाने में और अन्य उत्पादनों का अगरबत्ती, हवन सामग्री, तथा सौगंधिक तेज के निर्माण में होता है। आसवन द्वारा सुगंधित तेल निकाला जाता है। प्रत्येक वर्ष लगभग 3,000 मीट्रिक टन चंदन की लकड़ी से तेल निकाला जाता है। एक मीट्रिक टन लकड़ी से 47 से लेकर 50 किलोग्राम तक चंदन का तेल प्राप्त होता है। रसायनज्ञ इस तेल के सुगंधित तत्व को सांश्लेषिक रीति से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।
तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को जड़, कुंदा, बुरादा, तथा छिलका और छीलन में विभक्त करके बेचा जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, तथा साजसज्जा के सामान बनाने में और अन्य उत्पादनों का अगरबत्ती, हवन सामग्री, तथा सौगंधिक तेज के निर्माण में होता है। आसवन द्वारा सुगंधित तेल निकाला जाता है। प्रत्येक वर्ष लगभग 3,000 मीट्रिक टन चंदन की लकड़ी से तेल निकाला जाता है। एक मीट्रिक टन लकड़ी से 47 से लेकर 50 किलोग्राम तक चंदन का तेल प्राप्त होता है। रसायनज्ञ इस तेल के सुगंधित तत्व को सांश्लेषिक रीति से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।


चंदन<ref>{{Cite web|url=http://www.vedopchar.in/upchar/home-remedies-for-skin-beauty/|title=Skin beauty home remedies- त्वचा की सुंदरता के घरेलू उपाय|last=chauhan|first=Ruchi singh|date=2019-09-22|website=Vedopchar|language=en|access-date=2020-01-07}}</ref><ref>{{Cite web|url=http://www.vedopchar.in/upchar/advantages-and-disadvantages-of-turmeric-and-honey/|title=Turmeric and Honey advantages and disadvantages in Hindi|last=chauhan|first=Ruchi singh|date=2019-09-18|website=Vedopchar|language=en|access-date=2020-01-07}}</ref> के प्रसारण में पक्षी भी सहायक हैं। बीजों के द्वारा रोपकर भी इसे उगाया जा रहा है। [[सैंडल स्पाइक]] (Sandle spike) नामक रहस्यपूर्ण और संक्रामक वानस्पतिक रोग इस वृक्ष का शत्रु है। इससे संक्रमित होने पर पत्तियाँ ऐंठकर छोटी हो जाती हैं और वृक्ष विकृत हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के सभी प्रयत्न विफल हुए हैं।
चंदन के प्रसारण में पक्षी भी सहायक हैं। बीजों के द्वारा रोपकर भी इसे उगाया जा रहा है। [[सैंडल स्पाइक]] (Sandle spike) नामक रहस्यपूर्ण और संक्रामक वानस्पतिक रोग इस वृक्ष का शत्रु है। इससे संक्रमित होने पर पत्तियाँ ऐंठकर छोटी हो जाती हैं और वृक्ष विकृत हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के सभी प्रयत्न विफल हुए हैं।


चंदन के स्थान पर उपयोग में आनेवाले निम्नलिखित वृक्षों की लकड़ियाँ भी हैं :
चंदन के स्थान पर उपयोग में आनेवाले निम्नलिखित वृक्षों की लकड़ियाँ भी हैं :
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.ingentaconnect.com/content/nrc/cjb/2006/00000084/00000010/art00009 Article abstract] The anatomy of Santalum album (Sandalwood) haustoria.
* [http://www.ingentaconnect.com/content/nrc/cjb/2006/00000084/00000010/art00009 Article abstract] The anatomy of Santalum album (Sandalwood) haustoria.
*[http://www.vedopchar.in/upchar/sandalwood-ke-gunkari-laabh/ चन्दन का महत्व – Importance of sandalwood]
*[http://www.vedopchar.in/upchar/home-remedies-for-skin-beauty/ त्वचा की सुंदरता के घरेलू  उपाय]
*[http://www.vedopchar.in/upchar/advantages-and-disadvantages-of-turmeric-and-honey/ Turmeric and Honey in Hindi]
*[http://www.vedopchar.in/upchar/advantages-and-disadvantages-of-turmeric-and-hot-water/ Turmeric and Hot water]


