"भारतीय अधिराज्य": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
पंक्ति 72: पंक्ति 72:


==राजतंत्रिक व्यवस्था एवं कार्यप्रणाली==
==राजतंत्रिक व्यवस्था एवं कार्यप्रणाली==
[[File:Flag of the Governor-General of India (1947-1950).svg|thumb|left|भारत के गवर्नर-जनरल का व्यक्तिगत ध्वज]]
अधिराजकिय राजतंत्रिक व्यवस्था में सारे स्वायत्त्योपनिवेशों(या [[अधिराज्य]]) का केवल एक ही [[नरेश]] एवं एक ही राजघराना होता है, अर्थात सारे अधिराज्यों पर एक ही व्यक्ती([[सम्राट]], [[नरेश]] [[राजा]] या शासक) का राज होता है। यह नरेश, हर एक अधिराज्य पर सामान्य अधिकार रखता है एवं हर अधिराज्य में संवैधानिक व कानूनन रूप से उसे राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा प्राप्त होता है। यह होने के बावजूद सारे अधिराज्य स्वतंत्र एवं तथ्यस्वरूप स्वतंत्र रहते हैं क्योंकि हर देश में अपनी खुद की स्वतंत्र सरकार होती है और नरेश का पद केवल परंपरागत एवं कथास्वरूप का होता है। शासक का संपूर्ण कार्यभार एवं कार्याधिकार उस देश के महाराज्यपाल के नियंत्रण मे रहता है जिसे तथ्यस्वरूप सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। इस तरह की व्यवस्था सार्थक रूप से [[ब्रिटिश साम्राज्य]] व ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेशों(ब्रिटेन, [[कैनडा]], [[ऑस्ट्रेलिया]], अदि) व पूर्व ब्रिटिश अधिराज्यों की शासन प्रणाली में देखी जा सकती है। [[भारत]] में इस क्षणिक स्वयत्योपनिवेशिय काल में इसी तरह की शासन प्रणाली रही थी। इस बीच भारत में विधानपालिकी का पूरा कार्यभार [[भारत की संविधानसभा|संविधानसभा]] पर था व कार्यपालिका का मुखिया [[भारत के प्रधानमंत्री]] थे। इस बीच भारत पर केवल एक; राजा [[जार्ज षष्ठम|जाॅर्ज (षष्ठम)]] का राज रहा, एवं दो महारज्यपालों व एक प्रधानमंत्री की नियुक्ती हुई।
अधिराजकिय राजतंत्रिक व्यवस्था में सारे स्वायत्त्योपनिवेशों(या [[अधिराज्य]]) का केवल एक ही [[नरेश]] एवं एक ही राजघराना होता है, अर्थात सारे अधिराज्यों पर एक ही व्यक्ती([[सम्राट]], [[नरेश]] [[राजा]] या शासक) का राज होता है। यह नरेश, हर एक अधिराज्य पर सामान्य अधिकार रखता है एवं हर अधिराज्य में संवैधानिक व कानूनन रूप से उसे राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा प्राप्त होता है। यह होने के बावजूद सारे अधिराज्य स्वतंत्र एवं तथ्यस्वरूप स्वतंत्र रहते हैं क्योंकि हर देश में अपनी खुद की स्वतंत्र सरकार होती है और नरेश का पद केवल परंपरागत एवं कथास्वरूप का होता है। शासक का संपूर्ण कार्यभार एवं कार्याधिकार उस देश के महाराज्यपाल के नियंत्रण मे रहता है जिसे तथ्यस्वरूप सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। इस तरह की व्यवस्था सार्थक रूप से [[ब्रिटिश साम्राज्य]] व ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेशों(ब्रिटेन, [[कैनडा]], [[ऑस्ट्रेलिया]], अदि) व पूर्व ब्रिटिश अधिराज्यों की शासन प्रणाली में देखी जा सकती है। [[भारत]] में इस क्षणिक स्वयत्योपनिवेशिय काल में इसी तरह की शासन प्रणाली रही थी। इस बीच भारत में विधानपालिकी का पूरा कार्यभार [[भारत की संविधानसभा|संविधानसभा]] पर था व कार्यपालिका का मुखिया [[भारत के प्रधानमंत्री]] थे। इस बीच भारत पर केवल एक; राजा [[जार्ज षष्ठम|जाॅर्ज (षष्ठम)]] का राज रहा, एवं दो महारज्यपालों व एक प्रधानमंत्री की नियुक्ती हुई।
===भारत के नरेशों की सुची===
===भारत के नरेशों की सुची===

