"कुर्अतुल ऐन हैदर": अवतरणों में अंतर

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ऐनी आपा के नाम से जानी जानी वाली क़ुर्रतुल ऐन हैदर प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं।<br>
ऐनी आपा के नाम से जानी जानी वाली क़ुर्रतुल ऐन हैदर प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं।<br>
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जन्म: 20 January 1926, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत<br>
जन्म: 20 January 1927, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत<br>
निधन: 21 अगस्त 2007, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद/ दिल्ली<br>
निधन: 21 अगस्त 2007, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद/ दिल्ली<br>


==जीवनी==
==जीवनी==
उनका जन्म 1927 में उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता सज्जाद हैदर यलदरम उर्दू के जाने-माने लेखक थे और उनकी मां नज़्र ज़ाहरा बिन्नत-ए-बाक़र भी उर्दू की लेखिका थीं। वो बचपन से रईसी व पाश्चात्य संस्कृति में पली-बढ़ीं। विभाजन के समय 1947 में अपने परिवार के साथ वह पाकिस्तान चली गईं थी लेकिन जल्द ही वो वहाँ से जा कर कुछ समय तक इंग्लैण्ड में रहीं और फिर भारत वापस गईं और तब से यहीं रहीं। उन्होंने विवाह नहीं किया।<br>
उनका जन्म 1927 में उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता 'सज्जाद हैदर यलदरम' उर्दू के जाने-माने लेखक होने के साथ-साथ ब्रिटिश शासन के राजदूत की हैसियत से अफगानिस्तान, तुर्की इत्यादि देशों में तैनात रहे थे और उनकी मां 'नजर' भी उर्दू की लेखिका थीं। वो बचपन से रईसी व पाश्चात्य संस्कृति में पली-बढ़ीं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा लालबाग, लखनऊ, उत्तर प्रदेश स्थित गाँधी स्कूल में प्राप्त की व तत्पश्चात अलीगढ़ से हाईस्कूल (10) पास किया। लखनऊ के आई.टी. कालेज से बी.ए. व लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। फिर लन्दन के हीदरलेस आर्ट्स स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। विभाजन के समय 1947 में उनके भाई-बहन व रिश्तेदार पाकिस्तान पलायन कर गए। लखनऊ में अपने पिता की मौत के बाद कुर्रतुल ऐन हैदर भी अपने बड़े भाई मुस्तफा हैदर के साथ पाकिस्तान पलायन कर गयीं। लेकिन १९५१ में वे लन्दन चली गयीं। वहाँ स्वतंत्र लेखक व पत्रकार के रूप में वह बी०बी०सी० लन्दन से जुड़ीं तथा दि टेलीग्राफ की रिपोर्टर व इम्प्रिंट पत्रिका की प्रबन्ध सम्पादक भी रहीं। कुर्रतुल ऐन हैदर इलेस्ट्रेड वीकली की सम्पादकीय टीम में भी रहीं। १९५६ में जब वे भारत भ्रमण पर आईं तो उनके पिताजी के अभिन्न मित्र मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उनसे पूछा कि क्या वे भारत आना चाहतीं हैं? कुर्रतुल ऐन हैदर के हामी भरने पर उन्होंने इस दिशा में कोशिश करने की बात कही और अन्ततः वे वह लन्दन से आकर मुम्बई में रहने लगीं और तब से भारत में हीं रहीं। उन्होंने विवाह नहीं किया।<br>
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उन्होंने बहुत कम आयु में लिखना शुरू किया था। जब वह 17-18 वर्ष की थीं तब 1945 में उनकी कहानी का संकलन ‘शीशे का घर’ सामने आया। उन्होंने अपना कैरियर एक पत्रकार की हैसियत से शुरू किया लेकिन इसी दौरान वे लिखती भी रहीं और उनकी कहानियां, उपन्यास, अनुवाद, रिपोर्ताज़ वग़ैरह सामने आते रहे। वो उर्दू में लिखती और अँग्रेजी में पत्रकारिता करती थीं। ‘इलस्‍ट्रेटेड वीकली’, ‘द डेली टेलीग्राफ’ और ‘इंप्रिंट’ में उन्‍होंने काम किया। काफी समय तक बीबीसी से भी जुड़ी रहीं। उनका पहला उपन्यास ‘मेरे भी सनमख़ाने’ है। उनके बहुत से उपन्यासों का अनुवाद अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा में हो चुका है। उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास '''आग का दरिया''' आज़ादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास था, जिसके बारे में [[निदा फ़ाज़ली]] ने यहाँ तक कहा है - '''[[मोहम्मद अली जिन्ना]] ने हिन्दुस्तान के साढ़े चार हज़ार सालों की तारीख़ (इतिहास) में से मुसलमानों के 1200 सालों की तारीख़ को अलग करके पाकिस्तान बनाया था। क़ुर्रतुल ऎन हैदर ने नॉवल 'आग़ का दरिया' लिख कर उन अलग किए गए 1200 सालों को हिन्दुस्तान में जोड़ कर हिन्दुस्तान को फिर से एक कर दिया।'''<br>
