"आरण्यक": अवतरणों में अंतर

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'''आरण्यक''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ [[वेदों]] का गद्य वाला खण्ड है । ये वैदिक वांग्मय का तीसरा हिस्सा है और वैदिक संहिताओं पर दिये भाष्य का दूसरा स्तर है । इनमें दर्शन और ज्ञान की बातें लिखी हुई हैं, कर्मकाण्द के बारे में ये चुप हैं । इनकी भाषा वैदिक [[संस्कृत]] है । हर वेद का एक या अधिक आरण्यक होता है :
'''आरण्यक''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ [[वेदों]] का गद्य वाला खण्ड है । ये वैदिक वांग्मय का तीसरा हिस्सा है और वैदिक संहिताओं पर दिये भाष्य का दूसरा स्तर है । इनमें दर्शन और ज्ञान की बातें लिखी हुई हैं, कर्मकाण्ड के बारे में ये चुप हैं । इनकी भाषा [[वैदिक संस्कृत]] है । वेद, मंत्र तथा ब्राह्मण का सम्मिलित अभिधान है। मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् (आपस्तंबसूत्र)। ब्राह्मण के तीन भागों में आरण्यक अन्यतम भाग है।

[[सायण]] के अनुसार इस नामकरण का कारण यह है कि इन ग्रंथों का अध्ययन अरण्य (जंगल) में किया जाता था। आरण्यक का मुख्य विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है। वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है। प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन इन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है। संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है। तथ्य यह है कि उपनिषद् आरण्यक में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या करती हैं। इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच की श्रृंखला इस साहित्य द्वारा पूर्ण की जाती है।

==प्रमुख आरण्यक==
आरण्यकों के मुख्य ग्रंथ निम्नलिखित है :

===[[ऐतरेय आरण्यक|ऐतरेय]] आरण्यक=== का संबंध ऋग्वेद से है। ऐतरेय के भीतर पांच मुख्य अध्याय (आरण्यक) हैं जिनमें प्रथम तीन के रचयिता ऐतरेय, चतुर्थ के आश्वलायन तथा पंचम के शौनक माने जाते हैं। डाक्टर कीथ इसे निरुक्त की अपेक्षा अर्वाचीन मानकर इसका रचनाकाल षष्ठ शताब्दी विक्रमपूर्व मानते हैं, परंतु वस्तुत: यह निरुक्त से प्राचीनतर है। ऐतरेय के प्रथम तीन आरण्यकों के कर्ता महिदास हैं इससे उन्हें ऐतरेय ब्राह्मण का समकालीन मानना न्याय्य है।

==शांखायन ===
इसका भी संबंध ऋग्वेद से है। यह ऐतरेय आरण्यक के समान है तथा पंद्रह अध्यायों में विभक्त है जिसका एक अंश (तीसरे अ. से छठे अ. तक) कौषीतकि उपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है।

===तैत्तिरीय आरण्यक===
दस परिच्छेदों (प्रपाठकों) में विभक्त है, जिन्हें "अरण" कहते हैं। इनमें सप्तम, अष्टम तथा नवम प्रपाठक मिलकर "तैत्तिरीय उपनिषद" कहलाते हैं।

===बृहदारण्यक===
वस्तुत: शुक्ल युजर्वेद का एक आरण्यक ही है, परंतु आध्यात्मिक तथ्यों की प्रचुरता के कारण यह उपनिषदों में गिना जाता है।

=== तवलकार (आरण्यक)===
सामवेद से संबद्ध एक ही आरण्यक है। जिसमें चार अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में कई अनुवाक। चतुर्थ अध्याय के दशम अनुवाक में प्रख्यात तवलकार (या केन) उपनिषद् है।

हर वेद का एक या अधिक आरण्यक होता है। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है।


*[[ऋग्वेद]]
*[[ऋग्वेद]]
**ऐतरेय आरण्यक
**ऐतरेय आरण्यक
**शांखायन आरण्यक
**शांखायन आरण्यक

