"फ़िरोज़ाबाद": अवतरणों में अंतर

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उत्तर प्रदेश में सर्वप्रथम काँच का कारखाना [[हिरन गाँव]] में स्थापित हुआ था जो कि बर्तमान में बंद हो चुका है जो कि फिरोजाबाद से लगभग 10 किलो मीटर की दूरी पर है भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि फ़िरोज़ाबाद में बनाये जाते हैं। फ़िरोज़ाबाद में मुख्यत:चूड़ियों का व्यवसाय होता है। यहाँ पर आप रंगबिरंगी चूड़ियों की दुकानें चारों ओर देख सकते हैं। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। भारत में काँच का सर्वाधिक फ़िरोज़ाबाद नामक छोटे से शहर में बनाया जाता है। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है। रंगीन काँच को गलाने के बाद उसे खींच कर तार के समान बनाया जाता है और एक बेलनाकार ढाँचे पर कुंडली के आकार में लपेटा जाता है। स्प्रिंग के समान दिखने वाली इस संरचना को काट कर खुले सिरों वाली चूड़ियाँ तैयार कर ली जातीं हैं। अब इन खुले सिरों वाली चूड़ियों के विधिपूर्वक न सिर्फ़ ये सिरे जोड़े जाते हैं बल्कि चूड़ियाँ एकरूप भी की जाती हैं ताकि जुड़े सिरों पर काँच का कोई टुकड़ा निकला न रह जाये। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें काँच को गर्म व ठण्डा करना पड़ता है।
उत्तर प्रदेश में सर्वप्रथम काँच का कारखाना [[हिरन गाँव]] में स्थापित हुआ था जो कि बर्तमान में बंद हो चुका है जो कि फिरोजाबाद से लगभग 10 किलो मीटर की दूरी पर है भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि फ़िरोज़ाबाद में बनाये जाते हैं। फ़िरोज़ाबाद में मुख्यत:चूड़ियों का व्यवसाय होता है। यहाँ पर आप रंगबिरंगी चूड़ियों की दुकानें चारों ओर देख सकते हैं। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। भारत में काँच का सर्वाधिक फ़िरोज़ाबाद नामक छोटे से शहर में बनाया जाता है। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है। रंगीन काँच को गलाने के बाद उसे खींच कर तार के समान बनाया जाता है और एक बेलनाकार ढाँचे पर कुंडली के आकार में लपेटा जाता है। स्प्रिंग के समान दिखने वाली इस संरचना को काट कर खुले सिरों वाली चूड़ियाँ तैयार कर ली जातीं हैं। अब इन खुले सिरों वाली चूड़ियों के विधिपूर्वक न सिर्फ़ ये सिरे जोड़े जाते हैं बल्कि चूड़ियाँ एकरूप भी की जाती हैं ताकि जुड़े सिरों पर काँच का कोई टुकड़ा निकला न रह जाये। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें काँच को गर्म व ठण्डा करना पड़ता है।


== पर्यटन स्थल। ==
== पर्यटन स्थल ==
तोताराम सनाढय -
तोताराम सनाढय -


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1884 के गजेटियर के अनुसार कोटला का किला जिसकी खाई 20 फ़ीट चोडी, 14 फुट गहरी, 40 फुट ऊँची दर्शाई गई है भूमि की परधि 284 फ़ीट उत्तर 220 फ़ीट दक्षिण तथा 320 फ़ीट पूर्व तथा 480 फ़ीट पछिम में थी वर्तमान में ये किला नस्ट हो गया है किन्तु अब भी उसके अभिषेश देखने को मिलते है ।
1884 के गजेटियर के अनुसार कोटला का किला जिसकी खाई 20 फ़ीट चोडी, 14 फुट गहरी, 40 फुट ऊँची दर्शाई गई है भूमि की परधि 284 फ़ीट उत्तर 220 फ़ीट दक्षिण तथा 320 फ़ीट पूर्व तथा 480 फ़ीट पछिम में थी वर्तमान में ये किला नस्ट हो गया है किन्तु अब भी उसके अभिषेश देखने को मिलते है ।


