"राणा रायमल": अवतरणों में अंतर
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'''राणा रायमल''' (१४७३ - १५०९) [[मेवाड]] के [[राजपूत]] राजा थे। वे [[राणा कुम्भा]] के पुत्र थे। उन्होने [[उदय सिंह]] को परास्त करके राजगद्दी प्राप्त की। उदय सिंह अपने पिता का |
'''राणा रायमल''' (१४७३ - १५०९) [[मेवाड]] के [[राजपूत]] राजा थे। वे [[राणा कुम्भा]] के पुत्र थे। उन्होने [[उदय सिंह]] को परास्त करके राजगद्दी प्राप्त की। उदय सिंह अपने पिता का हत्यारा था। |
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उनके शासन के आरम्भिक दिनों मेम ही [[मालवा]] के शासक घियास शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इसके शीघ्र बाद गियास शाह के सेनापति जफर खान ने मेवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु वह भी मण्डलगढ़ और खैराबाद में पराजित हुआ। रायमल ने राव जोधा की बेटी शृंगारदेवी से विवाह करके राठौरों से शत्रुता समाप्त कर दी। रायमल ने [[रायसिंह टोडा]] और [[अजमेर]] पर पुनः अधिकार कर लिया। उन्होने मेवाड़ को भी शक्तिशाली बनाया तथा [[चित्तौड़]] के [[एकनाथ जी|एकनाथ जी मंदिर]] का पुनर्निर्माण कराया। |
उनके शासन के आरम्भिक दिनों मेम ही [[मालवा]] के शासक घियास शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इसके शीघ्र बाद गियास शाह के सेनापति जफर खान ने मेवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु वह भी मण्डलगढ़ और खैराबाद में पराजित हुआ। रायमल ने राव जोधा की बेटी शृंगारदेवी से विवाह करके राठौरों से शत्रुता समाप्त कर दी। रायमल ने [[रायसिंह टोडा]] और [[अजमेर]] पर पुनः अधिकार कर लिया। उन्होने मेवाड़ को भी शक्तिशाली बनाया तथा [[चित्तौड़]] के [[एकनाथ जी|एकनाथ जी मंदिर]] का पुनर्निर्माण कराया। |
10:53, 17 जुलाई 2019 का अवतरण
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक (1326–1948 ईस्वी) | ||
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राणा हम्मीर सिंह | (1326–1364) | |
राणा क्षेत्र सिंह | (1364–1382) | |
राणा लखा | (1382–1421) | |
राणा मोकल | (1421–1433) | |
राणा कुम्भ | (1433–1468) | |
उदयसिंह प्रथम | (1468–1473) | |
राणा रायमल | (1473–1508) | |
राणा सांगा | (1508–1527) | |
रतन सिंह द्वितीय | (1528–1531) | |
राणा विक्रमादित्य सिंह | (1531–1536) | |
बनवीर सिंह | (1536–1540) | |
उदयसिंह द्वितीय | (1540–1572) | |
महाराणा प्रताप | (1572–1597) | |
अमर सिंह प्रथम | (1597–1620) | |
करण सिंह द्वितीय | (1620–1628) | |
जगत सिंह प्रथम | (1628–1652) | |
राज सिंह प्रथम | (1652–1680) | |
जय सिंह | (1680–1698) | |
अमर सिंह द्वितीय | (1698–1710) | |
संग्राम सिंह द्वितीय | (1710–1734) | |
जगत सिंह द्वितीय | (1734–1751) | |
प्रताप सिंह द्वितीय | (1751–1754) | |
राज सिंह द्वितीय | (1754–1762) | |
अरी सिंह द्वितीय | (1762–1772) | |
हम्मीर सिंह द्वितीय | (1772–1778) | |
भीम सिंह | (1778–1828) | |
जवान सिंह | (1828–1838) | |
सरदार सिंह | (1838–1842) | |
स्वरूप सिंह | (1842–1861) | |
शम्भू सिंह | (1861–1874) | |
उदयपुर के सज्जन सिंह | (1874–1884) | |
फतेह सिंह | (1884–1930) | |
भूपाल सिंह | (1930–1948) | |
नाममात्र के शासक (महाराणा) | ||
भूपाल सिंह | (1948–1955) | |
भागवत सिंह | (1955–1984) | |
महेन्द्र सिंह | (1984–वर्तमान) | |
. राणा रायमल (१४७३ - १५०९) मेवाड के राजपूत राजा थे। वे राणा कुम्भा के पुत्र थे। उन्होने उदय सिंह को परास्त करके राजगद्दी प्राप्त की। उदय सिंह अपने पिता का हत्यारा था।
उनके शासन के आरम्भिक दिनों मेम ही मालवा के शासक घियास शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इसके शीघ्र बाद गियास शाह के सेनापति जफर खान ने मेवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु वह भी मण्डलगढ़ और खैराबाद में पराजित हुआ। रायमल ने राव जोधा की बेटी शृंगारदेवी से विवाह करके राठौरों से शत्रुता समाप्त कर दी। रायमल ने रायसिंह टोडा और अजमेर पर पुनः अधिकार कर लिया। उन्होने मेवाड़ को भी शक्तिशाली बनाया तथा चित्तौड़ के एकनाथ जी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
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