"इलाचन्द्र जोशी": अवतरणों में अंतर
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इलाचन्द्र जोशी (अंग्रेज़ी: Ilachandra Joshi, जन्म- 13 दिसम्बर 1903 - मृत्यु- 1982) हिन्दी |
'''इलाचन्द्र जोशी''' (अंग्रेज़ी: Ilachandra Joshi, जन्म- 13 दिसम्बर 1903 - मृत्यु- 1982) हिन्दी लेखक थे।<ref>http://www.hindisamay.com/writer/%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80.cspx?id=1961&name=%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80</ref> |
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प्रतिभा सम्पन्न |
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जोशी जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे। उत्तरांचल में जन्मे होने के कारण, वहाँ के प्राकृतिक [[वातावरण]] का इनके चिन्तन पर बहुत प्रभाव पड़ा। अध्ययन में रुचि रखन वाले इलाचन्द्र जोशी ने छोटी उम्र में ही भारतीय महाकाव्यों के साथ-साथ विदेश के प्रमुख कवियों और [[उपन्यासकार|उपन्यासकारों]] की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। औपचारिक शिक्षा में रुचि न होने के कारण इनकी स्कूली शिक्षा मैट्रिक के आगे नहीं हो सकी, परन्तु स्वाध्याय से ही इन्होंने अनेक भाषाएँ सीखीं। घर का वातावरण छोड़कर इलाचन्द्र जोशी कोलकाता पहुँचे। वहाँ उनका सम्पर्क [[शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय]] से हुआ। |
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उपन्यासकार |
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जोशी जी एक उपन्यासकार के रूप में ही अधिक प्रतिष्ठित हैं। उनके कवि, आलोचक या कहानीकार का रूप बहुत खुलकर सामने नहीं आया। इनके उपन्यासों का आधार मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद की संज्ञा पाता है। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों पर ‘फ़्रायड’ के चिन्तन का अधिक प्रभाव पड़ा, किन्तु इलाचन्द्र जोशी के साथ यह बात पूरी तरह से लागू नहीं होती। जोशी जी ने पाश्चात्य लेखकों को भी बहुत पढ़ा था, पर रूसी उपन्यासकारों-टॉल्स्टॉय और दॉस्त्योवस्की का प्रभाव अधिक लक्षित होता है। यही कारण है कि उनके औपन्यासिक चरित्रों में आपत्तिजनक प्रतृत्तियाँ होती हैं, किन्तु उनके चरित्र नायकों में सदगुणों की भी कमी नहीं होती। उदारता, दया, सहानुभूति आदि उनके अन्दर यथेष्ट रूप में पाए जाते हैं। ये नायक इन्हीं कारणों से असामाजिक कार्य भले कर बैठते हैं, किन्तु बाद में वे पश्चाताप भी करते हैं। |
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'जैनेन्द्र, इलाचन्द्र जोशी तथा अज्ञेय ने हिन्दी साहित्य को एक नया मोड दिया था। ये मूलतः मानव [[मनोविज्ञान]] के लेखक थे जिन्होंने हिन्दी साहित्य को बाहरी घटनाओं की अपेक्षा मन के भीतर के संसार की ओर मोडा था।.. इलाचन्द्र जोशी के अधिकतम उपन्यास उनके पात्रों के मनोलोक की गाथाएँ हैं जिनका अपने बाहरी संसार से टकराव होता है।'[1] |
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रचनाएँ |
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उपन्यास के अतिरिक्त इन्होंने हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में भी योगदान दिया है। इन्होंने कहानियाँ भी लिखीं। इनके चर्चित कहानी संग्रह निम्नलिखित हैं- |
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कहानी |
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धूपरेखा |
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आहुति |
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खण्डहर की आत्माएँ |
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जीवनी |
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रवीन्द्रनाथ |
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शरद: व्यक्ति और साहित्यकार |
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जीवन का महान विश्लेषक विराटवादी कवि गेटे |
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आलोचनात्मक ग्रन्थ |
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साहित्य सर्जन |
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साहित्य चिन्तन |
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विश्लेषण |
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उपन्यास |
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जोशीजी ‘कोलकाता समाचार’, ‘चाँद’, ‘विश्ववाणी’, ‘सुधा’, ‘सम्मेलन पत्रिका’, ‘संगम’, ‘धर्मयुद्ध’ और ‘साहित्यकार’ जैसे पत्रिकाओं के सम्पादन से भी जुड़े रहे। इन्होंने बाल-साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। कुछ अनुवाद कार्य भी किए। इलाचन्द्र जोशी के प्रमुख उपन्यास इस प्रकार हैं- |
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घृणामयी - बाद में यही उपन्यास ‘लज्जा’ नाम से प्रकाशित हुआ। घृणामयी 1929 में प्रकाशित हुई। |
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लज्जा 21 वर्षों के बाद 1950 में। |
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संन्यासी |
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परदे की रानी |
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प्रेत और छाया |
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मुक्तिपथ |