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रपडी -


शिकोहाबाद से दक्षिण किनारे यमुना नदी के निकट रपडी जागीर के अवशेष आज भी विधमान है कहा जाता है कि राव जोरावर सिंह ने रपडी को वसाय था , यहाँ वुजुर्ग फरीद उद्दीन चिस्ती की दरगाह भी है चैत्र की फसल कटने के बाद यहाँ उर्ष का मेला लगता है दरगाह के पीछे एक ईदगाह भी है जिसकी दीवारो पर अरवी में कुरान की आयते भी लिखी हुई है पुराने समय में एक किलो मीटर के दायरे में विशाल किला बना होगा जिसके टूटे हुए पत्थर व् ईटे आज भी भिखरी हुई है एक मस्जिद तथा एक पक्का कुआ के अवशेष आज भी मौजूद है ।
शिकोहाबाद से दक्षिण किनारे यमुना नदी के निकट रपडी जागीर के अवशेष आज भी विधमान है कहा जाता है कि राव जोरावर सिंह ने रपडी को वसाय था , यहाँ वुजुर्ग फरीद उद्दीन चिस्ती की दरगाह भी है चैत्र की फसल कटने के बाद यहाँ उर्ष का मेला लगता है दरगाह के पीछे एक ईदगाह भी है जिसकी दीवारो पर अरवी में कुरान की आयते भी लिखी हुई है पुराने समय में एक किलो मीटर के दायरे में विशाल किला बना होगा जिसके टूटे हुए पत्थर व् ईटे आज भी भिखरी हुई है एक मस्जिद तथा एक पक्का कुआ के अवशेष आज भी मौजूद है ।


== परिवहन ==
== शिक्षा ==


== प्रमुख पत्रिकाये ==
यह [[आगरा]] और [[इटावा]] के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है। दिल्ली से रेल द्वारा आसानी से टूंडला जंक्शन एवम् हिरन गाओं होते हुए फ़िरोज़ाबाद पंहुचा जा सकता है एवम् फ़िरोज़ाबाद पहुँचने हेतु बस आदि की भी समुचित व्यवस्ता है । स्वतंत्रता सेनानी पंडित तोताराम सनाढय की जन्म भूमि गाओं हिरन गाओं में जाने हेतु टैम्पू टैक्सी आदि की भी समुचित व्यवस्ता है ।
1.अमर उजाला


2.दैनिक जागरण

3.आज

4.हिंदुस्तान

== यातायात ==

यह [[आगरा]] और [[इटावा]] के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है। दिल्ली से रेल द्वारा आसानी से टूंडला जंक्शन एवम् हिरन गाओं होते हुए फ़िरोज़ाबाद पंहुचा जा सकता है एवम् फ़िरोज़ाबाद पहुँचने हेतु बस आदि की भी समुचित व्यवस्ता है । स्वतंत्रता सेनानी पंडित तोताराम सनाढय की जन्म भूमि गाओं हिरन गाओं में जाने हेतु टैम्पू टैक्सी आदि की भी समुचित व्यवस्ता है।

== सन्दर्भ ==
[[श्रेणी:फ़िरोज़ाबाद ज़िला]]
[[श्रेणी:फ़िरोज़ाबाद ज़िला]]
[[श्रेणी:शहर]]
[[श्रेणी:शहर]]

14:31, 27 मई 2016 का अवतरण

फिरोजाबाद
फ़िरोज़ाबाद
فیروزآباد
city
फिरोजाबाद is located in उत्तर प्रदेश
फिरोजाबाद
फिरोजाबाद
CountryIndia
StateUttar Pradesh
DistrictFirozabad
शासन
 • सभाCongress
जनसंख्या (2011 census)
 • कुल603,797
Languages
 • OfficialHindi
Urdu
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
PIN283203
Telephone code05612
वाहन पंजीकरणUP 83
वेबसाइटfirozabad.nic.in

फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है।यह शहर चूड़ियों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। यह आगरा से 40 किलोमीटर और राजधानी दिल्ली से 250 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व की तरफ स्थित है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ यहाँ से लगभग 250 किमी पूर्व की तरफ है। फिरोज़ाबाद ज़िले के अन्तर्गत दो कस्बे टुंडला और शिकोहाबाद आते हैं। टुंडला पश्चिम तथा शिकोहाबाद शहर के पूर्व में स्थित है।

इस शहर को फीरोज़शाह तुग़लक़ ने बसाया था। फिरोज़ाबाद में मुख्यतः चूडियों का कारोबार होता है। यहाँ पर आप रंग बिरंगी चूडियों को अपने चारों ओर देख सकते हैं। लेकिन अब यहाँ पर गैस का कारोबार होता है। यहाँ पर काँच का अन्य सामान (जैसे काँच के झूमर) भी बनते हैं।

इस शहर की आबो हवा गरम है। यहाँ की आबादी बहुत घनी है। यहाँ के ज्यादातर लोग कोरोबार से जुडे हैं। घरों के अन्दर महिलाएं भी चूडियों पर पालिश और हिल लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। बाल मज़दूरी यहाँ आम है। सरकार तमाम प्रयासों के बावजूद उन पर अंकुश नहीं लगा सकी है। जबकि पंडित तोताराम सनाढय द्वारा बंधुआ मजदूरी/गिरमिटिया प्रथा को फिजी में समाप्त किया।जिनकी जन्म स्थली फीरोजाबाद से लगभग 8 किलो मीटर दूर गाओं हिरन गाओं में है !

