"हख़ामनी साम्राज्य": अवतरणों में अंतर

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पश्चिम में इस साम्राज्य को [[मिस्र]] एवम [[बेबीलोन]] पर अधिकार, [[यूनान]] के साथ युद्ध तथा यहूदियों के मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए याद किया जाता है। कुरोश तथा दारुश को इतिहास में महान की संज्ञा से भी संबोधित किया जाता है। इस वंश को आधुनिक फ़ारसी भाषा बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार कहा जाता है। इस्लाम के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं जो मुस्लिम नाम नहीं माने जाते हैं। ज़रदोश्त के प्रभाव से पारसी धर्म के शाही रूप का प्रतीक भी इसी वंश को माना जाता है। तीसरी सदी में स्थापित सासानी वंश के शासकों ने अपना मूल हख़ामनी वंश को ही बताया था।
पश्चिम में इस साम्राज्य को [[मिस्र]] एवम [[बेबीलोन]] पर अधिकार, [[यूनान]] के साथ युद्ध तथा यहूदियों के मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए याद किया जाता है। कुरोश तथा दारुश को इतिहास में महान की संज्ञा से भी संबोधित किया जाता है। इस वंश को आधुनिक फ़ारसी भाषा बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार कहा जाता है। इस्लाम के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं जो मुस्लिम नाम नहीं माने जाते हैं। ज़रदोश्त के प्रभाव से पारसी धर्म के शाही रूप का प्रतीक भी इसी वंश को माना जाता है। तीसरी सदी में स्थापित सासानी वंश के शासकों ने अपना मूल हख़ामनी वंश को ही बताया था।

== दारा ==
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दारा अजमीढ़ साम्राज्य शासक वंश से किसी दूर के रिश्ते से जुड़ा हुआ था। गद्दी सम्हालते ही दारा ने अपना साम्राज्य पश्चिम की ओर विस्तृत करना आरंभ किया। पर ४९० ईसापूर्व में मैराथन के युद्ध यवनों से मिली पराजय के बाद उसे वापस एशिया मइनर तक सिमट कर रह जाना पड़ा। दारा के शासनकाल में ही पर्सेपोलिस (तख़्त-ए-जमशेद के नाम से भी ज्ञात) का निर्माण करवाया (५१८-५१६ ईसापूर्व)। एक्बताना (हमादान) को भी गृष्म राजधानी के रूप में विकसित किया गया।


== यूनान से युद्ध ==
== यूनान से युद्ध ==

17:53, 2 सितंबर 2019 का अवतरण

अजमीढ़ साम्राज्य अपने चरम पर - ईसापूर्व सन् 500 के आसपास

हख़ामनी वंश या अजमीढ़ साम्राज्य(अंग्रेज़ी तथा ग्रीक में एकेमेनिड, अजमीढ़ साम्राज्य (ईसापूर्व 550 - ईसापूर्व 330) प्राचीन ईरान (फ़ारस) का एक शासक वंश था। यह प्राचीन ईरान के ज्ञात इतिहास का पहला शासक वंश था जिसने आज के लगभग सम्पूर्ण ईरान पर अपनी प्रभुसत्ता हासिल की थी और इसके अलावा अपने चरमकाल में तो यह पश्मिम में यूनान से लेकर पूर्व में सिंधु नदी तक और उत्तर में कैस्पियन सागर से लेकर दक्षिण में अरब सागर तक फैल गया था। इतना बड़ा साम्राज्य इसके बाद बस सासानी शासक ही स्थापित कर पाए थे। इस वंश का पतन सिकन्दर के आक्रमण से सन ३३० ईसापूर्व में हुआ था, जिसके बाद इसके प्रदेशों पर यूनानी (मेसीडोन) प्रभुत्व स्थापित हो गया था।

