"अमेरिकी गृहयुद्ध": अवतरणों में अंतर

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* 1864 ई. राष्ट्रीय बैकिंग अधिनियम पारित होने के बाद देश में पहली बार राष्ट्रीय मुद्रा का प्रचलन शुरू हुआ। इसी प्रकार युद्ध के पश्चात् पूरे अमेरिका में आधुनिक संचार सुविधाओं का जाल बिछ गया। टेलीग्राफ लाइन, टेलिविजन तथा पार महाद्वीपीय रेलमार्ग का निर्माण किया गया। परिवहन और संचार की सुविधाएं उपलब्ध हो जाने से बाजार व्यवस्था में विस्तार हुआ। बाजार का यही विस्तार युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अभिलक्षण माना जाता है।
* 1864 ई. राष्ट्रीय बैकिंग अधिनियम पारित होने के बाद देश में पहली बार राष्ट्रीय मुद्रा का प्रचलन शुरू हुआ। इसी प्रकार युद्ध के पश्चात् पूरे अमेरिका में आधुनिक संचार सुविधाओं का जाल बिछ गया। टेलीग्राफ लाइन, टेलिविजन तथा पार महाद्वीपीय रेलमार्ग का निर्माण किया गया। परिवहन और संचार की सुविधाएं उपलब्ध हो जाने से बाजार व्यवस्था में विस्तार हुआ। बाजार का यही विस्तार युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अभिलक्षण माना जाता है।


* कृषि के क्षेत्र में मनुष्य और मजदूरों पर आश्रितता कम होने के साथ-साथ मशीनों का प्रयोग बढ़ता गया। फलतः उत्पादन में वृद्धि होती गई। अब हाथ की खेती यंत्रों की खेती में बदल गई। अब खेती के काम में कई उम्दा किस्म के औजार जैसे थे्रसर, भांप के इंजन से चलने वाला कर्बाइन हार्वेस्टर आदि उपयोग में आने लगे थे।
* कृषि के क्षेत्र में मनुष्य और मजदूरों पर आश्रितता कम होने के साथ-साथ मशीनों का प्रयोग बढ़ता गया। फलतः उत्पादन में वृद्धि होती गई। अब हाथ की खेती यंत्रों की खेती में बदल गई। अब खेती के काम में कई उम्दा किस्म के औजार जैसे थे्रसर, भांप के इंजन से चलने वाला कर्बाइन हार्वेस्टर आदि उपयोग में आने लगे थे। युद्धकालीन वित्त व्यवस्था से अमेरिकी पूंजीपतियों को बहुत लाभ हुआ। युद्धकाल में फैली मुद्रास्फीति से तथा संघ सरकार की ओर से पर्याप्त ऋण की व्यवस्था किए जाने से मजदूरी ओर वेतन से हुई आय उद्यमियों के हाथों में पहुंच गई। रेलमार्गों का निर्माण हो जाने से निर्मित माल और भारी उद्योगों के उत्पादनों को प्रोत्साहन मिला। कोयले और लोहे के विभिन्न भंडारों की खोज और खनन हुआ। इन सबसे अमेरिका में बड़े पैमाने वाले उद्योगों का जाल बिछ गया और इस तरह तैयार माल के लागत खर्च में कमी आई। इस तरह बड़े उद्योग अमेरिका की पहचान बन गए। इस्पात उद्योग, कोयला, मांस उद्योग का विकास हुआ। नगरों की संख्या बढ़ी तथा वाणिज्य व्यापार का विकास हुआ। 1900 के आसपास अकेले अमेरिका में इतने इस्पात का उत्पादन होने लगा जितना उसके दो अन्य प्रतिद्वन्द्वी इंग्लैंड और जर्मनी मिलकर कर रहे थे।

युद्धकालीन वित्त व्यवस्था से अमेरिकी पूंजीपतियों को बहुत लाभ हुआ। युद्धकाल में फैली मुद्रास्फीति से तथा संघ सरकार की ओर से पर्याप्त ऋण की व्यवस्था किए जाने से मजदूरी ओर वेतन से हुई आय उद्यमियों के हाथों में पहुंच गई। रेलमार्गों का निर्माण हो जाने से निर्मित माल और भारी उद्योगों के उत्पादनों को प्रोत्साहन मिला। कोयले और लोहे के विभिन्न भंडारों की खोज और खनन हुआ। इन सबसे अमेरिका में बड़े पैमाने वाले उद्योगों का जाल बिछ गया और इस तरह तैयार माल के लागत खर्च में कमी आई। इस तरह बड़े उद्योग अमेरिका की पहचान बन गए। इस्पात उद्योग, कोयला, मांस उद्योग का विकास हुआ। नगरों की संख्या बढ़ी तथा वाणिज्य व्यापार का विकास हुआ। 1900 के आसपास अकेले अमेरिका में इतने इस्पात का उत्पादन होने लगा जितना उसके दो अन्य प्रतिद्वन्द्वी इंग्लैंड और जर्मनी मिलकर कर रहे थे।


