"मुअनजो-दड़ो": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox World Heritage Site
'''<big>इस लेख काे मोहन जोदड़ो में विलय कर दिया गया है। </big>
| Name = मोहन जोदड़ो के पुरातात्विक अवशेष
'''
| Image = [[चित्र:Mohenjo-daro Priesterkönig.jpeg|thumb|center|180px|एक सिन्धी अज्रुक पहने हुए पुरोहित-नरेश की 2500 इ पू की प्रतिमा। राष्ट्रीय संग्रहालय, [[कराची]], पाकिस्तान]]
{{को विलय|मोहन जोदड़ो|date=नवम्बर 2014}}
| State Party = {{PAK}}
== '''मुअनजो-दङो सभ्यता''' ==
| Type = सांस्कृतिक
[[File:Panoramic view of the stupa mound and great bath in Mohenjodaro.JPG|thumb|मुअनजो-दङो सभ्यता]]
| Criteria = ii, iii
| ID = 138
| Region = [[एशिया-प्रशांत]]
| Year = 1980
| Session = 4था
| Link = http://whc.unesco.org/en/list/138
}}
'''मोहन जोदड़ो''' पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। [[सिन्धु घाटी सभ्यता]] के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/india/2014/09/140906_hadappa_civilization_script_vr|title=क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?}}</ref>


==मोहन जोदड़ो सभ्यता==
मुअनजो-दङो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " मुर्दों का टीला "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर हैं। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। ईसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बडी मात्रा में ईमारतें, धातुओं की मुर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्शों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 200 हेक्टर क्षेत्र में फैला था।


मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " '''मुर्दों का टीला''' "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे [[सक्खर ज़िले]] में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था!
== ''खुबियाँ ---'' ==
स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।
मुअनजो-दङो की सडको और गलियो में आप आज भी घूम सकते हैं। यह शहर जहाँ था आज भी वही है। यहाँ की दीवारे आज भी मजबूत है, आप यहाँ पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। इस शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाडी की रून-झुन सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्व की तसवीरो में देखा है। इसे नागर भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप कहा गया है। मुअनजो-दङो के सबसे खास हिस्से पर बौध्द स्तूप है।

==इतिहास==

'''मोहन जोदड़ो-''' ([[सिंधी]]:موئن جو دڙو और [[उर्दू]]: موئن جو دڑو) [[सिंध]] की वादी की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। यह [[लड़काना]] से बीस [[किलोमीटर]] दूर और सक्खर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िअ है। यह वादी [[सिंध]] के एक और अहम मरकज़ [[हड़पा]] से 400 मील दूर है यह शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म हो गया। ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं।

मोहन जोदड़ो- को 1922ए में बर्तानवी माहिर असारे क़दीमा [[सर जान मार्शल]] ने दरयाफ़त किया और इन की गाड़ी आज भी मोहन जोदड़ो- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है। लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर असारे क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त किया था। मुअन जो दड़ो- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि "आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जो मबज़ूल करवाई, जिस के लगभग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।यह शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़न इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे। माहिरीन के मुताबिक यह शहर सात मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम [[बृहत्स्नानागार]] है और अंग्रेजी में Great Bath. ये शहर [[अक़वाम मुतहदा]] के इदारा बराए तालीम, साईंस ओ- सक़ाफ़त [[युनीसको]] की जानिब से आलमी विरसा दिए क़रार गए मुक़ामात में शामिल हुए।"<ref>[http://jareeda.iucnp.org/janmar2006/aksi.htm/ जर यदा]</ref>

[[File:Panoramic view of the stupa mound and great bath in Mohenjodaro.JPG|thumb|मोहन जोदड़ो सभ्यता]]

==विशेषताएँ==

मोहन जोदड़ो की खूबी यह है कि इस प्राचीन शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम-फिर सकते हैं। यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का सामान भले ही अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहें हों, यह शहर जहाँ था आज भी वहीं है। यहाँ की दीवारें आज भी मजबूत हैं, आप यहाँ पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह एक खंडहर क्यों न हो, किसी घर की देहलीज़ पर पाँव रखकर आप सहसा-सहम सकतें हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकतें है। या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रून-झुन सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्व की तसवीरो में मिट्टी के रंग में देखा है। सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधुरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं; वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके वर्तमान पार झाँक रहें हैं। यह नागर भारत का सबसे पुराना थल चिह्न कहा गया है। मोहन जोदड़ो के सबसे खास हिस्से पर बौद्ध स्तूप हैं।

