"अशोक के अभिलेख": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छो Dr ramchandra Chaudhary (Talk) के संपादनों को हटाकर संजीव कुमार के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 183: पंक्ति 183:


=== कालसी===
=== कालसी===
यह वर्तमान [[उत्तराखंड ]] ([[देहरादून]]) में है।कालसी चकराता एवं देहरादून के बीच स्थित हैं।सम्राट अशोक ने यहाँ 14 पत्थरों का शिलालेख बनवाया था,जो प्राकृत भाषा मे,तथा ब्राह्मी लिपि में है।
यह वर्तमान [[उत्तराखंड ]] ([[देहरादून]]) में है।


=== जौगढ़ ===
=== जौगढ़ ===

21:55, 21 नवम्बर 2018 का अवतरण

अशोक के शिलालेख पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और अफ़्ग़ानिस्तान में मिलें हैं
ब्रिटिश संग्राहलय में छठे शिलालेख का एक हिस्सा
कांधार में मिला यूनानी और अरामाई का द्विभाषीय शिलालेख
सारनाथ के स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में शिलालेख

मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।[1]

इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मगधी भाषा में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं।

बौद्ध मत को अपनाने का वर्णन

सम्राट बताते हैं कि कलिंग को २६४ ईसापूर्व में पराजित करने के बाद उन्होंने पछतावे में बौद्ध धर्म अपनाया:

देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद कलिंगों को पराजित किया। डेढ़ लाख लोगों को निर्वासित (बेघर) किया, एक लाख मारे गए और अन्य कारणों से और बहुत से मारे गए। कलिंगों को अधीन करके देवों-के-प्रिय को धर्म की ओर खिचाव हुआ, धर्म और धर्म-शिक्षा से प्रेम हुआ। अब देवों-के-प्रिय को कलिंगों को परास्त करने का गहरा पछतावा है। (शिलालेख संख्या १३)

बौद्ध बनाने के बाद अशोक ने भारत-भर में बौद्ध धार्मिक स्थलों पर यात्रा करी और उन स्थानों पर अक्सर शिलालेख वाले स्तम्भ लगवाए:

अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद, देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी इस स्थान पर आए और पूजा की क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध पैदा हुए थे। उन्होने एक पत्थर की मूर्ति और एक स्तम्भ स्थापित करवाया और, क्योंकि यह भगवन का जन्मस्थान है, लुम्बिनी के गाँव को लगान से छूट दी गई और फ़सल का केवल आठवाँ हिस्सा देना पड़ा। (छोटा स्तम्भ, शिलालेख संख्या १)

प्रसिद्ध भारतविद ए एल बाशम का मत है कि अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म अपना लिया किन्तु जिस धर्म का उन्होने प्रचार-प्रसार किया उसे बौद्ध धर्म नहीं कहा जा सकता[2] हाँ, उनके संरक्षण के फलस्वरूप बौद्ध धर्म का उनके साम्राज्य में तथा अन्य राज्यों में खूब प्रसार हुआ।

विदेश में धर्मप्रचार का वर्णन

बौद्ध धर्म फैलाने के लिए अशोक ने भारत के सभी लोगों में और यूनानी राजाओं को भूमध्य सागर तक दूत भेजे। उनके स्तंभों पर उनके यूनान से उत्तर अफ़्रीका तक के बहुत से समकालीन यूनानी शासकों के सही नाम लिखें हैं, जिस से ज्ञात होता है कि वे भारत से हज़ारों मील दूर की राजनैतिक परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए थे:

अब धार्मिक जीत को ही देवों-के-प्रिय सब से उत्तम जीत मानते हैं। और यही यहाँ सीमाओं पर जीती गई है, छह सौ योजन दूर भी, जहाँ यूनानी नरेश अम्तियोको (अन्तियोकस) का राज है और उस से आगे जहाँ चार तुरामाये (टॉलमी), अम्तिकिनी (अन्तिगोनस), माका (मागस) और अलिकसुदारो (ऐलॅक्सैन्डर) नामक राजा शासन करते हैं और उसी तरह दक्षिण में चोल, पांड्य और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक। (शिलालेख संख्या १३)

