"प्राण": अवतरणों में अंतर

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अर्थात्- जिसके अधीन यह सारा जगत है, उस प्राण को नमस्कार है। वही सबका स्वामी है, उसी में सारा जगत प्रतिष्ठित है।
अर्थात्- जिसके अधीन यह सारा जगत है, उस प्राण को नमस्कार है। वही सबका स्वामी है, उसी में सारा जगत प्रतिष्ठित है।

===== ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में =====
ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में भी प्राण की महत्ता का गान एक स्वर से किया गया है- उसे ही विश्व का आदि निर्माण, सबमें व्यापक और पोषक माना है। जो कुछ भी हलचल इस जगत में दृष्टिगोचर होती है उसका मूल हेतु प्राण ही है।

कतम एको देव इति। प्राण इति स ब्रह्म नद्रित्याचक्षते। -[[बृहदारण्यक उपनिषद|बृहदारण्यक]]

अर्थात्- वह एकदेव कौन सा है? वह प्राण है। ऐसा कौषितकी ऋषि से व्यक्त किया है।

‘प्राणों ब्रह्म’ इति स्माहपैदृश्य।

अर्थात्- पैज्य ऋषि ने कहा है कि प्राण ही [[ब्रह्मा]] है।

प्राण एव प्रज्ञात्मा। इदं शरीरं परिगृह्यं उत्थापयति। यो व प्राणः सा प्रज्ञा, या वा प्रज्ञा स प्राणः। -शाखायन आरण्यक 5।3

अर्थात्- इस समस्त संसार में तथा इस शरीर में जो कुछ प्रज्ञा है, वह प्राण ही है। जो प्राण है, वही प्रज्ञा है। जो प्रज्ञा है वही प्राण है।

सोऽयमाकाशः प्राणेन वृहत्याविष्टव्धः तद्यथा यमाकाशः प्राणेन वृहत्या विष्टब्ध एवं सर्वाणि भूतानि आपि पीलिकाभ्यः प्राणेन वृहत्या विष्टव्धानी त्येवं विद्यात्। -एतरेय 2।1।6

अर्थात्- प्राण ही इस विश्व को धारण करने वाला है। प्राण की शक्ति से ही यह ब्रह्मांड अपने स्थान पर टिका हुआ है। चींटी से लेकर हाथी तक सब प्राणी इस प्राण के ही आश्रित हैं। यदि प्राण न होता तो जो कुछ हम देखते हैं कुछ भी न दीखता।

शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि :--

प्राणेहि प्रजापतिः 4।5।5।13

प्राण उ वै प्रजापतिः 8।4।1।4

प्राणः प्रजापति 6।3।1।9

अर्थात्-प्राण ही प्रजापति परमेश्वर है।

सर्व ह्रीदं प्राणनावृतम्। -एतरेय

अर्थात्- यह सारा जगत प्राण से आदृत है।


== सन्दर्भ ==
== सन्दर्भ ==

17:42, 17 सितंबर 2018 का अवतरण

प्राण हिन्दू दर्शनों, जैसे योगदर्शन और आयुर्वेद इत्यादि में जीवनी शक्ति को कहा गया है।[1] कुछ प्रसंगों में इसे सूर्य से उत्पन्न और पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त शक्ति के रूप में भी वर्णित किया गया है।[2]

आयुर्वेद, तन्त्र इत्यादि में पाँच प्रकार के प्राण बताये गये हैं:

  1. प्राण
  2. अपान
  3. उदान
  4. समान
  5. व्यान

वेदों में प्राण

वेदों में प्राणतत्व की महिमा का गान करते हुए उसे विश्व की सर्वोपरि शक्ति माना है।

प्राणों विराट प्राणो देष्ट्री प्राणं सर्व उपासते। प्राणो ह सूर्यश्चन्द्रमाः प्राण माहुः प्रजापतिम्॥ -अथर्ववेद

अर्थात्- प्राण विराट है, सबका प्रेरक है। इसी से सब उसकी उपासना करते हैं। प्राण ही सूर्य, चन्द्र और प्रजापति है।

प्राणाय नमो यस्य सर्व मिदं वशे। यो भूतः सर्वस्येश्वरो यस्मिन् सर्व प्रतिष्ठम्। -अथर्ववेद

अर्थात्- जिसके अधीन यह सारा जगत है, उस प्राण को नमस्कार है। वही सबका स्वामी है, उसी में सारा जगत प्रतिष्ठित है।

ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में

ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में भी प्राण की महत्ता का गान एक स्वर से किया गया है- उसे ही विश्व का आदि निर्माण, सबमें व्यापक और पोषक माना है। जो कुछ भी हलचल इस जगत में दृष्टिगोचर होती है उसका मूल हेतु प्राण ही है।

कतम एको देव इति। प्राण इति स ब्रह्म नद्रित्याचक्षते। -बृहदारण्यक

अर्थात्- वह एकदेव कौन सा है? वह प्राण है। ऐसा कौषितकी ऋषि से व्यक्त किया है।

‘प्राणों ब्रह्म’ इति स्माहपैदृश्य।

अर्थात्- पैज्य ऋषि ने कहा है कि प्राण ही ब्रह्मा है।

प्राण एव प्रज्ञात्मा। इदं शरीरं परिगृह्यं उत्थापयति। यो व प्राणः सा प्रज्ञा, या वा प्रज्ञा स प्राणः। -शाखायन आरण्यक 5।3

अर्थात्- इस समस्त संसार में तथा इस शरीर में जो कुछ प्रज्ञा है, वह प्राण ही है। जो प्राण है, वही प्रज्ञा है। जो प्रज्ञा है वही प्राण है।

सोऽयमाकाशः प्राणेन वृहत्याविष्टव्धः तद्यथा यमाकाशः प्राणेन वृहत्या विष्टब्ध एवं सर्वाणि भूतानि आपि पीलिकाभ्यः प्राणेन वृहत्या विष्टव्धानी त्येवं विद्यात्। -एतरेय 2।1।6

अर्थात्- प्राण ही इस विश्व को धारण करने वाला है। प्राण की शक्ति से ही यह ब्रह्मांड अपने स्थान पर टिका हुआ है। चींटी से लेकर हाथी तक सब प्राणी इस प्राण के ही आश्रित हैं। यदि प्राण न होता तो जो कुछ हम देखते हैं कुछ भी न दीखता।

शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि :--

प्राणेहि प्रजापतिः 4।5।5।13

प्राण उ वै प्रजापतिः 8।4।1।4

प्राणः प्रजापति 6।3।1।9

अर्थात्-प्राण ही प्रजापति परमेश्वर है।

सर्व ह्रीदं प्राणनावृतम्। -एतरेय

अर्थात्- यह सारा जगत प्राण से आदृत है।

सन्दर्भ

  1. "Prana | Define Prana at Dictionary.com". Dictionary.reference.com. अभिगमन तिथि 2015-04-22.
  2. Swami Satyananda Saraswati (September 1981). "Prana: the Universal Life Force". Yogamag.net. Bihar School of Yoga. अभिगमन तिथि 31 July 2015.