"कुशीनगर": अवतरणों में अंतर

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कुशीनगर नामक स्थान अति प्राचीन काल से प्रसिद्ध है । त्रेता युग में भगवान राम के दो पुत्र लव कुश थे उनमें से कुश के द्वारा बसाया हुआ नगर कुशीनगर है । कुश के वंशज ही कुशवाहा कहलाये कुछ स्थान पर कच्छवाह हो गया। वैदिक काल से सभी कुशवाहा कुश के पुत्र सूर्यवंशी क्षत्रिय वर्ण है
कुशीनगर नामक स्थान अति प्राचीन काल से प्रसिद्ध है । त्रेता युग में भगवान राम के दो पुत्र लव कुश थे उनमें से कुश के द्वारा बसाया हुआ नगर कुशीनगर है । कुश के वंशज ही [[कुशवाहा]] कहलाये कुछ स्थान पर कच्छवाह हो गया। वैदिक काल से सभी कुशवाहा कुश के पुत्र सूर्यवंशी क्षत्रिय वर्ण है
''यह पन्ना कुशीनगर नामक स्थान 1948 के बाद से बौद्ध तीर्थ बना है। प्रशाशनिक जनपद के लिये देखें '''[[कुशीनगर जिला]]'''''
''यह पन्ना कुशीनगर नामक स्थान 1948 के बाद से बौद्ध तीर्थ बना है। प्रशाशनिक जनपद के लिये देखें '''[[कुशीनगर जिला]]'''''



11:07, 16 अगस्त 2019 का अवतरण

कुशीनगर नामक स्थान अति प्राचीन काल से प्रसिद्ध है । त्रेता युग में भगवान राम के दो पुत्र लव कुश थे उनमें से कुश के द्वारा बसाया हुआ नगर कुशीनगर है । कुश के वंशज ही कुशवाहा कहलाये कुछ स्थान पर कच्छवाह हो गया। वैदिक काल से सभी कुशवाहा कुश के पुत्र सूर्यवंशी क्षत्रिय वर्ण है यह पन्ना कुशीनगर नामक स्थान 1948 के बाद से बौद्ध तीर्थ बना है। प्रशाशनिक जनपद के लिये देखें कुशीनगर जिला


कुशीनगर
—  कस्बा  —
परिनिर्वाण मंदिर के निकट खुदाई में मिली बुद्ध प्रतिमा
परिनिर्वाण मंदिर के निकट खुदाई में मिली बुद्ध प्रतिमा
परिनिर्वाण मंदिर के निकट खुदाई में मिली बुद्ध प्रतिमा
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला कुशीनगर
सांसद राजेश पांडेय ( भा0ज0पा0)
जनसंख्या
घनत्व
35,60,830 (2011 के अनुसार )
• 1,231/किमी2 (3,188/मील2)
लिंगानुपात 1000/955 /
क्षेत्रफल 2,891.67 कि.मी² (1,116 वर्ग मील)
आधिकारिक जालस्थल: www.kushinagar.nic.in

निर्देशांक: 26°44′30″N 83°53′26″E / 26.7416246°N 83.8906145°E / 26.7416246; 83.8906145 कुशीनगर एवं कसिया बाजार उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी सीमान्त इलाके में स्थित एक क़स्बा एवं ऐतिहासिक स्थल है। "कसिया बाजार" नाम कुशीनगर में बदल गया है और उसके बाद "कसिया बाजार" आधिकारिक तौर पर "कुशीनगर" नाम के साथ नगर पालिका बन गया है। यह बौद्ध तीर्थस्थल है जहाँ गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कुशीनगर, राष्ट्रीय राजमार्ग २८ पर गोरखपुर से लगभग ५० किमी पूरब में स्थित है। यहाँ अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर कस्बे के और पूरब बढ़ने पर लगभग २० किमी बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है।

यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यत: कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं।

बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से सम्बन्धित है, किन्तु आस-पास का क्षेत्र हिन्दू बहुल है। इस मेले में आस-पास की जनता पूर्ण श्रद्धा से भाग लेती है और विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन करती है। किसी को संदेह नहीं कि बुद्ध उनके 'भगवान' हैं।

