"पुष्पक विमान": अवतरणों में अंतर

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==ग्रन्थों में उल्लेख==
==ग्रन्थों में उल्लेख==
===विमान निर्माण===
[[ऋगवेद]] में लगभग २०० से अधिक बार विमानों के बारे में उल्लेख दिया है। इसमें कई प्रकार के विमान जैसे तिमंजिला, [[त्रिभुज]] आकार के एवं तीन पहिये वाले, आदि विमानों का उल्लेख है। इनमें से कई विमानों का निर्माण [[अश्विनी कुमार|अश्विनी कुमारों]] ने किया था, जो दो जुड़वां देव थे, एवं उन्हें वैज्ञानिक का दर्जा प्राप्त था। इन में साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे एवं उन के दोनो ओर पंख होते थे। इन उपकरणों के निर्माण में मुख्यतः तीन धातुओं- [[स्वर्ण]], [[रजत]] तथा [[लौह]] का प्रयोग किया गया था। वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। उदाहरणतया अग्निहोत्र विमान में दो ऊर्जा स्रोत (ईंजन) तथा हस्ति विमान में दो से अधिक स्रोत होते थे। किसी विमान का रुप व आकार आज के [[किंगफिशर]] पक्षी के अनुरूप था।<ref name="ट्री"> एक जलयान भी होता था जो वायु तथा जल दोनो में चल सकता था।<ref>([[ऋगवेद]] ६.५८.०३)</ref> कारा नामक विमान भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। <ref>(ऋग वेद 9.14.1)</ref> त्रिताला नामक विमान तिमंजिला था।<ref>(ऋग वेद 3.14.1)</ref> त्रिचक्र रथ नामक तीन पहियों वाला यह विमान आकाश में उड सकता था।<ref>(ऋग वेद 4.36.1)</ref> किसी रथ के जैसा प्कीरतीत होने वाला विमान वाष्प अथवा वायु की शक्ति से चलता था।<ref>(ऋग वेद 5.41.6)</ref> विद्युत-रथ नामक विमान विद्युत की शक्ति से चलता था।<ref>(ऋग वेद 3.14.1)</ref>

===पुष्पक उल्लेख===

प्राचीन हिन्दू साहित्य में देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाये गए अनेक विमानों का वर्णन मिलता है। जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा द्वारा पितामह [[ब्रह्मा]] के प्रयोग हेतु पुष्पक विमान का निर्माण किया गया था। विश्वकर्मा, की माता सती योगसिद्धा थीं।<ref>[http://www.bharatdiscovery.org/india/पुष्पक_विमान पुष्पक विमान], भारत डिस्कवरी पर। अभिगमन तिथि: २३ मार्च, २०१७</ref> देवताओं के साथ ही आठ वसु भी बताये जाते हैं, जिनमें आठवें [[वसु]] [[प्रभास]] की पत्नी योगसिद्धा थीं। यही प्रभास थे जिन्हें [[महाभारत]] के अनुसार [[वशिष्ठ]] ऋषि ने श्राप दिया था कि उन्हें मृत्यु लोक में काफ़ी समय व्यतीत करना होगा। तब गंगा ने उनकी माता बनना स्वीकार किया, तथा गंगा-[[शांतनु]] के आठवें पुत्र के रूप में उन्होंने देवव्रत नाम से जन्म लिया था, व कालांतर में अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण [[भीष्म]] कहलाये थे। इन्हीं प्रभास-योगसिद्धा संतति विश्वकर्मा द्वारा देवताओं के विमान तथा अस्त्र-शस्त्र का तथा महल-प्रासादों का निर्माण किया जाता था। वाल्मीकि में इस विमान का विस्तार से वर्णन है:
प्राचीन हिन्दू साहित्य में देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाये गए अनेक विमानों का वर्णन मिलता है। जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा द्वारा पितामह [[ब्रह्मा]] के प्रयोग हेतु पुष्पक विमान का निर्माण किया गया था। विश्वकर्मा, की माता सती योगसिद्धा थीं।<ref>[http://www.bharatdiscovery.org/india/पुष्पक_विमान पुष्पक विमान], भारत डिस्कवरी पर। अभिगमन तिथि: २३ मार्च, २०१७</ref> देवताओं के साथ ही आठ वसु भी बताये जाते हैं, जिनमें आठवें [[वसु]] [[प्रभास]] की पत्नी योगसिद्धा थीं। यही प्रभास थे जिन्हें [[महाभारत]] के अनुसार [[वशिष्ठ]] ऋषि ने श्राप दिया था कि उन्हें मृत्यु लोक में काफ़ी समय व्यतीत करना होगा। तब गंगा ने उनकी माता बनना स्वीकार किया, तथा गंगा-[[शांतनु]] के आठवें पुत्र के रूप में उन्होंने देवव्रत नाम से जन्म लिया था, व कालांतर में अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण [[भीष्म]] कहलाये थे। इन्हीं प्रभास-योगसिद्धा संतति विश्वकर्मा द्वारा देवताओं के विमान तथा अस्त्र-शस्त्र का तथा महल-प्रासादों का निर्माण किया जाता था। वाल्मीकि में इस विमान का विस्तार से वर्णन है:



06:10, 29 मार्च 2017 का अवतरण

पुष्पक विमान

पुष्पकविमान हिन्दू पौराणिक महाकाव्य रामायण में वर्णित वायु-वाहन था| इसमें लंका के राजा रावण आवागमन किया करता था। इसी विमान का उल्लेख सीता हरण प्रकरण में भी मिलता है। रामायण के अनुसार राम-रावण युद्ध के बाद श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा लंका के नवघोषित राजा विभीषण तथा अन्य बहुत लोगों सहित लंका से अयोध्या आये थे। यह विमान मूलतः धन के देवता, कुबेर के पास हुआ करता था, किन्तु रावण ने अपने इस छोटे भ्राता कुबेर से बलपूर्वक उसकी नगरी सुवर्णमण्डित लंकापुरी तथा इसे छीन लिया था।[1][2] अन्य ग्रन्थों में उल्लेख अनुसार पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि अंगिरा ऋषि द्वारा एवं इसका निर्माण एवं साज-सज्जा देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा की गयी थी। भारत के प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में लगभग दस हजार वर्ष पूर्व विमानों एवं युद्धों में तथा उनके प्रयोग का विस्तृत वर्णन दिया है। इसमें बहुतायत में रावन के पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा अन्य सैनिक क्षमताओं वाले विमानों, उनके प्रयोग, विमानों की आपस में भिडंत, अदृश्य होना और पीछा करना, ऐसा उल्लेख मिलता है। यहां प्राचीन विमानों की मुख्यतः दो श्रेणियाँ बताई गई हैं- प्रथम मानव निर्मित विमान, जो आधुनिक विमानों की भांति ही पंखों के सहायता से उडान भरते थे, एवं द्वितीय आश्चर्य जनक विमान, जो मानव द्वारा निर्मित नहीं थे किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक उडन तशतरियों के अनुरूप हुआ करता था।[3]


विशेष गुण

मोढेरा स्थित सूर्य मंदिर के स्तम्भ में रावण द्वारा पुष्पक विमान से सीता हरण का दृश्य

इस विमान में बहुत सी विशेषताएं थीं, जैसे इसका आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता था। कहीं भी आवागमन हेतु इसे अपने मन की गति से असीमित चलाया जा सकता था। यह नभचर वाहन होने के साथ ही भूमि पर भी चल सकता था। इस विमान में स्वामी की इच्छानुसार गति के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों के सवार होने की क्षमता भी थी। यह विमान यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के हिसाब से स्वमेव अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था।[4] क्योंकि विमान गगन में अपने स्वामी की इच्छा के अनुसार भ्रमण करने में सक्षम था, अतः इसे इसके स्वामी कुबेर द्वार देवताओं को यात्रा कर के लिये भी दिया जाता था। एक बार रावण ने कुबेर से उसकी नगरी लंकापुरी एवं यह यह विमान बलपूर्वक छीन लिया था, तभी कुबेर ने वर्तमान तिब्बत के निकट नयी नगरी अलकापुरी का निर्माण करवाया। रावण के वध उपरान्त भगवान राम ने इसे लेकर एकल प्रयोग उपरान्त इसके मूल स्वामी कुबेर को लौटा दिया था। इस एकल प्रयोग को विभीषण के बहुत निवदन पर राम ने सब लोगों के लंका से अयोध्या वापसी हेतु प्रयोग किया था।[4][5]

वर्त्तमान श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च समित्ति के अनुसार रावण के पास अपने पुष्पक विमान को रखने के लिए चार विमानक्षेत्र थे। इन चार विमानक्षेत्त्रों में से एक का नाम उसानगोड़ा था। इस हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय जलाकर नष्ट कर दिया था। अन्य तीन हवाई अड्डे गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला थे जो सुरक्षित बच गए।[5]

