"हेलन": अवतरणों में अंतर

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{{DEFAULTSORT:हेलन: हेलेन एन्नी रिचर्डसन, जिन्हेँ हम हेलेन के नाम से जानते हैं, हिंदी चित्रपट की प्रख्यात नृत्यांगना. इनका जन्म 21 नवम्बर, 1938 में बर्मा जो अब म्याँमार के नाम से जाना जाता है की राजधानी रंगून में हुआ था. इनके पिताजी रिचर्डसन फांसीसी एंग्लो इंडियन थे तथा माता जी मर्लिन रिचर्डसन बर्मी, बर्मा की स्थानीय नागरिक थी. इनके दादा स्पेनिश थे. वैसे इनके असली पिता का नाम जैराग था और रिचर्डसन इनके सौतेले पिता थे. इनके सौतेले पिता रिचर्डसन ब्रिटिश सेना में थे. 1966 में फिल्मफेयर पुरस्कार मिलने पर जब इनका, फिल्मफेयर पत्रिका ने इनका साक्षात्कार लिया गया तब उन्होँने अपने बारे में बताया था. जब द्वतीय विश्व युद्ध में जापानियोँ ने रंगून पर अधिकार कर लिया तथा वहाँ के स्थानीय नागरिकोँ पर अत्याचार करने प्रारम्भ किये तब बहुत से लोग वहाँ से शरण लेने के लिये भारत की ओर चल दिये. इनमेँ से ही एक परिवार हेलेन का भी था. तब तक इनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी. यह सभी पैदल ही आसाम की ओर जा रहे थे. अनेक लोग भूख – प्यास, बिमारी व कमजोरी के कारण रास्ते में ही अपने प्राण गंवा बैठे, कुछ चलने मेँ असमर्थ होकर पीछे छूट गये, किसी प्रकार से आसाम के डिब्रूगढ तक यह जत्था पहुँच पाया. इनमेँ से आधे ही पहुँच पाये थे. मार्ग मेँ ब्रिटिश सेना इन्हेँ मिली और उसने इनको दवाइयाँ दी, पैरोँ तथा शरीर पर लगे घावोँ की मरहम – पट्टी की तथा डिब्रूगढ तक जाने के लिये वाहनोँ का प्रबंध भी किया. पर हेलेन का परिवार वहीँ नहीं रुका, उनकी मंजिल तो बम्बई थी. पहले वह कलकत्ता पहुँचे, पर उनके भाई को चेचक की बिमारि हो गयी और वह वहीँ कलकत्ता के अस्पताल में चल बसे. अब वह पैदल ही फिर से बम्बई की ओर चले तथा अनेक कठिनाइयोँ को झेलते हुए अंत में अपनी मंजिल बम्बई तक पहुँच गये. वहाँ इनकी माता जी को नर्स की नौकरी मिल गयी. पर उनके वेतन से घर का खर्च नहीँ चल पाता था. इसलिये हेलेन भी अपनी पढाई त्याग कर अपने लिये काम ढूंढने लगी. इसी समय में हेलेन की माँ की पारिवारिक मित्र और पचास के दशक की प्रसिद्ध नृत्यांगना कुक्कू ने उन्हें फिल्मों में नृत्य करने की सलाह दी। इसलिये इन्होँने नृत्य कला सीखनी आरम्भ कर दी थी. आरम्भ में इन्होँने मणिपुरी नृत्य सीखा. इसी समय इन्हेँ एक वृतचित्र फिल्म “नाचने वालियोँ की रानी” में काम करने का मौका मिला. अब कुक्कू ने इन्हेँ सिनेमा में काम दिलाना शुरु कर दिया. पहले यह मुख्य अभिनेत्री के पीछे समूह में नृत्य करती थी. इस बीच उन्होँने प्रसिद्द नृत्य निर्देशक पी एल राज से शास्त्रीय नृत्य भी सीखा व पाश्चात्य नृत्य शैली भी. इन्होँने “शबिस्ताँ” व राज कपूर की फिल्म “आवारा” में भी समूह नर्तकी के रूप में काम किया. पर प्रतिभा कहाँ छुपती है? तभी सिने निर्माता के. अमरनाथ ने इन्हेँ अपनी फिल्म “अलिफ – लैला” 1953 में मुख्य नर्तकी के रूप में नृत्य करने का अवसर दिया. इसे देखकर सिने निर्माता पी.