"बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय": अवतरणों में अंतर

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== रचनाएँ ==
== रचनाएँ ==
बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना [[राजमोहन्स वाइफ]] थी। इसकी रचना [[अंग्रेजी]] में की गई थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति '[[दुर्गेशनंदिनी]]' मार्च १८६५ में छपी थी। यह एक रूमानी रचना है। उनकी अगली रचना का नाम [[कपालकुंडला]] (1866) है। इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका [[बंगदर्शन]] का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने [[विषवृक्ष]] (1873) उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। [[कृष्णकांतेर विल]] में चटर्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है।
बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना [[राजमोहन्स वाइफ]] थी। इसकी रचना [[अंग्रेजी]] में की गई थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति '[[दुर्गेशनन्दिनी]]' मार्च १८६५ में छपी थी। यह एक रूमानी रचना है। उनकी अगली रचना का नाम [[कपालकुण्डला]] (1866) है। इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका [[बङ्गदर्शण]] का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने [[विषवृक्ष]] (1873) उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। [[कृष्णकांतेर उइल]] में च्याटार्ज्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है।


[[आनंदमठ]] (१८८२) राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के [[संन्यासी विद्रोह]] का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में [[देशभक्ति]] की भावना है। चटर्जी का अंतिम उपन्यास [[सीताराम]] (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।
[[आनन्दमठ]] (१८८२) राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के [[संन्यासी विद्रोह]] का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में [[देशभक्ति]] की भावना है। चटर्जी का अंतिम उपन्यास [[सीताराम]] (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।


उनके अन्य उपन्यासों में दुर्गेशनंदिनी, [[मृणालिनी]], [[इंदिरा]], [[राधारानी]], [[कृष्णकांतेर दफ्तर]], [[देवी चौधरानी]] और [[मोचीराम गौरेर जीवनचरित]] शामिल है। उनकी कविताएं [[ललिता ओ मानस]] नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।
उनके अन्य उपन्यासों में दुर्गेशनंदिनी, [[मृणालिनी]], [[इन्दिरा]], [[राधारानी]], [[कृष्णकांतेर दफ्तर]], [[देवी चौधुरानी]] और [[मोचीराम गौरेर जीवनचरित]] शामिल है। उनकी कविताएं [[ललिता ओ मानस]] नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।


बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में [[अनुवाद]] किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और [[शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय]] को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं [[हिन्दी]] सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरद और [[रवीन्द्र नाथ ठाकुर]] से भी आगे हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।
बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में [[अनुवाद]] किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और [[शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय]] को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं [[हिन्दी]] सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरद और [[रवीन्द्र नाथ ठाकुर]] से भी आगे हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।

11:44, 17 अगस्त 2018 का अवतरण

वन्दे मातरम् के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (बंगाली: বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়) (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है।

आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे।

जीवनी

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म उत्तर चब्बिश परगणा के काँठालपाड़ा, नैहाटी में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई। १८५७ में उन्होंने बीए पास किया और १८६९ में क़ानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होने सरकारी नौकरी कर ली और १८९१ में सरकारी सेवा से रिटायर हुए। उनका निधन ८ अप्रैल १८९४ में हुआ। प्रेसीडेंसी कालेज से बी. ए. की उपाधि लेनेवाले ये पहले भारतीय थे। शिक्षासमाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई। कुछ काल तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे। रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियाँ पाईं।

रचनाएँ

बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना राजमोहन्स वाइफ थी। इसकी रचना अंग्रेजी में की गई थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति 'दुर्गेशनन्दिनी' मार्च १८६५ में छपी थी। यह एक रूमानी रचना है। उनकी अगली रचना का नाम कपालकुण्डला (1866) है। इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका बङ्गदर्शण का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने विषवृक्ष (1873) उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। कृष्णकांतेर उइल में च्याटार्ज्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है।

आनन्दमठ (१८८२) राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। चटर्जी का अंतिम उपन्यास सीताराम (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।

उनके अन्य उपन्यासों में दुर्गेशनंदिनी, मृणालिनी, इन्दिरा, राधारानी, कृष्णकांतेर दफ्तर, देवी चौधुरानी और मोचीराम गौरेर जीवनचरित शामिल है। उनकी कविताएं ललिता ओ मानस नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।

बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरद और रवीन्द्र नाथ ठाकुर से भी आगे हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।

ग्रन्थ तालिका

उपन्यास

(इन्दिरा,युगलांगुरीय और राधारानी त्रयी संग्रह)

  • Rajmohan's Wife

प्रबन्ध ग्रन्थ

विविध

  • ललिता (पुराकालिक गल्प)
  • धर्म्मतत्त्ब
  • सहज रचना शिक्षा
  • श्रीमद्भगबदगीता
  • कबितापुस्तक

(किछु कबिता, एबं ललितामानस)

सम्पादित ग्रन्थावली

  • दीनबन्धु मित्रेर जीबनी
  • बांगला साहित्ये प्यारीचाँद मित्रेर स्थान
  • संजीबचन्द्र चट्टोपाध्यायेर जीबनी

बाहरी कड़ियाँ