कुशीनगर जनपद , गोरखपुर मंडल के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र पहले कुशीनारा के नाम से जाना जाता था जहां बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कुशीनगर जिले का प्रशासनिक प्रभाग पडरौना में है। क्षेत्रफल 2,873.5 वर्ग कि॰मी (1,109.5 वर्ग मील) है तो जनसंख्या 3,560,830 (2011)। साक्षरता दर 67.66 प्रतिशत और लिंगानुपात 955 है। यह एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है तो सात विधानसभा क्षेत्र- फाजिलनगर, खड्डा, रामकोला, हाटा, कसया, पडरौना, तमकुही राज हैं। जिले में 6 तहसीलें हैं - पडरौना, कुशीनगर, हाटा, तमकुहीराज , खड्डा, कप्तानगंज और 14 विकासखण्ड (block) हैं - पडरौना, बिशुनपुरा, कुशीनगर, हाटा, मोतीचक, सेवरही, नेबुआ नौरंगिया, खड्डा, दुदही, फाजिल नगर, सुकरौली, कप्तानगंज, रामकोला और तमकुहीराज। जिले में ग्रामों की संख्या 1447 हैं।

नाम इतिहास

तीर्थ यात्रा
बौद्ध
धार्मिक स्थल
चार मुख्य स्थल
लुंबिनी · बोध गया
सारनाथ · कुशीनगर
चार अन्य स्थल
श्रावस्ती · राजगीर
सनकिस्सा · वैशाली
अन्य स्थल
पटना · गया
  कौशांबी · मथुरा
कपिलवस्तु · देवदह
केसरिया · पावा
नालंदा · वाराणसी
बाद के स्थल
साँची · रत्नागिरी
एल्लोरा · अजंता
भरहुत · दीक्षाभूमि

धार्मिक व ऐतिहासिक परिचय

कुशीनगर का इतिहास अत्यन्त ही प्राचीन व गौरवशाली है। इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। प्राचीन काल में यह नगर मल्ल वंश की राजधानी तथा 16 महाजनपदों में एक था। चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तातों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भी आबाद था और यहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे 'कुशावती' नाम से जाना गया। पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार बौद्ध काल में यह स्थान षोड्श महाजनपदों में से एक था। मल्ल राजाओं की यह राजधानी तब 'कुशीनारा' के नाम से जानी जाती थी। पांचवी शताब्दी के अन्त तक या छठी शताब्दी की शुरूआत में यहां भगवान बुद्ध का आगमन हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्माण को प्राप्त किया था।

इस प्राचीन स्थान को प्रकाश में लाने के श्रेय जनरल ए कनिंघम और ए. सी. एल. कार्लाइल को जाता है जिन्होंनें 1861 में इस स्थान की खुदाई करवाई। खुदाई में छठी शताब्दी की बनी भगवान बुद्ध की लेटी प्रतिमा मिली थी। इसके अलावा रामाभार स्तूप और और माथाकुंवर मंदिर भी खोजे गए थे। 1904 से 1912 के बीच इस स्थान के प्राचीन महत्व को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने अनेक स्थानों पर खुदाई करवाई। प्राचीन काल के अनेक मंदिरों और मठों को यहां देखा जा सकता है।

कुशीनगर के करीब फाजिलनगर कस्बा है जहां के 'छठियांव' नामक गांव में किसी ने महात्मा बुद्ध को सूअर का कच्चा गोस्त खिला दिया था जिसके कारण उन्हें दस्त की बीमारी शुरू हुई और मल्लों की राजधानी कुशीनगर तक जाते-जाते वे निर्वाण को प्राप्त हुए। फाजिलनगर में आज भी कई टीले हैं जहां गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से कुछ खुदाई का काम कराया गया है और अनेक प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। फाजिलनगर के पास ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी में भी एक अति प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं जहां बुद्ध की अतिप्रचीन मूर्ति खंडित अवस्था में पड़ी है। गांव वाले इस मूर्ति को 'जोगीर बाबा' कहते हैं। संभवत: जोगीर बाबा के नाम पर इस गांव का नाम जोगिया पड़ा है। जोगिया गांव के कुछ जुझारू लोग `लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ के नाम से जोगीर बाबा के स्थान के पास प्रतिवर्ष मई माह में `लोकरंग´ कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें देश के महत्वपूर्ण साहित्यकार एवं सैकड़ों लोक कलाकार सम्मिलित होते हैं।

कुशीनगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में मल्लों का एक और गणराज्य पावा था। यहाँ बौद्ध धर्म के समानांतर ही जैन धर्म का प्रभाव था। माना जाता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ( जो बुद्ध के समकालीन थे) ने पावानगर (वर्तमान में फाजिलनगर ) में ही परिनिर्वाण प्राप्त किया था। इन दो धर्मों के अलावा प्राचीन काल से ही यह स्थल हिंदू धर्मावलंम्बियों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। गुप्तकाल के तमाम भग्नावशेष आज भी जिले में बिखरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ दर्जन प्राचीन टीले हैं जिसे पुरातात्विक महत्व का मानते हुए पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित कर रखा है। उत्तर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर भी इसी जिले के तुर्कपट्टी में स्थित है। भगवान सूर्य की प्रतिमा यहां खुदाई के दौरान ही मिली थी जो गुप्तकालीन मानी जाती है। इसके अलावा भी जनपद के विभिन्न हिस्सों में अक्सर ही जमीन के नीचे से पुरातन निर्माण व अन्य अवशेष मिलते ही रहते हैं।

कुशीनगर जनपद का जिला मुख्यालय पडरौना है जिसके नामकरण के संबंध में यह कहा जाता है कि भगवान राम के विवाह के उपरांत पत्नी सीता व अन्य सगे-संबंधियों के साथ इसी रास्ते जनकपुर से अयोध्या लौटे थे। उनके पैरों से रमित धरती पहले पदरामा और बाद में पडरौना के नाम से जानी गई। जनकपुर से अयोध्या लौटने के लिए भगवान राम और उनके साथियों ने पडरौना से 10 किलोमीटर पूरब से होकर बह रही बांसी नदी को पार किया था। आज भी बांसी नदी के इस स्थान को 'रामघाट' के नाम से जाना जाता है। हर साल यहां भव्य मेला लगता है जहां यूपी और बिहार के लाखों श्रद्धालु आते हैं। बांसी नदी के इस घाट को स्थानीय लोग इतना महत्व देते हैं कि 'सौ काशी न एक बांसी' की कहावत ही बन गई है। मुगल काल में भी यह जनपद अपनी खास पहचान रखता था।

खुदाई में प्राप्त स्तूपों के भग्नावशेष

मैत्रेय-बुद्ध परियोजना

संसार की विशालतम प्रतिमा-मैत्रेय बुद्ध का निर्माण भारत (कुशीनगर, उत्तर प्रदेश) में ही किया जा रहा है। मैत्रेय परियोजना के तहत इस पर त्वरित गति से काम हो रहा है। इस परियोजना को सभी बौद्ध राष्ट्रों का सहयोग प्राप्त है और दलाई लामा का संरक्षकत्व भी। यह मूर्ति पांच सौ फूट ऊंची होगी। जिस मंच पर बुद्ध आसीन होंगे उसके अन्दर चार हजार लोगों के साथ बैठ कर ध्यान करने की व्यवस्था होगी। प्रतिमा की शैली तिब्बती है। वेशभूषा भी तिब्बती है। बुद्ध के बैठने के मुद्रा ऐसी होगी जैसे कि वे सिंहासन पर बैठे हों और उठ कर चल देने को तत्पर हों। तिब्बती बौद्ध मान्यता है कि मैत्रेय बुद्ध सुखावती लोक में ठीक इसी मुद्रा में बैठे हैं और किसी भी पल वे पृथ्वी की ओर चल देंगे। इस प्रतिमा में इसी धारणा का शिल्पांकन होगा।

प्रमुख आकर्षण

निर्वाण स्तूप

गौतम बुद्ध का समाधि स्तूप

ईंट और रोड़ी से बने इस विशाल स्तूप को 1876 में कार्लाइल द्वारा खोजा गया था। इस स्तूप की ऊंचाई 2.74 मीटर है। इस स्थान की खुदाई से एक तांबे की नाव मिली है। इस नाव में खुदे अभिलेखों से पता चलता है कि इसमें महात्मा बुद्ध की चिता की राख रखी गई थी।

महानिर्वाण मंदिर

परिनिर्वाण स्तूप सहित परिनिर्वाण मन्दिर (सामने से लिया गया दृष्य)