एन. अरोड़ा को इनका नृत्य भा गया. उन्होँने भी इन्हेँ ‘हूर-ए-अरब’ “रेल का डिब्बा” (1953, शम्मी कपूर, मधुबाला, कुक्कू) (1955), ‘नीलोफर’ (1957), ‘खजांची’ (1958), ‘सिंदबाद’, ‘अलीबाबा’, ‘अलादीन’ (1965) जैसी फिल्मों में काम करने का अवसर दिया. निर्माता पी.एन. अरोड़ा जो उम्र में हेलेन से 27 वर्ष अधिक के थे उनसे हेलेन ने शादी कर ली. पर “खजांची”” के समय ही 1957 में हेलेन को, शक्ति सामंत जैसे प्रसिद्द बैनर की फिल्म “हावड़ा ब्रिज” में काम करने का अवसर मिला. शक्ति सामंत ही इसके निर्माता व निर्देशक थे. इस फिल्म का गाना “मेरा नाम चिन-चिन चू” ने इस फिल्म की सफलता में बहुत बड़ा योगदान दिया. हेलेन के लिये यह गीत गीता दत्त ने गाया था. इस समय हेलेन की आयु मात्र 19 वर्ष थी. इसके बाद गीता दत्त ने अनेक फिल्मोँ में हेलेन को अपनी आवाज़ दी फिर बाद में आशा भोंसले ने. हिंदी सिनेमा को कुक्कू की एक योग्य उत्तराधिकारी मिल गयी. “हावड़ा ब्रिज” के ब्रिज को पार करते ही, हेलेन के संघर्ष के दिन पिछले किनारे पर ही छूट गये. इसके बाद उन्हेँ नृत्य के साथ – साथ अभिनय करने का अवसर भी मिलने लगा. हेलेन ने कन्नड तथा तमिल सिनेमा में भी काम किया है. इसके बाद तो हेलेन पर फिल्माये गये गानोँ ने सिने प्रेमियोँ के दिल में घर कर लिया. कौन भूल सकता है “ओ हसीना जुल्फोँ वाली जाने जहाँ” फिल्म “तीसरी मंजिल” शम्मी कपूर, आशा पारिख, “ओ जाने जाँ, हुस्न जवाँ” फिल्म “इंतकाम” संजय, साधना, “पिया तू अब तो आज़ा, मोनिका ओ माई डार्लिंग” फिल्म “कारवाँ” फिल्म ”शोले “ का “महबूबा-महबूबा” डॉन का “ये मेरा दिल प्यार का दीवाना”, “ये जुल्फ अगर खुल के बिखर जाय” फिल्म “काज़ल” गीत में राजकुमार और नृत्य हेलेन का, फिल्म “ये रात फिर न आयेगी” का “हुजूरे वाला जो हो इज़ाजत” विश्वजीत, शर्मिला टैगोर, फिल्म “गुमनाम” का गीत “गम छोड़ के मनाओ रंगरेली”.}}

07:43, 5 जनवरी 2020 का अवतरण

हेलन हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्रियों में से एक हैं एवं प्रख्यात नर्तकी हैं। हेलन के जन्म क नाम हेलन ऐन रिचर्डसन था, सलीम ख़ान से विवाह के बाद ये हेलन ख़ान हो गयीं। ये २०० से भी अधिक फिल्मों में काम कर चुकी हैं और दो बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीत चुकी हैं। हेलन चार फिल्मों एवं एक पुस्तक की प्रेरणा भी रह चुकी हैं।

व्यक्तिगत जीवन

फिल्मी सफर

प्रमुख फिल्में

वर्ष फ़िल्म चरित्र टिप्पणी
1999 हम दिल दे चुके सनम
1996 खामोशी
1991 अकेला
1984 पाखंडी
1978 डॉन कामिनी
1978 स्वर्ग नर्क कैबरे नर्तकी
1977 ईमान धर्म जेनी फ्रांसिस
1975 शोले बंजारा नर्तकी
1970 पगला कहीं का
1966 बादल
1966 स्मगलर
1960 जाली नोट लिली

पुरस्कार

सन्दर्भ