==प्रसिद्ध जल कुंड==


== ''प्रसिध्द जल कुंड'' --- ==
[[File:Mohenjodaro bath.jpg|thumb|जल-कुंड]]
[[File:Mohenjodaro bath.jpg|thumb|जल-कुंड]]


मुअनजो-दङो की दैव-मार्ग नामक गली में करीब चालीस फुट लम्बा और पच्चीस फुट चौडा प्रसिध्द जल कुंड है, ईसकी गहराई सात फुट है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढियाँ उतरती हैं। कुंड के तीन तरफ साधुओ के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में २ पाँत में ८ स्नांघर है। इस कुंड को काफी समझदारी से बनाया गया है, क्योंकि इसमें किसी का द्वार दुसरे के सामने नहीं खुलता। यहाँ की ईंटे इतनी पक्की है, जिसका कोइ जवाब ही नही। कुंड में बाहार का अशुध्द पानी ना आए इसके लिए कुंड के तल में और दीवारो पर ईंटो के बीच चूने और चिरोडी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। दीवारो में डामर का प्रयोग किया गया है। कुंड में पानी की व्य्वस्था के लिये दोहरे घेरे वाला कुआँ बनाया गया है। कुंड से पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटो से नालियाँ भी बनाई गयी है, और खास बात यह है कि इसे पक्की ईंटो से ढका गया है। इससे यह प्रमाणित होता है कि, यहाँ के लोग इतने प्राचीन होने के बावजूद भी हमसे कम नहीं थे। कुल मिलाकर सिंधु घाटी की पहचान वहाँ कि पक्की-घूमर ईंटे और ढकी हुई नालियाँ से है, और यहाँ के पानी निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त इससे पहले के इतिहास में नहीं मिलता।
मोहन जोदड़ो की दैव-मार्ग (डिविनिटि स्ट्रीट) नामक गली में करीब चालीस फ़ुट लम्बा और पच्चीस फ़ुट चौड़ा प्रसिद्ध जल कुंड है, जिसकी गहराई सात फ़ुट है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। कुंड के तीन तरफ़ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। इसके उत्तर में ८ स्नानघर हैं। इस कुंड को काफ़ी समझदारी से बनाया गया है, क्योंकि इसमें किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता। यहाँ की ईंटें इतनी पक्की हैं, जिसका कोई जवाब ही नहीं। कुंड में बाहर का अशुद्ध पानी ना आए इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोडी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। दीवारों में डामर का प्रयोग किया गया है। कुंड में पानी की व्यवस्था के लिये दोहरे घेरे वाला कुआँ बनाया गया है। कुंड से पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ भी बनाई गयी हैं, और खास बात यह है कि इसे पक्की ईंटों से ढका गया है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यहाँ के लोग इतने प्राचीन होने के बावजूद भी हमसे कम नहीं थे। कुल मिलाकर सिंधु घाटी की पहचान वहाँ की पक्की-घूमर ईंटों और ढकी हुई नालियों से है, और यहाँ के पानी की निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त था जो इससे पहले के लिखित इतिहास में नहीं मिलता।

==कृषि==

खुदाई में यह बात भी उजागर हुई है कि यहाँ भी खेतिहर और पशुपालक सभ्यता रही होगी। सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे। इतिहासकार [[इरफ़ान हबीब]] के अनुसार यहाँ के लोग [[रबी]] की फसल बोते थे। [[गेहूँ]], [[सरसों]], [[कपास]], [[जौ]] और [[चना|चने]] की खेती के यहाँ खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं। माना जाता है कि यहाँ और भी कई तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के [[बीज]] मिले है। दुनिया में [[सूत]] के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहाँ पर ही मिला था। खुदाई में यहाँ कपड़ों की रंगाई करने के लिये एक कारख़ाना भी पाया गया
जल्द ही आत्माओं का बसर होगा यहाँ ।

==नगर नियोजन==
[[File:Street - Mohenjodaro.JPG|thumb|सड़कें - मोहन जोदड़ो]]

मोहन जोदड़ो की इमारतें भले ही खंडहरों में बदल चुकी हों परंतु शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिये ये खंडहर काफ़ी हैं। यहाँ की सड़कें ग्रिड योजना की तरह हैं मतलब आड़ी-सीधी हैं।

