9,894
सम्पादन
Sanjeev bot (चर्चा | योगदान) छो (बॉट: अनुभाग शीर्षक एकरूपता।) |
NehalDaveND (चर्चा | योगदान) (अशुद्ध वांगमय का शुद्ध स्वरूप वाङ्गमय स्थापित किया) |
||
{{स्रोतहीन|date=अगस्त 2012}}
{{सन्दूक हिन्दू धर्म}}
'''आरण्यक''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम और सर्वोच्च ग्रन्थ [[वेदों]] का गद्य वाला खण्ड है। ये वैदिक
[[सायण]] के अनुसार इस नामकरण का कारण यह है कि इन ग्रंथों का अध्ययन अरण्य (जंगल) में किया जाता था। आरण्यक का मुख्य विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है। वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है। प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन इन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है। संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है। तथ्य यह है कि उपनिषद् आरण्यक में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या करती हैं। इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच की श्रृंखला इस साहित्य द्वारा पूर्ण की जाती है।
|
सम्पादन