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जिप्सी |
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जहाज़ का पंछी |
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भूत का भविष्य |
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सुबह |
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निर्वासित |
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ऋतुचक्र |
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अन्य कार्य |
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'साहित्य सर्जना', 'विवेचना', 'साहित्य चिन्तन', 'रवीन्द्रनाथ', 'उपनिषद की कथाएँ', 'सूदखोर की पत्नी' आदि समालोचना और निबन्ध के ग्रन्थ हैं। इन्होंने कुछ समय तक आकाशवाणी में भी काम किया और रवीन्द्र की रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद किया। जोशीजी ने बंगला और अंग्रेज़ी में भी कुछ रचनाएँ की हैं। |
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लेखन के विषय |
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जोशी जी मात्र मनोवैज्ञानिक यथार्थवादी उपन्यासकार नहीं कहे जाएँगे। उन्होंने आदर्श को भी अपनी कृतियों में स्थान दिया। उन्होंने अपनी औपन्यासिक कृतियों से समाज में उच्चतर मूल्यों की स्थापना का सफल प्रयास किया है। सही है कि उन्होंने काम वासना को भी अपने उपन्यासों का उपजीव्य बनाया है और वेश्याओं तक को अपनी कृतियों की नायिका बना दिया है। पर नारी-समस्याओं को उभारने में भी वे आगे रहे हैं और उनका समाधान भी प्रस्तुत किया है। एक बात यह भी है कि जोशी जी ने अन्य उपन्यासकारों अथवा नाटककारों की तरह अपनी कृतियों के लिए धीरोदत्त नायकों की सृष्टि नहीं की। उनके नायक मनुष्य की स्वाभाविक दुर्बलताओं से युक्त होते हैं, भले ही कालक्रम से वे अपने अधिकांश दोषों से मुक्त हो जाते हैं और एक आदर्श व्यक्ति के रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं। |
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मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार ‘फ्रायड’ के सिद्धान्तों से प्रभावित होते हैं, भले ही जोशी जी ‘फ्रायड’ से बहुत प्रभावित नहीं हों। एक बात फिर भी रह ही जाती है कि जोशी जी ने उन मनोग्रन्थियों और कुंठाओं को पकड़ने का प्रयास किया है, जो दमित मनोभावों से उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि उनकी औपन्यासिक कृतियों में कुंठा-ग्रस्त पात्रों की अधिकता है। साहित्यकार नागेन्द्र ने इन्हें सीधे-सीधे ‘फ्रायड’ से प्रभावित माना है; जैनेन्द्र और अज्ञेय ‘फ्रायड’ के मनोविज्ञान से प्रभावित हैं, तो इलाचन्द्र जोशी उसके मनोविश्लेषण से......वे कहीं भी मनोविश्लेषणात्मक प्रवृत्ति और छायावादी संस्कारों से उबर नहीं पाते....इनके मुख्य पात्र किसी-न-किसी मनोवैज्ञानिक ग्रन्थि के शिकार हैं। जब तक उन्हें ग्रन्थि का रहस्य नहीं मालूम होता, तब तक वे अनेक प्रकार के असामाजिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, किन्तु जिस क्षण उनकी ग्रन्थियों का मूलोदघाटन हो जाता है, उसी क्षण से वे सामान्य स्थिति में पहुँच जाते हैं। |
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हिन्दी में मनोवैज्ञानिक उपन्यासों का प्रारम्भ श्री जोशी से ही हुआ, लेकिन श्री जोशी ने मात्र मनोवैज्ञानिक यथार्थ का निरूपण न कर अपनी रचनाओं को आदर्शपरक भी बनाया। जिस तरह प्रेमचन्द सामाजिक उपन्यासों में आदर्शोंन्मुख यथार्थवाद के लिए विख्यात हैं, उसी तरह श्री इलाचन्द्र जोशी मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों में अपनी आदर्शवादी मनोवैज्ञानिकता के लिए प्रशंसनीय हैं। उन्होंने वेश्याओं की तरह तथाकथित पतित नारियों में भी सुधार एवं विकास की सम्भावनाएँ ढूँढीं। इन्हें भी महिमामण्डित कर इनमें आत्मविश्वास भरने और समाज की दृष्टि में इन्हें ऊँचा उठाने का प्रयास किया। |
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आलोचना |
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हिन्दी कथालोचना के इस दौर में जिन [[लेखक|लेखकों]] ने कथा साहित्य के अध्ययन विश्लेषण की गंभीर शुरुआत की वे [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] और इलाचन्द्र जोशी हैं। इन दोनों ने ही विश्व साहित्य की खिड़की हिन्दी उपन्यास के नये निकले आँगन में खोली। दोनों ने ही विश्व और [[भारत]] में मुख्यतः बंगला साहित्य के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी कथा साहित्य के मूल्यांकन की पहल की। इनमें इलाचन्द्र जोशी अपनी व्यक्तिवादी अहंवृत्ति के कारण कथा साहित्य आस्वादक कम उसके एकांगी आलोचक और दोष-दर्शक ही अधिक बने रहे। शरतचन्द्र पर लिखे गये अपने संस्मरणों में अपने अध्ययन का बखान करते हुए वे शरतचन्द्र पर जिस तरह टिप्पणी करते हैं उससे उनकी इस अहंवृत्ति को समझा जा सकता है।[2] |
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[[चित्र:Http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/6/60/Ila-Chandra-Joshi.jpg|thumbnail|इलाचन्द्र जोशी ]] |
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==सन्दर्भ== |
==सन्दर्भ== |
17:01, 30 अप्रैल 2017 का अवतरण
इलाचन्द्र जोशी (अंग्रेज़ी: Ilachandra Joshi, जन्म- 13 दिसम्बर 1903 - मृत्यु- 1982) हिन्दी लेखक थे।[1]