* इस युग में अमेरिका में नवआर्थिक युग का सूत्रपात हुआ। कृषि और औद्योगिक समृद्धि से अमेरिका पूंजीवाद की ओर अग्रसर हुआ। 19वीं शताब्दी में अंतिम दो दशकों में विलयन और समेकन (Merger and Acquisition) की प्रक्रिया शुरू हुई अर्थात् कई छोटे-छोटे व्यापारों का एक बड़े संगठन में सम्मिलित हो जाना। जैसे United State steel Company में लगभग 200 विनिर्माण (manufacturing) और परिवहन (transport) कंपनियां एकीकृत हो गई थी और पूरा इस्ताप बाजार उसके नियंत्रण में था। इस तरह 19वीं शताब्दी के अंत में विशालकाय निगमों के स्थापित होने से भावी कम्पनी नियंत्रित पूंजीवाद (Corporate Capitalism) की शुरूआत हुई। इस तरह गृहयुद्धोत्तर काल तीव्र आर्थिक परिवर्तनों और समेकन का युग था। इस युग में बड़े-बड़े औद्योगिक घराने पनपे और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एकाधिकार (monopoly) का साम्राज्य फैला।
* इस युग में अमेरिका में नवआर्थिक युग का सूत्रपात हुआ। कृषि और औद्योगिक समृद्धि से अमेरिका पूंजीवाद की ओर अग्रसर हुआ। 19वीं शताब्दी में अंतिम दो दशकों में विलयन और समेकन (Merger and Acquisition) की प्रक्रिया शुरू हुई अर्थात् कई छोटे-छोटे व्यापारों का एक बड़े संगठन में सम्मिलित हो जाना। जैसे United State steel Company में लगभग 200 विनिर्माण (manufacturing) और परिवहन (transport) कंपनियां एकीकृत हो गई थी और पूरा इस्ताप बाजार उसके नियंत्रण में था। इस तरह 19वीं शताब्दी के अंत में विशालकाय निगमों के स्थापित होने से भावी कम्पनी नियंत्रित पूंजीवाद (Corporate Capitalism) की शुरूआत हुई। इस तरह गृहयुद्धोत्तर काल तीव्र आर्थिक परिवर्तनों और समेकन का युग था। इस युग में बड़े-बड़े औद्योगिक घराने पनपे और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एकाधिकार (monopoly) का साम्राज्य फैला।

14:24, 29 अगस्त 2016 का अवतरण

गॅटीस्बर्ग की लड़ाई
अमेरिका के संघीय राज्य (यूनियन, नीले रंग में) और अलगाववादी परिसंघीय राज्य (कन्फ़ेडरेसी, ख़ाक़ी रंग में)
उत्तरी सैनिक खाइयों में वर्जिनिया में दक्षिणी शहर फ़्रेड्रिक्सबर्ग पर हमला करने से पहले
दक्षिणी कन्फ़ेडरेसी की घटती ज़मीन का वार्षिक नक्शा

अमेरिकी गृहयुद्ध (अंग्रेजी: American Civil War, अमॅरिकन सिविल वॉर) सन् १८६१ से १८६५ के काल में संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों और दक्षिणी राज्यों के बीच में लड़ा जाने वाला एक गृहयुद्ध था जिसमें उत्तरी राज्य विजयी हुए।

इस युद्ध में उत्तरी राज्य अमेरिका की संघीय एकता बनाए रखना चाहते थे और पूरे देश से दास प्रथा हटाना चाहते थे। अमेरिकी इतिहास में इस पक्ष को औपचारिक रूप से 'यूनियन' (Union यानि संघीय) कहा जाता है और अनौपचारिक रूप से 'यैन्की' (Yankee) कहा जाता है। दक्षिणी राज्य अमेरिका से अलग होकर 'परिसंघीय राज्य अमेरिका' (Confederate States of America, कन्फ़ेडरेट स्टेट्स ऑफ़ अमॅरिका) नाम का एक नया राष्ट्र बनाना चाहते थे जिसमें यूरोपीय मूल के श्वेत वर्णीय (गोरे) लोगों को अफ्रीकी मूल के कृष्ण वर्णीय (काले) लोगों को गुलाम बनाकर ख़रीदने-बेचने का अधिकार हो। दक्षिणी पक्ष को औपचारिक रूप से 'कन्फ़ेडरेसी' (Confederacy यानि परिसंघीय) और अनौपचारिक रूप से 'रेबेल' (Rebel, रॅबॅल, यानि विद्रोही) या 'डिक्सी' (Dixie) कहा जाता है।[1] इस युद्ध में ६ लाख से अधिक अमेरिकी सैनिक मारे गए (सही संख्या ६,२०,०००) अनुमानित की गई है।[2] तुलना के लिए सभी भारत-पाकिस्तान युद्धों को और १९६२ के भारत-चीन युद्ध को मिलाकर देखा जाए तो इन सभी युद्धों में १५,००० से कम भारतीय सैनिक मारे गए हैं।