फिरोजाबाद शहर को वायदा बाजार ने बर्बाद कर रखा है। यहाँ के करोबारी वायदा बाजार के फायदे के लिये बर्बाद हो रहे है। ये वायदा बाजार कुछ लोगो के द्वारा गैर कानूनी रुप से चलाया जा रहा है, जो कि हिल और द्राफ्त के गैर कानूनी काम भी करते हैं।

इतिहास

फ़िरोज़ाबाद की स्थापना सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक ने (1351-1388 ई.)की थी और अपनी राजधानी को दिल्ली से दस मील की दूरी पर बसाया था। यही नाम सुल्तान ने 1353-1354 ई. में बंगाल की चढ़ाई के दौरान वहाँ के 'पहुँचा नगर' को भी दिया था। सुल्तान फ़िरोज़ कट्टर मुसलमान था और उसने देश का प्रशासन इस्लाम के सिद्धान्तों के अनुरूप चलाने का प्रयास किया। फलस्वरूप हिन्दुओं को, जो बहुमत में थे, भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उनके धार्मिक उत्सवों, सार्वजनिक सभाओं और पूजा पाठ पर प्रतिबंध लगाया गया। यहाँ क़े ज़मींदार मनिहार और पठान ही थे।

इस धार्मिक कट्टरता के बावजूद फ़िरोज़ उदार शासक था। उसने अनेक कष्टदायी और अनुचित करों को समाप्त किया, यद्यपि ब्राह्मणों पर भी जजिया कर थोपा गया, जो कि अभी तक इससे मुक्त थे। उसने सिंचाई के कार्य को प्रोत्साहन दिया, जौनपुर सहित कई नगरों की स्थापना की, अनेक बाग़-बग़ीचों को लगाया और वहाँ पर तमाम मस्ज़िदों का निर्माण कराया। उसने अंग-भंग जैसे कठोर दंडों को समाप्त किया और एक धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की। जहाँ रोगियों को दवाएँ और भोजन मुफ़्त दिया जाता था। उसका शासन कठोर नहीं था। चीज़ों की क़ीमत कम थी। लोग शान्ति से रहते थे।

उद्योग

उत्तर प्रदेश में सर्वप्रथम काँच का कारखाना हिरन गाँव में स्थापित हुआ था जो कि बर्तमान में बंद हो चुका है जो कि फिरोजाबाद से लगभग 10 किलो मीटर की दूरी पर है भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि फ़िरोज़ाबाद में बनाये जाते हैं। फ़िरोज़ाबाद में मुख्यत:चूड़ियों का व्यवसाय होता है। यहाँ पर आप रंगबिरंगी चूड़ियों की दुकानें चारों ओर देख सकते हैं। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। भारत में काँच का सर्वाधिक फ़िरोज़ाबाद नामक छोटे से शहर में बनाया जाता है। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है। रंगीन काँच को गलाने के बाद उसे खींच कर तार के समान बनाया जाता है और एक बेलनाकार ढाँचे पर कुंडली के आकार में लपेटा जाता है। स्प्रिंग के समान दिखने वाली इस संरचना को काट कर खुले सिरों वाली चूड़ियाँ तैयार कर ली जातीं हैं। अब इन खुले सिरों वाली चूड़ियों के विधिपूर्वक न सिर्फ़ ये सिरे जोड़े जाते हैं बल्कि चूड़ियाँ एकरूप भी की जाती हैं ताकि जुड़े सिरों पर काँच का कोई टुकड़ा निकला न रह जाये। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें काँच को गर्म व ठण्डा करना पड़ता है।

पर्यटन स्थल

तोताराम सनाढय -

हिरन गाँव में तोताराम सनाढय की जन्म भूमि है जिन्होंने फिजी देश में बंधुआ मजदूरी/गिरमिटिया प्रथा को समाप्त करने में अपना अविस्मरणीय योगदान प्रदान किया ।