उन्होंने बहुत कम आयु में लिखना शुरू किया था। उन्होंने अपनी पहली कहानी मात्र छः वर्ष की अल्पायु में ही लिखी थी। ’बी चुहिया‘ उनकी प्रथम प्रकाशित कहानी थी। जब वह 17-18 वर्ष की थीं तब 1945 में उनकी कहानी का संकलन ‘शीशे का घर’ सामने आया। गले ही वर्ष १९ वर्ष की आयु में उनका प्रथम उपन्यास ’मेरे भी सनमखाने‘ प्रकाशित हुआ। उन्होंने अपना कैरियर एक पत्रकार की हैसियत से शुरू किया लेकिन इसी दौरान वे लिखती भी रहीं और उनकी कहानियां, उपन्यास, अनुवाद, रिपोर्ताज़ वग़ैरह सामने आते रहे। वो उर्दू में लिखती और अँग्रेजी में पत्रकारिता करती थीं। उनके बहुत से उपन्यासों का अनुवाद अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा में हो चुका है। साहित्य अकादमी में उर्दू सलाहकार बोर्ड की वे दो बार सदस्य भी रहीं। विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में वे जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अतिथि प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं।<br>
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१९५९ में उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास '''आग का दरिया''' प्रकाशित जिसे आज़ादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था जिसमें उन्होंने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर १९४७ तक की भारतीय समाज की सांस्कृतिक और दार्शनिक बुनियादों को समकालीन परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया था। इस उपन्यास के बारे में [[निदा फ़ाज़ली]] ने यहाँ तक कहा है - '''[[मोहम्मद अली जिन्ना]] ने हिन्दुस्तान के साढ़े चार हज़ार सालों की तारीख़ (इतिहास) में से मुसलमानों के 1200 सालों की तारीख़ को अलग करके पाकिस्तान बनाया था। क़ुर्रतुल ऎन हैदर ने नॉवल 'आग़ का दरिया' लिख कर उन अलग किए गए 1200 सालों को हिन्दुस्तान में जोड़ कर हिन्दुस्तान को फिर से एक कर दिया।'''<br>
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मंगलवार, 21 अगस्त, 2007 को सुबह तीन बजे (3:00 AM India Time) दिल्ली के पास नोएडा के कैलाश अस्पताल में 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।<br>
मंगलवार, 21 अगस्त, 2007 को सुबह तीन बजे (3:00 AM India Time) दिल्ली के पास नोएडा के कैलाश अस्पताल में 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।<br>
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* पतझड़ की आवाज़ (कहानी संग्रह)
* पतझड़ की आवाज़ (कहानी संग्रह)
* रोशनी की रफ़्तार (कहानी संग्रह)
* रोशनी की रफ़्तार (कहानी संग्रह)
* स्ट्रीट सिंगर्स ऑफ लखनऊ एण्ड अदर स्टोरीज
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* मेरे भी सनमख़ाने (पहला उपन्यास)
* मेरे भी सनमख़ाने (पहला उपन्यास)
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==पुरस्कार और सम्मान==
==पुरस्कार और सम्मान==
* [[1967]] [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]], कहानी पतझड़ की आवाज़, उपन्यास ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ के लिए
* [[1967]] [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]], उपन्यास ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ के लिए
* [[1969]] [[सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार]], अनुवाद के लिये
* [[1984]] [[पद्मश्री]] - साहित्यिक योगदान के लिए
* [[1984]] [[पद्मश्री]] - साहित्यिक योगदान के लिए
* [[1984]] [[गालिब मोदी अवार्ड]]
* [[1984]] [[गालिब मोदी अवार्ड]]
* [[1985]] [[साहित्य अकादमी सम्मान]], कहानी पतझड़ की आवाज़,
* [[1987]] [[इकबाल सम्मान]]
* [[1987]] [[इकबाल सम्मान]]
* [[1989]] [[सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार]], अनुवाद के लिये
* [[1989]] [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] - उपन्यास ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ के लिए
* [[1989]] [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] - उपन्यास ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ के लिए
* [[1989]] द्मभूषण