हर योजन लगभग सात मील होता है, इसलिए ६०० योजन का अर्थ लगभग ४,००० मील है, जो भारत के केंद्र से लगभग यूनान के केंद्र की दूरी है। जिन शासकों का यहाँ वर्णन हैं, वह इस प्रकार हैं:

  • अम्तियोको सीरिया के अन्तियोकस द्वितीय थेओस (Antiochus II Theos, Αντίοχος Β' Θεός, शासनकाल: २६१-२४६ ईसापूर्व)
  • तुरामाये मिस्र के टॉलमी द्वितीय फ़िलादॅल्फ़ोस (Ptolemy II Philadelphos, Πτολεμαῖος Φιλάδελφος, शासनकाल: २८५-२४७ ईसापूर्व)
  • अम्तिकिनी मासेदोन (यूनान) के अन्तिगोनस द्वितीय गोनातस (Antigonus II Gonatas, Αντίγονος B΄ Γονατᾶς, शासनकाल: २७८-२३९ ईसापूर्व)
  • माका सएरीन (लीबिया) के मागस (Magas of Cyrene, शासनकाल: २७६-२५० ईसापूर्व)
  • अलिकसुदारो इपायरस (यूनान और अल्बानिया के बीच का एक क्षेत्र) के ऐलॅक्सैन्डर द्वितीय (Alexander II of Epirus, शासनकाल: २७२-२५८ ईसापूर्व)

यूनानी स्रोतों से साफ़ ज्ञात नहीं होता की यह दूत इन राजाओं से वास्तव में मिले भी की नहीं और यूनानी क्षेत्र में इनका क्या प्रभाव हुआ। फिर भी, कुछ विद्वानों ने यूनानी क्षेत्रों में बौद्ध समुदाय की मौजूदगी (विशेषकर आधुनिक मिस्र में स्थित अल-इस्कंदरिया में) को अशोक के धर्म-दूतों की कुछ मात्रा में सफलता का संकेत माना है। सिकंदरिया के क्लॅमॅन्त (Clement of Alexandria, अनुमानित १५० ई॰ - २१५ ई॰) ने अपनी लेखनी में इनका ज़िक्र किया।[3] अल-इस्कंदरिया में टॉलमी काल की बौद्ध समाधियों पर धर्मचक्र-धारी शिलाएँ मिली हैं।[4]

स्वदेश में धर्मप्रचार का वर्णन

अपनी शिलालेखों में सम्राट ने कई समुदायों का ज़िक्र भी किया जो उनके राज्य की सीमाओं के अन्दर रहते थे:

यहाँ सम्राट के राज्य में यूनानी, कम्बोज, नाभक, नाभ्पंकित, भोज, पितिनिक, आंध्र और पुलिंद, सभी लोग देवों-के-प्रिय के धर्मनिर्देश का पालन कर रहे हैं। (शिलालेख संख्या १३)

यूनानी समुदाय

बहुत से यूनानी मूल के और यूनानी संस्कृति से प्रभावित लोग मौर्य राज्य के उत्तरपश्चिमी इलाक़े में बसे हुए थे, जिसमें आधुनिक पाकिस्तान का ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत और दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान आते हैं। इनकी कुछ रीति-रिवाजों पर भी शिलालेख में टिप्पणी मिलती है:

कोई देश ऐसा नहीं है, यूनानी को छोड़कर, जिनमें ब्राह्मण और श्रमण (बौद्ध भिक्षु) दोनों ही न मिलते हों, न ही ऐसा कोई देश है जहाँ लोग एक या दूसरे धर्म के अनुयायी न हों। (शिलालेख संख्या १३)

अशोक के दो आदेश अफ़्ग़ानिस्तान में मिले हैं, जिनमें यूनानी भाषा में लिखा हुआ है और जिनमें से एक यूनानी और अरामाई में द्विभाषीय है। कंदहार में मिला यह द्विभाषीय शिलालेख "धर्म" शब्द का अनुवाद यूनानी के "युसेबेइया" (εὐσέβεια, Eusebeia) शब्द में करता है, जिसका अर्थ "निष्ठा" भी निकलता है:

दस साल का राज पूर्ण होने पर, सम्राट पियोदासॅस (Πιοδάσσης, Piodasses, प्रियदर्शी का यूनानी रूपांतरण) ने पुरुषों को युसेबेइया (εὐσέβεια, धर्म/निष्ठा) का ज्ञान दिया और इस क्षण से पुरुषों को अधिक धार्मिक बनाया और पूरे संसार में समृद्धि है। सम्राट जीवित प्राणियों को मारने से स्वयं को रोकता है और अन्य पुरुष को सम्राट के शिकारी और मछुआरे हैं वह भी शिकार नहीं करते। अगर कुछ पुरुष असंयम हैं तो वह यथाशक्ति अपने असंयम को रोकते हैं और अपने माता-पिता और बड़ों की प्रति आज्ञाकारी हैं, जो भविष्य में भी होगा और जो भूतकाल से विपरीत है और जैसा हर समय करने से वे बेहतर और अधिक सुखी जीवन जियेंगे।[5]

अन्य समुदाय

  • कम्बोज या कम्बोह एक मध्य एशिया से आया समुदाय था जो पहले तो दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान और फिर सिंध, पंजाब और गुजरात के क्षेत्रों में आ बसे। आधुनिक युग में इस समुदाय के लोग पंजाबियों में मिला करते हैं और इस्लाम, हिन्दू धर्म और सिख धर्म के अनुयायियों में बंटे हुए हैं।
  • नाभक, नाभ्पंकित, भोज, पितिनिक, आंध्र और पुलिंद अशोक के राज्य में बसी हुई अन्य जातियाँ थीं।

अशोक के शिलालेख

अशोक के १४ शिलालेख विभिन्‍न लेखों का समूह है जो आठ भिन्‍न-भिन्‍न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-

(१) धौली- यह उड़ीसा के पुरी जिला में है।

(२) शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है।

(३) मान सेहरा- यह पाकिस्तन के हजारा जिले में स्थित है।

(४) कालसी- यह वर्तमान उत्तराखण्ड (देहरादून) में है।

(५) जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।

(६) सोपारा- यह महाराष्ट्र के पालघर जिले में है।

(७) एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है।

(८) गिरनार- यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है।

अशोक के शिलालेख और उसके विषय
  • शिलालेख -1. इसमें पशु बलि की निंदा की गई।
  • शिलालेख-2. समाज कल्याण, मनुष्य व पशु चिकित्सा।
  • शिलालेख-3. अशोक के तीसरे शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसके राज्य में प्रादेशिक, राजूक , युक्तों को हर 5 वें वर्ष धर्म प्रचार हेतु भेजा जाता था जिसे अनुसन्धान कहा जाता था। इसमें बचत, धार्मिक नियम और अल्प व्यय को धम्म का अंग बताया है।
  • शिलालेख-4. भेरिघोष की जगह धम्म घोष की धोषणा।
  • शिलालेख-5. धर्म महामत्रों की नियुक्ति (13 वें वर्ष )
  • शिलालेख-6. आत्म नियंत्रण की शिक्षा। .
  • शिलालेख-7.व 8. अशोक द्वारा तीर्थ यात्राओ का वर्णन।
  • शिलालेख-9. सच्ची भेंट व सच्चे शिष्टाचार का वर्णन।
  • शिलालेख-10. राजा व उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें।
  • शिलालेख-11. धम्म की व्याख्या। धर्म के वरदान को सर्वोत्तम बताया।
  • शिलालेख-12. स्त्री महामत्रों की नियुक्ति व सभी प्रकार के विचारो के सम्मान की बात कही। धार्मिक सहिष्णुता की निति।
  • शिलालेख-13. कलिंग युद्ध, अशोक का हृदय परिवर्तन, पड़ोसी राजाओं का वर्णन।
  • शिलालेख-14. धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी।

अशोक के लघु शिलालेख

अशोक के लघु शिलालेख चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है जिसे लघु शिलालेख कहा जाता है। ये निम्नांकित स्थानों से प्राप्त हुए हैं-

(१) रूपनाथ - ईसा पूर्व २३२ का यह मध्य प्रदेश के कटनी जिले में है।

(२) गुजरी- यह मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है।

(३) भाबरू- यह राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर में है।

(४) मास्की- यह रायचूर जिले में स्थित है।

(५) सहसराम- यह बिहार के शाहाबाद जिले में है।

धम्म को लोकप्रिय बनाने के लिए अशोक ने मानव व पशु जाति के कल्याण हेतु पशु-पक्षियों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। राज्य तथा विदेशी राज्यों में भी मानव तथा पशु के लिए अलग चिकित्सा की व्य्वस्था की। अशोक के महान पुण्य का कार्य एवं स्वर्ग प्राप्ति का उपदेश बौद्ध ग्रन्थ संयुक्‍त निकाय में दिया गया है।

