"यासिर अराफ़ात (फिलिस्तीनी नेता)": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 6: पंक्ति 6:


==मृत्यु==
==मृत्यु==
इनक मृत्यु की खबर 11 नवंबर, 2004 को आई। बताया गया कि बीमारी की वजह से उनकी मौत हुई। कुछ समय बाद ही उनकी मौत को लेकर [[इजरायल]] पर जहर देने के आरोप लगे। इसके बाद ये सवाल खड़ा हो गया कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या जहर के चलते हुई थी।
इनकी मृत्यु की खबर 11 नवंबर, 2004 को आई। बताया गया कि बीमारी की वजह से उनकी मौत हुई। कुछ समय बाद ही उनकी मौत को लेकर [[इजरायल]] पर जहर देने के आरोप लगे। इसके बाद ये सवाल खड़ा हो गया कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या जहर के चलते हुई थी।
जांच के लिए उनके शव को कब्र से भी निकाला गया था और [[स्विटजरलैंड]] के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके शव के अवशेषों में [[रेडियोधर्मी]] पोलोनियम-210 मिला था। हालांकि, उनकी मौत लोगों के लिए अब भी एक पहेली ही बनी हुई है।
जांच के लिए उनके शव को कब्र से भी निकाला गया था और [[स्विटजरलैंड]] के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके शव के अवशेषों में [[रेडियोधर्मी]] पोलोनियम-210 मिला था। हालांकि, उनकी मौत लोगों के लिए अब भी एक पहेली ही बनी हुई है।
<ref name= navbharat>[http://m.bhaskar.com/news/INT-facts-about-palestinian-leader-yasser-arafat-4802511-PHO.html?ref=mini इजरायल के सबसे बड़े दुश्मन की मौत यूं बनकर रह गई राज] -[[नवभारत टाइम्स]] - 11 नवम्बर 2014</ref>
<ref name= navbharat>[http://m.bhaskar.com/news/INT-facts-about-palestinian-leader-yasser-arafat-4802511-PHO.html?ref=mini इजरायल के सबसे बड़े दुश्मन की मौत यूं बनकर रह गई राज] -[[नवभारत टाइम्स]] - 11 नवम्बर 2014</ref>

17:04, 31 अक्टूबर 2016 का अवतरण

मोहम्मद अब्दुल रहमान अब्दुल रऊफ़ अराफ़ात अलकुव्दा अल हुसैनी (4 अगस्त, 1929 – 11 नवंबर, 2004), जिन्हें यासिर अराफ़ात के लोकप्रिय नाम से ज्यादा जाना जाता है एक फिलिस्तीनी नेता एवं फिल्स्तीनी मुक्ति संगठन के अध्यक्ष थे।

अराफात के नेतृत्व में उनके संगठन ने शांति की जगह संघर्ष को बढ़ावा दिया और इजरायल हमेशा उनके निशाने पर रहा। लोगों को बंधक बनाना, विमानों के अपहरण समेत दुनियाभर में इजरायल के ठिकानों पर निशाना साधना संगठन का मकसद बन गया था। वो इजरायल के अस्तित्व के सख्त खिलाफ थे, लेकिन शांति से दूर संघर्ष की पहल करने वाले अराफात की छवि 1988 में अचानक बदली हुई दिखी। वो संयुक्त राष्ट्र में शांति के दूत के रूप में नजर आए। बाद में उन्हें शांति के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।[1] नेहरू-गांधी परिवार के साथ इनकी बहुत करीबियां थीं। इंदिरा गांधी को वो अपनी बड़ी बहन मानते थे। इन्होंने भारत में 1991 के चुनाव अभियान के दौरान राजीव गांधी को जानलेवा हमले को लेकर आगाह किया था।[1]

मृत्यु

इनकी मृत्यु की खबर 11 नवंबर, 2004 को आई। बताया गया कि बीमारी की वजह से उनकी मौत हुई। कुछ समय बाद ही उनकी मौत को लेकर इजरायल पर जहर देने के आरोप लगे। इसके बाद ये सवाल खड़ा हो गया कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या जहर के चलते हुई थी। जांच के लिए उनके शव को कब्र से भी निकाला गया था और स्विटजरलैंड के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके शव के अवशेषों में रेडियोधर्मी पोलोनियम-210 मिला था। हालांकि, उनकी मौत लोगों के लिए अब भी एक पहेली ही बनी हुई है। [1]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