"लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर": अवतरणों में अंतर

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यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके उपर ४८ फीट ऊंचा और ३० फीट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के उपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह मे एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग मे एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नंदी मंडप और भोगशाला हैं।<ref>http://ashvinik.blogspot.com/2008/01/blog-post_26.html</ref>
यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके उपर ४८ फीट ऊंचा और ३० फीट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के उपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह मे एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग मे एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नंदी मंडप और भोगशाला हैं।<ref>{{cite web |url=http://ashvinik.blogspot.com/2008/01/blog-post_26.html|title=लखनेश्वर दर्शन करि कंचन होत शरीर ... |accessmonthday=[[३१ मार्च]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher=अश्विनी|language=}}</ref>

मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इंद्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चंद्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियां थी। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुआ। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवी शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इश आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं।<ref>http://shivarinarayan.blogspot.com/2007/11/blog-post_3221.html</ref>


मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इंद्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चंद्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियां थी। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुआ। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवी शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इश आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं।<ref>{{cite web |url=http://shivarinarayan.blogspot.com/2007/11/blog-post_3221.html|title=खरौद के लखनेश्वर
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मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ है। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दृसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरूष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगाऱ्यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देता है। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है<ref>http://www.cgnews.in/permanent/Chhattisgarh/CULTURE/culture-mela-madai.htm</ref>।
मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ है। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दृसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरूष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगाऱ्यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देता है। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है।<ref>{{cite web |url=http://www.cgnews.in/permanent/Chhattisgarh/CULTURE/culture-mela-madai.htm|title=छत्तीसगढ़ के मेला और मड़ई
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==किंवदंती==
==किंवदंती==
मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग है। इसमें एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे ''अक्षय कुंड'' कहते हैं। स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास वर्तुल योन्याकार जलहरी बनी है। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। प्रति वर्ष यहां महाशिवरात्री में मेला लगता है और शिव की बारात निकाली जाती है। छत्तीसगढ़ में इस नगर की ''काशी'' के समान मान्यता है।<ref>http://aarambha.blogspot.com/2008/03/lakhaneshwar.html</ref>कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असूरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा।<ref>http://tapeshjainji.blogspot.com/2006/11/blog-post_5734.html</ref>
मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग है। इसमें एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे ''अक्षय कुंड'' कहते हैं। स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास वर्तुल योन्याकार जलहरी बनी है। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। प्रति वर्ष यहां महाशिवरात्री में मेला लगता है और शिव की बारात निकाली जाती है। छत्तीसगढ़ में इस नगर की ''काशी'' के समान मान्यता है।<ref>http://aarambha.blogspot.com/2008/03/lakhaneshwar.html</ref>कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असूरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा।<ref>http://tapeshjainji.blogspot.com/2006/11/blog-post_5734.html</ref>

16:17, 31 मार्च 2009 का अवतरण

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 422 पर: No value was provided for longitude।

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से १२० कि.मी. तथा संस्कारधानी शिवरीनारायण से ३ कि.मी. की दूरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित कला केंद्रों में से एक हैं और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ रामायण कालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात् 'लक्ष्मणेश्वर महादेव' की स्थापना की थी।[2]

यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके उपर ४८ फीट ऊंचा और ३० फीट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के उपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह मे एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग मे एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नंदी मंडप और भोगशाला हैं।[3]

मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इंद्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चंद्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियां थी। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुआ। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवी शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इश आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं।[4]

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग

मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ है। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दृसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरूष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगाऱ्यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देता है। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है।[5]

किंवदंती

मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग है। इसमें एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं। स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास वर्तुल योन्याकार जलहरी बनी है। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। प्रति वर्ष यहां महाशिवरात्री में मेला लगता है और शिव की बारात निकाली जाती है। छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है।[6]कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असूरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा।[7]

संदर्भ

  1. http://shivarinarayan.blogspot.com/2007/11/blog-post_3221.html
  2. "गुप्त से प्रकाशमान होता शिवरीनारायण" (एचटीएम). सृजनगाथा. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. "लखनेश्वर दर्शन करि कंचन होत शरीर ..." (एचटीएमएल). अश्विनी. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. "खरौद के लखनेश्वर" (एचटीएमएल). शिवरीनारायण देवालय एवं परंपराएं. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  5. "छत्तीसगढ़ के मेला और मड़ई" (एचटीएम). छत्तीसगढ़ न्यूज़. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  6. http://aarambha.blogspot.com/2008/03/lakhaneshwar.html
  7. http://tapeshjainji.blogspot.com/2006/11/blog-post_5734.html