==संबंधित कड़ियाँ==
==संबंधित कड़ियाँ==

20:22, 22 दिसम्बर 2008 का अवतरण

ऐनी आपा के नाम से जानी जानी वाली क़ुर्रतुल ऐन हैदर प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं।

जन्म: 20 January 1927, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
निधन: 21 अगस्त 2007, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद/ दिल्ली

जीवनी

उनका जन्म 1927 में उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता 'सज्जाद हैदर यलदरम' उर्दू के जाने-माने लेखक होने के साथ-साथ ब्रिटिश शासन के राजदूत की हैसियत से अफगानिस्तान, तुर्की इत्यादि देशों में तैनात रहे थे और उनकी मां 'नजर' भी उर्दू की लेखिका थीं। वो बचपन से रईसी व पाश्चात्य संस्कृति में पली-बढ़ीं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा लालबाग, लखनऊ, उत्तर प्रदेश स्थित गाँधी स्कूल में प्राप्त की व तत्पश्चात अलीगढ़ से हाईस्कूल (10) पास किया। लखनऊ के आई.टी. कालेज से बी.ए. व लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। फिर लन्दन के हीदरलेस आर्ट्स स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। विभाजन के समय 1947 में उनके भाई-बहन व रिश्तेदार पाकिस्तान पलायन कर गए। लखनऊ में अपने पिता की मौत के बाद कुर्रतुल ऐन हैदर भी अपने बड़े भाई मुस्तफा हैदर के साथ पाकिस्तान पलायन कर गयीं। लेकिन १९५१ में वे लन्दन चली गयीं। वहाँ स्वतंत्र लेखक व पत्रकार के रूप में वह बी०बी०सी० लन्दन से जुड़ीं तथा दि टेलीग्राफ की रिपोर्टर व इम्प्रिंट पत्रिका की प्रबन्ध सम्पादक भी रहीं। कुर्रतुल ऐन हैदर इलेस्ट्रेड वीकली की सम्पादकीय टीम में भी रहीं। १९५६ में जब वे भारत भ्रमण पर आईं तो उनके पिताजी के अभिन्न मित्र मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उनसे पूछा कि क्या वे भारत आना चाहतीं हैं? कुर्रतुल ऐन हैदर के हामी भरने पर उन्होंने इस दिशा में कोशिश करने की बात कही और अन्ततः वे वह लन्दन से आकर मुम्बई में रहने लगीं और तब से भारत में हीं रहीं। उन्होंने विवाह नहीं किया।

उन्होंने बहुत कम आयु में लिखना शुरू किया था। उन्होंने अपनी पहली कहानी मात्र छः वर्ष की अल्पायु में ही लिखी थी। ’बी चुहिया‘ उनकी प्रथम प्रकाशित कहानी थी। जब वह 17-18 वर्ष की थीं तब 1945 में उनकी कहानी का संकलन ‘शीशे का घर’ सामने आया। गले ही वर्ष १९ वर्ष की आयु में उनका प्रथम उपन्यास ’मेरे भी सनमखाने‘ प्रकाशित हुआ। उन्होंने अपना कैरियर एक पत्रकार की हैसियत से शुरू किया लेकिन इसी दौरान वे लिखती भी रहीं और उनकी कहानियां, उपन्यास, अनुवाद, रिपोर्ताज़ वग़ैरह सामने आते रहे। वो उर्दू में लिखती और अँग्रेजी में पत्रकारिता करती थीं। उनके बहुत से उपन्यासों का अनुवाद अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा में हो चुका है। साहित्य अकादमी में उर्दू सलाहकार बोर्ड की वे दो बार सदस्य भी रहीं। विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में वे जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय व अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अतिथि प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं।

