"ईसाई धर्म": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 14: पंक्ति 14:


[[ईसा मसीह]] का जन्म यरूशलेम के बैतलहम गांव में हुआ था। इज़राइल के राजा हेरोदेस जिसका शासन लगभग 4 ई.पू. में था, यहूदियों की नाम लिखाई का आदेश निकाला था। इस वजह से अधिक भीड़ होने की वजह से उनके माता पिता को सराय में जगह नहीं मिली अतः उन्हें एक गौशाले में रात गुज़ारनी पड़ी ईसा का जन्म इसी गौशाले में हुआ था उनकी माता ने सर्दी से बचाने के लिए उन्हें चरनी में रखा।
[[ईसा मसीह]] का जन्म यरूशलेम के बैतलहम गांव में हुआ था। इज़राइल के राजा हेरोदेस जिसका शासन लगभग 4 ई.पू. में था, यहूदियों की नाम लिखाई का आदेश निकाला था। इस वजह से अधिक भीड़ होने की वजह से उनके माता पिता को सराय में जगह नहीं मिली अतः उन्हें एक गौशाले में रात गुज़ारनी पड़ी ईसा का जन्म इसी गौशाले में हुआ था उनकी माता ने सर्दी से बचाने के लिए उन्हें चरनी में रखा।

बाइबिल के अनुसार ईसा का जन्म ईश्वर की शक्ति से दाऊद की वंशज एक यहूदी लड़की कुंवारी [[मरियम]] से हुआ था। जिनकी मंगनी यूसुफ के साथ हो गई थी।
बाइबिल के अनुसार ईसा का जन्म ईश्वर की शक्ति से दाऊद की वंशज एक यहूदी लड़की कुंवारी [[मरियम]] से हुआ था। जिनकी मंगनी यूसुफ के साथ हो गई थी।
राजा हेरोदेस की आज्ञा से जब दो वर्ष तक के सभी बालकों को मार डालने की आज्ञा दी गई तो ईसा के माता पिता उन्हें बचाकर मिस्र भाग गए।
राजा हेरोदेस की आज्ञा से जब दो वर्ष तक के सभी बालकों को मार डालने की आज्ञा दी गई तो ईसा के माता पिता उन्हें बचाकर मिस्र भाग गए।
बालक ईसा की बचपन से ही धर्म एवं शास्त्रार्थ में रुचि रहा करती थी।
बालक ईसा की बचपन से ही धर्म एवं शास्त्रार्थ में रुचि रहा करती थी।

जब वे तीस वर्ष के हुए तो उन्होंने समस्त यहूदिया में ईश्वर का संदेश सुनाना शुरू किया।
जब वे तीस वर्ष के हुए तो उन्होंने समस्त यहूदिया में ईश्वर का संदेश सुनाना शुरू किया।
उन्होंने गरीब, दुखी व बीमारों की सेवा की तथा लोगों को मिलकर प्रेम से रहने का संदेश दिया।
उन्होंने गरीब, दुखी व बीमारों की सेवा की तथा लोगों को मिलकर प्रेम से रहने का संदेश दिया।
उनका ज़ोर लोगों के आत्मिक परिवर्तन पर था क्योंकि उस समय तक यहूदियों में कर्मकांड ही महत्वपूर्ण स्थान ले चुके थे एवं जनता सिर्फ धर्मगुरुओं के कहे अनुसार ही काम किया करती थी।
उनका ज़ोर लोगों के आत्मिक परिवर्तन पर था क्योंकि उस समय तक यहूदियों में कर्मकांड ही महत्वपूर्ण स्थान ले चुके थे एवं जनता सिर्फ धर्मगुरुओं के कहे अनुसार ही काम किया करती थी।
ईसा से प्रभावित होकर उनके शिष्य भी बनने लगे जो जगह जगह घूमकर उनके साथ ही इन सन्देशों को लोगों तक पहुंचाते थे।
ईसा से प्रभावित होकर उनके शिष्य भी बनने लगे जो जगह जगह घूमकर उनके साथ ही इन सन्देशों को लोगों तक पहुंचाते थे।

