"वरंगल": अवतरणों में अंतर
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'''वरंगल''', उत्तरी [[तेलंगाना]] का प्रमुख नगर है। यह [[चेन्नई]]–[[काज़िपेट्ट]]–[[दिल्ली]] राजमार्ग पर स्थित है। वरंगल 12वीं सदी में उत्कर्ष पर रहे आन्ध्र प्रदेश के काकतीयों की प्राचीन राजधानी था। वर्तमान शहर के दक्षिण–पूर्व में स्थित [[वरंगल दुर्ग]] कभी दो दीवारों से घिरा हुआ था जिनमें भीतरी दीवार के पत्थर के द्वार (संचार) और बाहरी दीवार के अवशेष मौजूद हैं। 1162 में निर्मित 1000 स्तम्भों वाला [[मन्दिर]] शहर के भीतर ही स्थित है। |
15:43, 1 नवम्बर 2018 का अवतरण
वरंगल వరంగల్ | |
---|---|
नगर | |
ऊपर से दक्षिणावर्त: गोविन्दराजुल पहाड़ी से वरंगल का दृष्य, काकतीय विश्वविद्यालय, वरंगल दुर्ग, सहस्र स्तम्भ मंदिर, काकतीय कला तोरणम् | |
निर्देशांक: 18°00′N 79°35′E / 18.0°N 79.58°Eनिर्देशांक: 18°00′N 79°35′E / 18.0°N 79.58°E | |
Other Names | Orugallu Ekasila Nagaram Tri-City |
Country | भारत |
राज्य | Telangana |
Region | South India, Deccan |
ज़िला | Warangal Urban Warangal Rural |
शासन | |
• प्रणाली | Mayor-council |
• सभा | GWMC KUDA |
• महापौर | Nannapaneni Narender |
• Municipal Commissioner | Shruti Ojha[1] |
• Commissioner of Police | Sudheer Babu[2] |
क्षेत्र[3] | 406.87 किमी2 (157.09 वर्गमील) |
ऊँचाई | 302 मी (991 फीट) |
जनसंख्या (2011)[3] | |
• कुल | 8,11,844 |
• दर्जा | 63rd (India) 2nd (Telangana) |
• घनत्व | 2,000 किमी2 (5,200 वर्गमील) |
वासीनाम | Warangalite |
Languages | |
• Official | Telugu, Urdu |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+5:30) |
पिन | 506001 to 506019 [4] |
टेलीफोन कोड | +91–870 |
वाहन पंजीकरण | TS–03[5] |
Ethnicity | Indian |
वेबसाइट | www |
वरंगल, उत्तरी तेलंगाना का प्रमुख नगर है। यह चेन्नई–काज़िपेट्ट–दिल्ली राजमार्ग पर स्थित है। वरंगल 12वीं सदी में उत्कर्ष पर रहे आन्ध्र प्रदेश के काकतीयों की प्राचीन राजधानी था। वर्तमान शहर के दक्षिण–पूर्व में स्थित वरंगल दुर्ग कभी दो दीवारों से घिरा हुआ था जिनमें भीतरी दीवार के पत्थर के द्वार (संचार) और बाहरी दीवार के अवशेष मौजूद हैं। 1162 में निर्मित 1000 स्तम्भों वाला मन्दिर शहर के भीतर ही स्थित है।
उत्पत्ति
वरंगल या वरंकल, तेलगु शब्द 'ओरुकल' या ओरुगल्सु का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है 'एक शिला'। इससे तात्पर्य उस विशाल अकेली चट्टान से है जिस पर ककातीय नरेशों के समय का बनवाया हुआ दुर्ग अवस्थित है। कुछ अभिलेखों से ज्ञात होता है कि संस्कृत में इस स्थान के ये नाम तथा पर्याय भी प्रचलित थे–एकोपल, एकशिला, एकोपलपुरी या एकोपलपुरम्। रघुनाथ भास्कर के कोश में एकशिलानगर, एकशालिगर, एकशिलापाटन–ये नाम भी मिलते हैं। टालमी द्वारा उल्लिखित कोरुनकुला वरंगल ही जान पड़ता है।
