"सुन्दरमूर्ति": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो सुन्दरमूर्थि का नाम बदलकर सुन्दरमूर्ति कर दिया गया है
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
==अनुमोदक==
==अनुमोदक==
<div class="references-small"><references/></div>
<div class="references-small"><references/></div>

{{हिन्दु-व्याक्ति-स्टब}}


[[Category:नायनमार]]
[[Category:नायनमार]]

02:05, 18 जनवरी 2007 का अवतरण

सुन्दरमूर्ति स्वमिगल नयन्नर (d. ८२५) आठवी सदी के तमिलनाडु के एक नायनमार सन्त थे। वे भगवान शिव के भक्त थे और चार तमिल साम्य अचार्यो मे से एक है।

बचपन

उनका जन्म थिरुनवलूर नाम के गांव मे हुआ। उनके बचपन का नाम "नम्बि अरुरार" था । उनके पिता का नाम "सदैयार" और माँ का नाम "इसैग्नानि" था। वे ब्राह्मण थे।

थिरुनवलूर के राजा नारसिन्घ मुनैयार ने नम्बि को गोद लेना चाहा। सदैयार अनासक्ति से परिपूर्ण थे, उन्होने अपना बेटा खुशीपूर्वक राजा को दे दिया। और नम्बि राजपुत्र के रूप मे पले बढे। [1]


पौराणिक कथा

दन्तकथा के अनुसार जब सुन्दरार की शादी थी तब शंकर भगवान वहाँ आए। वे एक साधु के रूप मे थे। उनके पास एक पर्चा था, जिसके अनुसार सुन्दरार के दादा ने वचन दिया था कि उनके आने वाली पीढी उनके अनुयायी रहेगे और उनकी सेवा करगे। सुन्दरार ने इसे अपनी नियती समझा और साधु के साथ तमिलनाडु का भ्रमण किया, वहाँ के मन्दिरो की सैर की। थान्जवुर के तिरूवरूर ग्राम पहुँचने पर उन्हे परवाई नाम की लडकी से पहचान हुई और बाद मे उन्होने उनसे शादी की।

दन्तकथा के अनुसार उन्होने थिरुवरूर मे सब ६३ नायनमार के नाम का किर्तन किया । इन किर्तनों को तमिलनाडु मे तिरुतोन्दर तोकै के नाम से जाना गया। उनका तमिलनाडु भ्रमण जारी रहा, उन्होने भगवान शंकर के भजन लिखे और कई चमत्कारो को उनके साथ जोडा जाता है।

राजा का साथ

उनकी ख्याति केरल के राजा चेरमन परुमल तक भी पहूँची। राजा परुमल तिरुवरुर को आए और सुन्दरार से मिले। राजा और सुन्दरार की दोस्ती हुई और उन दोनो ने साथ-साथ तीर्थो की यात्रा की।

म्रत्य

थोद साल से बाद सुन्दरार तो थक गया और शन्कर भग्वान को स्तुति किया । वो पुचा "इस जनम से आप हम्को मोक्श दे" । शन्कर भग्वान उस्को एक हाथि दिया । सुन्दरार को शन्कर भग्वान को पुच "परुमल हम्के साथ आ सक्ता है"? सुन्दारर उस्का हाथि मे और परुमल उस्का घोदा मे साथियो स्वर्गलोक को जाया था ८२५ साल मे ।

अनुमोदक

  1. Sundaramurthi Nayanar - A DIVINE LIFE SOCIETY PUBLICATION