"भारत का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। [[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिंधु घाटी]] की लिपि, [[अशोक के शिलालेख]], हेरोडोटस, [[फ़ा हियान]], [[ह्वेन सांग]], [[संगम साहित्य]], [[मार्कोपोलो]], [[संस्कृत]] लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में [[अल-बेरुनी]] और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियाँ हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं।
समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। [[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिंधु घाटी]] की लिपि, [[अशोक के शिलालेख]], हेरोडोटस, [[फ़ा हियान]], [[ह्वेन सांग]], [[संगम साहित्य]], [[मार्कोपोलो]], [[संस्कृत]] लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में [[अल-बेरुनी]] और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियाँ हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं।


==प्रागैतिहासिक काल==
==प्रागैतिहासिक काल (3300 ईसा पूर्व तक)==
[[चित्र:Bhimbetka rock paintng1.jpg|अंगूठाकार|[[भीमबेटका पाषाण आश्रय|भीमबेटका]] के शैल-चित्र (३०,००० वर्ष पुराने)]]
[[चित्र:Bhimbetka rock paintng1.jpg|अंगूठाकार|[[भीमबेटका पाषाण आश्रय|भीमबेटका]] के शैल-चित्र (३०,००० वर्ष पुराने)]]
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण १००,००० से ८०,००० वर्ष पूर्व का है।। [[पाषाण युग]] ([[भीमबेटका]], [[मध्य प्रदेश]]) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम ४०,००० ई पू से ९००० ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने ९००० वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में [[सिन्धु घाटी सभ्यता]] ७००० ई पू विकसित हुई, जो [[२६वीं शताब्दी ईसा पूर्व]] और [[२०वीं शताब्दी ईसा पूर्व]] के मध्य अपने चरम पर थी। [[वैदिक सभ्यता]] का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से ४००० ई पू तक जाता है।
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण १००,००० से ८०,००० वर्ष पूर्व का है।। [[पाषाण युग]] ([[भीमबेटका]], [[मध्य प्रदेश]]) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम ४०,००० ई पू से ९००० ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने ९००० वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में [[सिन्धु घाटी सभ्यता]] ७००० ई पू विकसित हुई, जो [[२६वीं शताब्दी ईसा पूर्व]] और [[२०वीं शताब्दी ईसा पूर्व]] के मध्य अपने चरम पर थी। [[वैदिक सभ्यता]] का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से ४००० ई पू तक जाता है।


==पहला नगरीकरण (3300 ईसापूर्व–1500 ईसापूर्व)==
== राष्ट्र के रूप में उदय ==
===सिन्धु घाटी सभ्यता===
===द्रविड़ मूल===

== वैदिक सभ्यता (1500 ईसापूर्व–600 ईसापूर्व)==
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। [[श्रीमद्भागवत]] के पंचम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। [[श्रीमद्भागवत]] के पंचम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।


[[भारतीय दर्शन]] के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात [[ब्रह्मा]] के मानस पुत्र स्वायंभुव [[मनु]] ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त [[ध्रुव]] के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे ''आग्नीध्र'' जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे ''नाभि'' जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर ''अजनाभवर्ष'' प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे [[ऋषभदेव|ऋषभ]]। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने [[वानप्रस्थ आश्रम|वानप्रस्थ]] लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर ''अजनाभवर्ष'' प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को [[भारतवर्ष]] कहने लगे।
[[भारतीय दर्शन]] के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात [[ब्रह्मा]] के मानस पुत्र स्वायंभुव [[मनु]] ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त [[ध्रुव]] के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे ''आग्नीध्र'' जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे ''नाभि'' जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर ''अजनाभवर्ष'' प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे [[ऋषभदेव|ऋषभ]]। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने [[वानप्रस्थ आश्रम|वानप्रस्थ]] लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर ''अजनाभवर्ष'' प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को [[भारतवर्ष]] कहने लगे।


== दूसरा नगरीकरण (600 ईसापूर्व–200 ईसापूर्व)==
== प्राचीन भारत ==
[[चित्र:Map Of 16 Mahajanapada in Bengali-es.svg|200px|thumb|right|१६ महाजनपद]]
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{{main|प्राचीन भारत}}
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१००० ईसा पूर्व के पश्चात १६ [[महाजनपद]] उत्तर भारत में मिलते हैं। [[५वीं शताब्दी ईसा|५०० ईसवी]] पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए। उत्तर में [[मौर्य]] वंश, जिसमें [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] और [[अशोक]] सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोड़ी | [[१८० ईसवी]] के आरम्भ से, [[मध्य एशिया]] से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में [[इंडो-ग्रीक]], [[इंडो-स्किथिअन]], [[इंडो-पार्थियन]] और अंततः [[कुषाण]] राजवंश स्थापित हुए | [[तीसरी शताब्दी]] के आगे का समय जब भारत पर [[गुप्त वंश]] का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। [[दक्षिण भारत]] में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश [[चालुक्य]], [[चेर]], [[चोल]], [[कदम्ब]], [[पल्लव]] तथा [[पांड्य]] चले | [[प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक|विज्ञान]], [[भारतीय कला|कला]], [[भारतीय साहित्य|साहित्य]], [[भारतीय गणित|गणित]], [[खगोल शास्त्र]], [[प्राचीन प्रौद्योगिकी]], [[धर्म]], तथा [[दर्शन]] इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले |
१००० ईसा पूर्व के पश्चात १६ [[महाजनपद]] उत्तर भारत में मिलते हैं। [[५वीं शताब्दी ईसा|५०० ईसवी]] पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए। उत्तर में [[मौर्य]] वंश, जिसमें [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] और [[अशोक]] सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोड़ी | [[१८० ईसवी]] के आरम्भ से, [[मध्य एशिया]] से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में [[इंडो-ग्रीक]], [[इंडो-स्किथिअन]], [[इंडो-पार्थियन]] और अंततः [[कुषाण]] राजवंश स्थापित हुए | [[तीसरी शताब्दी]] के आगे का समय जब भारत पर [[गुप्त वंश]] का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। [[दक्षिण भारत]] में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश [[चालुक्य]], [[चेर]], [[चोल]], [[कदम्ब]], [[पल्लव]] तथा [[पांड्य]] चले | [[प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक|विज्ञान]], [[भारतीय कला|कला]], [[भारतीय साहित्य|साहित्य]], [[भारतीय गणित|गणित]], [[खगोल शास्त्र]], [[प्राचीन प्रौद्योगिकी]], [[धर्म]], तथा [[दर्शन]] इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले |


== मध्यकालीन भारत ==
== प्रारंभिक मध्यकालीन भारत (200 ईसापूर्व–1200 ईसवी)==
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12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर [[इस्लामी आक्रमणों]] के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग [[दिल्ली सल्तनत]] के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप [[मुगल]] वंश के अधीन। दक्षिण भारत में [[विजयनगर साम्राज्य]] शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये।
12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर [[इस्लामी आक्रमणों]] के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग [[दिल्ली सल्तनत]] के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप [[मुगल]] वंश के अधीन। दक्षिण भारत में [[विजयनगर साम्राज्य]] शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये।


==आधुनिक भारत ==
== गत मध्यकालीन भारत (1200 – 1526 ईसवी)==

==प्रारंभिक आधुनिक भारत (1526 – 1858 ईसवी)==
===भारत में उपनिवेश और ब्रिटिश राज===
===भारत में उपनिवेश और ब्रिटिश राज===
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17वीं शताब्दी के मध्यकाल में [[पुर्तगाल]], [[डच]], [[फ्रांस]], [[ब्रिटेन]] सहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और [[१८४० ई]] तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। [[१८५७ ई]] में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि [[भारतीय स्वतन्त्रता का प्रथम संग्राम|भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम]] से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे [[अंग्रेजी शासन]] के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।
17वीं शताब्दी के मध्यकाल में [[पुर्तगाल]], [[डच]], [[फ्रांस]], [[ब्रिटेन]] सहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और [[१८४० ई]] तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। [[१८५७ ई]] में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि [[भारतीय स्वतन्त्रता का प्रथम संग्राम|भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम]] से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे [[अंग्रेजी शासन]] के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।


== आधुनिक स्वतन्त्र भारत ==
== आधुनिक और स्वतन्त्र भारत (1850 ईसवी के बाद)==
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* [[स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास]]
* [[स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास]]
* [[भारत का आर्थिक इतिहास]]
* [[भारत का आर्थिक इतिहास]]

==सन्दर्भ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==

10:29, 16 फ़रवरी 2018 का अवतरण

यह विषय निम्न पर आधारित एक श्रृंखला का हिस्सा हैं:
भारत का इतिहास
भारत का इतिहास
Carved decoration of the gateway torana to the Great Sanchi Stupa, 3rd century BCE.

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है,[1] प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा।

वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी।

ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया।

आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है।

स्रोत

समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। सिंधु घाटी की लिपि, अशोक के शिलालेख, हेरोडोटस, फ़ा हियान, ह्वेन सांग, संगम साहित्य, मार्कोपोलो, संस्कृत लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में अल-बेरुनी और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियाँ हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं।

प्रागैतिहासिक काल (3300 ईसा पूर्व तक)

भीमबेटका के शैल-चित्र (३०,००० वर्ष पुराने)

भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण १००,००० से ८०,००० वर्ष पूर्व का है।। पाषाण युग (भीमबेटका, मध्य प्रदेश) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम ४०,००० ई पू से ९००० ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने ९००० वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में सिन्धु घाटी सभ्यता ७००० ई पू विकसित हुई, जो २६वीं शताब्दी ईसा पूर्व और २०वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी। वैदिक सभ्यता का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से ४००० ई पू तक जाता है।

पहला नगरीकरण (3300 ईसापूर्व–1500 ईसापूर्व)

सिन्धु घाटी सभ्यता

द्रविड़ मूल

वैदिक सभ्यता (1500 ईसापूर्व–600 ईसापूर्व)

भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।

भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वायंभुव मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।

दूसरा नगरीकरण (600 ईसापूर्व–200 ईसापूर्व)

१६ महाजनपद

१००० ईसा पूर्व के पश्चात १६ महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं। ५०० ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए। उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोड़ी | १८० ईसवी के आरम्भ से, मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीक, इंडो-स्किथिअन, इंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए | तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, कदम्ब, पल्लव तथा पांड्य चले | विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले |

प्रारंभिक मध्यकालीन भारत (200 ईसापूर्व–1200 ईसवी)

12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये।

गत मध्यकालीन भारत (1200 – 1526 ईसवी)

प्रारंभिक आधुनिक भारत (1526 – 1858 ईसवी)

भारत में उपनिवेश और ब्रिटिश राज

ब्रितानी भारत (१८६० ई)

17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० ई तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ ई में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।

आधुनिक और स्वतन्त्र भारत (1850 ईसवी के बाद)

भारत की स्वतन्त्रता और विभाजन साथ-साथ

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष चला। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई को सफल हुआ जब भारत ने अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, मगर देश को विभाजन कर दिया गया। तदुपरान्त 26 जनवरी, 1950 ई को भारत एक गणराज्य बना।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?".

बाहरी कड़ियाँ