"ईरान": अवतरणों में अंतर

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ईरान का प्राचीन नाम पार्स (फ़ारस) था और पार्स के रहने वाले लोग पारसी कहलाए, जो [[ज़रथुस्त्र]] के अनुयायी थे और सूर्य व अग्नि पूजक थे। सातवीं शताब्दी में [[अरब|अरबों]] ने पार्स पर विजय पाई और वहाँ जबरन [[इस्लाम]] का प्रसार हुआ। वहां की जनता को जबर से इस्लाम में मिलाया जा रहा था इसलिए जो पारसी इस्लाम अपना गए वो आगे चलकर शिया मुस्लमान कहलाय व उत्पीड़न से बचने के लिए बहुत से पारसी [[भारत]] आ गए। वे अपना मूल धर्म (सूर्य पूजन) नहीं छोड़ना चाहते थे| आज भी दक्षिण एशियाई देश भारत में पारसी मंदिर देखने को मिलते हैं |
ईरान का प्राचीन नाम पार्स (फ़ारस) था और पार्स के रहने वाले लोग पारसी कहलाए, जो [[ज़रथुस्त्र]] के अनुयायी थे और सूर्य व अग्नि पूजक थे। सातवीं शताब्दी में [[अरब|अरबों]] ने पार्स पर विजय पाई और वहाँ जबरन [[इस्लाम]] का प्रसार हुआ। वहां की जनता को जबर से इस्लाम में मिलाया जा रहा था इसलिए जो पारसी इस्लाम अपना गए वो आगे चलकर शिया मुस्लमान कहलाय व उत्पीड़न से बचने के लिए बहुत से पारसी [[भारत]] आ गए। वे अपना मूल धर्म (सूर्य पूजन) नहीं छोड़ना चाहते थे| आज भी दक्षिण एशियाई देश भारत में पारसी मंदिर देखने को मिलते हैं |


इस्लाम में ईरान का एक विशेष स्थान है। सातवीं सदी से पहले यहाँ जरथुस्ट्र धर्म के अलावा कई और धर्मों तथा मतों के अनुयायी थे। अरबों द्वारा ईरान विजय (फ़ारस) के बाद यहाँ शिया इस्लाम का उदय हुआ। आज ईरान के अलावा भारत, दक्षिणी इराक, अफ़ग़ानिस्तान, अजरबैजान तथा पाकिस्तान में भी शिया मुस्लिमों की आबादी निवास करती है। लगभग सम्पूर्ण [[अरब]], [[मिस्र]], [[तुर्की]], उत्तरी तथा पश्चिमी इराक, लेबनॉन को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण मध्यपूर्व, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान तुर्केमेनिस्तान तथा भारतोत्तर पूर्वी एशिया के मुसलमान मुख्यतः सुन्नी हैं। बहाई धर्म की शुरुआत ईरान से ही हुई और उसके संस्थापक अवतार बाब और बहाउल्लाह शीराज़ और तेहरान से ही हैं।
इस्लाम में ईरान का एक विशेष स्थान है। सातवीं सदी से पहले यहाँ जरथुस्ट्र धर्म के अलावा कई और धर्मों तथा मतों के अनुयायी थे। अरबों द्वारा ईरान विजय (फ़ारस) के बाद यहाँ शिया इस्लाम का उदय हुआ। आज ईरान के अलावा भारत, दक्षिणी इराक, अफ़ग़ानिस्तान, अजरबैजान तथा पाकिस्तान में भी शिया मुस्लिमों की आबादी निवास करती है। लगभग सम्पूर्ण [[अरब]], [[मिस्र]], [[तुर्की]], उत्तरी तथा पश्चिमी इराक, लेबनॉन को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण मध्यपूर्व, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान तुर्केमेनिस्तान तथा भारतोत्तर पूर्वी एशिया के मुसलमान मुख्यतः सुन्नी हैं।

19वीं शताब्दी में तेहरान में सन 1844 को बहाई धर्म का उदय हुआ जब सैयद अली मोहम्मद जिन्हें बाब के नाम से जाना जाता है ने यह घोषणा की कि वे अब नए अवतार हैं और जल्दी ही बहाउल्लाह विश्व अवतार के रूप में जन्म लेने वाले हैं , 1863 में बहाउल्लाह ने बहाई धर्म की नींव अपने अवतार होने के साथ की। ईरान में शिया मुस्लिम किसी अन्य धर्म को मान्यता नही देता उसके बावजूद जरथुस्त्र, ईसाई, बहाई , यहूदी धर्म के समुदाय यहां पर निवास करते हैं।


== अर्थव्यवस्था ==
== अर्थव्यवस्था ==

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ईरानी इस्लामिक गणराज्य
Islamic Republic of Iran

جمهوری اسلامی ايران
(जम्हूरिये इस्लामिये ईरान)
ध्वज कुल चिह्न
राष्ट्रवाक्य: इस्सतक़लाल, आज़ादी, जम्हूरि-ये इस्लामी1  (फ़ारसी)"स्वतंत्रता, आजादी, इस्लामी गणराज्य"
राष्ट्रगान: सौऽरद-ए मिल्लि-ये ईरान²
अवस्थिति: ईरान
राजधानी
और सबसे बड़ा नगर
तेहरान
35°41′N 51°25′E / 35.683°N 51.417°E / 35.683; 51.417
राजभाषा(एँ) फ़ारसी
मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय भाषाएँ संवैधानिक-मान्यता प्राप्त क्षेत्रिय भाषाएं:
अज़ेरी
कुर्दी
मज़न्दरानी
गिलाकी
लुरी
बलुची
निवासी ईरानी
सरकार इस्लामी गणराज्य
 -  सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खुमैनी
 -  राष्ट्रपति हसन रुहानी
 -  प्रथम उप राष्ट्रपति परवेज दावूदी
 -  विशेषज्ञों की परिषद और योग्यता विवेक परिषद के अध्यक्ष

