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सन्त चरणदास
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अष्टांगयोग ग्रन्थ का आरम्भिक भाग नीचे दिया गया है-
'''शिष्यवचन'''
:व्यासपुत्र धनि धनि तुम्हीं, धनि धनि यह अस्थान। मम आशा पूरी करी, धनि धनि वह भगवान ॥ 1
अनुनाद सिंह
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