अशोक ने दूर-दूर तक बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु दूतों, प्रचारकों को विदेशों में भेजा अपने दूसरे तथा १३वें शिलालेख में उसने उन देशों का नाम लिखवाया जहाँ दूत भेजे गये थे।

दक्षिण सीमा पर स्थित राज्य चोल, पाण्ड्‍य, सतिययुक्‍त केरल पुत्र एवं ताम्रपार्णि बताये गये हैं।

अशोक के अभिलेख

अशोक के अभिलेखों में शाहनाज गढ़ी एवं मान सेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं। तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं। इसके अतिरिक्‍त अशोक के समस्त शिलालेख लघुशिला स्तम्भ लेख एवं लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों से प्राप्त होता है।

अभी तक अशोक के ४० अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। सर्वप्रथम १८३७ ई. पू. में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने अशोक के अभिलेख को पढ़ने में सफलता हासिल की थी।

रायपुरवा- यह भी बिहार राज्य के चम्पारण जिले में स्थित है।

प्रयाग'- यह पहले कौशाम्बी में स्थित था जो बाद में मुगल सम्राट अकबर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखवाया गया था।

अशोक के स्तम्भ-लेख

अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन्‍न स्थानों में पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं। इन स्थानों के नाम हैं-

(१) दिल्ली तोपरा- यह स्तम्भ लेख प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में पाया गया था। यह मध्य युगीन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं।

(२) दिल्ली मेरठ- यह स्तम्भ लेख भी पहले मेरठ में था जो बाद में फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया।

(३) लौरिया अरराज तथा लौरिया नन्दगढ़- यह स्तम्भ लेख बिहार राज्य के चम्पारण जिले में है।

सम्राट अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है, जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-

१. सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है।

२. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है।

३. रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है।

४. कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है।

५. निग्लीवा- नेपाल के तराई में है।

६. ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है।

७. सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील उ. पू. में स्थित है।

८. जतिंग रामेश्‍वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उ. पू. में स्थित है।

९. एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।

१०. गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है।

११. पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है।

१२. राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।

१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।

१४. सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है।

१५. नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है।

अशोक के गुहा-लेख

दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बराबर नामक तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण प्राप्त हुए हैं। इन सभी की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है। केवल दो अभिलेखों शाहवाजगढ़ी तथा मान सेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। यह लिपि दायीं से बायीं और लिखी जाती है।

तक्षशिला से आरमाइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख कन्धार के पास शारे-कुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमाइक द्विभाषीय अभिलेख प्राप्त हुआ है।

प्रमुख अभिलेखों का परिचय

अशोक के शिलालेख १४ विभिन्‍न लेखों का समूह हैं जो आठ भिन्‍न-भिन्‍न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं। मगध साम्राज्य के प्रतापी मौर्यवंशी शासक अशोक ने अपनी लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्रजा में प्रसारित करने के लिए 14 स्थलों पर शिलालेख, लघु शिलालेख एवं अन्य अभिलेख उत्कीर्ण करवाया था।

धौली

उड़ीसा के पुरी जिला में स्थित इस बृहद शिलालेख में अशोक ने पशु वध और समारोहों पर होने वाले अनावश्यक खर्च की निंदा की है।

शाहबाज गढ़ी

पेशावर (पाकिस्तान) में स्थित इस दूसरे शिलालेख में प्राणिमात्र (पशुओं सहित) के लिए चिकित्सालय खोलने का उल्लेख है। पेयजल और वृक्षारोपण को विशेष प्राथमिकता दी गयी है।