परिचय

यह कहना सर्वथा उचित न होगा कि यह युद्ध केवल दास प्रथा को लेकर हुआ। वास्तव में इस संघर्ष का बीज बहुत पहले बोया जा चुका था और यह विभिन्न विचारधाराओं में पारस्परिक विरोध का परिणाम था। उत्तर के निवासी भौगोलिक परिस्थिति, यातायात के साधन तथा औद्योगिक सफलता के फलस्वरूप अधिक संतुष्ट तथा संपन्न थे। कृषि-प्रधान दक्षिणी राज्यों में 17वीं और 18वीं शताब्दियों में अफ़्रीका से बहुत से अफ़्रीकी दास यहाँ लाए गए थे और वे ही कृषि में मज़दूरी करते थे। इसलिए दक्षिणी राज्य इन हबशी दासों को मुक्त नहीं करना चाहते थे। अमेरिका के सभी उत्तरी राज्यों ने १८०४ तक दासप्रथा को धीरे-धीरे ख़त्म कर देने के लिए क़ानून बना लिए थे। मशीन युग के आने ने उत्तर और दक्षिण के बीच की खाई बढ़ा दी। उत्तरी निवासी मशीन के प्रयोग से आर्थिक क्षेत्र में प्रगति करने लगी। उनका कोयले और लोहे का उत्पादन बढ़ा और वहाँ बहुत से कारखाने काम करने लगे। वहाँ की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ने लगी। दक्षिणी राज्यों के लोग अभी केवल कृषि पर आधारित थे और उन्होंने युग के साथ प्रगति नहीं की। यहाँ की जनसंख्या भी अधिक तेजी से नहीं बढ़ी। अमेरिका की व्यापारिक नीति उत्तरी राज्यों के लिए लाभदायक थी पर दक्षिणवाले उससे लाभ नहीं उठा सकते थे। व्यापारिक नीति का दक्षिण में विरोध हुआ और दक्षिणी इसे अवैध ठहराने लगे। वे स्वतंत्र व्यापार के अनुयायी थे, जिससे वे अपना कच्चा माल बिना नियंत्रण के विदेश भेज सकें और अपने आवश्यकतानुसार बनी हुई चीजें खरीदें। दक्षिण कैरोलाइना ने जान कूल्हन के मतानुसार प्रत्येक राज्य को संयुक्त राज्य की किसी भी नीति को मानने या न मानने का पूर्ण अधिकार था। संघर्ष बढ़ा। संविधान की आड़ में उत्तर और दक्षिण के राज्य अपने-अपने मत की पुष्टि का पूर्णतया प्रयास करने लगे।[3]

टेक्सास की समस्या

व्यापारिक नियंत्रण के अतिरिक्त दासप्रथा को लेकर यह विरोध और बढ़ा। ऐंड्रयू जैकसन के समय दासप्रथा के विरोध में किया गया उत्तरी राज्यों में प्रदर्शन और दक्षिणी राज्यों में इसको कायम रखने का प्रयास गृहयुद्ध का दूसरा मूल कारण हुआ। दक्षिणी कहने लगे कि टेक्सास पर अधिकार और मेक्सिको से युद्ध करना अनिवार्य है। वे सेनेट में बराबरी की संख्या कायम रखना चाहते थे। 1844 ई. में मसाच्यूसेट्स की धारासभा ने यह प्रस्ताव पारित किया कि संयुक्त राष्ट्र का संविधान अपरविर्तनीय है और टेक्सास पर अधिकार अमान्य है। दक्षिणियों ने और जोर से कहा कि यदि दासप्रथा बंद की गई तो वे संयुक्त राज्य से अलग हो जाएँगे। दासप्रथा का प्रश्न राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त अब धार्मिक क्षेत्र में भी घुस आया। इसको लेकर मेथडिस्ट चर्च में भी उत्तरी और दक्षिणी दो दल हो गए। दोनों ने धार्मिक संस्थाओं को अपनी ओर खींचा। यद्यपि विग और डेमोक्रैट दलों ने 1848 ई. के राष्ट्रपति के चुनाव में इस समस्या को अलग रखना चाहा, तथापि इस चुनाव ने जनता को दो भागों में बाँट दिया जो मूलत: भौगोलिक आधार पर बँटी थी।

संघर्ष और भी घना होता गया। मेक्सिकों से युद्ध में प्राप्त भूमि में दासप्रथा को रखने अथवा हटाने का प्रश्न जटिल था। दक्षिणवाले इसे रखना चाहते थे। क्योंकि यह उनके क्षेत्र में था, पर उत्तर के निवासी सिद्धांत रूप से दासप्रथा के पूर्ण विरोधी थे और नए स्थान में इसे रखने को तैयार न थे। उत्तरी राज्यों की धारासभओं ने इसका विरोध किया, पर इसके विपरीत दक्षिण में दासप्रथा के समर्थन में सार्वजनिक सभाएँ हुई। वर्जिनिया की धारासभा ने उत्तरी राज्यों की सभा में पारित किए गए प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया और वहाँ की जनता ने संयुक्त राज्य से लोहा लेने का दृढ़ निश्चय कर लिया। 1850 ई. में एक समझौता हुआ जिसके अंतर्गत कैलिफोर्निया स्वंतत्र राज्य के रूप में संयुक्त राज्य में शामिल हो गया और कोलंबिया में दासप्रथा हटा दी गई। टेक्सास को एक करोड़ डालर दिए गए और भागे हुए दासों को वापस करने का एक नया कानून पारित हुआ। इसका पालन नहीं हुआ। उत्तर के राज्य भागे हुए बदमाशों को उनके मालिकों के पास नहीं लौटाते थे। इससे परिस्थिति गंभीर हो गई। प्रसिद्ध ड्रेडस्काट वाद में न्यायाधीश टानी ने बहुमत से निर्णय किया कि विधान के अंतर्गत न तो राष्ट्रीय संसद् (सेनेट) और न किसी राज्य की धारासभा किसी क्षेत्र से दासप्रथा को हटा सकती है। इसके ठीक विपरीत लिंकन ने कहा कि कोई भी राज्य अपनी सीमा के अंदर दासप्रथा को हटा सकता हैं। इन प्रश्नों को लेकर राजनीतिक दलों में आंतरिक विरोध हो गया। 1860 ई. में लिंकन राष्ट्रपति चुन लिए गए। लिंकन का कहना था कि यदि किसी घर में फूट है तो वह घर अधिक दिन नहीं चल सकता। इस संयुक्त राज्य को आधे स्वतंत्र और आधे दासों में नहीं बाँटा जा सकता। राष्ट्रपति के चुनाव की घोषणा के बाद दक्षिण कैरोलाइना ने एक सम्मेलन बुलाया जिसमें संयुक्त राज्य से अलग होने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। 1861ई. के फरवरी तक जार्जिया, फ्लोरिडा, अलाबामा, मिसीसिपी, लूइसियाना और टेक्सास ने इस नीति का पालन किया। इस प्रकार नवंबर, 1860 ई. से मार्च, 1861ई. तक, वाशिंगटन में केंद्रीय शासन शिथिल हो गया। 1861ई. के फरवरी मास में वाशिंटन में शांतिसंमेलन हुआ, किंतु थोड़े समय बाद, 12 अप्रैल 1861 ई. को अनुसंघीय राज्यों की तोपों ने चाल्र्स्टन बंदरगाह की शांति भंग कर दी। यहाँ प्रदर्शित फोर्ट सुमटर पर गोलाबारी करके "कानफ़ेडरेता" ने गृहयुद्ध छेड़ दिया।