बाबा नीम करोरी महाराज -

हिरन गाँव से 500 मीटर दुरी पर बाबा नीम करोरी महाराज की भी जन्म स्थली है जिनके धार्मिक मंदिर देश मे ही नहीं अपितु विदेशो में भी बने हुए है । यहाँ प्रतिवर्ष भंडारा होता है एव श्रदालु हजारो की संख्या में बाबा का प्रसाद ग्रहण करते है और उनका आशिर्वाद भी प्राप्त करते है ।

वैष्णो देवी मंदिर-

हिरन गाँव से लगभग 4 किलो मीटर दूर पर मंदिर बना हुआ है यहाँ कोई भी सच्चे मन से मांगी गई मन्नत पूरी होती है यहाँ प्रतिवर्ष नवदुर्गो में मेला लगता है और हजारो की संख्या में बड़ी दूर दूर से श्रदालु माता के दर्शन के लिए आते है और अपनी मन्नते पूर्ण करने के लिए मांगते है एव लेजा भी काफी संख्या में यहाँ चढ़ाये जाते है ।

महावीर दिगम्बर जैन मंदिर-

हिरन गाओं से लगभग 8 किलो मीटर दूर जैन मंदिर की स्थापना स्वर्गीय सेठ छि दामी लाल जैन द्वारा की गई थी मंदिर के हॉल में भगवान महावीर जी की सुन्दर मूर्ति पदमासन की मुद्रा में स्थापित है , इस सुन्दर व् विशाल मंदिर में 2 मई 1976 में 45 फीट लंबी और 12 फीट चोडी भगवान वाहुवलि स्वामी की मूर्ति स्थापित की गई है मूर्ति का वजन कुल 130 तन है यह उत्तरी भारत की पहली तथा देश की पाँचवी बड़ी प्रतिमा है एवम् चंद्रप्रभु की सुन्दर प्रतिमा भी स्थापित है सम्पूर्ण भारतवर्ष से जैन मतावलंबी महावीर दिगंबर जैन मंदिर के दर्शनार्थ हजारो की संख्या में प्रति माह आते रहते है ।

चंदवार गेट

हिरन गाँव से लगभग 13 किलो मीटर दूर यमुना तट पर चंदवार वसा हुआ है यहाँ पर मोहम्मद ग़ोरी एवम् जयचंद का युद्ध हुआ था । जैन विद्वानों की यह मान्यता थी कि ये कृष्न भगवान कृष्न के पिता वासुदेव द्वारा शसित रहा है कहा जाता है कि चंदवार नगर की स्थापना चंद्रसेन ने की थी ।

फिरोजशाह का मकवरा-

हिरन गाँव से लगभग 9 किलो मीटर दूर नगर निगम फ़िरोज़ाबाद के सामने फिरोज शाह का मकवरा 16वी सताब्दी का निर्मित बताया जाता है ।इस मकबरे में ख़वाजा मुग़ल सेनापति फ़िरोज़शाह की कब्र है उ0प्र0 वफ बोर्ड द्वारा मकवरे की देखवाल की जा रही है।

नूरजहाँ

हिरन गाँव से लगभग 18 किलो मीटर दूर नूरजहाँ का मकवरा स्थित है ।

महा वृक्ष अजान

हिरनगाँव से लगभग 16 किलो मीटर दूरी पर कोटला रोड पर बड़ा गाँव तथा जाटउ मार्ग पर एक बृक्ष जिसकी गोलाई 9.80 मीटर तथा ऊँचाई 19.3 मीटर है महा बृक्ष अजान के नाम से जाना जाता है इस बृक्ष पर जुलाई माह में सफ़ेद रंग के फूल आते है ।

सूफी शाह

हिरन गाँव से लगभग 15 किलो मीटर दूर दक्षण में यमुना के किनारे सूफी शा ह का मकवरा है जहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा उर्श भी होता है उक्त स्थल पर सूफी शाह की मजार पर नगर के मुस्लिम व् हिन्दू श्रद्धा से मेले में सरीक होते है ।

सांती -

हिरन गाँव से लगभग 13 किलो मीटर दूर उत्तर दिशा में सांती ग्राम स्थित है यहाँ पर लगभग 100 बीघा में स्थित एक प्राचीन खेरा तथा शिवजी का मंदिर है कहा जाता है कि प्राचीन समय में राजा शान्तनु का यहाँ किला था फाल्गुन माह के कृष्न पक्ष की त्रयोदसी के दिन यहाँ प्रत्येक वर्ष हजारो की संख्या में भक्तजन गंगा से जल लाकर कावर चढ़ाते है एवम् उसी दिन मेला भी लगता है यह मेला लगभग 200 वर्ष पुराना वताया गया है ।