इतिहास
11वीं शती ई. से 13वीं शती ई. तक वरंगल की गिनती दक्षिण के प्रमुख नगरों में थी। इस काल में ककातीय वंश के राजाओं की राजधानी यहाँ रही। इन्होंने वरंगल दुर्ग, हनमकोंडा में सहस्र स्तम्भों वाला मन्दिर और पालमपेट का रामप्पा–मन्दिर बनवाए थे। वरंगल का क़िला 1199 ई. में बनना प्रारम्भ हुआ था।
ककातीय राजा गणपति ने इसकी नींव डाली और 1261 ई. में रुद्रमा देवी ने इसे पूरा करवाया था। क़िले के बीच में स्थित एक विशाल मन्दिर के खण्डहर मिले हैं, जिसके चारों ओर चार तोरण द्वार थे। साँची के स्तूप के तोरणों के समान ही इन पर भी उत्कृष्ट मूर्तिकारी का प्रदर्शन किया गया है। क़िले की दो भित्तियाँ हैं। अन्दर की भित्ति पत्थर की और बाहर की मिट्टी की बनी है। बाहरी दीवार 72 फुट चौड़ी और 56 फुट गहरी खाई से घिरी है। हनमकोंडा से 6 मील दक्षिण की ओर एक तीसरी दीवार के चिह्न भी मिलते हैं। एक इतिहास लेखक के अनुसार परकोटे की परिधि तीस मील की थी। जिसका उदाहरण भारत में अन्यत्र नहीं है। क़िले के अन्दर अगणित मूर्तियाँ, अलंकृत प्रस्तर-खंड, अभिलेख आदि प्राप्त हुए हैं। जो शितावख़ाँ के दरबार भवन में संगृहीत हैं। इसके अतिरिक्त अनेक छोटे बड़े मन्दिर भी यहाँ स्थित हैं। अलंकृत तोरणों के भीतर नरसिंह स्वामी, पद्याक्षी और गोविन्द राजुलुस्वामी के प्राचीन मन्दिर हैं। इनमें से अन्तिम एक ऊँची पहाड़ी के शिखर पर अवस्थित है। यहाँ से दूर-दूर तक का मनोरम दृश्य दिखलाई देता है।
12वीं 13वीं शती का एक विशाल मन्दिर भी यहाँ से कुछ दूर पर है, जिसके आँगन की दीवार दुहरी तथा असाधारण रूप से स्थूल है। यह विशेषता ककातीय शैली के अनुरूप ही है। इसकी बाहरी दीवार में तीन प्रवेशद्वार हैं, जो वरंगल के क़िले के मुख्य मन्दिर के तोरणों की भाँति ही हैं। यहाँ से दो ककातीय अभिलेख प्राप्त हुए हैं–पहला सातफुट लम्बी वेदी पर और दूसरा एक तड़ाग के बाँध पर अंकित है। वरंगल पर प्रारम्भ में दक्षिण के प्रसिद्ध आन्ध्र वंशीय नरेशों का अधिकार था। तत्पश्चात् मध्यकाल में चालुक्यों और ककातीयों का शासन रहा। ककातीय वंश का सर्वप्रथम प्रतापशाली राजा गणपति था जो 1199 ई. में गद्दी पर बैठा। गणपति का राज्य गोंडवाना से काँची तक और बंगाल की खाड़ी से बीदर और हैदराबाद तक फैला हुआ था। इसी ने पहली बार वरंगल में अपनी राजधानी बनाई और यहाँ के प्रसिद्ध दुर्ग की नींव डाली। गणपति के पश्चात् उसकी पुत्री रुद्रमा देवी ने 1260 से 1296 ई. तक राज्य किया। इसी के शासन काल में इटली का प्रसिद्ध पर्यटक मार्कोपोलो मोटुपल्ली के बंदरगाह पर उतर कर आन्ध्र प्रदेश में आया था। मार्कोपोलो ने वरंगल का वर्णन करते हुए लिखा है कि यहाँ पर संसार का सबसे बारीक सूती कपड़ा (मलमल) तैयार होता है। जो मकड़ी के जाले के समान दिखाई देता है। संसार में कोई ऐसा राजा या रानी नहीं है जो इस आश्चर्यजनक कपड़े के वस्त्र पहन कर स्वयं को गौरवान्वित न माने।
शासन काल