गृहयुद्ध

युद्ध के मोर्चे मुख्यत: तीन थे - समुद्र, मिसिसिप्पी घाटी और पूर्व समुद्रतट के राज्य। युद्ध के आरंभ में प्राय: समग्र जलसेना संयुक्त राज्य के हाथ में थी, किंतु वह बिखरी हुई और निर्बल थी। दक्षिणी तट की घेराबंदी से यूरोप को रुई का निर्यात और वहाँ से बारूद, वस्त्र और औषधि आदि दक्षिण के लिए अत्यंत आवश्यक आयात की चीजें पूर्णतया रुक गई। संयुक्त राज्य के बेड़े ने दक्षिण के सबसे बड़े नगर न्यू ओर्लियंस से आत्मसमर्पण करा लिया। मिसिसिप्पी की घाटी में भी संयुक्त राज्य की सेना की अनेक जीतें हुई। वर्जिनिया कानफेडरेतों को बराबर सफलताएँ मिलीं। 1863ई. में युद्ध का आरंभ उत्तर के लिए अच्छा नहीं हुआ, पर जुलाई में युद्ध की बाजी पलट गई। 1864ई. में युद्ध का अंत स्पष्ट दीखने लगा। 17 फ़रवरी को कानफेडरेतों ने दक्षिण कैरोलाइना की राजधानी कोलंबिया को खाली कर दिया। चाल्र्स्टन संयुक्त राज्य के हाथ आ गया। दक्षिण के निर्विवाद नेता राबर्ट ई. ली द्वारा आत्मसमर्पण किए जाने पर 13 अप्रैल को वाशिंटन में उत्सव मनाया गया। गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद दक्षिणी राज्यों के प्रति कठोरता की नीति नहीं अपनाई गई, वरन् कांग्रेस ने संविधान में 13वाँ संशोधन प्रस्तुत करके दासों की स्वतंत्रता पर कानूनी छाप लगा दी।

गृहयुद्ध के कारण

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात अमेरिका एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में विश्व के मानचित्र पर स्थापित हुआ और उसने विश्व का पहला लिखित संविधान बनाकर संघीय शासन प्रणाली की स्थाना की। इस स्वतंत्रता संग्राम में सभी अमेरिकी राज्यों ने एकजुट होकर उपनिवेशवाद के विरूद्ध संघर्ष किया था किन्तु 1860 के दशक में अमेरिकी राज्यों के बीच ही गृह-युद्ध छिड़ गया।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में ही गृहयुद्ध के बीज निहित थे तो कुछ गृहयुद्ध को पूंजीवादी आदोलन मानते है तथा कुछ इतिहासकारों ने दास प्रथा को गृहयुद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

अमेरिकी गृहयुद्ध के निम्नलिखित कारण थे-

उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच आर्थिक विषमता

संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों की स्थिति जननांकीय एवं आर्थिक दृष्टि से अपेक्षाकृत मजबूत थी। संघ के 34 राज्यों में से 23 राज्य उत्तर में सम्मिलित थे और देश की कुल जनसंख्या का 2/3 भाग उत्तर में रहता था, जिसमें दासों की संख्या बहुत कम थी। उत्तरी राज्यों में उद्योगों की प्रधानता थी। उद्योगों में सूती, ऊनी वस्त्र, चमड़े के सामान आदि वस्तुएं बड़े पैमाने पर उत्पादित होती थी। इन कारखानों में मजदूरों द्वारा मशीनों से उत्पादन होता था, अतः यहां गुलामों एवं दासों का विशेष महत्व नहीं था। दूसरी तरफ अमेरिका के दक्षिणी राज्यों का आर्थिक जीवन कृषि पर आधारित था और कृषि में यन्त्रों का बहुत अधिका प्रयोग नहीं होता था। अतः इन राज्यों के किसान खेती के लिए गुलामों के श्रम पर निर्भर थे। दक्षिण में कपास, गन्ना एवं तम्बाकू की खेती बहुत बड़े पैमाने पर होती थी जिसमें दास मजदूर के रूप में कार्य करते थे। अतः दक्षिण का समाज पूर्ण रूप से दासों पर निर्भर था। इस तरह दक्षिणी राज्य उत्तरी एवं पश्चिमी भागों से अपनी जिन विशेषताओं की वजह से अलग पहचाना जाता था वे थी, वहां प्रचलित प्रचलित दास व्यवस्था और बागान व्यवस्था। दक्षिणी राज्य-वर्जीनिया से लेकर दक्षिणी कैरोलिना होते हुए जार्जिया तक एक पट्टी के रूप में फैले थे। इस प्रकार आर्थिक विषमता के कारण उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के आर्थिक जीवन, राजनीतिक विचारधारा और सामाजिक स्तर में बहुत बड़ा मतभेद था।