शाही मस्जिद-

हिरन गाँव से लगभग 9 किलो मीटर दूर आगरा गजेटियर के अनुसार नगर की सबसे प्राचीन शाही मस्जिद जोकि वर्तमान में कटरा पठानान में है का निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था ।

गोपाल आश्रम-

हिरन गाँव से लगभग 9 किलो मीटर दूर सेठ रामगोपाल मित्तल द्वारा बाई पास रोड स्थित आश्रम का निर्माण 1953 में कराया आश्रम में 57 फीट ऊँची हनुमान की प्रतिमा स्तापित है इस आश्रम में एक विशाल सत्संग भवन है यहाँ पर प्रतिदिन सत्संग होता है ।

श्री हनुमान मंदिर-

मराठा शासन काल में श्री वाजीराव पेशवा द्वतीय द्वारा इस मंदिर की स्थापना एक मठिया के रूप में की गई । यहाँ 19वी शताब्दी के ख्याति प्राप्त तपस्वी चमत्कारिक महात्मा वावा प्रयागदास की चरण पादुकाएं भी स्थित है।

पाढ़म-

एका शिकोहावाद मार्ग पर स्थित परीक्षित नगरी पाढ़म के खण्डर एक विशाल खेड़े के रूप में अपने प्राचीन वैभव के ज्वलंत प्रमाण है यह खेड़ा एक किलो मीटर की वृत्ताकार परधि में स्थित है मान्यता है कि अर्जुन के पोत्र तथा अभिमन्यु के पुत्र महाराजा परीक्षित की नागदंश् के फलस्वरूप मृतु के उपरांत उनके पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी के समस्त नागो को नस्ट करने के लिए इशी स्थान पर नाग यज्ञ किया था ।पांडव खेड़े की उचाई 200 फुट है इस खेड़े की खुदाई में 3.5 गज की मोटी दीवारे निकली है खुदाई से प्राप्त ईटे विभिन्न आकार में एक फुट से लेकर 1.5 फुट तक लम्बी है खेड़े पर एक प्राचीन कुआँ है जिसे परीक्षित कूप कहा जाता है यहाँ दो प्राचीन जैन मंदिर भी है जनमेजय का नाग यज्ञ कुण्ड भी खेड़े के समीप ही है।

कोटला का किला -

1884 के गजेटियर के अनुसार कोटला का किला जिसकी खाई 20 फ़ीट चोडी, 14 फुट गहरी, 40 फुट ऊँची दर्शाई गई है भूमि की परधि 284 फ़ीट उत्तर 220 फ़ीट दक्षिण तथा 320 फ़ीट पूर्व तथा 480 फ़ीट पछिम में थी वर्तमान में ये किला नस्ट हो गया है किन्तु अब भी उसके अभिषेश देखने को मिलते है ।

रपडी -

शिकोहाबाद से दक्षिण किनारे यमुना नदी के निकट रपडी जागीर के अवशेष आज भी विधमान है कहा जाता है कि राव जोरावर सिंह ने रपडी को वसाय था , यहाँ वुजुर्ग फरीद उद्दीन चिस्ती की दरगाह भी है चैत्र की फसल कटने के बाद यहाँ उर्ष का मेला लगता है दरगाह के पीछे एक ईदगाह भी है जिसकी दीवारो पर अरवी में कुरान की आयते भी लिखी हुई है पुराने समय में एक किलो मीटर के दायरे में विशाल किला बना होगा जिसके टूटे हुए पत्थर व् ईटे आज भी भिखरी हुई है एक मस्जिद तथा एक पक्का कुआ के अवशेष आज भी मौजूद है ।

शिक्षा

प्रमुख पत्रिकाये

1.अमर उजाला

2.दैनिक जागरण

3.आज

4.हिंदुस्तान

यातायात

यह आगरा और इटावा के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है। दिल्ली से रेल द्वारा आसानी से टूंडला जंक्शन एवम् हिरन गाओं होते हुए फ़िरोज़ाबाद पंहुचा जा सकता है एवम् फ़िरोज़ाबाद पहुँचने हेतु बस आदि की भी समुचित व्यवस्ता है । स्वतंत्रता सेनानी पंडित तोताराम सनाढय की जन्म भूमि गाओं हिरन गाओं में जाने हेतु टैम्पू टैक्सी आदि की भी समुचित व्यवस्ता है।

सन्दर्भ