"कौमोदकी": अवतरणों में अंतर

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== नाम ==
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यह तथ्य अज्ञात है कि कौमोदकी को उसका नाम कहाँ से मिला। कुछ कथाओं के अनुसार उसे '''कुमुद''' (नीले रंग के कमल) से यह नाम प्राप्त हुआ है। <ref>{{Cite book|title=The Book of Vishnu|last=Krishna |first=Nanditha|publisher=Penguin Books India|year=2009|isbn=978-14-306762-7.|pages=17–9,25–6}}</ref>
यह तथ्य अज्ञात है कि कौमोदकी को उसका नाम कहाँ से मिला। कुछ कथाओं के अनुसार उसे '''कुमुद''' (नीले रंग के कमल) से यह नाम प्राप्त हुआ है। <ref>{{Cite book|title=The Book of Vishnu|last=Nanditha |first=Krishna|publisher=Penguin Books, India|year=2009|isbn=978-14-306762-7.|pages=17–9, 25–6}}</ref>
वहीं अन्य वर्णनों के अनुसार उसे यह नाम विष्णु के लिए प्रयुक्त एक विशेषण '''कौमोदक''' से प्राप्त हुआ है। इसका एक पर्यायवाची '''कौमुदी''' (धरती पर सुख) भी हो सकता है।
वहीं अन्य वर्णनों के अनुसार उसे यह नाम विष्णु के लिए प्रयुक्त एक विशेषण '''कौमोदक''' से प्राप्त हुआ है। इसका एक पर्यायवाची '''कौमुदी''' (धरती पर सुख) भी हो सकता है।



11:00, 12 अप्रैल 2019 का अवतरण

विष्णु, कौमोदकी, सुदर्शन एवं पाञ्चजन्य के साथ, आशीर्वाद मुद्रा में

कौमोदकी श्री विष्णु की गदा का नाम है। आलवार सन्तों की परम्परा में भूतत्तालवार को कौमोदकी का अवतार बताया गया है। चित्रों में विष्णु को दाहिने हाथ में गदा धारण करते हुए दिखाया जाता है। वहीं कुछ शिल्पों में कौमोदकी गदानारी या गदादेवी के रूप में विष्णु के बराबर खड़ा दिखाया जाता है। श्री कृष्ण को भी विराट रूप में कौमोदकी धारण करते हुए दिखाया गया है। कभी-कभी इसे मत्स्य, कुर्म, वराह एवं नरसिंह के हाथ में भी दिखाया जाता है। महाभारत के अनुसार वरुण ने श्री कृष्ण को कौमोदकी प्रदान की थी।

नाम

यह तथ्य अज्ञात है कि कौमोदकी को उसका नाम कहाँ से मिला। कुछ कथाओं के अनुसार उसे कुमुद (नीले रंग के कमल) से यह नाम प्राप्त हुआ है। [1] वहीं अन्य वर्णनों के अनुसार उसे यह नाम विष्णु के लिए प्रयुक्त एक विशेषण कौमोदक से प्राप्त हुआ है। इसका एक पर्यायवाची कौमुदी (धरती पर सुख) भी हो सकता है।

चित्रण

विष्णु के हाथ में कौमोदकी

गदा सबसे पहले साथी के रूप में विष्णु के साथ मल्हाड़, मध्य प्रदेश के एक शिल्प में चित्रित है जो दो सौ ई.पू. का है। सबसे पुरानी प्रतिमाओं में से एक जो कुषाण वंश (तीन सौ से पिचत्तर ई.पू.) के समय की है और मथुरा के पास से प्राप्त हुई है उसमें गदा इतने कलात्मक रूप से चित्रित नहीं की गई है जैसे कि वह बाद के शिल्पों में है। वहाँ वह बिलकुल साधारण दिखाई है- ऊपरी हिस्सा गोल और भारी मूठ जिसे उन्होंने अपने पीछे के ऊपरी हाथ में पकड़कर कंधे पर उठाया हुआ है। एक और कुषाण शिल्प में गदा की मूठ को लगभग विष्णु की लंबाई जितना ही दिखाया गया है और उसे उन्होंने अपने ऊपरी दाऐं हाथ में पकड़ा हुआ है। उसे एक लंबे मूसल के जैसा दिखाया है। झूसी की एक वैसी ही प्रतिमा में और पश्चिम भारत की शुरूआती प्रतिमाओं में उन्हें ऊपरी दाऐं हाथ में उसे पकड़े हुए या उसके बल खड़े होते दिखाया है। उसके बाद गदा को दूसरे हाथों में दिखाया जाने लगा। विष्णु के चौबीस अवतारों में गदा को अलग-अलग हाथों में पकड़े दिखाया गया है। जहाँ गदा को पकड़ने वाले हाथ बदले वहीं गदा की बनावट भी बदल गई। गत मध्यकालीन कला में मुख्यतः पाल कला में (आठवीं से बारहवीं शताब्दी ई.पू.) गदा के मूठ का आकार बाँसुरी जितना कर दिया गया और ऊपरी हिस्से को अत्यंत सजा हुआ रूप दिया गया।