पश्चिम में इस साम्राज्य को मिस्र एवम बेबीलोन पर अधिकार, यूनान के साथ युद्ध तथा यहूदियों के मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए याद किया जाता है। कुरोश तथा दारुश को इतिहास में महान की संज्ञा से भी संबोधित किया जाता है। इस वंश को आधुनिक फ़ारसी भाषा बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार कहा जाता है। इस्लाम के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं जो मुस्लिम नाम नहीं माने जाते हैं। ज़रदोश्त के प्रभाव से पारसी धर्म के शाही रूप का प्रतीक भी इसी वंश को माना जाता है। तीसरी सदी में स्थापित सासानी वंश के शासकों ने अपना मूल हख़ामनी वंश को ही बताया था।

यूनान से युद्ध

उसके बाद उसके पुत्र खशायर्श (क्ज़ेरेक्सेस) ने यूनान पर विजय अभियान चलाया। लगभग बीस लाख की सेना लेकर उसने यवन प्रदेशों पर धावा बोल दिया। उसने उत्तर की दिशा से हमला बोला और मेसीडोनिया तथा थेसेले में कोई खास सैन्य विरोध नहीं हुआ। वो आगे बढ़ता गया पर थर्मोपैले के युद्ध में उसे एक छोटी सी सेना ने तीन दिनों तक रोक दिया। इसके बाद उसे कुछ जगहों पर यवनों से मात भी मिली। मैकाले के युद्ध में हारने के बाद फारसी सेना वापस आ गई।

इसके बाद भी मेसीदोन पर फ़ारसी प्रभाव रहा। उसके क़रीब सौ साल बाद, मेसीडोनिया (मकदूनिया) का राजा फिलीप वहाँ के छोटे छोटे साम्राज्यों को संगठित करने में सफल हुआ। पर उसकी हत्या कर दी गई। उस समय उसका बेटा सिकन्दर काछी छोटा था। पर सिकन्दर ने विश्व विजय का सपना देखा था। वो सबसे पहले यूनान पर फारसी दमन का बदला लेना चाहता था। इसी मंशा से उसने अनातोलिया (तुर्की) के तटीय प्रदेशों पर आक्रमण आरंभ किया।

साम्राज्य का पतन

सिकन्दर की सेना को जीत मिलती गई। अब सिकन्दर सीधे तुर्की में प्रविष्ट हुआ। ईसापूर्व सन् 330 में उसने दारा तृतीय को एक युद्ध में हरा दिया। पर दारा का साम्राज्य उस समय तक बहुत बड़ा बन चुका था और एक हार से सिकन्दर की जीत सुनुश्चित नहीं की जा सकती। पर सिकन्दर ने दारा को तीन अलग अलग युद्धों में हराया। दारा रणभूमि छोड़कर भाग गया और यवनों ने फारसी सेना पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद सिकन्दर ने दारा को पकड़ने की कोशिश की पर इसका उसे सीधा फायदा नहीं मिला। कुछ दिनों बाद दारा का शव सिकन्दर को मिला। दारा को उसके ही आदमियों ने मार दिया था। इसके साथ ही हखामनी साम्राज्य का पतन हो गया। सिकन्दर का साम्राज्य पूरे फारसी साम्राज्य को निगल चुका था।

महिमा

अजमीढ़ साम्राज्य, उस समय तक के विश्व का शायद सबसे बड़ा साम्राज्य था। इसकी महानता का गुणगान यूनानी ग्रंथों में भी मिलता है। सन् 1971 में ईरान के शाह ने अजमीढ़ साम्राज्य स्थापिक होने के 2500 वर्ष पूरे होने के लिए एक विशेष आयोजन किया था। यह पर्सेपोलिस (तख्त-ए-जमशैद) तथा पसरगाडे के ऐतिहासिक स्थल पर आयोजित किया गया था जिसमें कई राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया गया था और करोंड़ों रूपयों का खर्च आया था। उस समय ईरान के कुछ हिस्सों में अकाल पड़ा था और ईरानी जनता उस समय इतने पैसे दिखावट पर खर्च करने के विरूद्ध हो गई थी। यह प्रकरण भी ईरान की इस्लामिक क्रांति (1979) के सबसे प्रमुख कारणों में से एक था।[1]

सन्दर्भ

  1. Axworthy, Michael. A History of Iran. न्यूयार्क: Basic Books. पृ॰ 251. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-465-00888-9.