"घराट": अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
==परिचय==
परम्परागत 'घराट' पर गांव-गांव में आटा पीसने का काम उस समय से यहां चल रहा है जब किसी ने [[वैकल्पिक ऊर्जा]] को एक अभियान के रूप में कभी लेने की कल्पना भी न की होगी। सूदूर गांवों में, जहां सड़क-बिजली जैसी सुविधाएं कभी पहुंची भी न थीं, वहां उस दौर में गांव से निकलने वाली जलधाराओं के सहारे आटा, मसाला, दाल पीसने का काम 'घराट' के सहारे चला करता था और आज भी चल रहा है। 'पनचक्की' अब केवल आटा-मसाले ही नहीं पीस रही बल्कि अब अपनी खुद की बिजली भी पैदा कर रही है। नैनीताल जिले में सडि़याताल के आस-पास ऐसे सोलह 'घराट' हैं जिनमें बिजली पैदाकर गांव वाले न सिर्फ अपने घर बल्कि आस-पास के घरों को भी रौशनी दे रहे हैं। भारत सरकार के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ने इन्हें आर्थिक अनुदान देकर बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया है।<ref>[http://panchjanya.com//Encyc/2015/7/11/घराट-और-गोबर-से-जगमग--जीवन.aspx घराट और गोबर से जगमग जीवन] (पाञ्चजन्य)</ref>
परम्परागत 'घराट' पर गांव-गांव में आटा पीसने का काम उस समय से यहां चल रहा है जब किसी ने [[वैकल्पिक ऊर्जा]] को एक अभियान के रूप में कभी लेने की कल्पना भी न की होगी। सूदूर गांवों में, जहां सड़क-बिजली जैसी सुविधाएं कभी पहुंची भी न थीं, वहां उस दौर में गांव से निकलने वाली जलधाराओं के सहारे आटा, मसाला, दाल पीसने का काम 'घराट' के सहारे चला करता था और आज भी चल रहा है। 'पनचक्की' अब केवल आटा-मसाले ही नहीं पीस रही बल्कि अब अपनी खुद की बिजली भी पैदा कर रही है। नैनीताल जिले में सडि़याताल के आस-पास ऐसे सोलह 'घराट' हैं जिनमें बिजली पैदाकर गांव वाले न सिर्फ अपने घर बल्कि आस-पास के घरों को भी रौशनी दे रहे हैं। भारत सरकार के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ने इन्हें आर्थिक अनुदान देकर बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया है।<ref>[http://panchjanya.com//Encyc/2015/7/11/घराट-और-गोबर-से-जगमग--जीवन.aspx घराट और गोबर से जगमग जीवन] (पांचजन्य)</ref>


==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ==

10:29, 3 फ़रवरी 2018 का अवतरण

घराट उत्तराखण्ड में परम्परागत रूप से प्रयुक्त एक प्रकार का जलचालित यंत्र (पनचक्की) है जो गेहूँ आदि पीसने के काम आता है। आजकल वियुतचालित आटा-चक्कियों के अधिकाधिक प्रयोग से घराट का प्रचलन बहुत कम हो गया है।

परिचय

परम्परागत 'घराट' पर गांव-गांव में आटा पीसने का काम उस समय से यहां चल रहा है जब किसी ने वैकल्पिक ऊर्जा को एक अभियान के रूप में कभी लेने की कल्पना भी न की होगी। सूदूर गांवों में, जहां सड़क-बिजली जैसी सुविधाएं कभी पहुंची भी न थीं, वहां उस दौर में गांव से निकलने वाली जलधाराओं के सहारे आटा, मसाला, दाल पीसने का काम 'घराट' के सहारे चला करता था और आज भी चल रहा है। 'पनचक्की' अब केवल आटा-मसाले ही नहीं पीस रही बल्कि अब अपनी खुद की बिजली भी पैदा कर रही है। नैनीताल जिले में सडि़याताल के आस-पास ऐसे सोलह 'घराट' हैं जिनमें बिजली पैदाकर गांव वाले न सिर्फ अपने घर बल्कि आस-पास के घरों को भी रौशनी दे रहे हैं। भारत सरकार के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ने इन्हें आर्थिक अनुदान देकर बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया है।[1]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