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अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) |
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'''अर्हत्''' ([[संस्कृत]]) और '''अरिहंत''' ([[प्राकृत]]) [[पर्यायवाची]] शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये '
[[जैन धर्म|जैनों]] के [[णमोकार मंत्र]] में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम
अरिहन्त निम्नलिखित १८ अपूर्णताओं से रहित होते हैं-
# जन्म
# जरा (वृद्धावस्था)
# तृषा (प्यास)
# क्षुधा (भूख)
# विस्मय (आश्चर्य)
# आरती
# खेद
# रोग
# शोक
# मद (घमण्ड)
# मोह
# भय
# निद्रा
# चिन्ता
# स्वेद
# राग
# द्वेष
# मरण
[[श्रेणी:जैन धर्म]]
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