अकबर हाशमी रफसंजानी
 -  मजलिस के अध्यक्ष अली लारीजानी
 -  न्यायिक व्यवस्था के प्रमुख मेहमूद हाशमी शाहरौदी
एकीकरण
 -  मेडियन राजशाही ६२५ ईपू 
 -  सफावी वंश (पुनर्स्थापना) १५०१ 
 -  इस्लामी गणराज्य की घोषणा १ अप्रैल १९७९ 
क्षेत्रफल
 -  कुल १,६४८,१९५ km2 (१८ वां)
 -  जल (%) ०.७
जनसंख्या
 -  २००७ जनगणना ७०,४९५,७८२³ (१८ वां)
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी) २००८ प्राक्कलन
 -  कुल $८१९.७९९ बिलियन (-)
 -  प्रति व्यक्ति $११,२५० (-)
मानव विकास सूचकांक (२०१३)कमी ०.७४९[1]
उच्च · ७५वाँ
मुद्रा ईरानियन रियाल (ريال) (IRR)
समय मण्डल ईरानी मानक समय (यू॰टी॰सी॰+३:३०)
 -  ग्रीष्मकालीन (दि॰ब॰स॰) ईरान डेलाइट टाइम (IRDT) (यू॰टी॰सी॰+४:३०)
दूरभाष कूट ९८
इंटरनेट टीएलडी .ir
1. bookrags.com
2. iranchamber.com
3. Statistical Center of Iran. "جمعيت و متوسط رشد سالانه" (फ़ारसी में). अभिगमन तिथि 2009-02-13.
4. CIA Factbook

ईरान (جمهوری اسلامی ايران, जम्हूरीए इस्लामीए ईरान) जंबुद्वीप (एशिया) के दक्षिण-पश्चिम खंड में स्थित देश है। इसे सन १९३५ तक फारस नाम से भी जाना जाता है। इसकी राजधानी तेहरान है और यह देश उत्तर-पूर्व में तुर्कमेनिस्तान, उत्तर में कैस्पियन सागर और अज़रबैजान, दक्षिण में फारस की खाड़ी, पश्चिम में इराक (कुर्दिस्तान क्षेत्र) और तुर्की, पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान तथा पाकिस्तान से घिरा है। यहां का प्रमुख धर्म इस्लाम है तथा यह क्षेत्र शिया बहुल है।

प्राचीन काल में यह बड़े साम्राज्यों की भूमि रह चुका है। ईरान को १९७९ में इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया था। यहाँ के प्रमुख शहर तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज़, मशहद इत्यादि हैं। राजधानी तेहरान में देश की १५ प्रतिशत जनता वास करती है। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात पर निर्भर है। फ़ारसी यहाँ की मुख्य भाषा है।

ईरान में फारसी, अजरबैजान, कुर्द (क़ुर्दिस्तान) और लूर सबसे महत्वपूर्ण जातीय समूह हैं

नाम

ईरान का प्राचीन नाम फ़ारस था। इस नाम की उत्पत्ति के पीछे इसके साम्राज्य का इतिहास शामिल है। बेबीलोन के समय (4000-700 ईसापूर्व) तक पार्स प्रान्त इन साम्राज्यों के अधीन था। जब 550 ईस्वी में कुरोश ने पार्स की सत्ता स्थापित की तो उसके बाद मिस्र से लकर आधुनिक अफ़गानिस्तान तक और बुखारा से फारस की खाड़ी तक ये साम्राज्य फैल गया। इस साम्राज्य के तहत मिस्री, अरब, यूनानी, आर्य (ईरान), यहूदी तथा अन्य कई नस्ल के लोग थे। अगर सबों ने नहीं तो कम से कम यूनानियों ने इन्हें, इनकी राजधानी पार्स के नाम पर, पारसी कहना आरंभ किया। इसी के नाम पर इसे पारसी साम्राज्य कहा जाने लगा। यहाँ का समुदाय प्राचीन काल में हिन्दुओ की तरह सूर्य पूजक था यहाँ हवन भी हुआ करते थे लेकिन सातवीं सदी में जब इस्लाम आया तो अरबों का प्रभुत्व ईरानी क्षेत्र पर हो गया। अरबों की वर्णमाला में () उच्चारण नहीं होता है। उन्होंने इसे पारस के बदले फारस कहना चालू किया और भाषा पारसी के बदले फ़ारसी बन गई। यह नाम फ़ारसी भाषा के बोलने वालों के लिए प्रयोग किया जाता था।

ईरान (या एरान) शब्द आर्य मूल के लोगों के लिए प्रयुक्त शब्द एर्यनम से आया है, जिसका अर्थ है आर्यों की भूमि। हख़ामनी शासकों के समय भी आर्यम तथा एइरयम शब्दों का प्रयोग हुआ है। ईरानी स्रोतों में यह शब्द सबसे पहले अवेस्ता में मिलता है। अवेस्ता ईरान में आर्यों के आगमन (दूसरी सदी ईसापूर्व) के बाद लिखा गया ग्रंथ माना जाता है। इसमें आर्यों तथा अनार्यों के लिए कई छन्द लिखे हैं और इसकी पंक्तियाँ ऋग्वेद से मेल खाती है। लगभग इसी समय भारत में भी आर्यों का आगमन हुआ था। पार्थियन शासकों ने एरान तथा आर्यन दोनों शब्दों का प्रयोग किया है। बाहरी दुनिया के लिए १९३५ तक नाम फ़ारस था। सन् १९३५ में रज़ाशाह पहलवी के नवीनीकरण कार्यक्रमों के तहत देश का नाम बदलकर फ़ारस से ईरान कर दिया गया थ।

