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शेरशाह कन्नौज युद्ध की विजय के बाद वह कन्नौज में ही रहा और शुजात खाँ को ग्वालियर विजय के लिए भेजा। वर्यजीद गुर को हुमायूँ को बन्दी बनाकर लाने के लिए भेजा। नसीर खाँ नुहानी को दिल्ली तथा सम्बलपुर का भार सौंप दिया।
अन्ततः शेरशाह का १० जून
== द्वितीय अफगान साम्राज्य ==
इस्लामशाह के बाद उसका पुत्र फिरोजशाह गद्दी पर आसीन हुआ। उसके अभिषेक के दो दिन बाद ही उसके मामा मुवारिज खाँ ने उसकी हत्या कर दी और वह स्वयं मुहम्मद शाह आदिल नाम से गद्दी पर बैठ गया लेकिन आदिल के चचेरे भाई इब्राहिम खाँ सूर ने विद्रोह कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसके बाद उसका भाई सिकन्दर सूर दिल्ली का शासक बना। सूरवंशीय शासक के रूप में सिकन्दर सूर दिल्ली के शासक बनने के बाद उसे मुगलों (हुमायूँ) के आक्रमण का भय था।
१५४५ ई. हुमायूँ ने ईरान शाह की सहायता से काबुल तथा कन्धार पर अधिकार कर लिया। १५५५ ई. में लाहौर को जीता। १५ मई
== [[मुगल]] शासन ==
जब [[जहाँगीर]] ने दिल्ली के राजसिंहासन १६०६ ई. में बैठा, तब उसने बिहार का सूबेदार लाल बेग या बाज बहादुर को नियुक्त किया। बाज बहादुर ने खडगपुर ने राजा संग्रामसिंह के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाया। बाज बहादुर ने नूरसराय का निर्माण कराया (जो स्थानीय परम्पराओं के अनुसार दरभंगा में एक मस्जिद एवं एक सराय है) यह नूरसराय मेहरुनिसा (नूरजहाँ) के बंगाल से दिल्ली जाने के क्रम में यहाँ रुकने के क्रम में बनायी गयी थी। १६०७ ई. बाज बहादुर ने जहाँगीर कुली खान की उपाधि पा गया था और उसे बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा गया। इसके बाद इस्लाम खान बिहार का गवर्नर बन गया १६०८ ई. में पुनः उसे भी बंगाल का गवर्नर बना दिया गया। इस्लाम के बाद अबुल फजल का पुत्र अब्दुर्रहीम या अफजल खान बिहार का सूबेदार बना तथा कुतुबशाह नामक विद्रोही को कुछ कठिनाइयों के बाद सफलतापूर्वक दबा दिया गया था।
१६१३ ई. में अफजल खान की मृत्यु के बाद जफर खान बिहार का सूबेदार बना। १६१५ ई. में नूरजहाँ का भाई इब्राहिम खाँ बिहार का सूबेदार बना लेकिन खडगपुर के राजा संग्राम सिंह के पुत्र द्वारा इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद उसने अपना राज्य प्राप्त कर लिया। इब्राहिम खान को १६१७ ई. में बंगाल के गवर्नर के रूप में स्थानान्तरण किया गया तथा जहाँगीर कुली खाँ द्वितीय को १६१८ ई. तक बिहार का गवर्नर नियुक्त कर दिया। फिर एक बार अफगानों और मुगलों की सेना के बीच १२ जुलाई
इसके पश्चात् रोहतास के क्षेत्रों में अफगानों का उपद्रव शुरू हो गया। काला पहाड़ नामक अफगान (जो बंगाल से आया था) के साथ मिलकर विद्रोह शुरू कर दिया। मालुम खान ने इसे पराजित कर मार डाला। फलतः शाहवाज खान ने रोहतास के किले एवं शेरगढ़ पर अधिकार कर लिया।
१६२२-२४ ई. की अवधि में शहजादा खुर्रम ने बादशाह के खिलाफ विद्रोह कर दिया। खुर्रम ने पटना, रोहतास आदि क्षेत्रों पर परवेज का अधिकार छीन लिया। इसी समय खुर्रम ने खाने दुर्रान (बैरम बेग) को बिहार का गवर्नर बनाया।
२६ अक्टूबर
एक शाही अधिकारी शहनवाज खान बिहार आया। उसने खान-ए-आजम के साथ मिलकर [[उज्जैन]] के सरदार दलपत शाही एवं अन्य विद्रोही अरब बहादुर को शान्त किया। राजा टोडरमल के शाही दरबार में लौटने के बाद शाहनवाज को वजीर नियुक्त किया गया। अब्दुल्ला खान के बाद मुमताज महल का भाई शाहस्ता खाँ को बिहार का गवर्नर (१६३९-४३ ई.) बनाया गया।
शाइस्ता खाँ ने १६४२ ई. में चेरो शासकों को पराजित कर दिया। उसके बाद उसने मिर्जा सपुर या इतिहाद खाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्त कर दिया। १६४३ ई. से १६४६ ई. तक चेरी शासक के खिलाफ पुनः अभियान चलाया गया। १६४६ ई. में बिहार का सूबेदार आजम खान को नियुक् किया गया। उसके बाद सईद खाँ बहादुर जंग को सूबेदार बनाया। इसके प्रकार १६५६ ई. में जुल्फिकार खाँ तथा १६५७ ई. में अल्लाहवर्दी ने बिहार का सूबेदारी का भा सम्भाला। अल्लाहवर्दी खान शाहजादा शुजा का साथ देने लगा, लेकिन शाही सेना ने शहजादा सुलेमान शिकोह एवं मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में शहजादा शुजा को पराजित कर दिया। १६ जनवरी
मुईउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब शाहजहाँ तथा मुमताज महल का छठवाँ पुत्र था जब औरंगजेब दिल्ली (५ जून
एक अन्य डच यात्री डी ग्रैफी भी इब्राहिम के शासनकाल में आया था। जॉन मार्शल ने बिहार के विभिन्न शहर भागलपुर, मुंगेर, फतुहा एवं हाजीपुर की चर्चा की है।
सिराजुद्दौला का प्रबल शत्रु मीर जाफर था। वह अलीवर्दी खाँ का सेनापति था। मीर जाफर बलपूर्वक बंगाल की गद्दी पर बैठना चहता था दूसरी तरफ अंग्रेज बंगाल पर अधिकार के लिए षड्यन्त्रकारियों की सहायता करते थे।
फलतः व्यापारिक सुविधाओं के प्रश्न पर तथा फरवरी, १७५७ ई. में हुई अलीनगर की सन्धि की शर्तों का ईमानदारी के पालन नहीं करने के कारण २३ जून
इस प्रकार बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा का नवाबी साम्राज्य धीरे-धीरे समाप्त हो गया और अंग्रेजी साम्राज्य की नींव पड़ गई।
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