१९५९ में उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास आग का दरिया प्रकाशित जिसे आज़ादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था जिसमें उन्होंने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर १९४७ तक की भारतीय समाज की सांस्कृतिक और दार्शनिक बुनियादों को समकालीन परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया था। इस उपन्यास के बारे में निदा फ़ाज़ली ने यहाँ तक कहा है - मोहम्मद अली जिन्ना ने हिन्दुस्तान के साढ़े चार हज़ार सालों की तारीख़ (इतिहास) में से मुसलमानों के 1200 सालों की तारीख़ को अलग करके पाकिस्तान बनाया था। क़ुर्रतुल ऎन हैदर ने नॉवल 'आग़ का दरिया' लिख कर उन अलग किए गए 1200 सालों को हिन्दुस्तान में जोड़ कर हिन्दुस्तान को फिर से एक कर दिया।

मंगलवार, 21 अगस्त, 2007 को सुबह तीन बजे (3:00 AM India Time) दिल्ली के पास नोएडा के कैलाश अस्पताल में 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।

रचनाएँ

  • शीशे के घर (पहला कहानी संकलन) (1945 में प्रकाशित)
  • सितारों से आगे (कहानी संग्रह)
  • पतझड़ की आवाज़ (कहानी संग्रह)
  • रोशनी की रफ़्तार (कहानी संग्रह)
  • स्ट्रीट सिंगर्स ऑफ लखनऊ एण्ड अदर स्टोरीज


  • मेरे भी सनमख़ाने (पहला उपन्यास)
  • हाउसिंग सोसाइटी (उपन्यास)
  • आग का दरिया (उपन्यास) (1959)
  • सफ़ीन-ए-ग़मे दिल (उपन्यास)
  • आख़िरे-शब के हमसफ़र (उपन्यास) - 'निशांत के सहयात्री' शीर्षक से हिन्दी अनुवाद - साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित
  • गर्दिशे-रंगे-चमन (उपन्यास)
  • चांदनी बेगम (उपन्यास)
  • यह दाग दाग उजाला (उपन्यास)


  • कार-ए-जहाँ दराज़ है (दो भागों में) (जीवनी-उपन्यास)
  • चार नावेलेट (जीवनी-उपन्यास)
  • सीता हरन (जीवनी-उपन्यास)
  • दिलरुबा (जीवनी-उपन्यास)
  • चाय के बाग़ (जीवनी-उपन्यास)
  • अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो (जीवनी-उपन्यास)
  • क्लासिकल गायक बड़े ग़ुलाम अली खाँ की जीवनी (सह लिखित)


  • छुटे असीर तो बदला हुआ ज़माना था (रिपोर्ताज़)
  • कोह-ए-दमावंद (रिपोर्ताज़)
  • गुलगश्ते जहाँ (रिपोर्ताज़)
  • ख़िज़्र सोचता है (रिपोर्ताज़)
  • सितम्बर का चाँद (रिपोर्ताज़)
  • दकन सा नहीं ठार संसार में (रिपोर्ताज़)
  • क़ैदख़ाने में तलातुम है कि हिंद आती है (रिपोर्ताज़)
  • जहान ए दीगर (रिपोर्ताज़)


  • हमीं चराग़, हमी परवाने - हेनरी जेम्स के उपन्यास ‘पोर्ट्रेट ऑफ़ ए लेडी' का अनुवाद
  • कलीसा में क़त्ल - अंग्रेज़ी नाटक ‘मर्डर इन द कैथेड्रल’ का अनुवाद
  • आदमी का मुक़द्दर (अनुवाद)
  • आल्पस के गीत (अनुवाद)
  • तलाश (अनुवाद)
  • आग का दरिया (उनके अपने उर्दू उपन्यास का अंग्रेज़ी अनुवाद या ट्रांस्क्रिएशन) (1999)

पुरस्कार और सम्मान

संबंधित कड़ियाँ

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