भौगोलिक स्थिति और विभाग

ईरान को पारंपरिक रूप से मध्यपूर्व का अंग माना जाता है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से यह मध्यपूर्व के अन्य देशों से जुड़ा रहा है। यह अरब सागर के उत्तर तथा कैस्पियन सागर के बीच स्थित है और इसका क्षेत्रफल 16,48,000 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग आधा है। इसकी कुल स्थलसीमा ५४४० किलोमीटर है और यह इराक(१४५८ कि॰मी॰), अर्मेनिया(३५), तुर्की(४९९), अज़रबैजान(४३२), अफग़ानिस्तान(९३६) तथा पाकिस्तान(९०९ कि॰मी॰) के बीच स्थित है। कैस्पियन सागर के इसकी सीमा सगभग ७४० किलोमीटर लम्बी है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व में १८वें नंबर पर आता है। यहाँ का भूतल मुख्यतः पठारी, पहाड़ी और मरुस्थलीय है। वार्षिक वर्षा २५ सेमी होती है।

समुद्र तल से तुलना करने पर ईरान का सबसे निचला स्थान उत्तर में कैस्पियन सागर का तट आता है जो २८ मीटर की उचाई पर स्थित है जबकि कूह-ए-दमवन्द जो कैस्पियन तट से सिर्फ ७० किलोमीटर दक्षिण में है, सबसे ऊँचा शिखर है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ५,६१० मीटर है।


ईरान तीस प्रांतों में बंटा है। इनमें से मुख्य क्षेत्रों का विवरण इस प्रकार है -

इतिहास

माना जाता है कि ईरान में पहले पुरापाषाणयुग कालीन लोग रहते थे। यहाँ पर मानव निवास एक लाख साल पुराना हो सकता है। लगभग 5000 ईसापूर्व से खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया की सभ्यता के स्थल के पूर्व में मानव बस्तियों के होने के प्रमाण मिले हैं। ईरानी लोग (आर्य) लगभग 2000 ईसापूर्व के आसपास उत्तर तथा पूरब की दिशा से आए। इन्होंने यहाँ के लोगों के साथ एक मिश्रित संस्कृति की आधारशिला रखी जिससे ईरान को उसकी पहचान मिली। आधिनुक ईरान इसी संस्कृति पर विकसित हुआ। ये यायावर लोग ईरानी भाषा बोलते थे और धीरे धीरे इन्होंने कृषि करना आरंभ किया।

आर्यों का कई शाखाए ईरान (तथा अन्य देशों तथा क्षेत्रों) में आई। इनमें से कुछ मिदि, कुछ पार्थियन, कुछ फारसी, कुछ सोगदी तो कुछ अन्य नामों से जाने गए। मीदी तथा फारसियों का ज़िक्र असीरियाई स्रोतों में 836 ईसापूर्व के आसपास मिलता है। लगभग यही समय ज़रथुश्त्र (ज़रदोश्त या ज़ोरोएस्टर के नाम से भी प्रसिद्ध) का काल माना जाता है। हालांकि कई लोगों तथा ईरानी लोककथाओं के अनुसार ज़रदोश्त बस एक मिथक था कोई वास्तविक आदमी नहीं। पर चाहे जो हो उसी समय के आसपास उसके धर्म का प्रचार उस पूरे प्रदेश में हुआ।

असीरिया के शाह ने लगभग 720 ईसापूर्व के आसपास इज़रायल पर अधिपत्य जमा लिया। इसी समय कई यहूदियों को वहाँ से हटा कर मीदि प्रदेशों में लाकर बसाया गया। 530 ईसापूर्व के आसपास बेबीलोन फ़ारसी नियंत्रण में आ गया। उसी समय कई यहूदी वापस इसरायल लौट गए। इस दोरान जो यहूदी मीदी में रहे उनपर जरदोश्त के धर्म का बहुत असर पड़ा और इसके बाद यहूदी धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया।

हखामनी साम्राज्य

इस समय तक फारस मीदि साम्राज्य का अंग और सहायक रहा था। लेकिन ईसापूर्व 549 के आसपास एक फारसी राजकुमार सायरस (आधुनिक फ़ारसी में कुरोश) ने मीदी के राजा के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। उसने मीदी राजा एस्टिएज़ को पदच्युत कर राजधानी एक्बताना (आधुनिक हमादान) पर नियंत्रण कर लिया। उसने फारस में हखामनी वंश की नींव रखी और मीदिया और फ़ारस के रिश्तों को पलट दिया। अब फ़ारस सत्ता का केन्द्र और मीदिया उसका सहायक बन गया। पर कुरोश यहाँ नहीं रुका। उसने लीडिया, एशिया माइनर (तुर्की) के प्रदेशों पर भी अधिकार कर लिया। उसका साम्राज्य तुर्की के पश्चिमी तट (जहाँ पर उसके दुश्मन ग्रीक थे) से लेकर अफ़गानिस्तान तक फैल गया था। उसके पुत्र कम्बोजिया (केम्बैसेस) ने साम्राज्य को मिस्र तक फैला दिया। इसके बाद कई विद्रोह हुए और फिर दारा प्रथम ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। उसने धार्मिक सहिष्णुता का मार्ग अपनाया और यहूदियों को जेरुशलम लौटने और अपना मंदिर फ़िर से बनाने की इजाज़त दी। यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार दारा ने युवाओं का समर्थन प्राप्त करने की पूरी कोशिश की। उसने सायरस या केम्बैसेस की तरह कोई खास सैनिक सफलता तो अर्जित नहीं की पर उसने ५१२ इसापूर्व के आसपास य़ूरोप में अपना सैन्य अभियान चलाया था। डेरियस के काल में कई सुधार हुए, जैसे उसने शाही सिक्का चलाया और शाहंशाह (राजाओं के राजा) की उपाधि धारण की। उसने अपनी प्रजा पर पारसी संस्कृति थोपने का प्रयास नहीं किया जो उसकी सहिष्णुता को दिखाता है। अपने विशालकाय साम्राज्य की महिमा के लिए दारुश ने पर्सेलोलिस (तख़्त-ए-जमशेद) का भी निर्माण करवाया।