ग्रन्थों में उल्लेख

विमान निर्माण

ऋगवेद में लगभग २०० से अधिक बार विमानों के बारे में उल्लेख दिया है। इसमें कई प्रकार के विमान जैसे तिमंजिला, त्रिभुज आकार के एवं तीन पहिये वाले, आदि विमानों का उल्लेख है। इनमें से कई विमानों का निर्माण अश्विनी कुमारों ने किया था, जो दो जुड़वां देव थे, एवं उन्हें वैज्ञानिक का दर्जा प्राप्त था। इन में साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे एवं उन के दोनो ओर पंख होते थे। इन उपकरणों के निर्माण में मुख्यतः तीन धातुओं- स्वर्ण, रजत तथा लौह का प्रयोग किया गया था। वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। उदाहरणतया अग्निहोत्र विमान में दो ऊर्जा स्रोत (ईंजन) तथा हस्ति विमान में दो से अधिक स्रोत होते थे। किसी विमान का रुप व आकार आज के किंगफिशर पक्षी के अनुरूप था।सन्दर्भ त्रुटि: <ref> टैग के लिए समाप्ति </ref> टैग नहीं मिला कारा नामक विमान भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। [6] त्रिताला नामक विमान तिमंजिला था।[7] त्रिचक्र रथ नामक तीन पहियों वाला यह विमान आकाश में उड सकता था।[8] किसी रथ के जैसा प्कीरतीत होने वाला विमान वाष्प अथवा वायु की शक्ति से चलता था।[9] विद्युत-रथ नामक विमान विद्युत की शक्ति से चलता था।[10]

पुष्पक उल्लेख

प्राचीन हिन्दू साहित्य में देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाये गए अनेक विमानों का वर्णन मिलता है। जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा द्वारा पितामह ब्रह्मा के प्रयोग हेतु पुष्पक विमान का निर्माण किया गया था। विश्वकर्मा, की माता सती योगसिद्धा थीं।[11] देवताओं के साथ ही आठ वसु भी बताये जाते हैं, जिनमें आठवें वसु प्रभास की पत्नी योगसिद्धा थीं। यही प्रभास थे जिन्हें महाभारत के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था कि उन्हें मृत्यु लोक में काफ़ी समय व्यतीत करना होगा। तब गंगा ने उनकी माता बनना स्वीकार किया, तथा गंगा-शांतनु के आठवें पुत्र के रूप में उन्होंने देवव्रत नाम से जन्म लिया था, व कालांतर में अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाये थे। इन्हीं प्रभास-योगसिद्धा संतति विश्वकर्मा द्वारा देवताओं के विमान तथा अस्त्र-शस्त्र का तथा महल-प्रासादों का निर्माण किया जाता था। वाल्मीकि में इस विमान का विस्तार से वर्णन है:

चित्र रामायण में प्रदर्शित पुष्पक विमान

मेघों के समान उच्च, स्वर्ण समान कान्तिमय, पुष्पक भूमि पर एकत्रित स्वर्ण के समान प्रतीत होता था। ढेरों रत्नों से विभूषित, अनेक प्रकार के पुष्पों से आच्छादित तथा पुष्प-पराग से भरे हुए पर्वत शिखर के समान शोभा पाता था। विधुन्मालाओं से पूजित मेघ के समान रमणी रत्नों से देदीप्यमान था। आकाश में विचरण करते हुए यह श्रेष्ठ हंसों द्वारा खींचा जाते हुए दिखाई देता था। इसका निर्माण अति सुन्दर ढंग से किया गया था, एवं अद्भुत शोभा से सम्पन्न दिखता था। इसके निर्माण में अनेक धातुओं का प्रयोग इस प्रकार से किया गया था कि यह पर्वत शिखर ग्रहों और चन्द्रमा के कारण आकाश और अनेक वर्णों से युक्त विचित्र शोभासम्पन्न दिखता था। उसका भूमि क्षेत्र स्वर्ण-मण्डित कृत्रिम पर्वतमालाओं से परिपूर्ण था। वहां अनेक पर्वत वृक्षों की विस्तृत पंक्तियों से हरे भरे रचे गए थे। इन वृक्षों पर पुष्पों का बाहुल्य था एवं ये पुष्प पंखुडियों से पूर्ण मण्डित थे। उसके अन्दर श्वेत वर्ण के भवन थे तथा उसे विचित्र वन और अद्भुत सरोवरों के चित्रों से सज्ज किया गया था। वह रत्नों की आभा से प्रकाशमान था एवं आवश्यकतानुसार कहीं भी भ्रमण करता था।[12]