संरक्षण का प्रश्न

उत्तरी अमेरिका के राज्य उद्योग प्रधान थे फलतः वहां नवोदित उद्योपतियों ने विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचने हेतु संरक्षण की मांग की। उनके हितों को ध्यान में रख अमेरिकी संघ द्वारा उद्योगों को संरक्षण दिया गया। किन्तु इस कदम से दक्षिण के राज्यों को आपत्ति थी। क्योंकि संरक्षण की नीति के कारण अब उन्हें विनिर्मित वस्तुएं अपेक्षाकृत महंगे मूल्य पर मिलती थी। अतः उन्हें यह महसूस हुआ कि संघ का प्रयोग उत्तरी अमेरिका के हितों के लिए किया जा रहा है और दक्षिणी राज्यों के प्रति उपेक्षा की दृष्टि रखी जा रही है।

दास प्रथा का मुद्दा

अमेरिका के उत्तरी राज्यों में दासों की आर्थिक जीवन में कोई निर्णायक जीवन में कोई निर्णायक भूमिका नहीं थी। अतः उनके लिए दासों का महत्व गौण था दूसरी तरफ अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में दास प्रथा जनजीवन में घुल चुकी थी। दक्षिणी राज्यों के मामलें में दास प्रथा का मुद्दा सदैव संवेदनशील बना रहा। जब कभी अन्य राज्यों मेें दास प्रथा पर लगे प्रतिबंध को इन दक्षिणी, राज्यों में लागू करने की उठी तो इन राज्यों ने इसे अपनी प्रभुसत्ता पर आक्रमण माना। वस्तुतः उत्तरी राज्यों में दासता को मानवता पर कलंक के रूप में देखा गया और इसे समाप्त करने के की मांग जोर शोर उठाई गई। समाचार-पत्रों में माध्यम से इस दास विरोधी भावना को उभारा गया। दूसरी तरफ दक्षिणी राज्यों के लिए दासों को मुद्दा लाभप्रदता से जुड़ा हुआ था। उनका तर्क था कि दास प्रथा में श्रमिक संगठनों, हड़तालों आदि का भय नहीं था तथा उत्तरी राज्यों के मजदूरों की तुलना में वे दासों को अधिक सुविधा प्रदान करते हैं। इस मनोवृति एवं तर्कों के आधार पर दक्षिणी राज्यों ने दास प्रथा को आवश्यक बताया।

दासप्रथा से जुड़े संवैधानिक मुद्दे

उत्तरी-अमेरिका में तो दास व्यापार समाप्त कर दिया गया था और दास प्रथा उत्तर में पेन्सिलवेनिया की दक्षिणी सीमा तक बंद हो गई थी। इस सीमा रेखा को “मेसम-डिक्सन” सीमा कहा जाता था। अब अमेरिका का पश्चिमी क्षेत्रों में विस्तार हो रहा था और नए-नए क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका में शामिल किए जा रहे थे। ऐसे में यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि इन राज्यों को दास राज्य के रूप में या स्वतंत्र राज्य के रूप में शामिल किया जाए। यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि संविधान मे यह स्वीकार किया गया था कि संघीय व्यवस्थापिका में दासों की गणना भी होती थी किन्तु दासों की जनसंख्या को 3/5 के औसत में प्रतिनिधित्व दिया जाता था अर्थात् दासों की जनसंख्या यदि 500 होगी तो उसे 300 मानकर प्रतिनिधित्व दिया जाने लगा। इस तरह दास राज्यों की संख्या में वृद्धि हो जाने से व्यवस्थापिका में दास राज्यों का वर्चस्व बढ़ जाने का खतरा था। इसलिए नवीन राज्यों के विलय के संदर्भ में उत्तरी अमेरिका उसे स्वतंत्र राज्य के रूप में शामिल करना चाहता था जबकि दक्षिणी राज्य उसे दास राज्य के रूप में। यह विवाद मिसौरी राज्य के विलय को लेकर और भी गहरा गया। अतः 1820 ई. में हेनरी क्ले (प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष) की मध्यस्थता से मिसौरी-समझौता संपन्न हुआ। इसके तहत् मिसौरी के दास राज्य के रूप में (दास प्रथा को हटान बिना ही) संघ में सम्मिलित कर लिया गया और यह कहा गया कि 36030' अक्षांश के उत्तर वाले क्षेत्र लुइसियाना में दास प्रथा जारी नही रहेगी। इसके बाद संघ में टेक्सास के विलय का प्रस्ताव आया। अंत में टेक्सास दास राज्य के रूप में संघ में 1845 में शामिल हो गया। फिर कैलिफोर्निया के मुद्दे पर विवाद हुआ और अंततः कैलिफोर्निया को 1850 में स्वतंत्र राज्य के रूप में सम्मिलित किया गया। दक्षिणी राज्यों में इस पर उग्र विरोध जताया। अब उन्हें संतुष्ट करने के लिए एक “भगोड़ा दास” कानून (Fugitive slave law) लाया गया जिसके तहत् भागे हुए दास को पुनः पकड़ा जा सकता था। इस कानून का उत्तरी राज्यों ने विरोधी किया क्योंकि वे भगोड़े दासों को शरण देते थे। किन्तु 1854 में कैन्सस एवं नेब्रास्का के विलय के प्रश्न ने विवाद को और गहरा दिया। वस्तुतः ये दोनों राज्य 30 डिग्री 30 मिनट के उत्तर में स्थित थे ओर मिसौरी समझौते के अनुसार इन्हें स्वतंत्र राज्य के रूप में सम्मिलित किया जाना था किन्तु स्टीफन डगलस नामक राजनीतिज्ञ के प्रयास से इन राज्यों को दास राज्य के रूप में शामिल कर लिया गया। इस तरह राज्यों के विलय के प्रश्न ने उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के मध्य खाई को और चौड़ा कर दिया।