उसके बाद पुत्र खशायर्श (क्ज़ेरेक्सेस) शासक बना जिसे उसके ग्रीक अभियानों के लिए जाना जाता है। उसने एथेन्स तथा स्पार्टा के राजा को हराया पर बाद में उसे सलामिस के पास हार का मुँह देखना पड़ा, जिसके बाद उसकी सेना बिखर गई। क्ज़ेरेक्सेस के पुत्र अर्तेक्ज़ेरेक्सेस ने ४६५ ईसा पूर्व में गद्दी सम्हाली। उसके बाद के प्रमुश शासको में अर्तेक्ज़ेरेक्सेस द्वितीय, अर्तेक्ज़ेरेक्सेस तृतीय और उसके बाद दारा तृतीय का नाम आता है। दारा तृतीय के समय तक (३३६ ईसा पूर्व) फ़ारसी सेना काफ़ी संगठित हो गी थी।

सिकन्दर

इसी समय मेसीडोनिया में सिकन्दर का प्रभाव बढ़ रहा था। ३३४ ईसापूर्व में सिकन्दर ने एशिया माईनर (तुर्की के तटीय प्रदेश) पर धावा बोल दिया। दारा को भूमध्य सागर के तट पर इसुस में हार का मुँह देखना पड़ा। इसके बाद सिकंदर ने तीन बार दारा को हराया। सिकन्दर इसापूर्व ३३० में पर्सेपोलिस (तख़्त-ए-जमशेद) आया और उसके फतह के बाद उसने शहर को जला देने का आदेश दिया। सिकन्दर ने ३२६ इस्वी में भारत पर आक्रमण किया और फिर वो वापस लौट गया। ३२३ इसापूर्व के आसपास, बेबीलोन में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसके जीते फारसी साम्राज्य को इसके सेनापतियों ने आपस में विभाजित कर लिया।

सिकन्दर के सबसे काबिल सेनापतियों में से एक सेल्युकस का नियंत्रण मेसोपोटामिया तथा इरानी पठारी क्षेत्रों पर था। लेकिन इसी समय से उत्तर पूर्व में पार्थियों का विद्रोह आरंभ हो गया था। पार्थियनों ने हखामनी शासकों की भी नाक में दम कर रखा था। मित्राडेट्स ने ईसापूर्व १२३ से ईसापूर्व ८७ तक अपेक्षाकृत स्थायित्व से शासन किया। अगले कुछ सालों तक शासन की बागडोर तो पार्थियनों के हाथ ही रही पर उनका नेतृत्व और समस्त ईरानी क्षेत्रों पर उनकी पकड़ ढीली ही रही।

सासानी

पर दूसरी सदी के बाद से सासानी लोग, जो प्राचीन हख़ामनी वंश से अपने को जोड़ते थे और उन्हीं प्रदेश (आज का फ़ार्स प्रंत) से आए थे, की शक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। उन्होंने रोमन साम्राज्य को चुनौती दी और कई सालों तक उनपर आक्रमण करते रहे। सन् २४१ में शापुर ने रोमनों को मिसिको के युद्ध में हराया। २४४ इस्वी तक आर्मेनिया फारसी नियंत्रण में आ गया। इसके अलावा भी पार्थियनों ने रोमनों को कई जगहों पर परेशान किया। सन् २७३ में शापुर की मृत्यु हो गई। सन् २८३ में रोमनों ने फारसी क्षेत्रों पर फिर से आक्रमण कर दिया। इसके फलस्वरूप आर्मेनिया के दो भाग हो गए - रोमन नियंत्रण वाले और फारसी नियंत्रण वाले। शापुर के पुत्रों को और भी समझौते करने पड़े और कुछ और क्षेत्र रोमनों के नियंत्रण में चले गए। सन् ३१० में शापुर द्वितीय गद्दी पर युवावस्था में बैठा। उसने ३७९ इस्वी तक शासन किया। उसका शासन अपेक्षाकृत शांत रहा। उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। उसके उत्तराधिकारियों ने वही शांति पूर्ण विदेश नीति अपनाई पर उनमें सैन्य सबलता की कमी रही। आर्दशिर द्वितीय, शापुर तृतीय तथा बहराम चतुर्थ सभी संदेहजनक परिस्थितियों में मारे गए। उनके वारिस यज़्देगर्द ने रोमनों के साथ शाति बनाए रखा। उसके शासनकाल में रोमनों के साथ सम्बंध इतने शांतिपूर्ण हो गए कि पूर्वी रोमन साम्राज्य के शासक अर्केडियस ने यज़्देगर्द को अपने बेटे का अभिभावक बना दिया। उसके बाद बहरम पंचम शासक बना जो जंगली जानवरों के शिकार का शौकिन था। वो ४३८ इस्वी के आसपास एक जंगली खेल देखते वक्त लापता हो गया, जिसके बाद उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका।