पूरब की बस्तियाँ “रईसों की बस्ती” हैं, क्योंकि यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें, और बहुत सारे कुएँ हैं। मोहन जोदड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मोहन जोदड़ो का शहर काबिले-तारीफ़ है, कयोंकि हमसे इतने पिछड़े होने के बावज़ूद यहाँ की जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है। इतिहासकारों का कहना है कि मोहन जोदड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। मुअनजो-दड़ो में करीब ७०० कुएँ थे। यहाँ की बेजोड़ पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि मोहन जोदड़ो सभ्यता असल मायने में जल-संस्कृति थी।

[[File:Dancing girl. Mohenjodaro.jpg|thumb|प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प]]
[[पुरातत्त्वशास्त्री]] [[काशीनाथ दीक्षित]] के नामकरण के अनुसार यहाँ “डीके-जी” परिसर हैं, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर हैं। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं जगहों पर प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प खुदाई के समय प्राप्त हुई। यह मूर्ति अब [[दिल्ली]] के [[राष्ट्रीय संग्रहालय]] में है।

==संग्रहालय==
मोहन जोदड़ो का संग्रहालय छोटा ही है। मुख्य वस्तुएँ [[कराची]], [[लाहौर]], [[दिल्ली]] और [[लंदन]] में हैं। यहाँ काले पड़ गए [[गेहूँ]], [[ताँबा|ताँबे]] और [[कांसी|कांसी]] के [[बर्तन]], मोहरें, [[वाद्य]], [[चॉक]] पर बने विशाल मृद-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार मौजूद हैं। संग्रहालय में काम करने वाले अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी हुआ करते थे जो चोरी हो गए।

एक खास बात यहाँ यह है जिसे कोई भी महसूस कर सकता है। अजायबघर ( संग्रहालय ) में रखी चीज़ों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहें हैं। वहाँ अनुशासन ज़रूर था, पर ताकत के बल पर नहीं।


संग्रहालय में रखी वस्तुओं में कुछ सुइयाँ भी हैं। खुदाई में ताँबे और काँसे की बहुता सारी सुइयाँ मिली थीं। काशीनाथ दीक्षित को सोने की तीन सुइयाँ मिलीं जिनमें एक दो-इंच लंबी थी। समझा गया है कि यह सूक्ष्म कशीदेकारी में काम आती होंगी। खुदाई में सुइयों के अलावा हाथी-दाँत और ताँबे की सूइयाँ भी मिली हैं।
== ''कृषि ---'' ==


==कला==
खुदाई में यह बात भी उजागर हुई है कि यहाँ भी खेतिहर और पशुपालक सभ्यता रही होगी। सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे। इतिहासकार इरफान हबीब के अनुसार यहाँ के लोग रबी की फसल लेते थे। गेहूँ, सरसो, कपास, जौ और चने की खेती के यहाँ खुदाई में पुख्ता सबूत मिले है। माना जाता है कि यहाँ और भी कई तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के बीज मिले है। दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपडो में से एक का नमूना यही पर ही मिला था। खुदाई में यहाँ कपडो की रंगाई करने के लिये एक कारखाना भी पाया गया है।
सिंधु घाटी के लोगों में [[कला]] या [[सृजना]] का महत्त्व अधिक था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, [[धातु]] और [[पत्थर]] की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित [[मनुष्य]], [[वनस्पति]] और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर सूक्ष्मता से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से अधिक कला-सिद्ध प्रदर्शित करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के अनुसार सिंधु सभ्यता की विशेषता उसका सौंदर्य-बोध है, “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।"


== सन्दर्भ ==
== ''नगर नियोजन'' --- ==
{{टिप्पणीसूची}}
[[File:Street - Mohenjodaro.JPG|thumb|सडके - Mohenjodaro]]


==बाहरी कड़ियाँ==
मुअनजो-दङो की इमारते भले ही खंडहरों में बदल चुकी हो परंतु शहर की सङको और गलियों के विसतार को स्पष्ट करने के लिये ये खंडहर काफी हैं। यहाँ की सडके ग्रिड प्लान की तरह है मतलब आडी-सीधी है।
* http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/03/blog-post_6024.html
पूरब की बस्तियाँ “रईसो की बस्ती” है, क्योंकि यहाँ बडे-घर, चौडी-सडके, और बहुत सारे कुएँ हैं। मुअनजो-दङो की सडके इतनी बडी है, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाडी निकल सकती है। यहाँ पर सडक के दोनो ओर घर है, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सडक की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाजे अंदर गलियों में है। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मुअनजो-दङो का शहर काबिले-तारिफ है, कयोंकि हमसे इतने पिछडे होने के बावजूद यहाँ कि जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है। इतिहासकार का कहना है कि मुअनजो-दङो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्क्रति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। मुअनजो-दङो में करीब ७०० कुएँ थे। यहाँ कि बेजोड पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते है कि मुअनजो-दङो सभ्यता असल माएने में जल-संस्क्रति थी।
* http://ncertbooks.prashanthellina.com/12_Hindi.html
[[File:Dancing girl. Mohenjodaro.jpg|thumb|प्रसिध्द “नर्तकी” शिल्प]]
पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नाम पर यहाँ “डीके-जी” है, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर है। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते है। इन्ही जगहो पर प्रसिध्द “नर्तकी” शिल्प खुदाई के समय मिला। यह मुर्ति अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है।