अब्राहम लिंकन का निर्वाचन

1860 ई. में रिपब्लिकन उम्मीदवार अब्राहम लिंकन की विजय हुई और 1861 में राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुआ। रिपब्लिकन पार्टी ने दास प्रथा की आलोचना की थी और यह पार्टी स्वतंत्र श्रम विचारधारा में विश्वास रखती थी। अतः लिंकन की जीत दक्षिण के राज्यों को अशुभ सूचक प्रतीत हुई। उन्हें लगा कि यह जीत दक्षिण के आर्थिक हितों के अनुकूल नही है। अतः दक्षिण के राज्यों में पहली प्रतिक्रिया कैरोलिना राज्य द्वारा की गयी और उसने संघ से अलग होने की घोषणा कर दी। फरवरी, 1861 तक मिसीसिपी, फ्लोरिडा, अलबामा, जॉर्जिया, लुलसियाना व टेक्सास ने भी संघ से विच्छेद कर जेफरसन डेविस को अपना राष्ट्रपति नियुक्त किया और इसी के साथ गृहयुद्ध की शुरूआत हो गई, जब दक्षिणी कैरोलिना से सुम्टर के किले पर बम फेंक संघ के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया।

गृहयुद्ध के दौरान लिंकन की भूमिका

दक्षिणी राज्यों द्वारा संघ से अलग हो जाने के कारण एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न खड़ा हो गया कि क्या दक्षिणी राज्याें को संघ से अलग होने का अधिकार है? लिंकन ने राष्ट्रपति पद पर निर्वाचन के पश्चात् स्पष्ट रूप से घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका के रूप में जो संघ स्थापित किया गया था वह अखंडनीय और शाश्वत् है, उसकी अखंडनीयता को किसी प्रकार नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। अमेरिकी संविधान निर्माताओं ने किसी राज्य को संघ से पृथक होने का अधिकार नहीं दिया है। लिंकन ने घोषित किया कि "अगर हम सभी दासों को मुक्त कर संघ को बचा सके तो हम ऐसा करेंगे अगर हम दासों को मुक्त किए बिना संघ को बचा सके तो हम ऐसा करेंगे और अगर कुछ दासों को मुक्त कर तथा कुछ अन्य को मुक्त नहीं करके संघ को बचा सके तो हम वह भी करेंगे।" इस तरह लिंकन ने संघ को बचाए रखने का प्रयास किया। युद्ध के दौरान उसने कूटनीतिक कुशलता के जरिए दक्षिणी राज्यों का विदेशों से संबंध बनने नहीं दिया। उसने सेनाओं को संगठित कर दक्षिण के सशस्त्र संघर्ष की चुनौती को तोड़ा। प्रारंभ से ही उसने सेनाओं का मुख्य लक्ष्य दक्षिणी प्रदेश पर अधिकार करना नहीं वरन् परिसंघ की सेनाओं का विस्तार करना बताया। 1861 ई. में लिंकन ने दास व्यवस्था का उन्मूलन कर दिया और उन्हें राष्ट्रीय सेनाओं में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया। किन्तु इसका उद्देश्य दक्षिणी राज्यों को नष्ट करना नहीं वरन् संघ को बनाए रखना ही था। उसका मानना था कि दासों की स्वतंत्रता की घोषणा से दक्षिण के राज्यों में दासों का विद्रोह होगा और युद्ध में उन्हें दासों की सहायता नहीं मिल पाएगी। अंततः लिंकन के प्रयासों एवं कुटनीति कुशलता के जरिए उत्तरी राज्यों की जीत हुई ओर इसी के साथ 1865 ई. में गृहयुद्ध समाप्त हो गया। लिंकन ने अमेरिका का यथार्थ रूप में संयुक्त राष्ट्रीय निर्माण किया। दासता का उन्मूलन कर समाज को नवज्योति दी तथा अमेरिकी राजनीतिक तंत्र को मजबूद बनाया। परन्तु गृहयुद्ध के पश्चात अमरीका को वह आगे नहीं बढ़ा सका क्योंकि राजनीतिक तंत्र को मजबूत बनाया। परन्तु गृहयुद्ध के पश्चात अमरीका को वह आगे नहीं बढ़ा सका क्याेंकि 15 अपै्रल 1865 को जॉन विस्कस बूथ द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।