इसके बाद की अराजकता में कावद प्रथम ४८८ इस्वी में शासक बना। इसके बाद खुसरो (५३१-५७९), होरमुज़्द चतुर्थ (५७९-५८९), खुसरो द्वितीय (५९० - ६२७) तथा यज्देगर्द तृतीय का शासन आया। जब यज़्देगर्द ने सत्ता सम्हाली, तब वो केवल ८ साल का था। इसी समय अरब, मुहम्मद साहब के नेतृत्व में काफी शक्तिशाली हो गए थे। सन् ६३४ में उन्होंने ग़ज़ा के निकट बेजेन्टाइनों को एक निर्णायक युद्ध में हरा दिया। फारसी साम्राज्य पर भी उन्होंने आक्रमण किए थे पर वे उतने सफल नहीं रहे थे। सन् ६४१ में उन्होने हमादान के निकट यज़्देगर्द को हरा दिया जिसके बाद वो पूरब की तरफ सहायता याचना के लिए भागा पर उसकी मृत्यु मर्व में सन् ६५१ में उसके ही लोगों द्वारा हुई। इसके बाद अरबों का प्रभुत्व बढ़ता गया। उन्होंने ६५४ में खोरासान पर अधिकार कर लिया और ७०७ इस्वी तक बाल्ख़

शिया इस्लाम

लगभग 1000 इस्वी का ईरान : मध्यकाल में ईरान में कोई एक केन्द्रीय सत्ता नहीं रह गई थी

मुहम्मद साहब की मृत्यु के उपरांत उनके वारिस को ख़लीफा कहा जाता था, जो इस्लाम का प्रमुख माना जाता था। चौथे खलीफा (सुन्नी समुदाय के अनुसार) हज़रत अली (शिया समुदाय इन्हें पहला इमाम मानता है), मुहम्मद साहब के फरीक थे और उनकी पुत्री फ़ातिमा के पति। पर उनके खिलाफत को चुनौती दी गई और विद्रोह भी हुए। सन् ६६१ में अली की हत्या कर उन्हें शहीद कर दिया गया। इसके बाद उम्मयदों का प्रभुत्व इस्लाम पर हो गया। सन् ६८० में करबला में हजरत अली के दूसरे पुत्र इमाम हुसैन ने उम्मयदों के अधर्म की नीति का समर्थन करने से इनकार कर दिया। उन्होंने बयत नहीं की। जिसे तत्कालीन शासक ने बगावत का नाम देते हुये उनको एक युद्ध में कत्ल कर शहीद कर दिया। इसी दिन की याद में शिया मुसलमान गम में मुहर्रम मनाते हैं। इस समय तक इस्लाम दो खेमे में बट गया था - उम्मयदों का खेमा और अली के खेमा। जो उम्मयदों को इस्लाम के वास्तविक उत्तराधिकारी समझते थे, वे सुन्नी कहलाए और जो अली को वास्तविक खलीफा (वारिस) मानते थे वो शिया। सन् ७४० में उम्मयदों को तुर्कों से मुँह की खानी पड़ी। उसी साल एक फारसी परिवर्तित - अबू मुस्लिम - ने मुहम्मद साहब के वंश के नाम पर उम्मयदों के खिलाफ एक बड़ा जनमानस तैयार किया। उन्होंने सन् ७४९-५० के बीच उम्मयदों को हरा दिया और एक नया खलीफ़ा घोषित किया - अबुल अब्बास। अबुल अब्बास अली और हुसैन का वंशज तो नही पर मुहम्मद साहब के एक और फरीक का वंशज था। उससे अबु मुस्लिम की बढ़ती लोकप्रियता देखी नहीं गई और उसको ७५५ इस्वी में फाँसी पर लटका दिया। इस घटना को शिया इस्लाम में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है क्योंकि एक बार फिर अली के समर्थकों को हाशिये पर ला खड़ा किया गया था। अबुल अब्बास के वंशजों ने कई सदियों तक राज किया। उसका वंश अब्बासी (अब्बासिद) वंश कहलाया और उन्होंने अपनी राजदानी बगदाद में स्थापित की। तेरहवी सदी में मंगोलों के आक्रमण के बाद बगदाद का पतन हो गया और ईरान में फिर से कुछ सालों के लिए राजनैतिक अराजकता छाई रही।

सूफीवाद

अब्बासिद काल में ईरान की प्रमुख घटनाओं में से एक थी सूफी आंदोलन का विकास। सूफी वे लोग थे जो धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे और सरल जीवन पसन्द करते थे। इस आंदोलन ने फ़ारसी भाषा में नामचीन कवियों को जन्म दिया। रुदाकी, फिरदौसी, उमर खय्याम, नासिर-ए-खुसरो, रुमी, इराकी, सादी, हफीज आदि उस काल के प्रसिद्ध कवि हुए। इस काल की फारसी कविता को कई जगहों पर विश्व की सबसे बेहतरीन काव्य कहा गया है। इनमें से कई कवि सूफी विचारदारा से ओतप्रोत थे और अब्बासी शासन के अलावा कईयों को मंगोलों का जुल्म भी सहना पड़ा था।