चित्र:Bhagavan Vishnu.jpg
कौमोदकी का बाँसुरी जितना पतला मूठ (राजा रवि वर्मा)

उत्तर प्रदेश में मूठ बहुत पतली और ऊपर तक खिंची हुई है और ऊपरी हिस्सा (गदा) को बाँसुरियों द्वारा चित्रित किया गया है। चालुक्य गदा मोटी और पीपे के आकार की है और पल्लव गदा को पूर्णतः मोटी चित्रित की गई है। चोला शिल्प में गदा पतली परंतु और उभरी हुई और भागित है।

कौमोदकी, गदादेवी/गदानारी के रूप में

विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार जहाँ शंख और चक्र विष्णु के ऊपरी हाथों में हैं, निचले हाथ दो बौनों के ऊपर विश्राम कर रहे हैं: मानवीकृत चक्र और गदा। गदा का मानवीकरण एक पतली कमर वाली स्त्री के रूप में किया गया है जिसने हाथ में चँवर पकड़ा हुआ है और वह आभूषणों से सज्जित है, विष्णु का दाँया हाथ उसके शीश पर रखा है। चक्र विष्णु की बाँईं ओर एक पुरुष के रूप में खड़ा है। मानवीकृत शस्त्र जिन्हें आयुधपुरुष कहा जाता था गुप्त काल (तीन सौ बीस से पाँच सौ पचास ई.पू.) में जन्मे। एक गुप्ता विष्णु उदयगिरि की गुफाओं में विष्णु को गदादेवी और मानवीकृत चक्र के साथ चित्रित करता है। गदानारी की विष्णु (मुख्यतः विष्णु के चतुर्मुखी रूप: वैकुंठ चतुर्मूर्ति) के साथ प्रतिमाऐं अधिकार कश्मीर से प्राप्त होती हैं। वो अपने हाथ में चँवर पकड़े हुए होती है और अपने स्वामी को प्रेमपूर्वक देखती है जिनका हाथ उसके शीश पर रखा होता है। वो अपने शीशे पर मुकुट धारण करती है और एक सुंदर केश-विन्‍यास शैली के अलावा वह एक टोली पहने हुए हो सकती है या वह एक नग्न कबंध के साथ चित्रित की जा सकती है। उसे एक गंदा से प्रकट होते हुए दिखाया जाता है। गदादेवी को एक बौने के रूप में या एक साधारण स्त्री (जैसा कि गुप्ता देवगढ़ मन्दिर के शेषाश्रयी विष्णु मण्डप में किया गया है) के रूप में चित्रित किया जा सकता है। कौमोदकी का एक गदा पकड़ने का रूपांकन मुख्यतः उत्तर प्रदेश और बंगाली कला में मिलता है। अंशतः परिवर्तित चित्र में कौमोदकी विष्णु के बराबर अञ्जलि मुद्रा में हाथ जोड़े खड़ी है और गदा उसके मुकुट का एक भाग है या उसके शीश पर शस्त्र का एक चिह्न है (जैसा कि चोला काल की अधिकतर ताँबे की मूर्तियों में है।)

बाहरी कड़ियाँ

  • Dr. Kalpana Desai (31 December 2013). Iconography of Visnu. Abhinav Publications. GGKEY:GSELHU3JH6D.
  • Rao, T.A. Gopinatha (1914). Elements of Hindu iconography. 1: Part I. Madras: Law Printing House.
  • (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

सन्दर्भ

  1. Nanditha, Krishna (2009). The Book of Vishnu. Penguin Books, India. पपृ॰ 17–9, 25–6. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-14-306762-7. |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).