"पदार्थ विज्ञान": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो बॉट: आंशिक वर्तनी सुधार।
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
| color =
| fontcolor =
| abovefontcolor =
| headerfontcolor =
| tablecolor =
<!-- LEAD INFORMATION ---------->
| title = [[File:PVD.svg|thumb|PVD]]
| status =
| image =
| image_caption =
| image_width = 250px
| name = श्रीनिथी श्रीधर
| birthname = श्रीनिथी श्रीधर
| real_name = श्रीनिथी श्रीधर
| gender = स्त्रिलिं
| languages = तमिल
| birthdate = ०१/११/१९९७
| birthplace = चेन्नैइ
| location =
| country = भारत
| nationality =
| ethnicity =
| occupation =
| employer = -
| education =
| primaryschool =
| intschool =
| highschool =
| college =
| university =
| hobbies =
| religion =
| politics = स्वतंत्र
| aliases =
| movies =
| books =
| interests =
<!-- CONTACT INFO -------------->
| website =
| blog =
| email =
| facebook =
| twitter =
| joined_date =
| first_edit =
| userboxes =
}}

{{विज्ञान}}
{{विज्ञान}}


पंक्ति 59: पंक्ति 11:
पदार्थ विज्ञान में अव्यवस्थित ढग से नये पदार्थों को खोजने और उपयोग करने के बजाय पदार्थ को मौलिक रूप से समझने का प्रयास किया जाता है।
पदार्थ विज्ञान में अव्यवस्थित ढग से नये पदार्थों को खोजने और उपयोग करने के बजाय पदार्थ को मौलिक रूप से समझने का प्रयास किया जाता है।
पदार्थ विज्ञान के सभी प्रभागों का मूलसिद्धान्त किसी पदार्थ के इच्छित गुणों को उसकी अवस्थाओं और आणविक संरचना में चरित्रगत अंतर्संबन्ध स्थापित करना होता है। किसी भी पदार्थ की संरचना (अतएव उसके गुण) उसके रासायनिक घटकों पर और प्रसंस्करण की विधि पर निर्भर करती है। रासायनिक सघटन, प्रसंस्करण और उष्मागतिकी के सिद्धान्त पदार्थ की सूक्ष्मसरचना निर्धारित करते हैं। पदार्थ के गुण और उनकी सूक्ष्मसरचना में सीधा सबन्ध होता है।
पदार्थ विज्ञान के सभी प्रभागों का मूलसिद्धान्त किसी पदार्थ के इच्छित गुणों को उसकी अवस्थाओं और आणविक संरचना में चरित्रगत अंतर्संबन्ध स्थापित करना होता है। किसी भी पदार्थ की संरचना (अतएव उसके गुण) उसके रासायनिक घटकों पर और प्रसंस्करण की विधि पर निर्भर करती है। रासायनिक सघटन, प्रसंस्करण और उष्मागतिकी के सिद्धान्त पदार्थ की सूक्ष्मसरचना निर्धारित करते हैं। पदार्थ के गुण और उनकी सूक्ष्मसरचना में सीधा सबन्ध होता है।

पदार्थ विज्ञान में एक उक्ति प्रचलित है,"पदार्थ लोगों की तरह होते हैं, उनकी कमियाँ ही उन्हें मज़ेदार बनाती हैं।" किसी भी पदार्थ के दोषरहित क्रिस्टल का निर्माण असंभव है। लिहाज़ा पदार्थविज्ञानी क्रिस्टल दोषों (रिक्ती, प्रक्षेप, विस्थापक अणु इत्यादि) को आवश्यकतानुसार नियंत्रित कर के मनचाहे पदार्थ बनाते हैं।
पदार्थ विज्ञान में एक उक्ति प्रचलित है,"पदार्थ लोगों की तरह होते हैं, उनकी कमियाँ ही उन्हें मज़ेदार बनाती हैं।" किसी भी पदार्थ के दोषरहित क्रिस्टल का निर्माण असंभव है। लिहाज़ा पदार्थविज्ञानी क्रिस्टल दोषों (रिक्ती, प्रक्षेप, विस्थापक अणु इत्यादि) को आवश्यकतानुसार नियंत्रित कर के मनचाहे पदार्थ बनाते हैं।