पंद्रहवीं सदी में जब मंगोलों की शक्ति क्षीण होने लगी तब ईरान के उत्तर पश्चिम में तुर्क घुड़सवारों से लैश एक सेना का उदय हुआ। इसके मूल के बारे में मतभेद है पर उन्होंने सफावी वंश की स्थापना की। वे शिया बन गए और आने वाली कई सदियों तक उन्होंने इरानी भूभाग और फ़ारस के प्रभुत्व वाले इलाकों पर राज किया। इस समय शिया इस्लाम बहुत फला फूला। १७२० के अफगान और पूर्वी विद्रोहों के बाद धीरे-धीरे साफावियों का पतन हो गया। १७२९ में नादिर कोली ने अफ़गानों के प्रभुत्व को कम किया और शाह बन बैठा। वह एक बहुत बड़ा विजेता था और उसने भारत पर भी सन् १७३९ में आक्रमण किया और भारी मात्रा में धन सम्पदा लूटकर वापस आ गया। भारत से हासिल की गई चीज़ों में कोहिनूर हीरा भी शामिल था। पर उसके बाद क़जार वंश का शासन आया जिसके काल में यूरोपीय प्रभुत्व बढ़ गया। उत्तर से रूस, पश्चिम से फ्रांस तथा पूरब से ब्रिटेन की निगाहें फारस पर पड़ गईं। सन् १९०५-१९११ में यूरोपीय प्रभाव बढ़ जाने और शाह की निष्क्रियता के खिलाफ एक जनान्दोलन हुआ। ईरान के तेल क्षेत्रों को लेकर तनाव बना रहा। प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की के पराजित होने के बाद ईरान को भी उसका फल भुगतना पड़ा। 1930 और 40 के दशक में रज़ा शाह पहलवी ने सुधारों की पहल की। 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई और ईरान एक इस्लामिक गणतंत्र घोषित कर दिया गया। इसके बाद अयातोल्ला ख़ुमैनी, जिन्हें शाह ने देश निकाला दे दिया था, ईरान के प्रथम राष्ट्रपति बने। इराक़ के साथ युद्ध होने से देश की स्थिति खराब हो गई।

आधुनिकीकरण

रजा शाह पहलवी ने 1930 के दशक में इरान का आधुनिकीकरण प्रारंभ किया। पर वो अपने प्रेरणस्रोत तुर्की के कमाल पाशा की तरह सफल नहीं रह सका। उसने शिक्षा के लिए अभूतपूर्व बंदोबस्त किए तथा सेना को सुगठित किया। उसने ईरान की संप्रभुता को बरकरार रखते हुए ब्रिटेन और रूस के संतुलित प्रभावों को बनाए रखने की कोशिख की पर द्वितीय विश्वयुद्ध के ठीक पहले जर्मनी के साथ उसके बढ़ते ताल्लुकात से ब्रिटेन और रूस को गंभीर चिंता हुई। दोनों देशों ने रज़ा पहलवी पर दबाब बनाया और बाद में उसे उपने बेटे मोहम्मद रज़ा के पक्ष में गद्दी छोड़नी पड़ी। मोहम्मद रज़ा के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देक़ को भी इस्तीफ़ा देना पड़ा।

ईरानी इस्लामिक क्रांति

बीसवीं सदी के ईरान की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी ईरान की इस्लामिक क्रांति। शहरों में तेल के पैसों की समृद्धि और गांवों में गरीबी; सत्तर के दशक का सूखा और शाह द्वारा यूरोपीय तथा बाकी देशों के प्रतिनिधियों को दिए गए भोज जिसमें अकूत पैसा खर्च किया गया था ने ईरान की गरीब जनता को शाह के खिलाफ़ भड़काया। इस्लाम में निहित समानता को अपना नारा बनाकर लोगों ने शाह के शासन का विरोध करना आरंभ किया। आधुनिकीकरण के पक्षधर शाह को गरीब लोग पश्चिमी देशों का पिट्ठू के रूप में देखने लगे। 1979 में अभूतपूर्व प्रदर्शन हुए जिसमें हिसंक प्रदर्शनों की संख्या बढ़ती गई। अमेरिकी दूतावास को घेर लिया गया और इसके कर्मचारियों को बंधक बना लिया गया। शाह के समर्थकों तथा संस्थानों में हिसक झड़पें हुईं और इसके फलस्वरूप 1989 में फलस्वरूप पहलवी वंश का पतन हो गया और ईरान एक इस्लामिक गणराज्य बना जिसका शीर्ष नेता एक धार्मिक मौलाना होता था। अयातोल्ला खोमैनी को शीर्ष नेता का पद मिला और ईरान ने इस्लामिक में अपनी स्थिति मजबूत की। उनका देहांत 1989 में हुआ। इसके बाद से ईरान में विदेशी प्रभुत्व लगभग समाप्त हो गया।

जनवृत्त

ईरान में भिन्न-भिन्न जाति के लोग रहते हैं। यहाँ ७० प्रतिशत जनता हिन्द-आर्य जाति की है और हिन्द ईरानी भाषाएँ बोलती है। जातिगत आँकड़ो को देखें तो ५४ प्रतिशत फारसी, २४ प्रतिशत अज़री, मज़ंदरानी और गरकी ८ प्रतिशत, कुर्द ७ प्रतिशत, अरबी ३ प्रतिशत, बलोची, लूरी और तुर्कमेन २ प्रतिशत (प्रत्येक) तथा कई अन्य जातिय़ाँ शामिल हैं।

सात करोड़ की जनसंख्या वाला ईरान विश्व में शरणागतों के सबसे बड़े देशों में से एक है, जहाँ इराक़ तथा अफ़गानिस्तान से कई शरणार्थियों ने अपने देशों में चल रहे युद्धों के कारण शरण ले रखी है।