गृहयुद्ध का परिणाम एवं प्रभाव

संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में अमेरिकी गृहयुद्ध ने एक प्रधान मोड़ का कार्य किया। यद्यपि युद्धकाल के दौरान जानमाल की अत्यधिक क्षति हुई, आपसी घृणा का भाव उत्पन्न हुआ, आर्थिक अव्यवस्था उत्पन्न हुई, दक्षिणी राज्यों की जीवन शैली को ठेस पहुंची। किन्तु यह भी सत्य है कि अफरातफरी और अव्यवस्था एक शल्य चिकत्सा के समान थी जिसके उपरांत एक स्वस्थ, विकसित और एकीकृत संयुक्त राज्य अमेरिका का निर्माण हुआ। इसी संदर्भ में प्रो. एल्सन ने कहा कि "युद्ध एक शल्य चिकित्सा थी वह दुखदायी होते हुए भी संयुक्त राज्य के लिए अनकहा आर्शीवाद बन गई।"

मजबूत राजनीतिक संरचना का निर्माण

गृहयुद्ध ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय शक्ति संबंधों में नाटकीय परिवर्तन ला दिया। लम्बे समय से चले आ रहे प्रांतीय एवं संघीय राज्यों के अधिकारों के विवाद को सुलझा दिया। दक्षिणी राज्यों के आत्मसमर्पण के पश्चात् उन्हें संघ में पुनः शामिल किया गया। इसका तात्पर्य था कि राज्यों का संघ पूर्ववत बना रहेगा और भविष्य में फिर कभी अलगाववाद के अधिकार की बात नहीं उठेगी। वस्तुतः गृहयुद्ध के परिणाम ने इस संवैधानिक प्रश्न को हल कर दिया कि राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। इस तरह संविधान में वर्णित “अविनाशी राज्यों का अविनाशी संघ” के सिद्धान्त की पुष्टि हुई। अब राजनीतिक रूप से अमेरिका को वास्तविक संयुक्त राष्ट्र का रूप प्रदान किया गया।

सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन

सामाजिक क्षेत्र में गृहयुद्ध की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि अमेरिका से दास प्रथा की समाप्ति थी। अब दासों को स्वतंत्र कर दिया गया और उन्हें मतदान का अधिकार दे दिया गया। दासता मुक्ति के साथ ही उन्हें वह स्वतंत्रता और गतिशीलता मिल गई जिसके सहारे वे बाजारों में मजदूरी कर धन कमा सकते थे। एक नकारात्मक पहलू यह रहा कि नीग्रो लोगों के साथ श्वेतों के संघर्ष एवं दुर्व्यवहार की घटना बढ़ गई और आज भी अमेरिका में श्वेत तथा नीग्रो के बीच मतभेद की समस्या बनी हुई है। दूसरी बात कि लम्बे समय तक युद्ध चलते रहने के कारण जो अव्यवस्था उत्पन्न हुई उसके बाद शीघ्र धनवान बनने की प्रवृत्ति का विकास हुआ। फलतः भ्रष्टाचार बढ़ा और कुछ अंशों में समाज का नैतिक स्तर गिरा।

अमेरिका का एक औद्योगिक राष्ट्र के रूप में उद्भव

गृहयुद्ध को अमेरिका में एक प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र बना देने वाली सामाजिक-आर्थिक उत्पे्ररक शक्ति के रूप में देखा गया। इस संदर्भ में चार्ल्स और मैनी बियर्ड ने इस गृहयुद्ध को अमेरिका की 'दूसरी क्रांति' बताया। गृहयुद्ध के बाद औद्योगिक पूंजीवाद ने दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि की। जिन पूंजीपतियों ने युद्ध में धन लगाकर और सेना के लिए माल की आपूर्ति का ठेका लेकर अपार लाभ कमाया उन्होंने इस धन का सदुपयोग राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पदा के दोहन में किया। युद्ध की वजह से जो सामाजिक आर्थिक परिवर्तन आए वे सब अमेरिका के औद्योगिक विकास में सहायक सिद्ध हुए।