रुद्रमादेवी ने 36 वर्ष तक बड़ी योग्यता से राज्य किया। उसे रुद्रदेव महाराज कहकर संबोधित किया जाता था। प्रतापरुद्र (शासन काल 1296-1326 ई.) रुद्रमा दोहित्र था। इसने पाण्डयनरेश को हराकर काँची को जीता। इसने छः बार मुसलमानों के आक्रमणों को विफल किया, किन्तु 1326 ई. में उलुगख़ाँ ने जो पीछे मुहम्मद बिन तुग़लक़ नाम से दिल्ली का सुल्तान हुआ, ककातीय के राज्य की समाप्ति कर दी। उसने प्रतापरुद्र को बन्दी बनाकर दिल्ली ले जाना चाहा था किन्तु मार्ग में ही नर्मदा नदी के तट पर इस स्वाभिमानी और वीर पुरुष ने अपने प्राण त्याग कर दिए। ककातीयों के शासनकाल में वरंगल में हिन्दू संस्कृति तथा संस्कृत की ओर तेलुगु भाषाओं की अभूतपूर्व उन्नति हुई। शैव धर्म के अंतर्गत पाशुपत सम्प्रदाय का यह उत्कर्षकाल था। इस समय वरंगल का दूर-दूर के देशों से व्यापार होता था।
वरंगल के संस्ककृत कवियों में सर्वशास्त्र विशारद का लेखक वीरभल्लातदेशिक और नलकीर्तिकामुदी के रचयिता अगस्त्य के नाम उल्लेखनीय हें। कहा जाता है कि अलंकारशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रतापरुद्रभूषण का लेखक विद्यनाथ यही अगस्त्य था। गणपति का हस्तिसेनापति जयप, नृत्यरत्नावली का रचयिता था। संस्कृत कवि शाकल्यमल्ल भी इसी का समकालीन था। तेलगु के कवियों में रंगनाथ रामायणुम का लेखक पलकुरिकी सोमनाथ मुख्य हैं। इसी समय भास्कर रामायणुम भी लिखी गई। वरंगल नरेश प्रतापरुद्र स्वयं भी तेलगु का अच्छा कवि था। इसने नीतिसार नामक ग्रन्थ लिखा था। दिल्ली के तुग़लक़ वंश की शक्ति क्षीण होने पर 1335-1336 के पश्चात् में कपय नायक ने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। इसकी राजधानी वरंगल में थी। 1442 ई. में वरंगल पर बहमनी राज्य का आधिपत्य हो गया और तत्पश्चात् गोलकुंडा के कुतुबशाही नरेशों का। इस समय शिताब ख़ाँ वरंगल का सूबेदार नियुक्त हुआ। उसने शीध्र ही स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। किन्तु कुछ समय के उपरान्त वरंगल को गोलकुंडा के साथ ही औरंगज़ेब के विस्तृत मुग़ल साम्राज्य का अंग बनना पड़ा। मुग़ल साम्राज्य के अन्तिम समय में वरंगल की नई रियासत हैदराबाद में सम्मिलित कर ली गई।
उद्योग और व्यापार
वरंगल अब एक वाणिज्यिक एवं औद्योगिक केन्द्र है। इसके प्रमुख उत्पादन क़ालीन, कम्बल एवं रेशम हैं।
शिक्षण संस्थान
शहर में चिकित्सा, अभियांत्रिकी, कला और विज्ञान के महाविद्यालय हैं।
जनसंख्या
2001 की गणना के अनुसार वरंगल शहर की जनसंख्या 5,28,570 है। और वरंगल जिले की कुल जनसंख्या 32,31,174 है।
सन्दर्भ
- ↑ "Municipal commissioner".
- ↑ "Commissioner of Police". Warangal.
- ↑ अ आ "Physical details of GWMC" (PDF). gwmc.gov..in. पृ॰ 3. अभिगमन तिथि 5 April 2017.
- ↑ http://www.indiapost.gov.in/imo_offices.aspx
- ↑ "District Codes". Government of Telangana Transport Department. अभिगमन तिथि 4 September 2014.