06:58, 4 सितंबर 2015 का अवतरण

Dominion of India
(डोमीनियन ऑफ़ इंडिया)
भारतिय अधिराज्य

1947–1950
ध्वज कुलांक
राष्ट्रगान
जन गण मन
शाही गान
गाॅड सेव द किंगअंग्रेज़ी: God save the King
राजधानी नई दिल्ली
शासन संवैधानिक राजतंत्र
शासक
 -  1936-1950 जौर्ज (षष्ठम)
गवर्नर-जनरल(महाराज्यपाल)
 -  1947–1948 लाॅर्ड माउण्टबैटन
 -  1948–1950 चक्रवर्ती राजागोपालाचारी
प्रधानमंत्री, (पूर्वतः राज्यसचिव)
 -  1947-1950 जवाहरलाल नेहरू
विधायिका संविधानसभा
ऐतिहासिक युग मध्य 20वीं सदी, शीत युद्ध
 -  भारतिय स्वतंत्रता अधिनियम 15 अगस्त 1947
 -  प्रथम भारत-पाक युद्ध 1947 22 अकटूवर 1947
 -  संविधान का प्रवर्तन 26 जनवरी 1950
क्षेत्रफल
 -  1950 32,87,263 किमी ² (12,69,219 वर्ग मील)
मुद्रा भारतिय रुपया
Warning: Value specified for "continent" does not comply

भारत अधिराज्य, मौजूदा भारत(अर्थात् भारत गणराज्य) की संक्रमणकालीन अवस्था थी। यह 3 साल तक; 1947 से 1950 में संविधान के प्रवर्तन तक, अस्तित्व में रही थी। रह मूल रूप से भारत में ब्रिटिश-उपनिवैषिक शासिन अवस्था से स्वतंत्र, स्वायत्त, लोकतांत्रिक, भारतिय गणराज्य के बीच की अस्थाई शासन अथ्वा राज्य थी। इसे आधिकारिक रूप से हिंदी में भारत अधिराज्य एवं अंग्रेज़ी में डोमीनियन ऑफ़ इंडिया(अंग्रेज़ी: Dominion of India) कहा जाता था। सन 1947 में ब्रितानियाई संसद में भारतिय स्वतंत्रता अधीनियम पारित होने के बाद, अधिकारिक तौर पर, यूनाईटेड किंगडम की सरकार ने भारत पर अपनी प्रभुता त्याग दी और भारत में स्वशासन अथवा स्वराज लागू कर दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश भारत(ब्रिटिश-भारतिय उपनिवेष) का अंत हो गया और भारत कैनडा और ऑस्ट्रेलिया की हि तरह एक स्वायत्तयोपनिवेष(डोमीनियन) बन गय, (अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वायत्त एकाई)। ब्रिटिश संसद के भारत-संबंधित सारे विधानाधिकारों को (1945 में गठित) भारत की संविधान सभा के अधिकार में सौंप दिया गया, भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का सहपद सदस्य भी बन गया साथ ही ब्रिटेन के राजा ने भारत के सम्राट का शाही ख़िताब त्याग दिया। ब्रिटिश स्वयत्तयोपनिवेष एवं रष्ट्रमंडल प्रदेश का हिस्सा होने के नाते इंगलैंड के राजा ज्यौर्ज (षष्ठम) को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया एवं आन्य राष्ट्रमंडल देशों की तरह ही भारतिय लैहज़े में उन्हें भारत के राजा की उपादी से नवाज़ा गया(यह पद केवल नाम-मात्र एवं शिश्टाचार के लिये था), भारत में उनका प्रतिनिधिताव भारत के महाराज्यपाल(गवरनर-जनरल) के द्वारा होता था। 1950 में संविधान के लागू होने के साथ ही भारत एक पूर्णतः स्वतंत्र गणराज्य बन गया और साथ ही भारत के राजा के पद को हमेशा के लिये स्थगित कर दिया गया, और भारत के संवंधान द्वरा स्थापित लोकतांत्रिक प्रकृया द्वारा चुने गए भारत के महामहिं राष्ट्रपति के पद से बदल दिया गया। इस बीच भारत में दो महाराज्यपालों को नियुक्त किया गया, महामहिं महाराज्यपाल लाॅर्ड माउण्टबैटन और महामहिं महाराज्यपाल चक्रव्रती राजागोपालाचारी।

