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[[चित्र:Franz Krüger - Portrait of Emperor Nicholas I - WGA12289.jpg|thumb|300px|right|निकोलस प्रथम]]
'''निकोलस प्रथम''' ([[रूसी]] : Николай I Павлович, निकोलाई पावलोविश ; १७९६-१८५५) : सन १८२५ से १८५५ तक [[रूस]] का [[ज़ार]] (सम्राट) था।
== परिचय ==
कांस्टेंटाइन पावलोविश के राजसिंहासन त्याग के बाद २४ दि. १८२५ को राज्यकार्य सँभाला। इसके दो दिन बाद सेंट पीर्ट्सवर्ग (लेनिनग्राड) में विद्रोह हुआ। किंतु यह दबा दिया गया। मास्को में ३ सितंबर १८२६ को विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। इसकी नीति दृढ़ एवं निरंकुश राजतंत्र की थी। आंतरिक शांति की रक्षा का भार इसने सेना की सौपा। अर्धदासता को दूर करने का कानून बनाया। रूस को लोकतंत्र की हवा तक स्पर्श न करे, इसका कड़ाई से प्रबंध किया। गुप्तचर पुलिस का आतंक बिठा दिया। शासन भ्रष्ट तथा असंगठित था और कर्मचारी अकुशल थे। विश्वविद्यालयों, कालेजों और छात्रों पर इसने कड़ी नजर रखी। नए विचार फैलने न पावें, इस और सतर्कता से ध्यान दिया।
इसका शरीर सुदृढ़ और प्रभावशाली था। इसकी कार्य करने शक्ति अपार थी। आठ, नौ घंटे प्रति दिन राजकाज देखता था। सब जगह से आई रिपोर्टों को स्वत: पढ़ता, क्या करना चाहिए इसका स्वत: निर्णय करता और दिन भर का काम हरेक विभाग को बताता। रूसी शासन को मंत्रालयों में इसने की विभक्त किया। इसके सामने सदा यही समस्या रही, सत्ता और अधिकार किसको दे? इसका किसी पर विश्वास नहीं था। अत: किसी को भी योग्य
इसकी परराष्ट्र नीति यह थी कि [[काला सागर]] को रूस की [[झील]] बनाया जाए, 'यूरोप के रोगी' [[तुर्की]] का अंत किया जाए और यूरोप की राजनीति में रूस की प्रधानता मानी जाए। तुर्कों के साथ इसने दो युद्ध किए। पहले का अंत (१८२८-२९) [[एड्रियानोपल की संधि]] से हुआ और [[ग्रीस]] की स्वाधीनता की नींव पड़ी। दूसरी लड़ाई [[क्रीमिया युद्ध]] (१८५३) के नाम से प्रसिद्ध है। तुर्की का साथ इंग्लैड और फ्रांस ने दिया। लड़ाई अभी चल रही थी, जब इसका १८५५ में देहांत हो गया। रूस का मनोरथ पूर्ण न हुआ, पर [[रूमानिया]] और [[सर्बिया]] की स्वाधीनता का उदय हुआ। तीन सम्राटों के संघ का एक सदस्य होने से इसने [[आस्ट्रिया]] की ओर से [[हंगरी]] में विद्रोह का दमन किया। १८३० में [[वारसा]] में पोलों ने विद्रोह किया था। परंतु इसका इसने कुचल दिया और ४३ हजार पोल परिवारों को [[काकेशिया]] में बसाया, जिससे पोल पूर्णत: रूसी हो जाएँ और पोलिश स्वाधीनता की भावना का अंत हो जाए।
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