बाइबिल में इनमें 12 प्रमुख शिष्यों को बताया गया है। ईसा के बाद इन्हीं शिष्यों ने उनके सन्देशों को इज़राएल के बाहर सारी दुनिया तक पहुंचाया जिसने बाद में एक सम्प्रदाय या धर्म का रूप ले लिया।
बाइबिल में इनमें 12 प्रमुख शिष्यों को बताया गया है। ईसा के बाद इन्हीं शिष्यों ने उनके सन्देशों को इज़राएल के बाहर सारी दुनिया तक पहुंचाया जिसने बाद में एक सम्प्रदाय या धर्म का रूप ले लिया।
ईसा की बढ़ती लोकप्रियता व लोगों की एकजुटता से न सिर्फ यहूदी धर्माचार्य बल्कि रोमन शासन भी असुरक्षित महसूस करने लगा।
ईसा की बढ़ती लोकप्रियता व लोगों की एकजुटता से न सिर्फ यहूदी धर्माचार्य बल्कि रोमन शासन भी असुरक्षित महसूस करने लगा।

कुछ समय बाद ईसा के पीछे चलने वाली बारह लोगों की मंडली सैकडों लोगों के हजूम में बदल गयी।
कुछ समय बाद ईसा के पीछे चलने वाली बारह लोगों की मंडली सैकडों लोगों के हजूम में बदल गयी।
यहूदी धर्म के कम होती प्रतिष्ठा व एक नई उभरती क्रांति को समाप्त करने के लिये ईसा के एक शिष्य यहूदा को लालच देकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
यहूदी धर्म के कम होती प्रतिष्ठा व एक नई उभरती क्रांति को समाप्त करने के लिये ईसा के एक शिष्य यहूदा को लालच देकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
ईसा पर मुकदमा चलाया गया कि वह स्वयं को यहूदियों का राजा बतलाता है जो कि रोमन साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह है।
ईसा पर मुकदमा चलाया गया कि वह स्वयं को यहूदियों का राजा बतलाता है जो कि रोमन साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह है।
अतः ईसा को लगभग 33 ई. में सूली पर चढ़ा कर मृत्युदंड दे दिया गया।
अतः ईसा को लगभग 33 ई. में सूली पर चढ़ा कर मृत्युदंड दे दिया गया।

किन्तु उनके शिष्यों द्वारा बढ़ती उनकी शिक्षाओं को रोमन साम्राज्य भी नहीं रोक सका हालांकि उनके सभी शिष्यों की एक एक कर हत्या की गईं।
किन्तु उनके शिष्यों द्वारा बढ़ती उनकी शिक्षाओं को रोमन साम्राज्य भी नहीं रोक सका हालांकि उनके सभी शिष्यों की एक एक कर हत्या की गईं।
लेकिन ईसा की बढ़ती शिक्षाएं नहीं रुक सकीं।
लेकिन ईसा की बढ़ती शिक्षाएं नहीं रुक सकीं।
एक समय ऐसा भी आया जब वह रोमन साम्राज्य जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाया उसी ने ईसाई धर्म को 380 ई. में राजधर्म घोषित कर दिया।
एक समय ऐसा भी आया जब वह रोमन साम्राज्य जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाया उसी ने ईसाई धर्म को 380 ई. में राजधर्म घोषित कर दिया।

बाइबिल के अनुसार ईसा ने अपने जीवन में कई चमत्कार किये तथा मृत्यु के बाद तीसरे दिन वह जी उठे।
जी उठने के चालीस दिन बाद वह स्वर्ग चले गए एवं क़यामत के दिन ईसा मसीह फिर वापिस आएंगे।
बाइबिल के अनुसार ईसा ने अपने जीवन में कई चमत्कार किये तथा मृत्यु के बाद तीसरे दिन वह जी उठे। जी उठने के चालीस दिन बाद वह स्वर्ग चले गए एवं क़यामत के दिन ईसा मसीह फिर वापिस आएंगे।
ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह स्वयं परमेश्वर थे जिन्होंने मनुष्यों को उनके पापों से उद्धार करने के लिए मानव रूप में जन्म लिया एवं अपने प्राणों का बलिदान दिया।
ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह स्वयं परमेश्वर थे जिन्होंने मनुष्यों को उनके पापों से उद्धार करने के लिए मानव रूप में जन्म लिया एवं अपने प्राणों का बलिदान दिया।
और जो उनपर विश्वास करते हैं वे सभी एक दिन ईश्वर के राज्य व अनंत जीवन के वारिस होंगे।
और जो उनपर विश्वास करते हैं वे सभी एक दिन ईश्वर के राज्य व अनंत जीवन के वारिस होंगे।