[[श्रेणी:प्राचीन सभ्यताएँ]]
== ''संदर्भ ---'' ==
[[श्रेणी:सभ्यता]]
* <ref>https://en.wikipedia.org/wiki/Mohenjo-daro</ref>
[[श्रेणी:भारत का इतिहास]]
* <ref>http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/03/blog-post_6024.html</ref>
[[श्रेणी:सिंध का इतिहास]]
* <ref>http://ncertbooks.prashanthellina.com/12_Hindi.html</ref>
[[श्रेणी:प्राचीन भारत]]
[[श्रेणी:सिन्धु घाटी सभ्यता]]

12:53, 23 जुलाई 2019 का अवतरण

युनेस्को विश्व धरोहर स्थल
मोहन जोदड़ो के पुरातात्विक अवशेष
विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम
एक सिन्धी अज्रुक पहने हुए पुरोहित-नरेश की 2500 इ पू की प्रतिमा। राष्ट्रीय संग्रहालय, कराची, पाकिस्तान
देश  पाकिस्तान
प्रकार सांस्कृतिक
मानदंड ii, iii
सन्दर्भ 138
युनेस्को क्षेत्र एशिया-प्रशांत
शिलालेखित इतिहास
शिलालेख 1980 (4था सत्र)

मोहन जोदड़ो पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं।[1]

मोहन जोदड़ो सभ्यता

मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " मुर्दों का टीला "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था! स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।

इतिहास

मोहन जोदड़ो- (सिंधी:موئن جو دڙو और उर्दू: موئن جو دڑو) सिंध की वादी की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। यह लड़काना से बीस किलोमीटर दूर और सक्खर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िअ है। यह वादी सिंध के एक और अहम मरकज़ हड़पा से 400 मील दूर है यह शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म हो गया। ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं।

मोहन जोदड़ो- को 1922ए में बर्तानवी माहिर असारे क़दीमा सर जान मार्शल ने दरयाफ़त किया और इन की गाड़ी आज भी मोहन जोदड़ो- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है। लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर असारे क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त किया था। मुअन जो दड़ो- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि "आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जो मबज़ूल करवाई, जिस के लगभग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।यह शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़न इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे। माहिरीन के मुताबिक यह शहर सात मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम बृहत्स्नानागार है और अंग्रेजी में Great Bath. ये शहर अक़वाम मुतहदा के इदारा बराए तालीम, साईंस ओ- सक़ाफ़त युनीसको की जानिब से आलमी विरसा दिए क़रार गए मुक़ामात में शामिल हुए।"[2]

मोहन जोदड़ो सभ्यता

विशेषताएँ

मोहन जोदड़ो की खूबी यह है कि इस प्राचीन शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम-फिर सकते हैं। यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का सामान भले ही अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहें हों, यह शहर जहाँ था आज भी वहीं है। यहाँ की दीवारें आज भी मजबूत हैं, आप यहाँ पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह एक खंडहर क्यों न हो, किसी घर की देहलीज़ पर पाँव रखकर आप सहसा-सहम सकतें हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकतें है। या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रून-झुन सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्व की तसवीरो में मिट्टी के रंग में देखा है। सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधुरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं; वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके वर्तमान पार झाँक रहें हैं। यह नागर भारत का सबसे पुराना थल चिह्न कहा गया है। मोहन जोदड़ो के सबसे खास हिस्से पर बौद्ध स्तूप हैं।

