"स्वामी रामानन्दाचार्य" के अवतरणों में अंतर
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→रामानंद का समन्वयवाद
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== रामानंद का समन्वयवाद ==
तत्कालीन समाज में विभिन्न मत-पंथ संप्रदायों में घोर वैमनस्यता और कटुता को दूर कर हिंदू समाज को एक सूत्रबद्धता का महनीय कार्य किया। स्वामीजी ने मर्यादा पुरूषोत्तम [[श्रीराम]] को आदर्श मानकर
आचार्यपाद ने स्वतंत्र रूप से [[श्रीसंप्रदाय]] का प्रवर्तन किया। इस संप्रदाय को रामानंदी अथवा
▲आचार्यपाद ने स्वतंत्र रूप से [[श्रीसंप्रदाय]] का प्रवर्तन किया। इस संप्रदाय को रामानंदी अथवा वैरागी संप्रदाय भी कहते हैं। उन्होंने बिखरते और नीचे गिरते हुए समाज को मजबूत बनाने की भावना से भक्ति मार्ग में जाति-पांति के भेद को व्यर्थ बताया और कहा कि भगवान की शरणागति का मार्ग सबके लिए समान रूप से खुला है-
: ''सर्व प्रपत्तिधरकारिणो मताः
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