== सन्दर्भ ==
== सन्दर्भ ==

12:07, 7 जनवरी 2020 का अवतरण

चन्दन
Indian sandalwood
Santalum album
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
अश्रेणीत: पुष्पी पादप
अश्रेणीत: युडिकॉट​
अश्रेणीत: मुख्य युडिकॉट
गण: सैंटालेलीस
कुल: सैंटालेसियाए
वंश: Santalum
जाति: S. album
द्विपद नाम
Santalum album
L.
चन्दन का वृक्ष (हैदराबाद)

भारतीय चंदन (Santalum album) का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा भारत के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं।

इस पेड़ की ऊँचाई 18 से लेकर 20 मीटर तक होती है। यह परोपजीवी पेड़, सैंटेलेसी कुल का सैंटेलम ऐल्बम लिन्न (Santalum album linn.) है। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सौगंधिक तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 8 से लेकर 12वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिये ढालवाँ जमीन, जल सोखनेवाली उपजाऊ चिकली मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

चन्दन की एक डाली पर लगीं पत्तियाँ

तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को जड़, कुंदा, बुरादा, तथा छिलका और छीलन में विभक्त करके बेचा जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, तथा साजसज्जा के सामान बनाने में और अन्य उत्पादनों का अगरबत्ती, हवन सामग्री, तथा सौगंधिक तेज के निर्माण में होता है। आसवन द्वारा सुगंधित तेल निकाला जाता है। प्रत्येक वर्ष लगभग 3,000 मीट्रिक टन चंदन की लकड़ी से तेल निकाला जाता है। एक मीट्रिक टन लकड़ी से 47 से लेकर 50 किलोग्राम तक चंदन का तेल प्राप्त होता है। रसायनज्ञ इस तेल के सुगंधित तत्व को सांश्लेषिक रीति से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।

चंदन के प्रसारण में पक्षी भी सहायक हैं। बीजों के द्वारा रोपकर भी इसे उगाया जा रहा है। सैंडल स्पाइक (Sandle spike) नामक रहस्यपूर्ण और संक्रामक वानस्पतिक रोग इस वृक्ष का शत्रु है। इससे संक्रमित होने पर पत्तियाँ ऐंठकर छोटी हो जाती हैं और वृक्ष विकृत हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के सभी प्रयत्न विफल हुए हैं।

चंदन के स्थान पर उपयोग में आनेवाले निम्नलिखित वृक्षों की लकड़ियाँ भी हैं :

  • (१) आस्ट्रेलिया में सैंटेलेसिई (Santalaceae) कुल का
  • (क) यूकार्या स्पिकैटा (आर.बी-आर.) स्प्रैग. एवं सम्म.उ सैंटेलम स्पिकैटम् (आर.बी-आर.) ए. डी-सी. (Eucarya Spicata (R.Br.) Sprag. et Summ, Syn. Santalum Spicatum (R.Br.) A.Dc.),
  • (ख) सैंटेलम लैंसियोलैटम आर. बी-आर. (Santalum lanceolatum (R.Br.)) तथा
  • (ग) मायोपोरेसी (Myoporaceae) कुल के एरिमोफिला मिचेल्ली बैंथ. (Eremophila mitchelli Benth.) नामक वृक्ष;
  • (२) पूर्वी अफ्रीका तथा मैडेगास्कर के निकटवर्ती द्वीपों में सैंटेलेसी कुल का ओसाइरिस टेनुइफोलिया एंग्ल. (Osyris tenuifolia Engl.); तथा
  • (३) हैटी और जमैका में रूटेसिई (Rutaceae) कुल का एमाइरिस बालसमीफेरा एल. (Amyris balsmifera L.), जिसे अंग्रेजी में वेस्ट इंडियन सैंडलवुड भी कहते हैं।

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