  • दास प्रथा की समाप्ति से दक्षिणी राज्यों में बागानी कृषि का महत्व जाता रहा जिससे बागान मालिकों की स्थिति कमजोर हुई और दक्षिण में उत्तरी पूंजी का निवेश और प्रसार हुआ और वहाँ भी औद्योगीकरण हुआ।
  • 1864 ई. राष्ट्रीय बैकिंग अधिनियम पारित होने के बाद देश में पहली बार राष्ट्रीय मुद्रा का प्रचलन शुरू हुआ। इसी प्रकार युद्ध के पश्चात् पूरे अमेरिका में आधुनिक संचार सुविधाओं का जाल बिछ गया। टेलीग्राफ लाइन, टेलिविजन तथा पार महाद्वीपीय रेलमार्ग का निर्माण किया गया। परिवहन और संचार की सुविधाएं उपलब्ध हो जाने से बाजार व्यवस्था में विस्तार हुआ। बाजार का यही विस्तार युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अभिलक्षण माना जाता है।
  • कृषि के क्षेत्र में मनुष्य और मजदूरों पर आश्रितता कम होने के साथ-साथ मशीनों का प्रयोग बढ़ता गया। फलतः उत्पादन में वृद्धि होती गई। अब हाथ की खेती यंत्रों की खेती में बदल गई। अब खेती के काम में कई उम्दा किस्म के औजार जैसे थे्रसर, भांप के इंजन से चलने वाला कर्बाइन हार्वेस्टर आदि उपयोग में आने लगे थे। युद्धकालीन वित्त व्यवस्था से अमेरिकी पूंजीपतियों को बहुत लाभ हुआ। युद्धकाल में फैली मुद्रास्फीति से तथा संघ सरकार की ओर से पर्याप्त ऋण की व्यवस्था किए जाने से मजदूरी ओर वेतन से हुई आय उद्यमियों के हाथों में पहुंच गई। रेलमार्गों का निर्माण हो जाने से निर्मित माल और भारी उद्योगों के उत्पादनों को प्रोत्साहन मिला। कोयले और लोहे के विभिन्न भंडारों की खोज और खनन हुआ। इन सबसे अमेरिका में बड़े पैमाने वाले उद्योगों का जाल बिछ गया और इस तरह तैयार माल के लागत खर्च में कमी आई। इस तरह बड़े उद्योग अमेरिका की पहचान बन गए। इस्पात उद्योग, कोयला, मांस उद्योग का विकास हुआ। नगरों की संख्या बढ़ी तथा वाणिज्य व्यापार का विकास हुआ। 1900 के आसपास अकेले अमेरिका में इतने इस्पात का उत्पादन होने लगा जितना उसके दो अन्य प्रतिद्वन्द्वी इंग्लैंड और जर्मनी मिलकर कर रहे थे।
  • इस युग में अमेरिका में नवआर्थिक युग का सूत्रपात हुआ। कृषि और औद्योगिक समृद्धि से अमेरिका पूंजीवाद की ओर अग्रसर हुआ। 19वीं शताब्दी में अंतिम दो दशकों में विलयन और समेकन (Merger and Acquisition) की प्रक्रिया शुरू हुई अर्थात् कई छोटे-छोटे व्यापारों का एक बड़े संगठन में सम्मिलित हो जाना। जैसे United State steel Company में लगभग 200 विनिर्माण (manufacturing) और परिवहन (transport) कंपनियां एकीकृत हो गई थी और पूरा इस्ताप बाजार उसके नियंत्रण में था। इस तरह 19वीं शताब्दी के अंत में विशालकाय निगमों के स्थापित होने से भावी कम्पनी नियंत्रित पूंजीवाद (Corporate Capitalism) की शुरूआत हुई। इस तरह गृहयुद्धोत्तर काल तीव्र आर्थिक परिवर्तनों और समेकन का युग था। इस युग में बड़े-बड़े औद्योगिक घराने पनपे और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एकाधिकार (monopoly) का साम्राज्य फैला।
  • बड़े-बड़े संगठन अब विशाल और गतिशील बाजार व्यवस्था से जुड़ रहे थे, अतः वे अपने यहां व्यावसायिक प्रबन्ध व्यवस्था लागू करने पर जोर देने लगे। वे चाहते थे कि उनके श्रमिकों एवं अन्य प्रबन्धकर्ताओं की देखभाल अधिक दक्षता से हो और काम व्यावसायिक प्रबंधन में प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकते थे। प्रबंधन शिक्षा का विकास हुआ और कहा गया कि अब तक मनुष्य “आगे रहा है किन्तु आने वाले जमाने में व्यवस्था को आगे रहना होगा।” इसी सूत्र वाक्य को ध्यान में रख Accounting , Management और Marketing के कई व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू हुए तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में कार्मिक विभाग (Personnel Deptt) स्थापित हुए।

महिलाओं की भूमिका का विस्तार

व्यापक औद्योगीकरण एवं शहरीकरण ने महिलाओं की भूमिका का विस्तार किया। महिलाएं अब घरों से निकल फैक्ट्रियों एवं कार्यालयों में काम करने लगीं। स्त्री शिक्षा को बढ़ावा मिला जिससे उनका जीवन स्तर सुधारा। अतः स्त्री अधिकारों को लेकर विचार विमर्श बढ़ा।

प्रथम आधुनिक युद्ध

अमेरिकी गृहयुद्ध को प्रथम आधुनिक युद्ध माना जाता हैं। इतिहास में यह प्रथम युद्ध था जिसमें बख्तरबंद युद्धपोतों ने संघर्ष किया। पहली बार व्यापक रूप से तोपखाने तथा गोला बारूद का प्रयोग किया गया। समाचार पत्रों ने युद्ध गतिविधियों का विस्तृत विवरण दिया और जनमत को प्रभावित किया। पहली बार घायल सैनिकों की चिकित्सा का सुव्यवस्थित ढंग से प्रबंधन किया गया, भूमिगत तथा जलगत सुरंगे बिछाई गई और युद्ध पोतो को डूबा देने वाली पनडुब्बियों का प्रयोग किया गया। इस प्रकार आधुनिक तकनीक पर आधारित यह प्रथम युद्ध माना जाता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. And the war came: the slavery quarrel and the American Civil War, Donald J. Meyers, Algora Publishing, 2005, ISBN 978-0-87586-358-0
  2. Interpreting America's Civil War: organizing and interpreting information in outlines, graphs, timelines, maps, and charts, Therese Shea, The Rosen Publishing Group, 2005, ISBN 978-1-4042-0415-7, ... resulted in the joy of freedom for former slaves. About 620000 Americans were killed during the four years of the Civil War ...
  3. The American Civil War and the British press, Alfred Grant, McFarland, 2000, ISBN 978-0-7864-0630-2, ... the wish of the South for low duties and unfettered trade. Of course we are anxious that the prosperity of the States which produce so much raw material and need so many manufactured goods should suffer no interruption or reverse ...