सम्राट् अशोक के १४ प्रज्ञापनों की पांचवीं प्रतिलिपि पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के पेशावर जिले की युसुफजई तहसील में शाहबाजगढ़ी गाँव के पास एक चट्टान पर खुदी मिली है। यह पहाड़ी पेशावर से ४० मील उत्तरपूर्व है। मानसेहरा की तरह शाहबाजगढ़ी की प्रतिलिपियाँ खरोष्ठी लिपि में खुदी हैं, जो दाहिनी से बाईं ओर लिखी जाती है, शेष पाँचो स्थानों की प्रतिलिपियाँ ब्राह्मी लिपि में हैं।

इन चौदह प्रज्ञापनों की मुख्य बातें ये हैं -

  • (१) जीवहिंसा का निषेध एवं राजा के रसोईघर में खाय व्यंजनों में जीवहिंसा पर संयम;
  • (2) सम्राट् अशोक के जीते हुए सब स्थानों में एवं विशेषकर सीमांत प्रदेशों में मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध;
  • (3) अधिकारियों का धर्मानुशासन के लिए भी दौरा एवं आचार की सामान्य बातें,
  • (4) धर्माचरण में शील का पालन,
  • (5) लोगों को धर्माचरण की बातें बताने के लिए धर्ममहामात्यों का नियत किया जाना,
  • (6) राजा के कर्तव्यपालन की बातें,
  • (7) संयम, भावशुद्धि एवं विभिन्न धर्मों का आदर,
  • (8) विहार यात्रा की जगह धर्मयात्रा पर सम्राट् का संकल्प,
  • (9) निरर्थक मंगल कार्यों की जगह समाज में धर्ममंगल की बातों को प्रश्रय देना;
  • (10) कर्तव्य कार्यों में धर्ममंगल की बातों का समावेश; धर्म के लिए विशेष प्रयत्न की अपेक्षा।

शेष प्रज्ञापनों में लोगों में समान एवं सम्मानपूर्वक व्यवहार, अपने अपने धर्मों की अच्छी बातों का परिपालन, सत्व की बढ़ती, कलिंगयुद्ध के उपरांत युद्ध के लिए सम्राट् के मन में पश्चात्ताप एवं जीते हुए प्रदेशों में धर्मानुशासन के कार्य तथा विभिन्न स्थानों में धर्मादेशों के लिखाने की बातें हैं।

मान सेहरा

हजारा जिले में स्थित इस तीसरे शिलालेख में धन को सोच समझकर खर्च करने की नसीहत है। साथ ही बडों के संग आदरपूर्वक, नम्रतापूर्ण व्यवहार करने का सन्देश है।

कालसी

यह वर्तमान उत्तराखंड (देहरादून) में है।

जौगढ़

यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।इसमे कलिंग की प्रजा के साथ पुत्रवत व्यवहार करने का आदेश दिया गया है।

सोपारा

यह महाराष्ट्र के पालघर जिले के नाला सोपारा में स्थित है।

एरागुडि

आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित सातवें शिलालेख में अशोक ने निर्देश दिया है कि सभी सम्प्रदायों के लोग सभी स्थानों पर रह सकते हैं। इसमें सह-अस्तित्व की मीठी सुगंध मिलती है।

गिरनार

यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है।

अशोक के अभिलेखों के चित्र

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Reference: "India: The Ancient Past" p.113, Burjor Avari, Routledge, ISBN 0-415-35615-6
  2. Basham, A. L. (1954). The Wonder that was India: A Survey of the History and Culture of the Indian Sub-continent Before the Coming of the Muslims. London: Sidgwick and Jackson. p. 56. OCLC 181731857
  3. Albert Joseph Edmunds, Masaharu Anesaki. "Buddhist and Christian gospels: now first compared from the originals: being "Gospel parallels from Pāli texts", Volume 2". Innes, 1908. ... a passage preserved to us by Cyril of Alexandria, this author shows a knowledge of Buddhism in Bactria, calling the religious men there by the well-known name of Samanos. In a passage of Clement of Alexandria ...
  4. William Woodthorpe Tarn. "The Greeks in Bactria and IndiaCambridge Library Collection - Classics". Cambridge University Press, 2010. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781108009416.
  5. Aśoka (King of Magadha), Translated by Giovanni Pugliese Carratelli, Giovanni Garbini. "A bilingual Graeco-Aramaic edict by Aśoka: the first Greek inscription discovered in Afghanistan". Istituto italiano per il medio ed estremo Oriente, 1964.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)

बाहरी कड़ियाँ