इसकी शोभा अद्भुत थी जिसमें नाना प्रकार के रत्नों से अनेक रंगों के सर्पों का अंकन किया गया था, तथा अच्छी प्रजाति के सुन्दर अंग वाले अश्व भी बने थे। विमान पर अति-सुन्दर मुख एवं पंख वाले अनेक विंहगम चित्र बने थे, जो एकदम कामदेव के सहायक जान पड़ते थे। यहां गजों की सज्जा मूंगे और स्वर्ण निर्मित फूलों से युक्त थी तथा उन्होंने अपने पंखों को समेट रखा था, जो देवी लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए से प्रतीत होते थे। उनके साथ ही वहां देवी लक्ष्मी की तेजोमय प्रतिमा भी स्थापित थी, जिनका उन गजों द्वारा अभिषेक हो रहा था। इस प्रकार सुन्दर कंदराओं वाले पर्वत के समान तथा बसंत ऋतु मे सुन्दर कोटरों वाले परम सुगंध युक्त वृक्ष के समान वह विमान बड़ा मनोहारी था।[4] वाल्मीकि रामायण के अनुसार पुष्पक विमान कुछ ऐसा हुआ करता था:

तस्य ह्म्यर्स्य मध्यथ्वेश्म चान्यत सुनिर्मितम। बहुनिर्यूह्संयुक्तं ददर्श पवनात्मजः॥

वाल्मीकि रामायण[13]

हनुमान जी ने जब इस अद्भुत विमान को देखा तो वे भी आश्चर्यचकित हो गयेथे। रावण के महल के निकट रखा हुए इस विमान का विस्तार एक योजन लम्बा और आधे योजन चौड़ा था एवं सुन्दर महल के सामान प्रतीत होता था। इस दिव्य विमान को विभिन्न प्रकार के रत्नों से भूषित कर स्वर्ग में देवशिल्पी विश्वकर्मा ने ब्रह्मा के लिए निर्माण किया था। जो कालान्तर में रावण के अधिकार में आ गया। यह विमान पूरे विश्व के लिए उस समय किसी आश्चर्य से कम नहीं था, न ही अब है।

पौराणिक सन्दर्भ

विमान निर्माण, उसके प्रकार एवं संचालन का संपूर्ण विवरण महार्षि भारद्वाज विरचित वैमानिक शास्त्र में मिलता है। यह ग्रंथ उनके मूल प्रमुख ग्रंथ यंत्र-सर्वेश्वम् का एक भाग है। इसके अतिरक्त भारद्वाज ने अंशु-बोधिनी नामक ग्रंथ भी लिखा है, जिसमें ब्रह्मांड विज्ञान का ही वर्णन है। उस समय के इसी ज्ञान से निर्मित व परिचालित होने वाले विमान, ब्रह्माण्ड के विभिन्न ग्रहों में विचरण किया करते थे। इस वैमानिक-शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण, पांच सौ सूत्र (सिद्धांत) और तीन हजार श्लोक हैं। यह ग्रंथ वैदिक संस्कृत भाषा में लिखा है।

इस विमान में जो तकनीक प्रयोग हुई है, उसके पीछे आध्यात्मिक विज्ञान ही है। ग्रन्थों के अनुसार आज में किसी भी पदार्थ को जड़ माना जाता है, किन्तु प्राचीन काल में सिद्धिप्राप्त लोगों के पास इन्हीं पदार्थों में चेतना उत्पन्न करने की क्षमता उपलब्ध थी, जिसके प्रयोग से ही वे विमान की भांति परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाले यंत्र का निर्माण कर पाते थे। वर्तमान काल में विज्ञान के पास ऐसे तकनीकी उत्कृष्ट समाधान उपलब्ध नहीं है, तभी ये बातें काल्पनिक एवं अतिश्योक्ति लगती हैं। उस काल में विज्ञान में पदार्थ की चेतना को जागृत करने की क्षमता संभवतः रही होगी जिसके प्रभाव से ही यह विमान स्व-संवेदना से क्रियाशील होकर आवश्यकता के अनुसार आकार परिवर्तित कर लेता था। पदार्थ की चेतना को जागृत करने जैसी विद्याओं के अन्य प्रमाण भी रामायण एवं विभिन्न हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। पुष्पक विमान में यह भी विशेषता थी कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था, जिसने विमान संचालन मंत्र सिद्ध किया हो।[13]