*[[सामवेद]]
*[[सामवेद]]
**तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्)आरण्यक
**तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
**छान्दोग्य आरण्यक
**छान्दोग्य आरण्यक

*[[यजुर्वेद]]
*[[यजुर्वेद]]
**शुक्ल
**शुक्ल
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***तैत्तिरीय आरण्यक
***तैत्तिरीय आरण्यक
***मैत्रायणी आरण्यक
***मैत्रायणी आरण्यक

*[[अथर्ववेद]]
*[[अथर्ववेद]]
**(कोई उपलब्ध नहीं)
**(कोई उपलब्ध नहीं)



[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]

07:32, 25 जून 2009 का अवतरण

आरण्यक हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों का गद्य वाला खण्ड है । ये वैदिक वांग्मय का तीसरा हिस्सा है और वैदिक संहिताओं पर दिये भाष्य का दूसरा स्तर है । इनमें दर्शन और ज्ञान की बातें लिखी हुई हैं, कर्मकाण्ड के बारे में ये चुप हैं । इनकी भाषा वैदिक संस्कृत है । वेद, मंत्र तथा ब्राह्मण का सम्मिलित अभिधान है। मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् (आपस्तंबसूत्र)। ब्राह्मण के तीन भागों में आरण्यक अन्यतम भाग है।

सायण के अनुसार इस नामकरण का कारण यह है कि इन ग्रंथों का अध्ययन अरण्य (जंगल) में किया जाता था। आरण्यक का मुख्य विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है। वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है। प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन इन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है। संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है। तथ्य यह है कि उपनिषद् आरण्यक में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या करती हैं। इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच की श्रृंखला इस साहित्य द्वारा पूर्ण की जाती है।

प्रमुख आरण्यक

आरण्यकों के मुख्य ग्रंथ निम्नलिखित है :

===ऐतरेय आरण्यक=== का संबंध ऋग्वेद से है। ऐतरेय के भीतर पांच मुख्य अध्याय (आरण्यक) हैं जिनमें प्रथम तीन के रचयिता ऐतरेय, चतुर्थ के आश्वलायन तथा पंचम के शौनक माने जाते हैं। डाक्टर कीथ इसे निरुक्त की अपेक्षा अर्वाचीन मानकर इसका रचनाकाल षष्ठ शताब्दी विक्रमपूर्व मानते हैं, परंतु वस्तुत: यह निरुक्त से प्राचीनतर है। ऐतरेय के प्रथम तीन आरण्यकों के कर्ता महिदास हैं इससे उन्हें ऐतरेय ब्राह्मण का समकालीन मानना न्याय्य है।

शांखायन =

इसका भी संबंध ऋग्वेद से है। यह ऐतरेय आरण्यक के समान है तथा पंद्रह अध्यायों में विभक्त है जिसका एक अंश (तीसरे अ. से छठे अ. तक) कौषीतकि उपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है।

तैत्तिरीय आरण्यक

दस परिच्छेदों (प्रपाठकों) में विभक्त है, जिन्हें "अरण" कहते हैं। इनमें सप्तम, अष्टम तथा नवम प्रपाठक मिलकर "तैत्तिरीय उपनिषद" कहलाते हैं।

बृहदारण्यक

वस्तुत: शुक्ल युजर्वेद का एक आरण्यक ही है, परंतु आध्यात्मिक तथ्यों की प्रचुरता के कारण यह उपनिषदों में गिना जाता है।

तवलकार (आरण्यक)

सामवेद से संबद्ध एक ही आरण्यक है। जिसमें चार अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में कई अनुवाक। चतुर्थ अध्याय के दशम अनुवाक में प्रख्यात तवलकार (या केन) उपनिषद् है।

हर वेद का एक या अधिक आरण्यक होता है। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है।

  • ऋग्वेद
    • ऐतरेय आरण्यक
    • शांखायन आरण्यक
  • सामवेद
    • तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
    • छान्दोग्य आरण्यक
  • यजुर्वेद
    • शुक्ल
      • वृहदारण्यक
    • कृष्ण
      • तैत्तिरीय आरण्यक
      • मैत्रायणी आरण्यक