"कर्पूरी ठाकुर": अवतरणों में अंतर

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वह जन नायक कहलाते हैं। सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ जिया। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था, वह सदा गरीबों के हक़ के लिए लड़ते रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया।<ref>http://www.jagran.com/uttar-pradesh/mau-11039795.html</ref> उनका जीवन लोगों के लिया आदर्श से कम नहीं।<ref>http://www.bhaskar.com/news/JHA-120857-2889511.html</ref>
वह जन नायक कहलाते हैं। सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ जिया। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था, वह सदा गरीबों के हक़ के लिए लड़ते रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया।<ref>http://www.jagran.com/uttar-pradesh/mau-11039795.html</ref> उनका जीवन लोगों के लिया आदर्श से कम नहीं।<ref>http://www.bhaskar.com/news/JHA-120857-2889511.html</ref>
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ऐसे थे जननायक कर्पूरी ठाकुर -
1.जननायक कर्पूरी ठाकुर की जब मृत्यु हुयी,तो उनके खाते मे सिर्फ 500 रू. थे।
2.मृत्यु के समय इनका अपना कोई निजी घर नहीँ था।
3.मुख्यमँत्री रहते हुये भी इनके पैतृक झोपडे मे कोई बदलाव नही आया।
4.अपने मुख्यमँत्रित्व काल मे कोई भी इन पर बेईमानी का आरोप नहीँ लगा।
5.मुख्यमँत्री रहते हुये भी यदि किसी ने इन्हे कोई छोटा कागज दिया या कुछ नोट करा दिया तो उसे सँभालकर रखते थे.और कहते थे कि यदि खो जायेगा तो विश्वातघात हो जायेगा।
6.मुख्यमँत्री रहते हुये भी यदि कोई इनके बेडरूम मे जाकर बेड पर सो जाता था,तो वे स्वयँ जमीन पर दरी पर सोते थे।
7.ये जनता से स्वयँ मिलते थे। और यदि कोई इनसे मिलने आता था,तो उससे कहते थे कि हम स्वयँ आप के दरवाजे पर आते।आप क्यो आ गये।
8.जननायक जी ने कभी भी अपने निजी काम के लिये सरकारी वाहन का इस्तेमाल नहीँ किया।


== राजनीतिक जीवन ==
== राजनीतिक जीवन ==

02:40, 21 जनवरी 2018 का अवतरण

कर्पुरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।[1][1] लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था।[2][3] कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गाँव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में हुआ था।[2][4] भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने २६ महीने जेल में बिताए थे। वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।[1]

व्यक्तिगत जीवन

वह जन नायक कहलाते हैं। सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ जिया। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था, वह सदा गरीबों के हक़ के लिए लड़ते रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया।[5] उनका जीवन लोगों के लिया आदर्श से कम नहीं।[6] [7]

ऐसे थे जननायक कर्पूरी ठाकुर - 1.जननायक कर्पूरी ठाकुर की जब मृत्यु हुयी,तो उनके खाते मे सिर्फ 500 रू. थे। 2.मृत्यु के समय इनका अपना कोई निजी घर नहीँ था। 3.मुख्यमँत्री रहते हुये भी इनके पैतृक झोपडे मे कोई बदलाव नही आया। 4.अपने मुख्यमँत्रित्व काल मे कोई भी इन पर बेईमानी का आरोप नहीँ लगा। 5.मुख्यमँत्री रहते हुये भी यदि किसी ने इन्हे कोई छोटा कागज दिया या कुछ नोट करा दिया तो उसे सँभालकर रखते थे.और कहते थे कि यदि खो जायेगा तो विश्वातघात हो जायेगा। 6.मुख्यमँत्री रहते हुये भी यदि कोई इनके बेडरूम मे जाकर बेड पर सो जाता था,तो वे स्वयँ जमीन पर दरी पर सोते थे। 7.ये जनता से स्वयँ मिलते थे। और यदि कोई इनसे मिलने आता था,तो उससे कहते थे कि हम स्वयँ आप के दरवाजे पर आते।आप क्यो आ गये। 8.जननायक जी ने कभी भी अपने निजी काम के लिये सरकारी वाहन का इस्तेमाल नहीँ किया।

राजनीतिक जीवन

1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठतम नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और राज्य के दो बार मुख्यमंत्री बने।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