10:22, 4 अप्रैल 2018 का अवतरण

पदार्थ विज्ञान एक बहुविषयक क्षेत्र है जिसमें पदार्थ के विभिन्न गुणों का अध्ययन, विज्ञान एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रायोगिक भौतिक विज्ञान और रसायनशास्त्र के साथ-साथ रासायनिक, वैद्युत, यांत्रिक और धातुकर्म अभियांत्रिकी जैसे विषयों का समावेश होता है। नैनोतकनीकी और नैनोसाइंस में उपयोजता के कारण, वर्तमान समय में विभिन्न विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और संस्थानों में इसे काफी महत्व मिला है।

इतिहास

मानव सभ्यता के विकास के विभिन्न चरणों के नाम प्राय:उस युग विशेष में प्रमुखता से प्रयुक्त होने वाले पदार्थ के नाम पर रखे जाते हैं, उदाहरणार्थ :- पाषाण युग,कांस्य युग, लौह युग, सिलिकान युग इत्यादि। पदार्थ विज्ञान आभियांत्रिकी और प्रयुक्त विज्ञान की सबसे प्राचीन विधाओं में से एक है। आधुनिक पदार्थ विज्ञान का विकास धातु विज्ञान से हुआ है। 19वीं शताब्दी में पदार्थ के व्यवहार को समझने में एक बड़ी सफ़लता तब हासिल हुई जब विलर्ड गिब्स ने यह दिखाया कि पदार्थों के गुण उनके विभिन्न अवस्थाओं की आणविक संरचना से सम्बन्धित उष्मागतिक गुणों पर निर्भर करते हैं। वर्तमान युग में पदार्थ विज्ञान के तीव्र विकास के पीछे अन्तरिक्ष स्पर्धा का योगदान है। अन्तरिक्ष यात्राओं को सफल बनाने में विभिन्न मिश्रधातुओं और दूसरे पदार्थों की खोज़ ने प्रमुख भुमिका निभायी। पदार्थ विज्ञान के विकास ने प्लास्टिक, अर्धचालक और जैवरासायनिक तकनीकों के विकास में और इन तकनीकों ने पदार्थ विज्ञान के विकास में योगदान दिया। साठ के दशक के पहले तक पदार्थ विज्ञान विभागों को धातुकर्म विभाग कहा जाता था, क्योंकि 19वीं सदी और 20वीं सदी के प्रारम्भिक दिनों में धात्विक पदार्थों के विकास पर ज्यादा जोर दिया जाता था। इस क्षेत्र के विकसित होने से इसके अंतर्गत दूसरे पदार्थो यथा : अर्धचालक, चुम्बकीय पदार्थ, सिरेमिक, जैव-पदार्थ, चिकित्सकीय पदार्थ इत्यादि का अध्ययन होने लगा।

मूल अवधारणायें

पदार्थ विज्ञान में अव्यवस्थित ढग से नये पदार्थों को खोजने और उपयोग करने के बजाय पदार्थ को मौलिक रूप से समझने का प्रयास किया जाता है। पदार्थ विज्ञान के सभी प्रभागों का मूलसिद्धान्त किसी पदार्थ के इच्छित गुणों को उसकी अवस्थाओं और आणविक संरचना में चरित्रगत अंतर्संबन्ध स्थापित करना होता है। किसी भी पदार्थ की संरचना (अतएव उसके गुण) उसके रासायनिक घटकों पर और प्रसंस्करण की विधि पर निर्भर करती है। रासायनिक सघटन, प्रसंस्करण और उष्मागतिकी के सिद्धान्त पदार्थ की सूक्ष्मसरचना निर्धारित करते हैं। पदार्थ के गुण और उनकी सूक्ष्मसरचना में सीधा सबन्ध होता है।

पदार्थ विज्ञान में एक उक्ति प्रचलित है,"पदार्थ लोगों की तरह होते हैं, उनकी कमियाँ ही उन्हें मज़ेदार बनाती हैं।" किसी भी पदार्थ के दोषरहित क्रिस्टल का निर्माण असंभव है। लिहाज़ा पदार्थविज्ञानी क्रिस्टल दोषों (रिक्ती, प्रक्षेप, विस्थापक अणु इत्यादि) को आवश्यकतानुसार नियंत्रित कर के मनचाहे पदार्थ बनाते हैं।

बाहरी कड़ियाँ