इतिहास

भारत में ब्रिटिश-उपनिवेशिक-काल के दैरान स्वशासन व स्वराज की मांगें कई बार उठती रहीं पर ब्रिटिश सरकार ने इन मांगों को हर बार खारिज कर दिया व सारे आंदोलनों को बल द्वारा दबाने की कोशिश करती रही। परंतू 1920 के दशक में स्वराज के लिये शुरू हुए इस आंदोलन को पूर्ण-स्वराज में परिवर्तित होने में देर नहीं लगी। तमाम उतार-चढ़ावों के बाद करीब 30 वर्षों के बाद 1947 अंग्रेज़ सरकार ने भारत को स्वराज प्रदान करने का फ़ैसला कर लिया। महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए नमक सत्याग्रह की सफ़लता व उसे मिले विशाल जनसमर्थन के बाद अंग्रेज़ सरकार समझ गई थी की भारत को ज़यादा समय तक अब विदेशी-नियंत्रण में रखना असंभव था, और स्वतंत्रता केवल समय की बात रह गई थी। कौंग्रेस द्वारा किये गए पूर्ण-स्वराज घोशणा, ब्रिटिश-भारतिय नौसेना का विद्रोह और द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन में आई आर्थिक-मंदी ने आखरी कील का काम किया। 1947 में ब्रिटेन की संसद में भारतिय स्वतंत्रता अधीनियम के पारित होने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत पर अधिपत्यता त्याग दी और इसी के साथ भारत में स्वराज की स्थापना हुई। इसके बाद, ब्रिटिश कानूनन् प्रक्रिया के तहत भारत को ब्रिटिश-उपनिवेष से ब्रिटिश-स्वायत्तयोपनिवेष(डोमीनियन) का दरजा दे दिया गया। जिसके बाद, कानून तौर पर भारत एक स्वायत्तय एवं स्वतंत्र राष्ट्र बन गया एवं प्रक्रिया-स्वरूप भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का हिस्सा बन गया और आन्य राष्ट्रमंडल प्रदेशों की तरह ब्रिटेन के राजा, जौर्ज षष्ठम को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बना दिया गया, जिसके तहत भारतिय कानूनन् तैहज़े में उन्हें भारत के राजा का पारंपरिक एवं नम-मात्र के पद से सम्मानित किया गया। भारत में उनका प्रतिनिधित्व भारत के महाराज्यपाल(गवर्नर-जनरल) द्वारा होता था, जिन्हें "भारत के राजा" का सारा कार्याधिकार हासिल था। 1950 में संविधान को संविधानसभा की स्वीकृती मिल गई और 26 जनवरी 1950 को संविधान के परवर्तन के साथ ही भारत एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया और आधिराजकिय व्यवस्था को संविधान द्वारा गणराजकिय व्यवस्था से बदल दिया गया। भारत के राजा व महाराज्यप्ल के पद को समाप्त कर दिया गया एवं लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए भारत के महामहिं राष्ट्रपति को राष्ट्राध्यक्ष बना दिया गया।

राजतंत्रिक व्यवस्था एवं कार्यप्रणाली

भारत के गवर्नर-जनरल का व्यक्तिगत ध्वज

अधिराजकिय राजतंत्रिक व्यवस्था में सारे स्वायत्त्योपनिवेशों(या अधिराज्य) का केवल एक ही नरेश एवं एक ही राजघराना होता है, अर्थात सारे अधिराज्यों पर एक ही व्यक्ती(सम्राट, नरेश राजा या शासक) का राज होता है। यह नरेश, हर एक अधिराज्य पर सामान्य अधिकार रखता है एवं हर अधिराज्य में संवैधानिक व कानूनन रूप से उसे राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा प्राप्त होता है। यह होने के बावजूद सारे अधिराज्य स्वतंत्र एवं तथ्यस्वरूप स्वतंत्र रहते हैं क्योंकि हर देश में अपनी खुद की स्वतंत्र सरकार होती है और नरेश का पद केवल परंपरागत एवं कथास्वरूप का होता है। शासक का संपूर्ण कार्यभार एवं कार्याधिकार उस देश के महाराज्यपाल के नियंत्रण मे रहता है जिसे तथ्यस्वरूप सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। इस तरह की व्यवस्था सार्थक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य व ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेशों(ब्रिटेन, कैनडा, ऑस्ट्रेलिया, अदि) व पूर्व ब्रिटिश अधिराज्यों की शासन प्रणाली में देखी जा सकती है। भारत में इस क्षणिक स्वयत्योपनिवेशिय काल में इसी तरह की शासन प्रणाली रही थी। इस बीच भारत में विधानपालिकी का पूरा कार्यभार संविधानसभा पर था व कार्यपालिका का मुखिया भारत के प्रधानमंत्री थे। इस बीच भारत पर केवल एक; राजा जाॅर्ज (षष्ठम) का राज रहा, एवं दो महारज्यपालों व एक प्रधानमंत्री की नियुक्ती हुई।

भारत के नरेशों की सुची

भारत के महाराज्यपालों की सुची

भारत अधिराज्य के प्रधानमंत्रियों की सुची

संदर्भ