धर्म

ईरान का प्राचीन नाम पार्स (फ़ारस) था और पार्स के रहने वाले लोग पारसी कहलाए, जो ज़रथुस्त्र के अनुयायी थे और सूर्य व अग्नि पूजक थे। सातवीं शताब्दी में अरबों ने पार्स पर विजय पाई और वहाँ जबरन इस्लाम का प्रसार हुआ। वहां की जनता को जबर से इस्लाम में मिलाया जा रहा था इसलिए जो पारसी इस्लाम अपना गए वो आगे चलकर शिया मुस्लमान कहलाय व उत्पीड़न से बचने के लिए बहुत से पारसी भारत आ गए। वे अपना मूल धर्म (सूर्य पूजन) नहीं छोड़ना चाहते थे| आज भी दक्षिण एशियाई देश भारत में पारसी मंदिर देखने को मिलते हैं |

इस्लाम में ईरान का एक विशेष स्थान है। सातवीं सदी से पहले यहाँ जरथुस्ट्र धर्म के अलावा कई और धर्मों तथा मतों के अनुयायी थे। अरबों द्वारा ईरान विजय (फ़ारस) के बाद यहाँ शिया इस्लाम का उदय हुआ। आज ईरान के अलावा भारत, दक्षिणी इराक, अफ़ग़ानिस्तान, अजरबैजान तथा पाकिस्तान में भी शिया मुस्लिमों की आबादी निवास करती है। लगभग सम्पूर्ण अरब, मिस्र, तुर्की, उत्तरी तथा पश्चिमी इराक, लेबनॉन को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण मध्यपूर्व, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान तुर्केमेनिस्तान तथा भारतोत्तर पूर्वी एशिया के मुसलमान मुख्यतः सुन्नी हैं।

अर्थव्यवस्था

ईरान की अर्थव्यवस्था तेल और प्राकृतिक गैस से संबंधित उद्योगों तथा कृषि पर आधारित है। सन् 2006 में ईरान के बज़ट का 45 प्रतिशत तेल तथा प्राकृतिक गैस से मिले रकम से आया और 31 प्रतिशत करों और चुंगियों से। ईरान के पास क़रीब 70 अरब अमेरिकी डॉलर रिज़र्व में है और इसकी सालाना सकल घरेलू उत्पाद 206 अरब अमेरिकी डॉलर थी। इसकी वार्षिक विकास दर 6 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ ईरान एक अर्ध-विकसित अर्थव्यवस्था है। सेवाक्षेत्र का योगदान सकल घरेलू उत्पाद में सबसे ज्यादा है। देश के रोज़गार में 1.8 प्रतिशत रोजगार पर्यटन के क्षेत्र में है। वर्ष 2004 में ईरान में 16,59,000 पर्यटक आए थे। ईरान का पर्यटन से होने वाली आय वाले देशों की सूची में 89वाँ स्थान है पर इसका नाम सबसे ज्यादा पर्यटकों की दृष्टि से 10वें स्थान पर आता है।

प्राकृतिक गैसों के रिज़र्व (भंडार) की दृष्टि से ईरान विश्व का सबसे बड़ा देश है। तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।ईरान (Listeni/ɪˈrɑːn /, भी/ɪˈræn /; [ 10] [11] फ़ारसी: ایران Irān [ʔiːˈɾɒːn] (के बारे में यह ध्वनि सुनो)), भी रूप में फारस [12] (ˈpɜːrʒə /), [13] ईरान के इस्लामी गणराज्य की आधिकारिक तौर पर जाना जाता (फारसी: جمهوری اسلامی ایران Jomhuri-तु Eslāmi-तु Irān (के बारे में यह ध्वनि सुनो)), [14] पश्चिमी एशिया में एक संप्रभु राज्य है। [15] [16] यह पश्चिमोत्तर आर्मेनिया, Artsakh के वास्तविक स्वतंत्र गणराज्य, अज़रबैजान और exclave Nakhchivan के द्वारा bordered है; कैस्पियन सागर से उत्तर करने के लिए; तुर्कमेनिस्तान ने पूर्वोत्तर के लिए; करने के लिए पूर्वी अफगानिस्तान और पाकिस्तान द्वारा; फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी से दक्षिण करने के लिए; और तुर्की और इराक द्वारा पश्चिम। (मार्च 2017) के रूप में पर 79.92 लाख निवासियों के साथ, ईरान दुनिया के 18-सबसे-अधिक आबादी वाला देश है। [17] 1,648,195 km2 (636,372 वर्ग मील), का एक भूमि क्षेत्र शामिल हैं यह दूसरा सबसे बड़ा देश मध्य पूर्व में और 18 वीं दुनिया में सबसे बड़ा है। यह दोनों एक कैस्पियन सागर और हिंद महासागर तट से केवल देश है। मध्य देश की महान geostrategic महत्व के यूरेशिया और पश्चिमी एशिया, और होर्मुज के लिए अपनी निकटता में स्थान बनाते। [18] तेहरान देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है, साथ ही इसके प्रमुख आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र है।