महानिर्वाण या निर्वाण मंदिर कुशीनगर का प्रमुख आकर्षण है। इस मंदिर में महात्मा बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी प्रतिमा स्थापित है। 1876 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह सुंदर प्रतिमा चुनार के बलुआ पत्थर को काटकर बनाई गई थी। प्रतिमा के नीचे खुदे अभिलेख के पता चलता है कि इस प्रतिमा का संबंध पांचवीं शताब्दी से है। कहा जाता है कि हरीबाला नामक बौद्ध भिक्षु ने गुप्त काल के दौरान यह प्रतिमा मथुरा से कुशीनगर लाया था।

माथाकुंवर मंदिर

यह मंदिर निर्वाण स्तूप से लगभग 400 गज की दूरी पर है। भूमि स्पर्श मुद्रा में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा यहां से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा बोधिवृक्ष के नीचे मिली है। इसके तल में खुदे अभिलेख से पता चलता है कि इस मूर्ति का संबंध 10-11वीं शताब्दी से है। इस मंदिर के साथ ही खुदाई से एक मठ के अवशेष भी मिले हैं।

रामाभर स्तूप

15 मीटर ऊंचा यह स्तूप महापरिनिर्वाण मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि यह स्तूप उसी स्थान पर बना है जहां महात्मा बुद्ध को 483 ईसा पूर्व दफनाया गया था। प्राचीन बौद्ध लेखों में इस स्तूप को मुकुट बंधन चैत्य का नाम दिया गया है। कहा जाता है कि यह स्तूप महात्मा बुद्ध की मृत्यु के समय कुशीनगर पर शासन करने वाले मल्ल शासकों द्वारा बनवाया गया था।

आधुनिक स्तूप

कुशीनगर में अनेक बौद्ध देशों ने आधुनिक स्तूपों और मठों का निर्माण करवाया है। चीन द्वारा बनवाए गए चीन मंदिर में महात्मा बुद्ध की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। इसके अलावा जापानी मंदिर में अष्ट धातु से बनी महात्मा बुद्ध की आकर्षक प्रतिमा देखी जा सकती है। इस प्रतिमा को जापान से लाया गया था।

बौद्ध संग्रहालय

कुशीनगर में खुदाई से प्राप्त अनेक अनमोल वस्तुओं को बौद्ध संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। यह संग्रहालय इंडो-जापान-श्रीलंकन बौद्ध केन्द्र के निकट स्थित है। आसपास की खुदाई से प्राप्त अनेक सुंदर मूर्तियों को इस संग्रहालय में देखा जा सकता है। यह संग्रहालय सोमवार के अलावा प्रतिदिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।

इन दर्शनीय स्थलों के अलावा क्रिएन मंदिर, शिव मंदिर, राम-जानकी मंदिर, मेडिटेशन पार्क, बर्मी मंदिर आदि भी कुशीनगर में देखे जा सकते हैं

अन्य

कुशीनगर के पनियहवा में गंडक नदी पर बना पुल देखने में काफी रोचक लगता है। पडरौना का बहुत पुराना राज दरबार भी पर्यटकों का दिल लुभाता है। कुशीनगर का सबसे बड़ा गांव जंगल खिरकिया में भब्य मंदिर है जहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। ग्राम जंगल अमवा के समीप मुसहर टोली में बना पंचवटी पार्क भी देखने योग्य हैं।

इस जिले में शिक्षा का स्तर काफी तेजी से बढ़ रहा है। बहुत सारे कालेज व शैक्षिक संस्थान हैं। जिनमें बुद्ध डिग्री कॉलेज, उदित नारायण कालेज, किसान इंटर कॉलेज प्रमुख हैं। इस जिला में कठकुईयां चीनी मिल, रामकोला चीनी मिल, पडरौना चीनी मिल, खड्डा चीनी मिल समेत कई बड़े चीनी मिल हैं। इस जिले में पडरौना, रामकोला, कठकुईयां, खड्डा, दुदही, तमकुही रोड, पनियहवा समेत कई छोटे बड़े रेलवे स्टेशन हैं। कुशीनगर जिला का मुख्यालय रवीन्द्र नगर धूस है। वर्तमान में कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का काम प्रगति पर है

