"तत्त्वमीमांसा": अवतरणों में अंतर
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#[[मोक्ष (जैन धर्म)|मोक्ष]] - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं। |
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== इन्हें भी देखें == |
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* [[ज्ञानमीमांसा]] |
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* [[मूल्यमीमांसा]] |
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तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), दर्शन की वह शाखा है जो किसी ज्ञान की शाखा के वास्तविकता (reality) का अध्ययन करती है। परम्परागत रूप से इसकी दो शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्ड विद्या (Cosmology) तथा सत्तामीमांसा या आन्टोलॉजी (ontology)।
तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-
- ज्ञान के अतिरिक्त ज्ञाता और ज्ञेय का भी अस्तित्व है या नहीं?
- अंतिम सत्ता का स्वरूप क्या है? वह एक प्रकार की है, या एक से अधिक प्रकार की?
जैन तत्वमीमांसा
जैन दर्शन के अनुसार तत्त्व सात है। यह हैं-
- जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है। [1]
- अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।
- आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना
- बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना
- संवर- कर्म बन्ध को रोकना
- निर्जरा- कर्मों को शय करना
- मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।
सन्दर्भ सूची
- शास्त्री, प. कैलाशचन्द्र (२००७), जैन धर्म, आचार्य शंतिसागर 'छाणी' स्मृति ग्रन्थमाला, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-902683-8-4
- ↑ शास्त्री २००७, पृ॰ ६४.