"रामदेव पीर": अवतरणों में अंतर

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मंदिर की वर्तमान इमारत 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा उस स्थान पर बनवाई गई है जहां रामदेव जी नें अपने नश्वर शरीर को त्यागा था। रामदेव जी के मुख्य शिष्यों की समाधियां भी पांच मुस्लिम पीरों की कब्रों के साथ मंदिर परिसर में स्थित है। ये पीर मक्का से यहाँ रामदेव जी, जिन्हें उनके समुदाय में 'राम शाह पीर' कहा जाता था, को श्रद्धांजलि देने के लिए आये थे।
मंदिर की वर्तमान इमारत 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा उस स्थान पर बनवाई गई है जहां रामदेव जी नें अपने नश्वर शरीर को त्यागा था। रामदेव जी के मुख्य शिष्यों की समाधियां भी पांच मुस्लिम पीरों की कब्रों के साथ मंदिर परिसर में स्थित है। ये पीर मक्का से यहाँ रामदेव जी, जिन्हें उनके समुदाय में 'राम शाह पीर' कहा जाता था, को श्रद्धांजलि देने के लिए आये थे।
गांव के पास एक रामसर नामक पोखर स्थित है, और लोगों का मानना है कि स्वंय बाबा ने इसका निर्माण किया था। वहाँ मंदिर के आसपास के क्षेत्र में एक सीढ़ीदार कुआं स्थित है।ऐसा माना जाता है कि इसके पानी में असाधारण चिकित्सा शक्तियां है।
गांव के पास एक रामसर नामक पोखर स्थित है, और लोगों का मानना है कि स्वंय बाबा ने इसका निर्माण किया था। वहाँ मंदिर के आसपास के क्षेत्र में एक सीढ़ीदार कुआं स्थित है।ऐसा माना जाता है कि इसके पानी में असाधारण चिकित्सा शक्तियां है।
यहाँ भादवा की दूज को विशाल मेला लगता है। और बाबा के दर्सन के लिए यहां भादवा की दूज तक 80.से 90 लाख भक्त आते है। यहाँ चढे हुए पैसो का बाबा की 17 वी पीढ़ी में हर महीने प्रसाद के रूप में 1900 तंवर में बाट दिए जाते है
यहाँ भादवा की दूज को विशाल मेला लगता है। और बाबा के दर्सन के लिए यहां भादवा की दूज तक 80.से 90 लाख भक्त आते है। यहाँ चढावे में आए हुए पैसो का बाबा की 17 वी पीढ़ी में हर महीने प्रसाद के रूप में 1900 तंवर में बाट दिए जाते है
ये परम्परा बाबा के समाधि लेने के बाद से चलती आरही है।
ये परम्परा बाबा के समाधि लेने के बाद से चलती आरही है। हर साल प्रत्येक वक्ति को 4 लाख से 5 लाख तक बात प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
मंदिर के पूरी व्यवस्था बाबा के वंसज ही संभाल ते है।


== इन्हें भी देखें ==
== इन्हें भी देखें ==

03:56, 22 सितंबर 2019 का अवतरण

रामदेव जी
रुणिचा के शासक थे जो कि तंवर राजपूत थे, जिन्होंने उस जमाने में जब कोई सोच भी नहीं सकता था, तब छुआछूत मिटाने का प्रयास किया था, तथा दलितों एवम पिछड़ों के साथ गहरा संबंध स्थापित किया।
उत्तरवर्तीअजमल जी
जन्मभाद्रपद शुक्लदूज वि.स. 1462
उण्डू-काश्मीर,जिला बाड़मेर
निधनवि.स. 1515
रामदेवरा
समाधि
रामदेवरा
पिताअजमल जी
मातामैणादेवी
धर्महिन्दू

रामदेव जी[1] राजस्थान के एक लोक देवता हैं।बाबा रामदेव मंदिर पोखरण से लगभग 12 किमी की दूरी पर रामदेवरा नामक एक गांव में स्थित है। रामदेव जी, राजस्थान के हिंदूओं के एक आराध्य, की समाधि मंदिर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि राजपूत राजा और 14 वीं सदी के संत, रामदेव जी असाधारण शक्तियों के मालिक थे, जिसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। उन्होनें अपना पूरा जीवन गरीबों और पिछड़े वर्गों की सेवा में समर्पित कर दिया था। वर्तमान में, देश के कई सामाजिक समूहों उनकी अपने इष्ट देव के रूप में पूजा करते हैं। मंदिर की वर्तमान इमारत 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा उस स्थान पर बनवाई गई है जहां रामदेव जी नें अपने नश्वर शरीर को त्यागा था। रामदेव जी के मुख्य शिष्यों की समाधियां भी पांच मुस्लिम पीरों की कब्रों के साथ मंदिर परिसर में स्थित है। ये पीर मक्का से यहाँ रामदेव जी, जिन्हें उनके समुदाय में 'राम शाह पीर' कहा जाता था, को श्रद्धांजलि देने के लिए आये थे। गांव के पास एक रामसर नामक पोखर स्थित है, और लोगों का मानना है कि स्वंय बाबा ने इसका निर्माण किया था। वहाँ मंदिर के आसपास के क्षेत्र में एक सीढ़ीदार कुआं स्थित है।ऐसा माना जाता है कि इसके पानी में असाधारण चिकित्सा शक्तियां है। यहाँ भादवा की दूज को विशाल मेला लगता है। और बाबा के दर्सन के लिए यहां भादवा की दूज तक 80.से 90 लाख भक्त आते है। यहाँ चढावे में आए हुए पैसो का बाबा की 17 वी पीढ़ी में हर महीने प्रसाद के रूप में 1900 तंवर में बाट दिए जाते है ये परम्परा बाबा के समाधि लेने के बाद से चलती आरही है। हर साल प्रत्येक वक्ति को 4 लाख से 5 लाख तक बात प्रसाद के रूप में दिया जाता है। मंदिर के पूरी व्यवस्था बाबा के वंसज ही संभाल ते है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