लोकरंग

लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ विगत तीन वषों से लोक संस्कृतियों के अन्वेषण, संवर्धन और संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही है। किसी भी समाज की लोक संस्कृति, कला और संगीत का उसके मानवीय संवेदनाओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। हम असीम लिप्सा, धूर्तता, पाखण्ड से आवृत परिवेश में जी रहे हैं, जहां ठहर कर लोकसंस्कृतियों की हिफाजत के लिए वक्त नहीं है। ऐसे में हमारी लोक संस्कृतियां समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन्हीं चिन्ताओं को केंन्द्र में रखकर `लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ ने ग्राम-जोगिया जनूबी पट्टी, फाजिलनगर, कुशीनगर के ग्रामीण इलाके में हस्तक्षेप किया है। `लोकरंग 2008´ के माध्यम से हमने प्रयास किया था कि पूर्वांचल के, देवीगीत, हुड़का, पखावज, फरी नृत्य, विविध लोकगीतों और नुक्कड़ नाटकों को एक मंच पर लाया जाए और इस दिशा में हम सफल भी हुए थे। `लोकरंग 2009´ में हमने चइता, बिरहा, जोगीरा, कहरवा, कबीर, कजरी और निर्गुन गायकी, एकतारा वादन, जांघिया, धोबियाऊ और फरी नृत्य, विविध लोकगीतों और नाटकों को मंच प्रदान किया। दोनों ही वर्ष हमने विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जिनमें देश के महत्वपूर्ण साहित्यकार और लोक कलाकार सम्मिलित हुए। `'लोकरंग-2010' में पंवरिया, पखावज, हुड़का और अहिरऊ नृत्य, छत्तीसगढ़ी लोकगीत, बुन्देलखण्डी अचरी, बृजवासी, ईसुरी फाग एवं आल्हा गायकी को स्थान दिया गया है। भोजपुरी गीतों को मंच प्रदान करने के लिए तमाम लोक गायकों को आमन्त्रित किया गया है। हमारा प्रयास होगा कि `लोकरंग 2010´ लोकसंगीत /संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

आवागमन

वायु मार्ग

वाराणसी विमानक्षेत्र यहां का निकटतम प्रमुख हवाई-अड्डा है। दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता और पटना आदि शहरों से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं। इसके अतिरिक्त लखनऊ और गोरखपुर भी वायुयान से आकर यहाँ आया जा सकता है।

रेल मार्ग

देवरिया यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहां से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। कुशीनगर से 53 किलोमीटर दूर स्थित गोरखपुर यहां का प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो देश के अनेक प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

गाड़ी संख्या -- गाड़ी का नाम ---- कहाँ से -- कहाँ तक

बुद्ध परिक्रमा एक्सप्रेस -- कालका -- कोलकाता

2554 वैशाली एक्सप्रेस -- नयी दिल्ली -- बरौनी

4674 शहीद एक्सप्रेस -- अमृतसर -- दरभंगा

5208 आम्रपाली एक्सप्रेस -- अमृतसर -- बरौनी

5087 अमरनाथ एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- जम्मू तवी

5651 लोहित एक्सप्रेस -- गुवहाटी -- जम्मू तवी

5047 पूर्वांचल एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- हावड़ा

3020 बाघ एक्सप्रेस -- काठगोदाम -- हावड़ा

5012 राप्ती-सागर एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- कोचीन

5092 गोरखपुर-बंगलोर एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- बंगलोर

5090 गोरखपुर-सिकन्दराबाद एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- सिकन्दराबाद

1016 कुशीनगर एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- कुर्ला (मुम्बई]]

5046 गोरखपुर-अहमदाबाद एक्सप्रेस -- गोरखपुर -- अहमदाबाद

9166 साबरमती एक्सप्रेस -- मुजफ्फरपुर -- अहमदाबाद

सड़क मार्ग

कुशीनगर से जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 28 इसे अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ता है। राज्य के प्रमुख शहरों से यहां के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

चित्रावली

सन्दर्भ

कुशीनगर में कुकुथा नदी है जहाँ पे भगवान बुद्ध अन्तिम बार स्नान किये ये नदी वहां से पुरब की ओर 5 किमी एनएच 28 पे स्थित है

इन्हें भी देखें

मलुकही

बाहरी कड़ियाँ