प्रसिद्ध जल कुंड

जल-कुंड

मोहन जोदड़ो की दैव-मार्ग (डिविनिटि स्ट्रीट) नामक गली में करीब चालीस फ़ुट लम्बा और पच्चीस फ़ुट चौड़ा प्रसिद्ध जल कुंड है, जिसकी गहराई सात फ़ुट है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। कुंड के तीन तरफ़ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। इसके उत्तर में ८ स्नानघर हैं। इस कुंड को काफ़ी समझदारी से बनाया गया है, क्योंकि इसमें किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता। यहाँ की ईंटें इतनी पक्की हैं, जिसका कोई जवाब ही नहीं। कुंड में बाहर का अशुद्ध पानी ना आए इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोडी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। दीवारों में डामर का प्रयोग किया गया है। कुंड में पानी की व्यवस्था के लिये दोहरे घेरे वाला कुआँ बनाया गया है। कुंड से पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ भी बनाई गयी हैं, और खास बात यह है कि इसे पक्की ईंटों से ढका गया है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यहाँ के लोग इतने प्राचीन होने के बावजूद भी हमसे कम नहीं थे। कुल मिलाकर सिंधु घाटी की पहचान वहाँ की पक्की-घूमर ईंटों और ढकी हुई नालियों से है, और यहाँ के पानी की निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त था जो इससे पहले के लिखित इतिहास में नहीं मिलता।

कृषि

खुदाई में यह बात भी उजागर हुई है कि यहाँ भी खेतिहर और पशुपालक सभ्यता रही होगी। सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे। इतिहासकार इरफ़ान हबीब के अनुसार यहाँ के लोग रबी की फसल बोते थे। गेहूँ, सरसों, कपास, जौ और चने की खेती के यहाँ खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं। माना जाता है कि यहाँ और भी कई तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के बीज मिले है। दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहाँ पर ही मिला था। खुदाई में यहाँ कपड़ों की रंगाई करने के लिये एक कारख़ाना भी पाया गया जल्द ही आत्माओं का बसर होगा यहाँ ।

नगर नियोजन

सड़कें - मोहन जोदड़ो

मोहन जोदड़ो की इमारतें भले ही खंडहरों में बदल चुकी हों परंतु शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिये ये खंडहर काफ़ी हैं। यहाँ की सड़कें ग्रिड योजना की तरह हैं मतलब आड़ी-सीधी हैं।

पूरब की बस्तियाँ “रईसों की बस्ती” हैं, क्योंकि यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें, और बहुत सारे कुएँ हैं। मोहन जोदड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मोहन जोदड़ो का शहर काबिले-तारीफ़ है, कयोंकि हमसे इतने पिछड़े होने के बावज़ूद यहाँ की जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है। इतिहासकारों का कहना है कि मोहन जोदड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। मुअनजो-दड़ो में करीब ७०० कुएँ थे। यहाँ की बेजोड़ पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि मोहन जोदड़ो सभ्यता असल मायने में जल-संस्कृति थी।

प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प

पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नामकरण के अनुसार यहाँ “डीके-जी” परिसर हैं, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर हैं। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं जगहों पर प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प खुदाई के समय प्राप्त हुई। यह मूर्ति अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है।

संग्रहालय

मोहन जोदड़ो का संग्रहालय छोटा ही है। मुख्य वस्तुएँ कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन में हैं। यहाँ काले पड़ गए गेहूँ, ताँबे और कांसी के बर्तन, मोहरें, वाद्य, चॉक पर बने विशाल मृद-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार मौजूद हैं। संग्रहालय में काम करने वाले अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी हुआ करते थे जो चोरी हो गए।

एक खास बात यहाँ यह है जिसे कोई भी महसूस कर सकता है। अजायबघर ( संग्रहालय ) में रखी चीज़ों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहें हैं। वहाँ अनुशासन ज़रूर था, पर ताकत के बल पर नहीं।

संग्रहालय में रखी वस्तुओं में कुछ सुइयाँ भी हैं। खुदाई में ताँबे और काँसे की बहुता सारी सुइयाँ मिली थीं। काशीनाथ दीक्षित को सोने की तीन सुइयाँ मिलीं जिनमें एक दो-इंच लंबी थी। समझा गया है कि यह सूक्ष्म कशीदेकारी में काम आती होंगी। खुदाई में सुइयों के अलावा हाथी-दाँत और ताँबे की सूइयाँ भी मिली हैं।

कला

सिंधु घाटी के लोगों में कला या सृजना का महत्त्व अधिक था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर सूक्ष्मता से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से अधिक कला-सिद्ध प्रदर्शित करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के अनुसार सिंधु सभ्यता की विशेषता उसका सौंदर्य-बोध है, “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।"

सन्दर्भ

  1. "क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?".
  2. जर यदा

बाहरी कड़ियाँ