ईरान है दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं, [19] [20] 4 सहस्राब्दी ई. पू. में Elamite राज्यों के गठन के साथ शुरुआत के एक घर। यह पहले ईरानी मीदि साम्राज्य द्वारा 7 वीं सदी ईसा पूर्व में, [21] एकीकृत और हख़ामनी साम्राज्य महान सिंधु घाटी करने के लिए, दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य बनने पूर्वी यूरोप से खींच 6 वीं सदी ई. पू., में अभी तक देखा था साइरस द्वारा की स्थापना के दौरान इसकी सबसे बड़ी सीमा तक पहुँच गया था। [22] ईरानी दायरे के लिए अलेक्जेंडर महान 4 शताब्दी ईसा पूर्व में गिर गया, लेकिन अंतिम ससानी साम्राज्य, जो अगले चार सदियों के लिए एक अग्रणी विश्व शक्ति बन गया के बाद साम्राज्य के रूप में कुछ ही समय बाद reemerged. [23] [24]

अरब मुसलमानों साम्राज्य 7 शताब्दी ईसा में, मोटे तौर पर स्वदेशी धर्मों के पारसी धर्म और इस्लाम के साथ मानी थापन पर विजय प्राप्त की। कला और विज्ञान में कई प्रभावशाली आंकड़े उत्पादन ईरान इस्लामी स्वर्ण युग और उसके बाद, करने के लिए प्रमुख योगदान दिया। दो शताब्दियों के बाद, विभिन्न देशी मुस्लिम राजवंशों की अवधि, जो बाद में तुर्कों और मंगोलों द्वारा विजय प्राप्त थे शुरू कर दिया। 15 वीं सदी में Safavids के उदय का एक एकीकृत ईरानी राज्य और जो शिया इस्लाम, ईरानी और मुस्लिम इतिहास में एक मोड़ चिह्नित करने के लिए देश के रूपांतरण के बाद राष्ट्रीय पहचान, [4] के reestablishment करने के लिए नेतृत्व किया। [5] [25] द्वारा 18 वीं सदी, नादिर शाह, के तहत ईरान संक्षेप में क्या यकीनन उस समय सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था पास। [26] 19 वीं सदी में रूसी साम्राज्य के साथ विरोध करता महत्वपूर्ण क्षेत्रीय नुकसान के लिए नेतृत्व किया। [27] [28] लोकप्रिय अशांति में संवैधानिक क्रांति 1906, जो एक संवैधानिक राजशाही और देश का पहला विधानमंडल की स्थापना का समापन हुआ। यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में 1953, ईरान द्वारा धीरे-धीरे उकसाया एक तख्तापलट के बाद पश्चिमी देशों के साथ बारीकी से गठबंधन बन गया, और तेजी से निरंकुश हो गया। [29] विदेशी प्रभाव और राजनीतिक दमन एक धर्म द्वारा 1979 क्रांति, जो संसदीय लोकतंत्र के तत्व भी शामिल है जो एक राजनीतिक प्रणाली संचालित और निगरानी की एक इस्लामी गणराज्य, [30] की स्थापना के बाद के नेतृत्व के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा एक निरंकुश 'सर्वोच्च नेता' नियंत्रित होता। [31] के अनुसार अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों, वर्तमान ईरानी सरकार के साथ मानवाधिकार हनन आम दमनकारी है। [32]

ईरान संयुक्त राष्ट्र, पर्यावरण, NAM, ओ, और ओपेक के एक संस्थापक सदस्य है। यह एक प्रमुख क्षेत्रीय और मध्य शक्ति, [33] [34] है और जीवाश्म ईंधन, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति और चौथा सबसे बड़ा तेल सिद्ध शामिल हैं-के अपने बड़े भंडार सुरक्षित रखता है [35] [36]-अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और विश्व अर्थव्यवस्था में काफी प्रभाव डालती।

देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भाग में अपने 21 यूनेस्को विश्व धरोहर, दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी संख्या एशिया में और 11 वीं सबसे बड़ी द्वारा परिलक्षित होता है। [37] ईरान कई जातीय और भाषाई समूहों, सबसे बड़ा होने के नाते फारसियों (61 प्रतिशत), जिसमें एक बहुसांस्कृतिक देश है Azeris (16 %), कुर्द (10 %), और Lurs (6 %). [ 36]

सामग्री [छुपाने के] 1 नाम 2 इतिहास 2.1 प्रागितिहास 2.2 शास्त्रीय पुरातनता 2.3 मध्ययुगीन काल 2.4 प्रारंभिक आधुनिक काल 1940 के दशक के लिए 1800 से 2.5 2.6 समकालीन युग 3 भूगोल 3.1 जलवायु 3.2 जीव 3.3 क्षेत्र, प्रांत और शहर 4 सरकार और राजनीति 4.1 नेता 4.2 राष्ट्रपति 4.3 इस्लामी परामर्शक सभा (संसद) 4.4 कानून 4.5 विदेश संबंध 4.6 सेना 5 अर्थव्यवस्था 5.1 पर्यटन 5.2 ऊर्जा 6 शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी 7 जनसांख्यिकी 7.1 भाषाएँ 7.2 जातीय समूह 7.3 धर्म 8 संस्कृति 8.1 कला 8.2 वास्तुकला 8.3 साहित्य 8.4 दर्शन 8.5 पौराणिक कथाओं 8.6 पालन 8.7 संगीत 8.8 थियेटर 8.9 सिनेमा और एनिमेशन 8.10 मीडिया 8.11 खेल 8.12 भोजन 9 यह भी देखें 10 नोट्स 11 संदर्भ 12 ग्रंथ सूची 13 बाह्य लिंक नाम मुख्य लेख: ईरान का नाम शब्द ईरान निकला

यह भी देखिए

बाहरी कड़ियां

  1. "Human Development Report 2010" (PDF). संयुक्त राष्ट्र संघ. २०१०. अभिगमन तिथि ५ नवम्बर २०१०.