09:53, 10 अक्टूबर 2019 का अवतरण

ईद्भास/क्रॉस - यह ईसाई धर्म का निशान है

ईसाई धर्म (मसीही धर्म या क्रिश्चियन धर्म) प्राचीन यहूदी परम्परा से निकला[1] एकेश्वरवादी धर्म है, जिसके अनुयायी ईसाई कहलाते हैं। ईसाई धर्म के अनुयायी ईसा मसीह की शिक्षा पर चलते हैं। ईसाइयों में बहुत से समुदाय हैं जैसे कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडोक्स, एवानजिलक आदि। ईसाई धर्म के अनुसार मूर्तिपूजा, हत्या, व्यभिचार व किसी को भी व्यर्थ आघात पहुंचाना पाप है। बाईबल ईसाई धर्म का धर्मग्रंथ है। पूरे विश्व में सर्वाधिक लोग ईसाई धर्म को मानते हैं।

ईश्वर

ईसाई एकेश्वरवादी हैं, लेकिन वे ईश्वर को त्रीएक के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।

परमपिता

परमपिता इस सृष्टि के रचयिता हैं और इसके शासक भी।

ईसा मसीह

ईसा मसीह का जन्म यरूशलेम के बैतलहम गांव में हुआ था। इज़राइल के राजा हेरोदेस जिसका शासन लगभग 4 ई.पू. में था, यहूदियों की नाम लिखाई का आदेश निकाला था। इस वजह से अधिक भीड़ होने की वजह से उनके माता पिता को सराय में जगह नहीं मिली अतः उन्हें एक गौशाले में रात गुज़ारनी पड़ी ईसा का जन्म इसी गौशाले में हुआ था उनकी माता ने सर्दी से बचाने के लिए उन्हें चरनी में रखा।

बाइबिल के अनुसार ईसा का जन्म ईश्वर की शक्ति से दाऊद की वंशज एक यहूदी लड़की कुंवारी मरियम से हुआ था। जिनकी मंगनी यूसुफ के साथ हो गई थी। राजा हेरोदेस की आज्ञा से जब दो वर्ष तक के सभी बालकों को मार डालने की आज्ञा दी गई तो ईसा के माता पिता उन्हें बचाकर मिस्र भाग गए। बालक ईसा की बचपन से ही धर्म एवं शास्त्रार्थ में रुचि रहा करती थी।

जब वे तीस वर्ष के हुए तो उन्होंने समस्त यहूदिया में ईश्वर का संदेश सुनाना शुरू किया। उन्होंने गरीब, दुखी व बीमारों की सेवा की तथा लोगों को मिलकर प्रेम से रहने का संदेश दिया। उनका ज़ोर लोगों के आत्मिक परिवर्तन पर था क्योंकि उस समय तक यहूदियों में कर्मकांड ही महत्वपूर्ण स्थान ले चुके थे एवं जनता सिर्फ धर्मगुरुओं के कहे अनुसार ही काम किया करती थी। ईसा से प्रभावित होकर उनके शिष्य भी बनने लगे जो जगह जगह घूमकर उनके साथ ही इन सन्देशों को लोगों तक पहुंचाते थे।

बाइबिल में इनमें 12 प्रमुख शिष्यों को बताया गया है। ईसा के बाद इन्हीं शिष्यों ने उनके सन्देशों को इज़राएल के बाहर सारी दुनिया तक पहुंचाया जिसने बाद में एक सम्प्रदाय या धर्म का रूप ले लिया। ईसा की बढ़ती लोकप्रियता व लोगों की एकजुटता से न सिर्फ यहूदी धर्माचार्य बल्कि रोमन शासन भी असुरक्षित महसूस करने लगा।