विमानक्षेत्र

कई अध्ययन एवं शोधकर्त्ताओं के अनुसार, रावण की लंका में इस पुष्पक विमान के अलावा भी कई प्रकार के विमान थे, जिनका प्रयोग वह अपने राज्य के अलग-अलग भागों में तथा राज्य के बाहर आवागमन हेतु किया करता था। इस तथ्य की पुष्टि वाल्मिकी रामायण के श्लोक द्वारा भी होती है, जिसमें लंका विजय उपरान्त राम ने पुष्पक विमान में उड़ते हुए लक्ष्मण से यह कहा था कि कई विमानों के साथ, धरती पर लंका चमक रही है। यदि यह विष्णु की का वैकुंठधाम होता तो यह पूरी तरह से सफेद बादलों से घिरा होता।[2]

इन विमाज़ों के उड़ने व अवत्तरण हेतु लंका में छह विमानक्षेत्र थे। ये इस प्रकार से हैं:

  • वेरागन्टोटा (वर्त्तमान श्रीलंका के महीयांगना): वेरागन्टोटा एक सिंहली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है विमान के अवतरण का स्थल।
  • थोटूपोला कांडा (वर्त्तमान होटोन प्लेन्स): थोटूपोला का शाब्दिक अर्थ विमानत्तल से ही है, याज़ि ऐसा स्थान, जहां से कोई अपनी यात्रा शुरू करता हो। कांडा का अर्थ है पर्वत। थोटूपोला कांडा सागर तल से छः हजार फीट की ऊंचाई पर एक समतल जमीन थी, जो विमान उत्तरण एवं अवतरण के लिये सटीक स्थान था।
  • दंडू मोनारा विमान: यह विमान रावण के द्वारा प्रयोग किया जाता था। स्थानीय सिंहली भाषा में मोनारा का अर्थ मोर से है, तो दंडू मोनारा का अर्थ मोर जैसा उड़ने वाला।
  • वारियापोला (मेतेले): वारियापोला के कई शब्दों का संंधि विच्छेद करज़े पर वथा-रि-या-पोला बनता है। इसका अर्थ है, ऐसा स्थान जहां से विमान को उड़ने और अवत्तरण करज़े, दोनों की सुविधा हो। वर्तमान में यहां मेतेले राजपक्षा अज़्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र उपस्थित है।
  • गुरुलुपोथा (महीयानगाना): सिंहली भाषा के इस शब्द को पक्षियों के हिस्से कहा जाता है। इस विमानक्षेत्र में विमान घर (एयरक्राफ्ट हैंगर) एवं मरम्मत केन्द्र हुआ करता था।
  • दंडू मोनारा विमान: यह विमान रावण द्वारा प्रयोग में लाया जाता था। स्थानीय सिंहली भाषा में मोनारा का अर्थ मोर से है। दंडू मोनारा का अर्थ मोर जैसा उड़ने वाला।[2]

सन्दर्भ

  1. "जानिए रावण के रहस्य उसकी लंका में थे छह एयरपोर्ट". समाचार जगत. ९ सितंबर, २०१६. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. शर्मा, ऋचा (११ नवंबर, २०१३). "रावण के पास सच में था पुष्पक-विमान!". स्पीकिंग ट्री. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "पुष्पक विमान के अदभुत रहस्य". ज्ञानपनती .काम. २२. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. "अच्छा तो यहां रखता था रावण अपना पुष्पक विमान". ११ अक्तूबर, २०१३. |firstlast= missing |lastlast= in first (मदद); |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  5. (ऋग वेद 9.14.1)
  6. (ऋग वेद 3.14.1)
  7. (ऋग वेद 4.36.1)
  8. (ऋग वेद 5.41.6)
  9. (ऋग वेद 3.14.1)
  10. पुष्पक विमान, भारत डिस्कवरी पर। अभिगमन तिथि: २३ मार्च, २०१७
  11. अतुलनीय पुष्पक विमान (हिन्दी)। अभिगमन तिथि: २४ मई, २०१३।
  12. दीक्षित, कीर्ति (११ अक्तूबर, २०१६). "मन की गति से उड़ता था रावण का 'पुष्पक विमान'". |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

बाहरी कड़ियाँ