"नरसिंह": अवतरणों में अंतर

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नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
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(हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, आपकी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नृसिंहदेव, आपका चेहरा सर्वव्यापी है, आप मृत्यु के भी यम हो और मैं आपके  समक्ष आत्मसमर्पण करता हूँ।)
(हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।)
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19:41, 29 मई 2019 का अवतरण

प्रहलाद एवं उसकी माता नरसिंहावतार को हिरण्यकश्यप के वध के समय नमन करते हुए
प्रहलाद एवं उसकी माता नरसिंहावतार को हिरण्यकश्यप के वध के समय नमन करते हुए

नरसिंह नर + सिंह ("मानव-सिंह") को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है।[1] जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे[2] वे भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।[3]

पूजन विधि

प्रार्थना

नरसिंह के बारे में कई तरह की प्रार्थनाएँ की जाती हैं जिनमे कुछ प्रमुख ये हैं:

नरसिंह मंत्र ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
(हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।)

श्री नृसिंह स्तवः

गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय

प्रहलाद हृदयाहलादं भक्ता विधाविदारण। शरदिन्दु रुचि बन्दे पारिन्द् बदनं हरि ॥१॥

नमस्ते नृसिंहाय प्रहलादाहलाद-दायिने। हिरन्यकशिपोर्ब‍क्षः शिलाटंक नखालये ॥२॥

इतो नृसिंहो परतोनृसिंहो, यतो-यतो यामिततो नृसिंह। बर्हिनृसिंहो ह्र्दये नृसिंहो, नृसिंह मादि शरणं प्रपधे ॥३॥

तव करकमलवरे नखम् अद् भुत श्रृग्ङं। दलित हिरण्यकशिपुतनुभृग्ङंम्। केशव धृत नरहरिरुप, जय जगदीश हरे ॥४॥

वागीशायस्य बदने लर्क्ष्मीयस्य च बक्षसि। यस्यास्ते ह्र्देय संविततं नृसिंहमहं भजे ॥५॥

श्री नृसिंह जय नृसिंह जय जय नृसिंह। प्रहलादेश जय पदमामुख पदम भृग्ह्र्म ॥६॥

नरसिंह देव के नाम

  1. नरसिंह
  2. नरहरि
  3. उग्र विर माहा विष्णु
  4. हिरण्यकश्यप अरी

तीर्थस्थल

नरसिंह विग्रह के दस (१०) प्रकार

  1. उग्र नरसिंह
  2. क्रोध नरसिंह
  3. मलोल नरसिंह
  4. ज्वल नरसिंह
  5. वराह नरसिंह
  6. भार्गव नरसिंह
  7. करन्ज नरसिंह
  8. योग नरसिंह
  9. लक्ष्मी नरसिंह
  10. छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह

नरसिंह देव मन्दिर

मथुरा

अति प्राचीन मथुरा पुरी मै भगवान नरसिंह का मंदिर मानिक चौक मै इस्थित है यहाँ भगवान नरसिंह और वाराह की घाटी है यहाँ नरसिंह चौदस को भगवान नरसिंह का उत्सव मनाया जाता है तथा लीला भी की जाती है।

श्रीधाम वृंदावन

श्रीधामवृंदावन के अंतर्गत श्रीयमुना जी के केशीघाट निकट स्थित नरसिंह मंदिर में अति प्राचीन नरसिंह देव जी विराजमान है । यह मंदिर उत्तर भारतीयों के मुंडन संस्कार व विवाह आदि संस्कारों के पश्चात कुल देवता के रूप में दर्शन हेतु मान्य है।

मायापुर

मायापुर इस्कॉन में नरसिंह देव का मन्दिर हे। यह मन्दिर नदिया जिला, पश्चिम बंगाल में स्थित है।

बीकानेर

बीकानेर लखोि‍टयों के चौक में वर्षो्ं पुराना नर ि‍संह समेत पूरे शहर में कुल चार नर ि‍संह मंि‍दर हैा

ग्राम असवाल कोटुली, जिला अल्मोड़ा, तहसील- भिक्यासैन में भी एक नृसिंह का प्राचीन मंदिर है।

हाटपिप्लिया

नृसिंह मंदिर हाटपिप्लिया में भगवान नरसिंह कि ७.५ कि लो वजनी पाषाण प्रतिमा है जो कि हर वर्ष डोल ग्यारस पर्व पर भमोरी नदी पर 3 बार तेराई जाती है

बनमनखी बिहार

बिहार राज्य के पूर्णिया जिला के बनमनखी में सिकलीगढ़ धरहरा गांव हैं। बताया जाता है कि इसी गांव में भगवान नरसिंह अवतरित हुए थे और यही वो गांव है जहां भक्त प्रह्लाद की बुआ होलिका अपने भतीजे को गोद में लेकर आग में बैठी थी। मान्यता के मुताबिक यहीं से होलिकादहन की परंपरा की शुरुआत हुई थी।

ऐसी मान्यता है कि प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप का किला सिकलीगढ़ में था। गांव के बड़े बुजुर्गों की माने तो अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था। मान्यता है कि उस खंभे का एक हिस्सा जिसे माणिक्य स्तंभ के नाम से जाना जाता है वो आज भी मौजूद है। इसी स्थान पर प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप का वध हुआ था। खास बात ये है कि माणिक्य स्तंभ 12 फीट मोटा है और करीब 65 डिग्री पर झुका हुआ है।

गीता प्रेस, गोरखपुर के कल्याण के 31 वें साल के तीर्थांक विशेषांक में भी सिकलीगढ धरहरा का जिक्र किया गया है।

इन्हें भी देखें

टिप्पणियां

  1. Bhag-P 1.3.18 "चौदहवें अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप का अवतार लेकर नास्तिक हिरण्यकश्यपु के शरीर को अपने नख से दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया जैसे बढई किसी लकडी के दो टुकडों को चीरता है"
  2. Bhag-P 7.8.19-22
  3. स्टीवेन जे रोजेन, नरसिंह अवतार, द हाफ मैन/हाफ लायन इनकारनेशन, पृ5

बाहरी कड़ियाँ