कुछ समय बाद ईसा के पीछे चलने वाली बारह लोगों की मंडली सैकडों लोगों के हजूम में बदल गयी। यहूदी धर्म के कम होती प्रतिष्ठा व एक नई उभरती क्रांति को समाप्त करने के लिये ईसा के एक शिष्य यहूदा को लालच देकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ईसा पर मुकदमा चलाया गया कि वह स्वयं को यहूदियों का राजा बतलाता है जो कि रोमन साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह है। अतः ईसा को लगभग 33 ई. में सूली पर चढ़ा कर मृत्युदंड दे दिया गया।

किन्तु उनके शिष्यों द्वारा बढ़ती उनकी शिक्षाओं को रोमन साम्राज्य भी नहीं रोक सका हालांकि उनके सभी शिष्यों की एक एक कर हत्या की गईं। लेकिन ईसा की बढ़ती शिक्षाएं नहीं रुक सकीं। एक समय ऐसा भी आया जब वह रोमन साम्राज्य जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाया उसी ने ईसाई धर्म को 380 ई. में राजधर्म घोषित कर दिया।

बाइबिल के अनुसार ईसा ने अपने जीवन में कई चमत्कार किये तथा मृत्यु के बाद तीसरे दिन वह जी उठे। जी उठने के चालीस दिन बाद वह स्वर्ग चले गए एवं क़यामत के दिन ईसा मसीह फिर वापिस आएंगे। ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह स्वयं परमेश्वर थे जिन्होंने मनुष्यों को उनके पापों से उद्धार करने के लिए मानव रूप में जन्म लिया एवं अपने प्राणों का बलिदान दिया। और जो उनपर विश्वास करते हैं वे सभी एक दिन ईश्वर के राज्य व अनंत जीवन के वारिस होंगे।

पवित्र आत्मा

पवित्र आत्मा त्रिएक परमेश्वर के तीसरे व्यक्तित्व हैं जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपने अन्दर ईश्वर का अहसास करता है। ये ईसा के चर्च एवं अनुयाईयों को निर्देशित करते हैं।

बाइबिल

ईसाई धर्मग्रन्थ बाइबिल में दो भाग हैं। पहला भाग (पुराना नियम) और यहूदियों का धर्मग्रन्थ एक ही हैं। दूसरा भाग (नया नियम) ईसा के उपदेश, चमत्कार और उनके शिष्यों के काम से रिश्ता रखता है।

सम्प्रदाय

ईसाइयों के मुख्य सम्प्रदाय हैं :

रोमन कैथोलिक

रोमन कैथोलिक रोम के पोप को सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं।

प्रोटेस्टेंट

प्रोटेस्टेंट किसी पोप को नहीं मानते है और इसके बजाय पवित्र बाइबल में पूरी श्रद्धा रखते हैं। मध्य युग में जनता के बाइबिल पढने के लिए नकल करना मना था। जिससे लोगो को ख्रिस्ती धर्म का उचित ज्ञान नहीं था। कुछ बिशप और पादरियों ने इसे सच्चे ख्रिस्ती धर्म के अनुसार नहीं समझा और बाइबिल का अपनी अपनी भाषाओ में भाषान्तर करने लगे, जिसे पोप का विरोध था। उन बिशप और पादारियों ने पोप से अलग होके एक नया सम्प्रदाय स्थापित किया जिसे प्रोटेस्टेंट कहते है (जिन्होने पोप् का विरोध प्रोटेस्ट किया)।

कोपिमिईस्म

कोपिमिईस्म विद्या नकल करने का अधिकार या लाइसेंस को विश्वास नहीं करता। इसकी शुरुआत हुई है बाइबल के एक वाक्यांश से:

सो तुम लोग वैसे ही मेरा अनुसरण करो जैसे मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ।
—1 कुरिन्थियों 11:1

ऑर्थोडॉक्स

ऑर्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के पैट्रिआर्क को मानते हैं और परम्परावादी होते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Christianity's status as monotheistic is affirmed in, amongst other sources, the Catholic Encyclopedia (article "Monotheism"); William F. Albright, From the Stone Age to Christianity; H. Richard Niebuhr; About.com, Monotheistic Religion resources; Kirsch, God Against the Gods; Woodhead, An Introduction to Christianity; The Columbia Electronic Encyclopedia Monotheism; The New Dictionary of Cultural Literacy, monotheism; New Dictionary of Theology, Paul, pp. 496–99; Meconi. "Pagan Monotheism in Late Antiquity". p. 111f.